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मार्च 2026 तक माओवाद को समाप्त करना

Lokesh Pal December 21, 2024 04:18 14 0

संदर्भ

केंद्रीय गृह मंत्री ने सभी बलों और एजेंसियों से मार्च 2026 तक वामपंथी उग्रवाद को पूरी तरह से समाप्त करने के लक्ष्य को हासिल करने के लिए संयुक्त प्रयास करने को कहा है।

प्रमुख घोषणाएँ एवं घटनाक्रम

  • माओवादियों को समाप्त करने का लक्ष्य: केंद्रीय गृह मंत्री ने 31 मार्च, 2026 तक छत्तीसगढ़ से माओवादियों को समाप्त करने का संकल्प लिया।
    • उन्होंने पिछले दशक में सुरक्षाकर्मियों की मौतों में 73% की कमी और नागरिक हत्याओं में 70% की कमी पर प्रकाश डाला।
  • छत्तीसगढ़ में उपलब्धियाँ
    • पिछले वर्ष 287 माओवादियों को मार गिराया गया, 1,000 को गिरफ्तार किया गया तथा 837 माओवादियों को आत्मसमर्पण करवाने में सहायता की गई।
    • माओवादी हिंसा से नष्ट हुए स्कूलों और बुनियादी ढाँचे को पुनर्स्थापित किया जा रहा है।
  • छत्तीसगढ़ पुलिस को ‘प्रेसिडेंट्स कलर अवार्ड’ से सम्मानित किया गया: अपने साहस और सेवा के लिए पहचाने जाने वाले राज्य के पुलिस बल को यह प्रतिष्ठित सम्मान प्राप्त हुआ, जो आमतौर पर 25 वर्ष की सेवा के बाद दिया जाता है।

माओवाद के संबंध में

  • माओवाद माओत्से तुंग द्वारा विकसित साम्यवाद का एक रूप है।
  • यह सशस्त्र विद्रोह, जन-आंदोलन और रणनीतिक गठबंधनों के संयोजन के माध्यम से राज्य की सत्ता पर नियंत्रण करने का सिद्धांत है।

उत्पत्ति और विकास

  1. नक्सलबाड़ी विद्रोह [Naxalbari Uprising] (1967)
    • पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी गाँव के नाम पर इसका नाम रखा गया, जहाँ यह किसान विद्रोह के रूप में शुरू हुआ था।
    • गरीब किसानों और जमींदारों के बीच भूमि विवाद के कारण शुरू हुआ।
    • माओवादी विचारधारा से प्रेरित चारु मजूमदार, कानू सान्याल और जंगल संथाल के नेतृत्व में।
  2. साम्यवादी आधार
    • भारत में माओवाद, माओत्से तुंग की विचारधारा से उत्पन्न हुआ है, जो सशस्त्र क्रांति के माध्यम से राज्य की सत्ता को उखाड़ फेंकने और साम्यवादी राज्य की स्थापना की वकालत करता है।
    • वैचारिक मतभेदों के कारण यह आंदोलन CPI (M) जैसी मुख्यधारा की कम्युनिस्ट पार्टियों से अलग हो गया। 
  3. CPI (माओवादी) का गठन
    • वर्ष 2004 में, दो मुख्य माओवादी गुटों, पीपुल्स वॉर ग्रुप (PWG) और माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर (MCC) का विलय होकर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) का गठन हुआ, जिससे वामपंथी उग्रवाद (Left Wing Extremism- LWE) में उल्लेखनीय वृद्धि हुई।

भारत में माओवाद के चरण

  • प्रारंभिक चरण (1967-1980)
    • माओवादी गतिविधियाँ मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश और बिहार तक ही सीमित थी।
    • हालाँकि, राज्य द्वारा दमन ने आंदोलन को भूमिगत होने और गुरिल्ला युद्ध की रणनीति अपनाने के लिए मजबूर किया।
  • विस्तार चरण (1980-2000)
    • माओवादियों का प्रभाव रेड कोरिडोर में फैला हुआ है, जिसमें झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश जैसे राज्य शामिल हैं। 
    • माओवादियों ने आदिवासी क्षेत्रों में समानांतर शासन संरचनाएँ स्थापित कीं, स्थानीय आबादी की सामाजिक-आर्थिक मुद्दों का लाभ उठाया।
  • हिंसा का चरम (2000 का दशक)
    • भारत सरकार के अनुसार, 2000 के दशक के अंत तक माओवादियों ने ‘आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा’ उत्पन्न कर दिया था।
    • इस अवधि के दौरान उल्लेखनीय घटनाओं में वर्ष 2010 का दंतेवाड़ा हमला शामिल है, जिसमें CRPF के 76 जवान मारे गए थे।
  • गिरावट का दौर (2010 के बाद)
    • सुरक्षा अभियानों और विकास कार्यक्रमों को मिलाकर की गई सरकारी पहलों के परिणाम दिखने शुरू हो गए।
    • माओवादियों का प्रभाव काफी कम हो गया और उनके नियंत्रण वाले क्षेत्र सिकुड़ने लगे।
  • माओवादी विचारधारा की मुख्य विशेषताएँ
    • सशस्त्र संघर्ष: माओवादी विचारधारा माओत्से तुंग की ‘दीर्घकालिक जनयुद्ध’ की रणनीति का अनुसरण करती है, जो ग्रामीण आधार बनाने और गुरिल्ला युद्ध करने पर जोर देती है।

    • हाशिए पर पड़े समुदायों पर ध्यान: माओवादी हाशिए पर पड़े समुदायों, विशेष रूप से आदिवासियों और भूमिहीन किसानों के अधिकारों के लिए लड़ने का दावा करते हैं, लेकिन वे अपने विद्रोह को जीवंत रखने के लिए बल प्रयोग भी करते हैं।
    • लोकतंत्र का विरोध: माओवादी लोकतांत्रिक संस्थाओं को अस्वीकार करते हैं, उन्हें बुर्जुआ उत्पीड़न के उपकरण के रूप में देखते हैं।
      1. उनका लक्ष्य मौजूदा व्यवस्था को माओवादी सिद्धांतों पर आधारित साम्यवादी राष्ट्र से बदलना है।

माओवाद या वामपंथी उग्रवाद (LWE) में योगदान देने वाले कारक

  • भूमि अधिग्रहण और विस्थापन: भूमि सुधारों का अभाव और विकास परियोजनाओं के कारण आदिवासियों का विस्थापन माओवादी गतिविधियों के लिए प्रमुख कारण हैं। 
    • झारखंड और छत्तीसगढ़ में खनन परियोजनाओं के कारण बड़े पैमाने पर विस्थापन ने आदिवासियों में आक्रोश को बढ़ावा दिया है। 
    • केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्रालय के अनुसार, वर्ष 1951 से 1990 के बीच विकास परियोजनाओं के कारण विस्थापित हुए लोगों में से 40% से अधिक आदिवासी थे, लेकिन केवल 25% का ही पुनर्वास हुआ।
  • गरीबी तथा विकास का अभाव: वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित क्षेत्रों में अक्सर गरीबी का स्तर अधिक होता है और शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और बुनियादी ढाँचे जैसी बुनियादी सुविधाओं तक पहुँच कम होती है।
    • बस्तर (छत्तीसगढ़) के आदिवासी इलाकों में साक्षरता और स्वास्थ्य सेवा जैसे विकास सूचकांक राष्ट्रीय औसत से बहुत पीछे हैं।
    • चरमपंथ प्रभावित क्षेत्रों में विकास की चुनौतियाँ: इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि इन क्षेत्रों में गरीबी, अभाव और बुनियादी संसाधनों तक पहुँच की कमी व्याप्त है, जो नक्सली आंदोलनों को समर्थन देने में योगदान देता है।
  • शासन की कमी: दूरदराज के आदिवासी इलाकों में राज्य की कमजोर उपस्थिति और सार्वजनिक सेवाओं की अपर्याप्त डिलीवरी के कारण शासन में शून्यता उत्पन्न होती है, जिसका माओवादी लाभ उठाते हैं।
    • ओडिशा के दूरदराज के गाँवों में स्कूलों और स्वास्थ्य सुविधाओं की अनुपस्थिति ने माओवादियों के लिए स्थानीय समर्थन हासिल करना आसान बना दिया है।
    • कुछ वामपंथी उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों में, सुरक्षा और बुनियादी ढाँचे की कमी के कारण पंचायती राज के पद खाली पड़े हैं।
    • डी. बंदोपाध्याय समिति, 2006 ने निष्कर्ष निकाला कि नक्सलवाद शासन की विफलताओं और आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक तथा सांस्कृतिक जीवन में आदिवासी समुदायों के विरुद्ध व्यापक भेदभाव के कारण फैला।
  • जमींदारों और निगमों द्वारा शोषण: आदिवासी और हाशिए पर पड़े समुदायों को जमींदारों, साहूकारों और निगमों द्वारा शोषण का सामना करना पड़ता है, जिससे सामाजिक-आर्थिक असमानताएँ और भी गहरी हो जाती हैं।
    • आंध्र प्रदेश में, आदिवासियों को खनन निगमों को अपनी जमीन देने के लिए मजबूर किया गया, जिससे 1990 के दशक में माओवादी विद्रोह भड़क उठे।
  • सामाजिक और राजनीतिक हाशिए पर: आदिवासी और दलित, जो वामपंथी उग्रवाद के प्राथमिक समर्थक हैं, अक्सर राजनीतिक प्रक्रिया से अलग-थलग महसूस करते हैं और न्याय पाने में असमर्थ होते हैं।
    • वन अधिकार अधिनियम, 2006 को लागू करने में विफलता ने कई आदिवासियों को उनकी पैतृक भूमि के स्वामित्व से वंचित कर दिया है।
    • जनजातीय मामलों के मंत्रालय के अनुसार, वर्ष 2022 तक वन अधिकार अधिनियम के अंतर्गत केवल 19.8% दावों को मंजूरी दी गई।
  • कनेक्टिविटी और बुनियादी ढाँचे का अभाव: खराब सड़क और दूरसंचार कनेक्टिविटी वाले दूरदराज के क्षेत्र सरकारी पहुँच से अलग हो जाते हैं, जिससे वे माओवादी गतिविधियों के लिए अनुकूल क्षेत्र बन जाते हैं।

वामपंथी उग्रवाद से निपटने के लिए भारत सरकार की त्रिआयामी पहल

  • सुरक्षा उपाय
    • यूएवी और मोबाइल टॉवरों सहित उन्नत हथियारों और प्रौद्योगिकी के साथ केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों (CAPF) और राज्य पुलिस की तैनाती।
    • ऑपरेशन समाधान जैसे समन्वित अभियान कार्रवाई योग्य खुफिया जानकारी और क्षमता निर्माण पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
    • कमजोर क्षेत्रों को सुरक्षित करने के लिए 610 किलेबंद पुलिस स्टेशनों और बेहतर संचार बुनियादी ढाँचे का निर्माण।
  • विकास पहल
    • PMGSY, सड़क संपर्क योजनाएँ तथा वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित 47 जिलों के लिए कौशल विकास योजनाएँ जैसी बुनियादी ढाँचा परियोजनाएँ।
    • आकांक्षी जिला कार्यक्रम के अंतर्गत कल्याणकारी योजनाओं का कार्यान्वयन, 100% गाँव संतृप्ति प्राप्त करना।
  • सशक्तीकरण और पुनर्वास
    • सिविक एक्शन प्रोग्राम (CAP) और शिक्षा, व्यावसायिक प्रशिक्षण और वित्तीय सहायता प्रदान करने वाली समर्पण नीतियाँ।
    • वन अधिकार अधिनियम (2006) को लागू करने और सार्वजनिक सहभागिता और निष्पक्ष भूमि अधिग्रहण नीतियों के माध्यम से शिकायतों को दूर करने पर ध्यान केंद्रित करना।

भारत में वामपंथी उग्रवाद/माओवाद का मुकाबला करने के लिए सरकार के प्रयास

  • राष्ट्रीय नीति और कार्य योजना (2015): सरकार ने सुरक्षा, विकास और स्थानीय समुदायों के अधिकारों और हकों को सुनिश्चित करने के लिए एक बहुआयामी रणनीति अपनाई।
    • घटक: क्षमता निर्माण, शासन को मजबूत करने और धारणा प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित करना।
  • समाधान रणनीति: गृह मंत्रालय द्वारा प्रस्तुत समाधान (SAMADHAN) वामपंथी उग्रवाद से निपटने के लिए एक व्यापक नीति है। इसका अर्थ है:-
    • S का अर्थ है स्मार्ट लीडरशिप
    • A का अर्थ है आक्रामक रणनीति (Aggressive Strategy) 

    • M का अर्थ है प्रेरणा और प्रशिक्षण (Motivation and Training)
    • A का अर्थ है कार्रवाई योग्य खुफिया जानकारी (Actionable Intelligence)
    • D का अर्थ है डैशबोर्डआधारित प्रमुख परिणाम क्षेत्र और प्रमुख प्रदर्शन संकेतक (Dashboard-based Key Result Areas and Key Performance Indicators)
    • H का अर्थ है प्रौद्योगिकी का दोहन (Harnessing Technology)
    • A का अर्थ है प्रत्येक थिएटर के लिए कार्य योजना (Action Plan for Each Theatre) 
    • N का अर्थ है वित्तपोषण तक पहुँच नहीं (No access to Financing)।
    • कार्रवाई योग्य खुफिया जानकारी के लिए ड्रोन और UAV के उपयोग से माओवादी विरोधी अभियानों की प्रभावशीलता में सुधार हुआ है।
  • पुनर्वास और आत्मसमर्पण नीतियाँ
    • आत्मसमर्पित माओवादियों के लिए व्यापक पुनर्वास नीतियों में कौशल विकास, शिक्षा और वित्तीय पैकेज शामिल हैं।
    • छत्तीसगढ़ की नीति ने वर्ष 2023 में 837 माओवादियों के आत्मसमर्पण की सुविधा प्रदान की।
    • सुरक्षा संबंधी व्यय (Security Related Expenditure- SRE) योजना के तहत पुनर्वास योजनाओं में अनुग्रह भुगतान और पुनः एकीकरण के लिए सहायता शामिल है।
  • स्थानीय शासन को सशक्त बनाना
    • वन अधिकार अधिनियम (2006) और अन्य कल्याणकारी योजनाओं के प्रभावी कार्यान्वयन के माध्यम से स्थानीय शासन को मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित करना।
    • प्रभावित क्षेत्रों में विश्वास बनाने और सार्वजनिक सेवाओं की डिलीवरी सुनिश्चित करने के लिए पंचायती राज संस्थाओं के साथ जुड़ाव बढ़ाना।
  • नागरिक कार्रवाई कार्यक्रम
    • नागरिक कार्रवाई कार्यक्रम (CAP): सुरक्षा बलों और स्थानीय आबादी के बीच के अंतराल को पाटने के लिए चिकित्सा शिविर, खेल आयोजन और शैक्षिक अभियान जैसी कल्याणकारी गतिविधियाँ आयोजित करता है।
      • वर्ष 2017 से वामपंथी उग्रवाद वाले क्षेत्रों में कल्याणकारी गतिविधियों के लिए ₹123 करोड़ मूल्य के CAP फंड का उपयोग किया गया है।
  • जागरूकता और मीडिया योजनाएँ
    • मीडिया योजना: पुलिस बलों के आधुनिकीकरण’ की अम्ब्रेला योजना की उप-योजना के रूप में कार्यान्वित की गई।
      • रेडियो जिंगल्स, वृत्तचित्रों, पैंफलेटों और युवा आदान-प्रदान कार्यक्रमों के माध्यम से माओवादी प्रचार का मुकाबला करना।
      • छत्तीसगढ़ और झारखंड में माओवादी आख्यानों का मुकाबला करने में आदिवासी बोलियों में रेडियो कार्यक्रम प्रभावी रहे हैं।
  • निगरानी और समन्वय
    • केंद्रीय गृह मंत्री, प्रभावित राज्यों के मुख्यमंत्रियों और शीर्ष सुरक्षा अधिकारियों की नियमित समीक्षा बैठकें।
    • वामपंथी उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों में केंद्र और राज्य के अधिकारियों के लगातार दौरे से बलों के समन्वय तथा मनोबल में सुधार हुआ है।

वामपंथी उग्रवाद/माओवाद से निपटने के लिए सरकारी उपायों का प्रभाव

  • हिंसा में कमी: वर्ष 2010 के बाद से हिंसक घटनाओं में 77% की कमी आई है और इसी अवधि के दौरान नागरिकों और सुरक्षा कर्मियों के बीच घायलों की संख्या में 90% की कमी आई है।
    • वर्ष 2022 में माओवादी संबंधित हिंसक घटनाओं की संख्या चार दशकों में सबसे कम थी।
  • प्रभाव के क्षेत्रों में कमी: माओवादी प्रभावित जिलों की संख्या 90 से घटकर 45 रह गई है तथा मुख्य क्षेत्र अब मुख्य रूप से छत्तीसगढ़ और झारखंड के कुछ हिस्सों तक सीमित रह गए हैं।
  • सुधारित बुनियादी ढाँचा: वामपंथी उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों के लिए सड़क संपर्क परियोजना और 5,373 मोबाइल टॉवरों की स्थापना जैसी परियोजनाओं ने दूरदराज के क्षेत्रों में पहुँच और संचार को बेहतर बनाया है, जिससे माओवादियों का नियंत्रण कम हुआ है।
  • सफल पुनर्वास: आत्मसमर्पण और पुनर्वास नीतियों को सफलता मिली है, जिसमें प्रत्येक वर्ष सैकड़ों माओवादी आत्मसमर्पण कर रहे हैं।
    • अकेले छत्तीसगढ़ में, वर्ष 2023 में 837 माओवादियों ने कौशल विकास और वित्तीय सहायता का लाभ उठाते हुए आत्मसमर्पण किया।

भारत में वामपंथी उग्रवाद/माओवाद को नियंत्रित करने की चुनौतियाँ

  • भौगोलिक और सैन्य चुनौतियाँ: माओवादियों के गढ़ सुदूर, पहाड़ी और जंगली इलाकों में स्थित हैं, जिससे सुरक्षा बलों के लिए वहाँ पहुँचना जटिल हो जाता है।
    • दंडकारण्य (छत्तीसगढ़) और सारंडा (झारखंड) के घने जंगल माओवादी अभियानों के लिए प्राकृतिक सुरक्षा प्रदान करते हैं।
    • खराब बुनियादी ढाँचा, जैसे अपर्याप्त सड़क नेटवर्क, आतंकवाद विरोधी प्रयासों को और बाधित करता है।
  • सामाजिक-आर्थिक शिकायतें: माओवादी हाशिए पर पड़े समुदायों के बीच समर्थन हासिल करने के लिए गरीबी, भूमि पर कब्जे और बुनियादी सुविधाओं की कमी जैसे सामाजिक-आर्थिक मुद्दों का लाभ उठाते हैं।
    • खनन परियोजनाओं से विस्थापित होने वाले आदिवासियों को अक्सर अपर्याप्त मुआवजा मिलता है, जिससे नाराजगी बढ़ती है।
    • नीति आयोग के अनुसार, माओवादी प्रभावित क्षेत्र भारत में सबसे गरीब क्षेत्रों में से हैं, जहाँ स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा तक सीमित पहुँच है।
  • शासन की कमी: दूरदराज के क्षेत्रों में राज्य की कम उपस्थिति और प्रभावी प्रशासन का अभाव एक रिक्तता उत्पन्न करता है, जिसे माओवादी समूह भर देते हैं।
    • बस्तर जैसे क्षेत्रों में, सरकारी सेवाएँ न्यूनतम हैं और माओवादी समानांतर शासन प्रणाली संचालित करते हैं।
    • सुरक्षा चिंताओं और खराब क्षमता निर्माण प्रयासों के कारण कई माओवादी प्रभावित क्षेत्रों में पंचायती राज संस्थाओं का कम उपयोग किया जाता है।
  • अपर्याप्त खुफिया जानकारी और समन्वय: केंद्रीय और राज्य एजेंसियों के बीच खुफिया जानकारी साझा करने में विसंगति बनी हुई है, जिससे परिचालन अक्षमताएँ उत्पन्न होती हैं।
    • वर्ष 2013 में दरभा घाटी में हुए हमले, जिसमें माओवादियों ने 27 लोगों की हत्या कर दी थी, को खराब खुफिया समन्वय के कारण ही अंजाम दिया गया था।
  • आदिवासियों का अलगाव: माओवादी समर्थन की रीढ़ की हड्डी बनने वाले आदिवासी अक्सर अपने अधिकारों और सांस्कृतिक पहचान की मान्यता की कमी के कारण अलग-थलग महसूस करते हैं।
    • वन अधिकार अधिनियम (2006) के खराब क्रियान्वयन ने कई आदिवासियों को उनकी पैतृक भूमि पर कानूनी दावों से वंचित कर दिया है।
  • आर्थिक शोषण: आदिवासी क्षेत्रों में जमींदारों, साहूकारों और निगमों द्वारा शोषण असंतोष को बढ़ावा देता रहता है।
    • आंध्र प्रदेश में, खनन परियोजनाओं के लिए जबरन भूमि अधिग्रहण ने कुछ इलाकों में माओवादी विद्रोह को बढ़ावा दिया है।
  • पुनर्वास में कठिनाई: कौशल की कमी, कलंक और सरकारी पुनर्वास योजनाओं के प्रति अविश्वास के कारण माओवादी कैडरों को समाज में फिर से शामिल होना चुनौतीपूर्ण लगता है।
    • आत्मसमर्पित कई माओवादी अपर्याप्त वित्तीय सहायता या नौकरी के अवसरों के बारे में शिकायत करते हैं, जो आत्मसमर्पण नीतियों को कमजोर करता है।
  • बाहरी समर्थन और नेटवर्किंग: माओवादी भारत और विदेशों में अन्य विद्रोही समूहों के साथ संबंध बनाए रखते हैं, जिससे उनकी हिंसा करने की क्षमता बढ़ती है।
    • गृह मंत्रालय के अनुसार, CPI (माओवादी) ने PLA (मणिपुर) जैसे पूर्वोत्तर विद्रोही समूहों तथा नेपाल एवं फिलीपींस में विदेशी माओवादी संगठनों के साथ संबंध स्थापित किए हैं।
    • कई गैर-सरकारी संगठनों पर सरकार विरोधी बयानों को बढ़ावा देकर माओवादी गतिविधियों को अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन देने का आरोप लगाया गया है।
  • विकास और सुरक्षा में संतुलन: एक पहलू पर अत्यधिक ध्यान देने से अक्सर दूसरा पहलू कमजोर हो जाता है।
    • आक्रामक सुरक्षा अभियान स्थानीय आबादी को अलग-थलग कर सकते हैं, जबकि सुरक्षा जोखिमों को संबोधित किए बिना विकास पर अत्यधिक जोर देने से परियोजनाएँ माओवादी हमलों के प्रति संवेदनशील हो सकती हैं।

भारत में वामपंथी उग्रवाद/माओवाद से निपटने के लिए आगे की राह

  • शासन और विकास को मजबूत करना: शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और स्वच्छ पेयजल जैसी सार्वजनिक सेवाओं के प्रभावी वितरण के माध्यम से दूरदराज के क्षेत्रों में शासन को बेहतर बनाने पर ध्यान केंद्रित करना।
    • वन संसाधनों पर आदिवासी अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए वन अधिकार अधिनियम (2006) को प्रभावी ढंग से लागू करना।
  • समावेशी विकास को बढ़ावा देना: कौशल विकास, रोजगार सृजन और सड़क तथा दूरसंचार कनेक्टिविटी जैसी बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के माध्यम से वामपंथी उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों में सामाजिक-आर्थिक अवसरों को बढ़ाना।
    • माओवादी प्रभावित जिलों को कवर करने के लिए आकांक्षी जिला कार्यक्रम का विस्तार करना।
  • सुरक्षा उपायों को बढ़ाना: बेहतर खुफिया जानकारी जुटाने और आतंकवाद विरोधी अभियानों के लिए ड्रोन, UAV और उन्नत निगरानी जैसी आधुनिक तकनीक का उपयोग करना।
    • खुफिया जानकारी के निर्बाध आदान-प्रदान को सुनिश्चित करने के लिए राज्य और केंद्रीय एजेंसियों के बीच समन्वय में सुधार करना।
  • पुनर्वास और पुनः एकीकरण: आत्मसमर्पण करने वाले कैडरों को कौशल प्रशिक्षण, नौकरी के अवसर और मनोवैज्ञानिक सहायता प्रदान करके आत्मसमर्पण और पुनर्वास नीतियों को मजबूत करना।
  • समुदायों को शामिल करना: आदिवासी और स्थानीय नेताओं को शांति दूत और मध्यस्थ के रूप में कार्य करने के लिए सशक्त बनाना।
    • सरकार और प्रभावित आबादी के बीच विश्वास को फिर से बनाने के लिए सामुदायिक पुलिसिंग और स्थानीय शासन में भागीदारी को प्रोत्साहित करना।
  • दुष्प्रचार का मुकाबला करना: जन जागरूकता अभियान, क्षेत्रीय मीडिया का उपयोग और आदिवासी समुदायों को मुख्यधारा के समाज से जोड़ने के लिए युवा आदान-प्रदान कार्यक्रम जैसी पहलों के माध्यम से माओवादी दुष्प्रचार को संबोधित करना।
  • शिक्षा और युवा जुड़ाव पर ध्यान देना: माओवादियों द्वारा नष्ट किए गए स्कूलों को पुनः खोलना और आदिवासी युवाओं के बीच शिक्षा को बढ़ावा देना ताकि वैकल्पिक अवसर प्रदान किए जा सकें तथा उन्हें शिक्षा के प्रति कम संवेदनशील बनाया जा सके।

निष्कर्ष 

माओवाद से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए विकास, शासन और सुरक्षा को मिलाकर एक समग्र दृष्टिकोण आवश्यक है। निरंतर प्रयासों से वामपंथी उग्रवाद के प्रभाव को कम किया जा सकता है, जिससे प्रभावित क्षेत्रों में शांति, स्थिरता और समावेशी विकास सुनिश्चित हो सके।

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