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दक्षिण कोरियाई राष्ट्रपति द्वारा मार्शल लॉ की घोषणा : लोकतंत्र में लचीलेपन की स्थिति

Lokesh Pal December 20, 2024 05:30 7 0

संदर्भ:

3 दिसंबर, 2024 को दक्षिण कोरियाई राष्ट्रपति यूं सूक येओल ने 1987 में देश के लोकतंत्र में परिवर्तन के बाद पहली बार मार्शल लॉ की घोषणा की। इस कदम ने राष्ट्रपति पद में सत्ता के संकेन्द्रण सहित प्रणालीगत मुद्दों को उजागर किया, और आज की दुनिया में लोकतंत्र के लिए चल रही चुनौतियों पर प्रकाश डालने का प्रयास किया। 

दक्षिण कोरिया की लचीलापन की स्थिति:

  • दक्षिण कोरियाई राष्ट्रपति द्वारा हाल ही में मार्शल लॉ की घोषणा से महत्वपूर्ण राजनीतिक उथल-पुथल मच गई। 
  • आधिकारिक तौर पर, इसे उत्तर कोरिया और तथाकथित राज्य-विरोधी ताकतों की धमकियों के जवाब के रूप में उचित ठहराया गया था । 
    • हालाँकि, गहन जांच से पता चला कि दक्षिण कोरिया की इस घोषणा के पीछे असली इरादा सत्ता को मजबूत करना था।
  • विपक्ष ने मार्शल लॉ की कड़ी निंदा की, इसे असंवैधानिक करार दिया तथा राष्ट्रपति के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की। 
    • उन्होंने तर्क दिया कि यह कदम लोकतांत्रिक सिद्धांतों का उल्लंघन है और इसे चुनौती देने के लिए उन्होंने जनता का समर्थन जुटाया।
  • यद्यपि दक्षिण कोरिया के संविधान के तहत, विपक्ष को संसदीय वोटों के माध्यम से मार्शल लॉ को पलटने का अधिकार है ।
    • जब कुछ विपक्षी सांसदों ने अपने संवैधानिक अधिकारों का प्रयोग करने के लिए नेशनल असेंबली में प्रवेश करने का प्रयास किया, लेकिन राष्ट्रपति के आदेश के तहत कार्यरत विशेष बलों ने उनका प्रवेश रोक दिया।
  • लोकतांत्रिक लचीलेपन का प्रदर्शन करते हुए दक्षिण कोरियाई जनता विपक्ष के साथ सक्रियता से एकजुट हो गई, तथा सांसदों को संसद तक पहुंचने में मदद की। 
  • इस समर्थन से विपक्ष को मार्शल लॉ को निरस्त करने वाला प्रस्ताव पारित करने में सहायता मिली, जिससे लोकतांत्रिक व्यवस्था प्रभावी रूप से बहाल हो गयी।

हालांकि 1977 के आपातकाल के बाद, भारतीय लोकतंत्र ने भी लोकतांत्रिक मानदंडों की बहाली के माध्यम से तेजी से वापसी करके अपना लचीलापन का प्रदर्शन किया।

दृष्टिकोण :

  • एक विकसित राष्ट्र के रूप में दक्षिण कोरिया ने एक महत्वपूर्ण मुद्दे को चुनौती देने के विचार के सामने लोकतंत्र की रक्षा करने की अपनी क्षमता का प्रदर्शन किया। 
    • हालांकि, इससे एक महत्वपूर्ण प्रश्न उठता है: यदि ऐसी ही स्थिति किसी गरीब या विकासशील देश में उत्पन्न हो, तो क्या लोकतंत्र इतना मजबूत होगा कि वह इससे उबर सके? 
    • वर्तमान तनावपूर्ण विश्व में, यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा है जिस पर विचार करना आवश्यक है, क्योंकि लोकतांत्रिक संस्थाओं की मजबूती अक्सर किसी राष्ट्र की सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक स्थिरता पर निर्भर करती है।

लोकतंत्र के लचीले स्वरूप को समझना:

  • लचीले लोकतंत्र से तात्पर्य :  लचीले लोकतंत्र का अर्थ एक ऐसी लोकतांत्रिक प्रणाली से है जो शासन, जवाबदेही और प्रतिनिधित्व के अपने मूल सिद्धांतों को बनाए रखते हुए संकटों, चुनौतियों या व्यवधानों का सामना करने और उनके अनुकूल ढलने में सक्षम हो। 
  • यह असफलताओं के बाद स्वयं की स्थिति को बनाए रखने और मजबूत करने की क्षमता को प्रदर्शित करता है, तथा अधिकारों की सुरक्षा, कानून के शासन और सार्वजनिक विश्वास को सुनिश्चित करता है।
  • यह एक जीवित प्रणाली की तरह है, जो समय के साथ अनुकूलित और विकसित होती है।

विंस्टन चर्चिल ने एक बार कहा था, ‘लोकतंत्र सरकार का सबसे खराब रूप है, सिवाय उन सभी अन्य रूपों के जिन्हें समय-समय पर आजमाया गया है।

मजबूत लोकतंत्र हेतु तीन महत्वपूर्ण स्तंभ : लोकतंत्र को मजबूत बनाने और बनाए रखने के लिए जवाबदेही के तीन महत्वपूर्ण स्तंभ आवश्यक हैं:

  • क्षैतिज जवाबदेही: जाँच और संतुलन के माध्यम से संस्थाओं के बीच संतुलन सुनिश्चित करना।
    • उदाहरण के लिए, न्यायपालिका द्वारा कार्यपालिका को जवाबदेह ठहराना कानून के शासन की रक्षा करता है तथा सत्ता के दुरुपयोग को रोकता है।
  • ऊर्ध्वाधर जवाबदेही: सार्वजनिक भागीदारी को बढ़ावा देना और यह सुनिश्चित करना कि निर्णय लेने की प्रक्रिया में जनता के मुद्दों व उनकी आवाज को सुना जाए। 
    • लोकतंत्र की सफलता के लिए जन जागरूकता और अन्याय के विरुद्ध सामूहिक कार्रवाई अत्यंत महत्वपूर्ण है।
  • विकर्ण जवाबदेही: शासन की निगरानी और सुधारों की वकालत करने में  नागरिक समाज की भूमिका का लाभ उठाना ।
    • नागरिक समाज संगठन संस्थाओं को जवाबदेह बनाने और सार्थक परिवर्तन लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

नाजुक एवं संघर्ष प्रभावित राज्य (एफसीएस): 

  • ये ऐसे देश या क्षेत्र हैं जो युद्ध, जलवायु परिवर्तन, गरीबी आदि जैसी अनेक चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, जिसके कारण वे प्रायः संघर्ष के दौर से गुजर रहे हैं। 
  • विश्व बैंक के अनुसार : इन देशों और क्षेत्रों को उनकी वित्तीय और सुरक्षा स्थितियों के आधार पर एफसीएस के रूप में वर्गीकृत करता है। 
  • इनमें अधिकतर गरीब या विकासशील राज्य शामिल हैं, जहां लगातार तनाव के कारण समय के साथ लोकतंत्र धीरे-धीरे कमजोर होता जाता है।

लोकतंत्र में गिरावट दर्शाने वाले राज्यों के रुझान

वर्तमान रुझान :

1. लोकलुभावनवाद का उदय:

  • नेता की आवाज: लोकलुभावन नेता स्वयं को जनता के सच्चे प्रतिनिधि के रूप में चित्रित करते हैं तथा दावा करते हैं कि वे पारंपरिक अभिजात वर्ग की तुलना में जनता की चिंताओं को बेहतर समझते हैं। 
    • वे अक्सर मौजूदा प्रणाली की कथित विफलताओं को उजागर करते हैं। उनके द्वारा दावा किया जाता है कि केवल वे ही आवश्यक परिवर्तन ला सकते हैं।
  • लोकलुभावनवाद के खतरनाक तत्व: यह बहुलवाद-विरोध, अनुदारवादी नीतियों और देशजवाद को जन्म दे सकता है।
    • उदाहरण: श्वेत समुदायों और आव्रजन विरोधी नीतियों के समर्थकों द्वारा पसंद किए जाने वाले डोनाल्ड ट्रम्प व उनकी नीतियाँ, यह दर्शाते हैं कि कैसे लोकलुभावनवाद अक्सर समाज को विभाजित करता है।

परंपरागत रुझान:

2. एकल शासन या परिवारों की निरंतरता: 

  • एकल पार्टी शासन: कई देशों में राजनीतिक शक्ति एक ही शासन या परिवार के भीतर केंद्रित रहती है, जो राजनीतिक परिदृश्य और शासन को महत्वपूर्ण रूप से आकार दे सकती है। 
    • परंपरागत तौर पर देखें तो ज्ञात होता है कि बांग्लादेश में शेख हसीना और उनकी अवामी लीग एक ऐसे राजनीतिक वंशवाद का प्रमुख उदाहरण है, जहां नेतृत्व और नियंत्रण अक्सर एक ही परिवार के पास रहा है।
  • सत्तावादी शासन: चीन और रूस जैसे देश यह दर्शाते हैं कि लोकतांत्रिक सिद्धांतों के बिना भी सत्ता को कैसे मजबूत और कायम रखा जा सकता है।
    • इससे यह धारणा मजबूत हुई है कि लोकतंत्र विकास प्राप्त करने का एकमात्र रास्ता नहीं है, जिससे कुछ राष्ट्रों को विकल्प के रूप में केन्द्रीकरण की संभावना तलाशने के लिए प्रोत्साहन मिला है।
  • पश्चिमी शैली के लोकतंत्र की आलोचना: हंगरी, फिलीपींस और तुर्की जैसे देशों में नेता खुले तौर पर उदार लोकतांत्रिक मूल्यों की आलोचना करते हैं तथा लोकतांत्रिक सिद्धांतों पर केंद्रित सत्ता को बढ़ावा देते हैं।
    • यह बदलाव प्रायः लोकतंत्र के प्रमुख पहलुओं, जैसे नियंत्रण और संतुलन, सार्वजनिक जवाबदेही और राजनीतिक बहुलवाद को दरकिनार कर देता है।

लोकतांत्रिक राज्यों में लोकतंत्र के लचीलेपन के प्रमुख कारण

1. लोकतंत्र की नींव के रूप में संविधानवाद

  • अपरिवर्तनीय मूल सिद्धांत: विकसित देशों के संविधानों में मूल लोकतांत्रिक सिद्धांतों को प्रतिष्ठापित किया जाता है। लोकतान्त्रिक सिद्धांतों का जनता द्वारा गहरा सम्मान किया जाता है, जिससे लचीलापन सुनिश्चित होता है।
    • उदाहरण के लिए: तानाशाही शासन के संरक्षक हिटलर के बाद के जर्मनी ने तानाशाही की पुनरावृत्ति को रोकने के लिए अपने संविधान में सुरक्षा उपाय शामिल किए, जिससे लोकतंत्र को मजबूती मिली।

2. आर्थिक कारक और लोकतंत्र

  • वित्तीय चिंताएं और विकास: उच्च गरीबी वाले राज्यों में, जीवित रहने जैसी तात्कालिक चिंताएं अक्सर दीर्घकालिक लोकतांत्रिक आदर्शों पर हावी हो जाती हैं।
    • हालाँकि, भारत लोकतान्त्रिक मूल्यों हेतु एक अद्वितीय उदाहरण के रूप में खड़ा है जहाँ व्यापक गरीबी के बावजूद लोकतंत्र फल-फूल रहा है, जो इसके लोकतांत्रिक ढांचे के लचीलेपन को दर्शाता है।
  • वोट बैंक की राजनीति: विकासशील देशों में वोट बैंक की राजनीति अक्सर व्यापक लोकतांत्रिक सिद्धांतों को कमजोर करती है।

3. अंतर्राष्ट्रीय संगठनों की भूमिका

  • न्यूनतम सहभागिता: संयुक्त राष्ट्र जैसे अंतर्राष्ट्रीय संगठन अक्सर विकासशील देशों में लोकतंत्र का समर्थन करने के लिए सीमित दृष्टिकोण अपनाते हैं, तथा संस्था निर्माण की तुलना में संकट प्रबंधन पर अधिक ध्यान केंद्रित करते हैं, जो अंततः वैश्विक लोकतंत्र को कमजोर करता है। 
  • भू-राजनीतिक हितों की रक्षा के उपकरण के रूप में: शक्तिशाली राष्ट्र कभी-कभी लोकतंत्र का उपयोग अपने भू-राजनीतिक हितों की रक्षा के लिए करते हैं, तथा इसके सार्वभौमिक सिद्धांतों को कमजोर कर देते हैं।
  • बहुध्रुवीय विश्व में चुनौतियाँ: बहुध्रुवीय विश्व का उदय लोकतंत्र के एकीकृत दृष्टिकोण को बढ़ावा देने के प्रयासों को जटिल बनाता है, क्योंकि विविध वैश्विक शक्तियां अलग-अलग शासन मॉडल को प्राथमिकता देती हैं। 

लोकतंत्र को लचीला बनाने के लिए प्रभावी कदम

  • संस्थाओं को सुदृढ़ बनाना: मजबूत लोकतांत्रिक संस्थाओं का निर्माण और रख-रखाव करना जो राजनीतिक दबावों का सामना कर सकें और स्वतंत्र रूप से कार्य कर सकें।
  • नागरिक समाज को सशक्त बनाना: एक मजबूत और जीवंत नागरिक समाज को बढ़ावा देना जो निगरानीकर्ता के रूप में कार्य करे, सार्वजनिक हितों की वकालत करे और प्राधिकारियों को जवाबदेह बनाए रखने में सहायक हो सके।
  • स्वतंत्र और उत्तरदायी मीडिया को प्रोत्साहित करना: जनता को सूचित करने, गलत कार्यों को उजागर करने और स्वस्थ लोकतांत्रिक संवाद को सुविधाजनक बनाने के लिए स्वतंत्र मीडिया की भूमिका को बढ़ावा देना।
  • जन जागरूकता बढ़ाना: नागरिकों को उनके अधिकारों, जिम्मेदारियों और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में भागीदारी के महत्व के बारे में शिक्षित करना, तथा विभिन्न माध्यमों से इसके प्रति जागरूकता बढ़ाना।
    •  राजनेताओं से जवाबदेही की मांग करने के लिए सार्वजनिक सक्रियता और जमीनी स्तर के आंदोलनों को प्रोत्साहित करने पर बल देना।
  • प्रभावी नियंत्रण और संतुलन स्थापित करना: यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका के बीच नियंत्रण और संतुलन के तंत्र प्रभावी और कार्यात्मक हों, ताकि सत्ता के अतिक्रमण या दुरुपयोग को रोका जा सके।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न: दक्षिण कोरिया के हालिया राजनीतिक संकट के मद्देनजर, लचीले लोकतंत्र की अवधारणा पर चर्चा करें। एक मजबूत जवाबदेही तंत्र किस तरह से लोकतांत्रिक संस्थाओं को लोकलुभावन नेतृत्व द्वारा उत्पन्न खतरों से बचा सकता है।चर्चा कीजिए।

(15 अंक, 250 शब्द)

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