भारत और चीन कैलाश मानसरोवर यात्रा, सीमापार नदी सहयोग और नाथुला सीमा व्यापार को पुनः शुरू करने पर सहमत हुए।
मानसरोवर झील
अवस्थिति: चीन के तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र में कैलाश पर्वत की तलहटी के पास स्थित है।
झील का प्रकार: एक मीठे जल की झील, हालाँकि तिब्बती पठार पर बड़ी खारी झीलें हैं।
जल का स्रोत: कैलाश ग्लेशियरों द्वारा पुनःपूर्ति।
पारिस्थितिक महत्त्व
ब्रह्मपुत्र नदी मानसरोवर झील से निकलती है।
सिंधु नदी भी कैलाश पर्वत श्रृंखला में ‘बोखर चू’ (Bokhar Chu) ग्लेशियर से मानसरोवर झील के पास निकलती है।
कैलाश मानसरोवर यात्रा
पवित्र स्थल और महत्त्व: कैलाश मानसरोवर हिंदुओं, बौद्ध, जैन और ‘बॉन’ अनुयायियों के लिए एक पूजनीय तीर्थ स्थल है।
भगवान शिव का निवास माना जाने वाले कैलाश पर्वत और मानसरोवर झील का गहरा आध्यात्मिक महत्त्व है।
यह तिब्बत के पठार के पश्चिमी भाग में ट्रांस हिमालय के गंगडिसे पर्वत (Gangdisê Mountains) (जिसे कैलाश रेंज भी कहा जाता है) पर स्थित है।
कैलाश पर्वत की चोटी 6,638 मीटर (21,778 फीट) ऊँची है।
अवधि और अनुभव: यात्रा आमतौर पर 14-16 दिनों तक चलती है, जिसमें उच्च तुंगता युक्त इलाकों से कठिन ‘ट्रैकिंग’ शामिल होती है।
तीर्थयात्री हिमालय की प्राकृतिक सुंदरता का अनुभव करते हैं, अनुष्ठानों में भाग लेते हैं और कैलाश पर्वत की परिक्रमा करते हैं।
कैलाश मानसरोवर यात्रा मार्ग
लिपुलेख दर्रा (उत्तराखंड)
यह हिमालय में भारत, नेपाल और चीन (तिब्बत) के ‘ट्राई-जंक्शन’ पर अवस्थित है।
लगभग 5,334 मीटर की ऊँचाई पर अवस्थित है।
ऐतिहासिक रूप से एक महत्त्वपूर्ण व्यापार मार्ग के रूप में कार्य करता है।
इसे कैलाश पर्वत और ओम पर्वत के प्रवेश द्वार के रूप में जाना जाता है।
हिंदू धर्म और अन्य धर्मों में पूजनीय दो पवित्र चोटियों, कैलाश पर्वत और ओम पर्वत को देखने के लिए सुविधाजनक स्थान प्रदान करता है।
नाथुला दर्रा (सिक्किम): यह अधिक सुगम और छोटा मार्ग है।
कम ‘ट्रैकिंग’ आवश्यकताओं के कारण यह वृद्ध तीर्थयात्रियों के लिए उपयुक्त है।
‘नाथू ला’ प्राचीन ‘सिल्क रोड’ का एक हिस्सा है और भारत एवं चीन के बीच तीन सीमा व्यापार चौकियों में से एक है।
नेपाल मार्ग: काठमांडू और नेपाल-चीन सीमा के माध्यम से एक वैकल्पिक मार्ग।
अपनी सुविधा के कारण अंतरराष्ट्रीय तीर्थयात्रियों के बीच लोकप्रिय।
नाथू ला दर्रा व्यापारिक मार्ग
नाथू ला दर्रा भारत और चीन को जोड़ने वाला एक ऐतिहासिक व्यापार मार्ग है। वर्ष 1962 के चीन-भारत युद्ध के बाद से बंद रहने के बाद इसे वर्ष 2006 में पुनः खोला गया।
व्यापार मार्ग: यह भारत के सिक्किम में स्थित प्राचीन रेशम मार्ग का हिस्सा है, जो चीन के तिब्बती स्वायत्त क्षेत्र से जुड़ता है।
हाल ही में आई रुकावटें: भारत और चीन के बीच भू-राजनीतिक तनाव के कारण नाथू ला दर्रे के माध्यम से व्यापार इसके पुनः खुलने के बाद भी कम ही रहा है।
वर्ष 2020 में सीमा पर हुई झड़पों के कारण व्यापार गतिविधियों में अस्थायी रुकावटें आईं।
आर्थिक प्रभाव: चुनौतियों के बावजूद, नाथू ला दर्रा भारत और चीन के बीच आर्थिक संबंधों को बढ़ाने की महत्त्वपूर्ण क्षमता रखता है, बशर्ते कि एक स्थिर भू-राजनीतिक वातावरण बना रहे।
इसमें सिक्किम और पड़ोसी क्षेत्रों में आर्थिक विकास को बढ़ावा देने की बहुत संभावना है।
सीमापार नदी सहयोग (Transborder River Cooperation)
भू-राजनीतिक तनाव और बदलती जल आवश्यकताओं के कारण भारत और चीन के बीच सीमा पार नदी सहयोग एक जटिल मुद्दा है।
दो मुख्य सीमा पार नदियाँ ब्रह्मपुत्र (तिब्बत में यारलुंग त्संगपो कहा जाता है) और सिंधु हैं।
समझौता ज्ञापन (MoUs): भारत और चीन ने इन नदियों पर जल विज्ञान संबंधी आँकड़ों के आदान-प्रदान के लिए समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किए हैं, विशेषतौर पर बाढ़ के मौसम के दौरान।
जलविद्युत विकास: ब्रह्मपुत्र पर चीन की व्यापक जलविद्युत परियोजनाएँ भारत में जल प्रवाह और अवसाद पर संभावित ‘डाउनस्ट्रीम’ प्रभावों के बारे में चिंताएँ उत्पन्न करती हैं।
डेटा साझा करना: हालाँकि जल विज्ञान संबंधी आँकड़ों को साझा करने के प्रयास किए गए हैं, लेकिन असंगतता और देरी ने अक्सर प्रभावी सहयोग में बाधा उत्पन्न की है।
भू-राजनीतिक तनाव: भारत और चीन के बीच समग्र तनावपूर्ण संबंध सीमा पार नदी सहयोग पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं, जिससे विश्वास निर्माण करना और दीर्घकालिक तंत्र स्थापित करना मुश्किल हो जाता है।
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