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भारत का पहला मधुमेह बायोबैंक

Lokesh Pal December 19, 2024 03:34 26 0

संदर्भ 

भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (Indian Council of Medical Research-ICMR) और मद्रास मधुमेह अनुसंधान फाउंडेशन (Madras Diabetes Research Foundation-MDRF) ने संयुक्त रूप से भारत का पहला मधुमेह-विशिष्ट बायोबैंक (Biobank) चेन्नई में स्थापित किया है।

बायोबैंक 

  • बायोबैंक एक ऐसी सुविधा है, जो चिकित्सा अनुसंधान में उपयोग के लिए आमतौर पर मनुष्यों से प्राप्त जैविक नमूनों (रक्त, मूत्र, ऊतक एवं लार) को संग्रहीत करती है।
  • यह जीनोमिक्स एवं व्यक्तिगत चिकित्सा जैसे क्षेत्रों में अनुसंधान को आगे बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
  • भारत में बायोबैंक: यहाँ 19 पंजीकृत बायोबैंक हैं। इनमें कैंसर कोशिका रेखाएँ और ऊतक सहित कई प्रकार के जैविक नमूने संगृहीत हैं।
  • मुख्य पहल
    • जीनोम इंडिया कार्यक्रम: इसका उद्देश्य दुर्लभ आनुवंशिक रोगों के लिए उपचार की पहचान करना है।
    • फेनोम इंडिया परियोजना (Phenome India Project): यह परियोजना ‘कार्डियो-मेटाबोलिक’ रोगों के लिए बेहतर पूर्वानुमान मॉडल बनाने पर केंद्रित है।
    • बाल चिकित्सा दुर्लभ आनुवंशिक विकार (Paediatric Rare Genetic Disorders-PRaGeD) मिशन: यह मिशन बच्चों को प्रभावित करने वाली दुर्लभ आनुवंशिक बीमारियों हेतु लक्षित उपचार विकसित करने के लिए नए जीन या आनुवंशिक वेरिएंट की पहचान करने की दिशा में कार्य करता है।

बायोबैंक की मुख्य विशेषताएँ

  • रोग के जैव संकेतक की पहचान करने में सहायता करना, जैसे कि विशिष्ट रोगों से जुडी ‘सिंगल-न्यूक्लियोटाइड’ बहुरूपता।
  • उपचार विकसित करने और रोग तंत्र को समझने के लिए महत्त्वपूर्ण संसाधन प्रदान करना।
  • कई अध्ययनों में डेटा साझा करने को सक्षम करके सहयोगी अनुसंधान को बढ़ावा देना।

बायोबैंक का महत्त्व

  • बढ़ती स्वास्थ्य चिंता को संबोधित करना
    • भारत में 10 करोड़ से अधिक मधुमेह के मामले और 13.6 करोड़ ‘प्री-डायबिटीज’ के मामले हैं, जो विश्व स्तर पर सर्वाधिक हैं।
      • बेहतर समझ को सक्षम बनाना: बायोबैंक, पूरे भारत से जैविक नमूने संग्रहीत करता है, जिससे वैज्ञानिकों को मधुमेह में योगदान देने वाले आनुवंशिक कारकों, जीवनशैली और पर्यावरणीय कारकों का अध्ययन करने में मदद मिलती है।
        • निष्कर्षों से बेहतर उपचार, निवारक उपाय और लक्षित उपचार प्राप्त हो सकते हैं।
  • नमूनों का विशाल संग्रह: संपूर्ण भारत के विभिन्न क्षेत्रों और समुदायों से एकत्र किए गए 1.5 लाख से अधिक जैविक नमूने इसमें शामिल हैं।
  • व्यापक अध्ययनों पर आधारित
    • ICMR-INDIAB अध्ययन: भारत में मधुमेह पर सबसे बड़ा अध्ययन, जिसमें शहरी और ग्रामीण आबादी शामिल है।
    • ICMR-YDR अध्ययन: युवा अवस्था में होने वाली मधुमेह पर केंद्रित एक राष्ट्रीय रजिस्ट्री।

भारत अन्य बायोबैंक से क्या सीख सकता है?

  • बायोबैंक ने संपूर्ण विश्व में चिकित्सा अनुसंधान में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।
    • उदाहरण: 5 लाख प्रतिभागियों के डेटा के साथ यूके बायोबैंक ने हजारों वैज्ञानिक अन्वेषणों को जन्म दिया है।
      • अमेरिका, चीन और यूरोप में इसी तरह की पहल कैंसर, आनुवंशिकी और दुर्लभ बीमारियों जैसे प्रमुख क्षेत्रों पर केंद्रित है।
  • भारत का पहला मधुमेह बायोबैंक, मधुमेह संबंधी अनुसंधान का समर्थन करने के लिए जैविक नमूनों के लिए एक केंद्रीय केंद्र के रूप में कार्य करेगा, लेकिन इसे कई उपाय करने होंगे, जैसे कि-
    • व्यापक बुनियादी ढाँचा और सख्त गुणवत्ता नियंत्रण सुनिश्चित करना: अपने बायोबैंक की विश्वसनीयता और स्थिरता सुनिश्चित करना।
    • सार्वजनिक जुड़ाव एवं विश्वास: भारत को सामुदायिक बैठकों, केंद्रीकृत समूह चर्चाओं और नागरिक-विशेषज्ञ पैनलों के माध्यम से ‘बायोबैंकिंग’ प्रयासों में अपनी विविध आबादी को शामिल करना चाहिए।
    • स्वास्थ्य सेवा प्रणालियों के साथ एकीकरण: बेहतर डेटा संग्रह और अनुसंधान की सुविधा के लिए, भारत को इलेक्ट्रॉनिक स्वास्थ्य रिकॉर्ड के माध्यम से कार्य करना चाहिए।

बायोबैंक बनाए रखने में चुनौतियाँ

  • उच्च लागत और रसद: ‘सैंपल’ को बनाए रखने के लिए महत्त्वपूर्ण धन, उन्नत बुनियादी ढाँचे और कुशल कर्मियों की आवश्यकता होती है।
  • नैतिक चिंताएँ: सूचित सहमति और गोपनीयता जैसे मुद्दों को सावधानीपूर्वक संबोधित किया जाना चाहिए।
  • कुशल कार्मिक: ‘सैंपल’ को प्रबंधित करने और बनाए रखने के लिए प्रशिक्षित पेशेवरों की आवश्यकता होती है।

भारत के बायोबैंकिंग विनियमन

  • भारत में बायोबैंक को नियंत्रित करने वाला कानूनी ढाँचा
    • व्यापक कानून का अभाव
      • भारत में बायोबैंक के लिए कोई विशिष्ट कानून नहीं है।
      • मौजूदा दिशा-निर्देश लागू करने योग्य नहीं हैं, जिससे विनियामक अंतराल उत्पन्न होते हैं।
    • ICMR द्वारा राष्ट्रीय नैतिक दिशा-निर्देश
      • भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) ने मनुष्यों से जुड़े जैव चिकित्सा अनुसंधान के लिए नैतिक दिशा-निर्देश जारी किए हैं।
        • ये दिशा-निर्देश कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं हैं और बायोबैंक के लिए दीर्घकालिक भंडारण या डेटा साझाकरण को पूरी तरह से संबोधित नहीं करते हैं।
    • जैव प्रौद्योगिकी विभाग (DBT) मानक
      • DBT ने डेटा भंडारण और विश्लेषण के लिए अभ्यास निर्धारित किए हैं।
        • हालाँकि, ये लागू करने योग्य नहीं हैं और सूचित सहमति एवं गोपनीयता जैसे मुद्दों को पर्याप्त रूप से शामिल नहीं करते हैं।
    • एकल विनियामक प्राधिकरण का अभाव
      • भारत में बायोबैंक के लिए समर्पित विनियामक प्राधिकरण का अभाव है।
        • इसके परिणामस्वरूप बायोबैंकिंग गतिविधियों में असंगतता और सीमित निगरानी होती है।

मधुमेह 

  • यह बीमारी तब होती है जब अग्न्याशय इंसुलिन का उत्पादन नहीं कर पाता या शरीर इंसुलिन का प्रभावी ढंग से उपयोग नहीं कर पाता है।
    • इंसुलिन की भूमिका: रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित करने में मदद करता है।
  • दीर्घकालिक प्रभाव: अंगों एवं ऊतकों को नुकसान पहुँचा सकता है, जिससे अंधापन, गुर्दे की विफलता, दिल का दौरा, स्ट्रोक और अंग विच्छेदन हो सकता है।

मधुमेह के प्रकार

  • टाइप 1 मधुमेह
    • स्वप्रतिरक्षी स्थिति: प्रतिरक्षा प्रणाली अग्न्याशय में इंसुलिन-उत्पादक बीटा कोशिकाओं को नष्ट कर देती है।
  • टाइप 2 मधुमेह
    • इंसुलिन अप्रभावीता: शरीर इंसुलिन का ठीक से उपयोग नहीं कर सकता, हालाँकि यह इसका उत्पादन कर सकता है।
    • व्यापकता: वैश्विक मधुमेह के 95% से अधिक मामलों के लिए जिम्मेदार है।

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