गुजरात के बनासकांठा जिले का मसाली गाँव देश का पहला सौर सीमा गाँव बन गया है, जो देश में 100 प्रतिशत सौर ऊर्जा संचालित गाँव के रूप में उभर रहा है।
मसाली गाँव
मसाली गाँव पाकिस्तान सीमा से 40 किलोमीटर दूर स्थित है।
बॉर्डर सोलर प्रोजेक्ट: ‘बॉर्डर डेवलपमेंट प्रोजेक्ट’ के अंतर्गत बनासकांठा जिला प्रशासन ने वाव तालुका के 11 सीमावर्ती गाँवों एवं सुईगाम तालुका के छह गाँवों को पूरी तरह से सौर ऊर्जा संचालित गाँव बनाने की पहल की है।
कार्यान्वयन: परियोजना को पीएम सूर्यघर योजना के तहत कार्यान्वित किया जा रहा है।
पीएम सूर्यघर योजना
पीएम सूर्य घर मुफ्त बिजली योजना एक सरकारी योजना है, जिसका उद्देश्य भारत में घरों की छतों पर सौर पैनल स्थापित करने के लिए सब्सिडी प्रदान करके मुफ्त विद्युत प्रदान करना है।
लॉन्च: यह योजना 15 फरवरी, 2024 को प्रधानमंत्री द्वारा शुरू की गई थी।
योजना के अंतर्गत, परिवारों को सौर पैनलों की लागत का 40% तक कवर करने के लिए सब्सिडी मिलेगी।
औसत मासिक विद्युत खपत (इकाइयाँ)
उपयुक्त छत सौर संयंत्र क्षमता
सब्सिडी सहायता
0-150
1-2 किलोवाट
₹ 30,000/- से ₹ 60,000/-
150-300
2-3 किलोवाट
₹ 60,000/- से ₹ 78,000/-
> 300
3 किलोवाट से ऊपर
₹ 78,000/-
सीमा क्षेत्र विकास कार्यक्रम (BADP)
यह एक केंद्र प्रायोजित योजना (CSS) है, जिसका उद्देश्य सीमावर्ती क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को आवश्यक बुनियादी ढाँचे एवं स्थायी आजीविका के अवसर प्रदान करके भारत में सीमावर्ती क्षेत्रों का विकास करना है।
रेंज: कार्यक्रम में 16 राज्यों एवं 2 केंद्रशासित प्रदेशों के 117 सीमावर्ती जिले शामिल हैं।
फंडिंग: फंडिंग में केंद्र की हिस्सेदारी राज्य के अनुसार अलग-अलग होती है, 8 उत्तर-पूर्वी राज्यों के लिए 90:10 अनुपात, अन्य 6 राज्यों के लिए 60:40 अनुपात एवं केंद्रशासित प्रदेश लद्दाख के लिए 100% है।
परियोजनाएँ: BADP जैसी परियोजनाएँ संचालित करता है:-
स्कूलों, छात्रावासों एवं सामुदायिक केंद्रों का निर्माण; सार्वजनिक पुस्तकालयों तथा वाचनालयों की स्थापना करना; व्यावसायिक एवं तकनीकी शिक्षा प्रदान करना; युवाओं के लिए कौशल विकास प्रशिक्षण; चारदीवारी एवं कंटीले तारों की बाड़ का निर्माण; ग्रामीण स्वच्छता एवं शौचालय ब्लॉक आदि।
नेवर इवेंट्स: रोगी सुरक्षा में विफलताएँ
नेवर इवेंट्स
सुरक्षा प्रोटोकॉल में चूक के कारण स्वास्थ्य देखभाल में ‘नेवर इवेंट्स‘ गंभीर, रोकी जा सकने वाली घटनाएँ हैं।
यह शब्द वर्ष 2002 में संयुक्त राज्य अमेरिका में राष्ट्रीय गुणवत्ता मंच (National Quality Forum- NQF) द्वारा प्रस्तुत किया गया था।
व्यापकता: अध्ययनों से पता चलता है कि कभी भी घटनाएँ प्रति 100 घटनाओं में 1 से 2 की दर से नहीं होती हैं, कुल मिलाकर रोगी सुरक्षा की घटनाएँ प्रत्येक 100 परामर्शों में से 2 से 3 में होती हैं।
रोगी सुरक्षा में सुधार के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन एवं कनाडा जैसे देशों में व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है। इस शब्द को भारतीय संदर्भ में स्पष्ट रूप से स्वीकार या उपयोग नहीं किया गया है।
भारत में, इसी तरह की घटनाओं को चिकित्सीय लापरवाही के व्यापक कानूनी ढाँचे के अंतर्गत वर्गीकृत एवं संबोधित किया जाता है:-
चिकित्सा लापरवाही (Medical Negligence): देखभाल के अपेक्षित मानकों को पूरा करने में विफलता (बोलम परीक्षण)।
आयट्रोजेनिक घटनाएँ (Iatrogenic Events): चिकित्सा हस्तक्षेप (उदाहरण के लिए, सर्जिकल त्रुटियाँ) के कारण सीधे नुकसान।
चिकित्सीय खराबी (Medical Maloccurrence): ये अपरिहार्य परिणाम हैं, जिन्हें उचित देखभाल के बावजूद रोका नहीं जा सकता (उदाहरण के लिए, CPR के दौरान पसलियों का फ्रैक्चर)।
नेवर इवेंट्स के लक्षण
नुकसान के प्रकार
शरीर के गलत अंग का ऑपरेशन।
इंसुलिन की अधिक मात्रा।
बेमेल रक्त आधान।
परिणाम: विकलांगता, मृत्यु, या रोगी को अत्यधिक परेशानी।
ओवरलैप: ‘प्रहरी घटनाएँ’ या ‘गंभीर रिपोर्ट योग्य घटनाएँ’ जैसे शब्दों के समान।
संरक्षित क्षेत्र परमिट
केंद्र सरकार ने पूर्वोत्तर राज्यों मणिपुर, मिजोरम एवं नागालैंड में संरक्षित क्षेत्र परमिट (Protected Area Regime- PAR) पुनः लागू कर दी है।
यह निर्णय पड़ोसी देशों से व्यक्तियों की आमद के कारण बढ़ती सुरक्षा चिंताओं के कारण उत्पन्न हुआ है।
संरक्षित क्षेत्र परमिट (PAR)
यह विदेशी (संरक्षित क्षेत्र) आदेश, 1958 के अंतर्गत एक सुरक्षा उपाय है, जो कहता है कि विदेशी नागरिकों को भारत के कुछ क्षेत्रों, विशेषकर संवेदनशील सीमा क्षेत्रों में जाने के लिए विशेष परमिट की आवश्यकता होती है।
PAR के अंतर्गत राज्य एवं केंद्रशासित प्रदेश: पूर्वोत्तर राज्यों के कुछ हिस्से जैसे अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मिजोरम, नागालैंड एवं सिक्किम।
इनर लाइन परमिट (ILP) क्षेत्र: कुछ क्षेत्र ILP सिस्टम के साथ ओवरलैप होते हैं।
इनर लाइन परमिट (ILP) भारतीय नागरिकों द्वारा पूर्वोत्तर राज्यों अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, मिजोरम एवं मणिपुर (आंशिक रूप से) के कुछ प्रतिबंधित क्षेत्रों में प्रवेश करने तथा यात्रा करने के लिए आवश्यक एक दस्तावेज है।
भारत में स्वदेशी जनजातियों को पर्यटन के नाम पर शोषण से बचाने एवं उनकी परंपराओं तथा संस्कृतियों की समृद्ध विरासत को संरक्षित करने के लिए ILP की शुरुआत की गई थी।
भारतीय संविधान में ILP प्रणाली का स्पष्ट रूप से उल्लेख नहीं किया गया है। हालाँकि, यह वर्ष 1873 के ‘बंगाल ईस्टर्न फ्रंटियर रेगुलेशन’ (BEFR) पर आधारित है, जिसे ब्रिटिश सरकार ने अधिनियमित किया था।
संरक्षित क्षेत्र परमिट (PAP) के प्रावधान
अवधि: PAP आमतौर पर विस्तार विकल्प के साथ 10 दिनों के लिए वैध होता है।
जारीकर्ता प्राधिकारी: केंद्रीय गृह मंत्रालय एवं राज्य सरकारें, जहाँ संरक्षित क्षेत्र स्थित है।
PAP प्राप्त करने के लिए आवश्यकताएँ: विदेशी नागरिकों को पासपोर्ट एवं यात्रा कार्यक्रम सहित आवश्यक दस्तावेज उपलब्ध कराने होंगे।
सुरक्षा चिंताओं के कारण कुछ राष्ट्रीयताओं को अतिरिक्त प्रतिबंधों का सामना करना पड़ सकता है।
छूट: भूटान के नागरिकों को PAP आवश्यकता से छूट दी गई है।
डिंगा डिंगा (Dinga Dinga)
डिंगा डिंगा (Dinga Dinga) रोग, युगांडा में गंभीर शारीरिक कंपकंपी, बुखार एवं कमजोरी का कारण बनने वाली एक रहस्यमय बीमारी है।
डिंगा डिंगा
‘डिंगा डिंगा’ (Dinga Dinga) नाम का अनुवाद ‘नृत्य की तरह काँपना’ है, जो रोगियों में देखी गई अनियंत्रित शारीरिक गतिविधियों का वर्णन करता है।
यह मुख्य रूप से महिलाओं एवं लड़कियों को प्रभावित करता है, अब तक कोई मृत्यु दर्ज नहीं की गई है।
यह बीमारी उभरती बीमारियों की पहचान एवं प्रबंधन में सतर्कता की आवश्यकता पर प्रकाश डालती है।
संचरण: डिंगा डिंगा का कारण एक रहस्य बना हुआ है।
इस बीमारी के बारे में अटकलें वायरल संक्रमण से लेकर अन्य पर्यावरणीय तत्त्वों तक हैं, लेकिन अभी तक कोई निश्चित समाधान नहीं खोजा गया है।
लक्षण
अनियंत्रित कंपन: हिंसक, अनैच्छिक नृत्य जैसी हरकतों जैसा दिखता है।
बुखार एवं अत्यधिक थकान: अत्यधिक कमजोरी के साथ तेज बुखार।
पक्षाघात जैसी गतिहीनता: कुछ मरीज चलने सहित आधारभूत गतिविधियों में संघर्ष करते हैं।
उपचार: एंटीबायोटिक्स प्रभावी रही हैं, अधिकांश मरीज एक सप्ताह के भीतर ठीक हो जाते हैं।
गिलहरियाँ ‘अवसरवादी सर्वाहारी’ होती हैं
एक अध्ययन से पता चला है कि पारंपरिक रूप से शाकाहारी मानी जाने वाली गिलहरियाँ अवसरवादी सर्वाहारी होती हैं।
संबंधित तथ्य
गिलहरी का अध्ययन: कैलिफोर्निया ग्राउंड गिलहरी (ओटोस्पर्मोफिलस बीचेयी) (Otospermophilus Beecheyi)
संरक्षण की स्थिति
IUCN की रेड लिस्ट में स्थिति: कम चिंताग्रस्त (Least Concern-LC)
WPA 1972 सूचीकरण: WPA, 1972 की किसी भी अनुसूची में स्पष्ट रूप से सूचीबद्ध नहीं है, क्योंकि यह सामान्य है एवं इसे खतरा नहीं माना जाता है।
अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष
गिलहरियों की खाद्य आदतें
पारंपरिक धारणा: गिलहरियों को व्यापक रूप से शाकाहारी माना जाता है, जो मुख्य रूप से मेवे, बीज एवं फल खाती हैं।
अनुसंधान खोज: गिलहरियाँ सर्वाहारी प्रवृत्ति प्रदर्शित करती हैं एवं अवसरवादी रूप से पक्षियों, सरीसृपों तथा कीड़ों जैसे छोटे जानवरों का शिकार करती हैं।
उदाहरण: गिलहरियों द्वारा चूजों का शिकार करने एवं अंडे चुराने के उदाहरण देखे गए।
अनुकूली विकास
अवसरवादी आहार: गिलहरियाँ अपने परिवेश के अनुकूल ढल जाती हैं, पौधे आधारित संसाधनों की कमी होने पर प्रोटीन युक्त भोजन का सेवन करती हैं।
उत्तरजीविता तंत्र: यह सर्वाहारी व्यवहार विविध पारिस्थितिकी तंत्रों में उनके अस्तित्व का समर्थन करता है, विशेष रूप से कठोर सर्दियों या संसाधन की कमी के दौरान।
व्यवहार एवं विशेषताएँ
शिकार के लक्षण: शोध इस बात पर प्रकाश डालता है कि गिलहरियाँ चुपचाप एवं सटीकता से शिकार करने में सक्षम हैं।
रणनीतिक आहार: आहार संबंधी आदतों को संशोधित करने की उनकी क्षमता उन्नत समस्या-समाधान एवं अनुकूली रणनीतियों को दर्शाती है।
प्रासंगिक शब्दावली
1. अवसरवादी सर्वाहारी (Opportunistic Omnivore): एक जीव जो मुख्य रूप से पौधों पर आधारित भोजन प्राप्त करता है, लेकिन उपलब्धता एवं आवश्यकता के आधार पर पशु पदार्थ खाने को अपनाता है।
उदाहरण: भोजन की कमी के दौरान अंडे या कीड़े खाने वाली गिलहरियाँ।
2. व्यवहारिक प्लास्टिसिटी (Behavioral Plasticity): किसी जीव की पर्यावरणीय परिवर्तनों के जवाब में अपने व्यवहार को बदलने की क्षमता।
उदाहरण: सीमित वनस्पति वाले पारिस्थितिकी तंत्र में शिकार करने वाली गिलहरियाँ।
3. कीस्टोन प्रजाति (Keystone Species): एक प्रजाति, जो पारिस्थितिकी तंत्र की संरचना एवं स्वास्थ्य को बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
कीस्टोन प्रजाति के रूप में गिलहरियाँ: बीज प्रसरण में उनकी भूमिका वन पुनर्जनन का समर्थन करती है।
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