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जैव विविधता ऋण बाजार

Lokesh Pal December 25, 2024 03:21 18 0

संदर्भ

‘प्रोसीडिंग्स ऑफ द रॉयल सोसायटी B’ (Proceedings of the Royal Society B) पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन में वर्तमान स्थिति में जैव विविधता ऋण बाजारों के कामकाज में पर्याप्त पद्धतिगत एवं नियामक अंतराल पर प्रकाश डाला गया है।

जैव विविधता क्रेडिट गठबंधन (Biodiversity Credit Alliance) 

  • यह एक स्वैच्छिक अंतरराष्ट्रीय गठबंधन है, जो कुनमिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक जैव विविधता रूपरेखा लक्ष्य 19(c) और (d) को साकार करने में सहायता करने के लिए विविध हितधारकों (वैज्ञानिकों, शिक्षाविदों, संरक्षण चिकित्सकों और मानक निर्माताओं, स्वदेशी लोगों और स्थानीय समुदायों से सीधे संपर्क के साथ) को एक साथ लाता है।
    • लक्ष्य 19(c): व्यवसायों को जैव विविधता पर अपने जोखिम, निर्भरता और प्रभावों की निगरानी, ​​आकलन करना चाहिए।
    • लक्ष्य 19(d): व्यवसायों को टिकाऊ उपभोग पैटर्न को बढ़ावा देने के लिए उपभोक्ताओं को जानकारियाँ उपलब्ध करानी चाहिए।
  • मिशन: उच्च स्तरीय, विज्ञान आधारित सिद्धांतों की रूपरेखा का निर्माण करके जैव विविधता ऋण बाजार के विकास को आगे बढ़ाने में सहायता करना।
  • सचिवालय: इसे संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) और संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम वित्त पहल (UNEP FI) द्वारा सुगम बनाया गया है।
  • BCA टास्क फोर्स: यह मुख्य निर्णय लेने वाला निकाय है और इसमें कार्यप्रणाली विकासकर्ता, मानक निर्धारक, शैक्षणिक और अनुसंधान संस्थानों के साथ-साथ समुदाय सलाहकार पैनल (CAP) के प्रतिनिधि शामिल होते हैं।

अध्ययन के मुख्य बिंदु

  • विषय: तेजी से बढ़ते स्वैच्छिक जैव विविधता ऋण बाजार में जैव विविधता इकाई या ‘प्रकृति की इकाई’ को कैसे परिभाषित किया जाता है, इसकी जाँच की जानी चाहिए।
  • उद्देश्य: जैव विविधता का परिमाणीकरण कैसे किया जाता है, सकारात्मक परिणामों की प्राप्ति का पता कैसे लगाया जाता है और उसका श्रेय निवेश को किस प्रकार दिया जाता है तथा जारी किए गए ऋणों की संख्या को अनिश्चितताओं के लिए कैसे समायोजित किया जाता है, इसका पता लगाने के लिए एक रूपरेखा प्रस्तुत करना।
  • फोकस: यह समझना कि संगठन स्वैच्छिक बाजार में जैव विविधता क्रेडिट के लिए कार्यप्रणाली कैसे विकसित करते हैं और उन्हें परिभाषित करने में आने वाली चुनौतियों का समाधान कैसे किया जाता है।
  • जैव विविधता ऋण के चरण
    • ढाँचा: यह परिभाषित करता है कि क्रेडिट किस समयावधि में किस तरह की जैव विविधता का प्रतिनिधित्व करता है।
      • मापन की इकाई: समीक्षा की गई अधिकांश पद्धतियाँ एक हेक्टेयर की इकाइयों में जैव विविधता का प्रतिनिधित्व करने वाले क्षेत्र के आधार पर क्रेडिट विक्रय करती हैं।
      • विशिष्टता: कई पद्धतियाँ किसी भी पारिस्थितिकी तंत्र (स्थलीय, समुद्री या मीठे पानी) का प्रतिनिधित्व करने के लिए डिजाइन की गई हैं, लेकिन पारिस्थितिकी तंत्र विशिष्ट क्रेडिट भी मौजूद हैं।
      • उद्देश्य: उद्देश्य के आधार पर दो प्रकार के क्रेडिट होते हैं, अर्थात् वे संरक्षित [कभी-कभी ‘परिवर्जन हानि’ (Avoided Loss) या ‘परिरक्षण’ (Preservation) क्रेडिट के रूप में जाना जाता है] अथवा पुनर्स्थापित [कभी-कभी ‘उत्थान’ (Uplifted) के रूप में जाना जाता है] जैव विविधता की इकाइयों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
      • समय: एक क्रेडिट जिस समयावधि का प्रतिनिधित्व करता है, वह अक्सर पाँच वर्षों के लिए जारी किया जाता है, लेकिन एक महीने से लेकर किसी परियोजना की पूरी अवधि तक हो सकता है।
    • परिमाणीकरण: यह इस बात पर विचार करता है कि किसी भी समय परियोजना स्थल पर जैव विविधता को कैसे मापा जाता है। जैव विविधता को मापने के लिए दो व्यापक दृष्टिकोण अपनाए जाते हैं, ये हैं,
      • ‘बास्केट ऑफ मीट्रिक’: किसी पारिस्थितिकी तंत्र के विभिन्न मापदंडों को मापने के लिए एक संख्यात्मक मान निर्दिष्ट किया जाता है, जैसे आबादी की सीमा, लक्षित प्रजातियों की बाहुल्यता, प्रजातियों की समृद्धि, पारिस्थितिकी तंत्र संरचना का माप आदि।
      • दोहरी स्थिति: इस दृष्टिकोण के अनुसार, किसी साइट को एक मीट्रिक के अनुसार, समृद्ध या असमृद्ध के रूप में चिह्नित किया जाता है।
        • उदाहरण: यदि किसी स्टाल पर उपस्थित वनों का उन्मूलन न किया गया हो एवं वहाँ पर संवेदनशील प्रजतियाँ भी उपस्थित हों तो उस स्थल को समृद्ध स्थल के रूप में चिह्नित किया जा सकता है।
    • पहचान: अगला चरण परियोजना की प्रगति का पता लगाना है, जिसमें यह शामिल है कि परियोजना में संरक्षण या पुनरुद्धार किस सीमा तक हुआ है।
      • चूँकि सामान्यतः जैव विविधता को संपूर्ण स्थल पर मापा जाता है तथा लगभग सभी क्रेडिट प्रति हेक्टेयर बेचे जाते हैं, इसलिए क्रेडिट की संख्या प्राप्त करने के लिए ज्ञात लाभ को परियोजना स्थल के क्षेत्रफल से गुणा किया जाता है।
    • समायोजन: यह अंतिम चरण यह निर्धारित करता है कि जारी किए गए क्रेडिट की संख्या को परियोजना नियंत्रण से बाहर के कारकों जैसे रिसाव, अन्य अनिश्चितताओं या स्थायित्व को ध्यान में रखते हुए कैसे समायोजित किया जाएगा।
  • चुनौतियाँ
    • परिवर्तनीयता या विनिमेयता: कुछ पद्धतियाँ पारिस्थितिकी तंत्रों, महाद्वीपों और बायोम में जैव विविधता लाभ को मानकीकृत करती हैं, जो इस तथ्य को कमजोर करती हैं कि जैव विविधता का एक अद्वितीय, स्थान-विशिष्ट महत्त्व है।
      • उदाहरण: एक पृथक वन क्षेत्र को एक बड़े, जुड़े हुए परिदृश्य के समतुल्य नहीं माना जा सकता।
    • जैव विविधता मूल्य मापना: मीट्रिक्स अनिवार्य रूप से प्रकृति के उन पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करते हैं, जो मात्रात्मक हैं तथा अन्य पहलुओं जैसे प्रजातियों के बीच परस्पर क्रिया, प्रकृति का सांस्कृतिक मूल्य, या इसका संरचनात्मक मूल्य (स्वदेशी लोगों और स्थानीय समुदायों की पहचान के एक भाग के रूप में) को नजरअंदाज कर देते हैं।
    • कमोडिटीफायिंग नॉइज (Commodifying Noise): अल्प से मध्यम समय के पैमाने पर परिवर्तनों पर आधारित ऋण पद्धतियों की माप में त्रुटि या यादृच्छिक उतार-चढ़ाव के आधार पर परियोजना संचालकों को पुरस्कृत या दंडित करने का जोखिम बना रहता है।
      • उदाहरण: वार्षिक भिन्नताओं के कारण तितलियों की आबादी के संबंध में जानकारी और विविधता  के लिए दीर्घकालिक डेटा की आवश्यकता पड़ रही है।
    • अतिरिक्तता का प्रदर्शन: यह दर्शाना कि अतिरिक्त परियोजना निवेशों ने व्यवसाय-सामान्य परिदृश्यों से परे सकारात्मक जैव विविधता परिणामों को जन्म दिया है, एक चुनौती है क्योंकि परिणामों पर डेटा एकत्र करना महंगा है और अतिरिक्त निवेश हमेशा सफलता की गारंटी नहीं देता है।
    • रिसाव: यह तब होता है, जब वनों की कटाई जैसी हानिकारक गतिविधियाँ कम होने के बजाय अन्य क्षेत्रों में स्थानांतरित हो जाती हैं।
      • उदाहरण: किसान भूमि उपयोग को जैव विविधता ऋण में बदल सकते हैं, जिससे अन्य लोग अन्यत्र कृषि के लिए नई भूमि का उपयोग करने के लिए प्रेरित होंगे।
    • स्थायित्व: स्थायित्व का प्रश्न, अर्थात् क्या आज प्राप्त लाभ स्थायी प्रकृति के होंगे, उतना ही महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि दीर्घकालिक प्रबंधन के बिना, कई संरक्षण या पुनर्स्थापना लाभ खो सकते हैं।

जैव विविधता क्रेडिट के बारे में

  • जैव विविधता क्रेडिट एक सत्यापन योग्य, मात्रात्मक और व्यापार योग्य वित्तीय प्रमाणपत्र है जो एक निश्चित अवधि में भूमि या महासागर आधारित जैव विविधता इकाइयों के निर्माण और बिक्री के माध्यम से सकारात्मक प्रकृति और जैव विविधता परिणामों (जैसे प्रजातियां, पारिस्थितिकी तंत्र और प्राकृतिक आवास) को पुरस्कृत करता है।
    • उदाहरण: कुछ जैव विविधता क्रेडिट योजनाओं में शामिल हैं, टेरासोस (Terrasos), ग्रीनकॉलर (GreenCollar), वैल्यूनेचर (ValueNature), क्रेडिटनेचर (CreditNature), वाइल्डरलैंड्स (Wilderlands)।
  • तंत्र: गैर-लाभकारी संस्थाएँ, सरकारें, भूस्वामी या कंपनियाँ क्रेडिट उत्पन्न करती हैं, जिन्हें निजी कंपनियाँ अपनी जैव विविधता प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के लिए खरीदती हैं।
    • एक क्रेडिट एक निश्चित अवधि में संरक्षित या बहाल की गई भूमि की एक निश्चित मात्रा का प्रतिनिधित्व कर सकता है
  • बाजार: विश्व आर्थिक मंच के अनुमान के अनुसार, जैव विविधता ऋण बाजार का वर्तमान मूल्य 8 मिलियन डॉलर है तथा अनुमान है कि वर्ष 2030 तक यह 2 बिलियन डॉलर तथा वर्ष 2050 तक 69 बिलियन डॉलर तक बढ़ जाएगा।

जैव विविधता के बारे में

  • संयुक्त राष्ट्र पृथ्वी शिखर सम्मेलन (1992) की परिभाषा के अनुसार,
    • जैव विविधता ‘सभी स्रोतों से जीवित जीवों के बीच परिवर्तनशीलता है, जिसमें स्थलीय, समुद्री और अन्य जलीय पारिस्थितिकी तंत्र और वे पारिस्थितिक परिसर शामिल हैं, जिनका वे हिस्सा हैं; इसमें प्रजातियों के भीतर, प्रजातियों के बीच और पारिस्थितिकी तंत्र की विविधता शामिल है।’
  • चरण
    • आनुवंशिक विविधता: जीवों के बीच आनुवंशिक जानकारी में भिन्नता
    • प्रजाति विविधता: पौधों, जानवरों और सूक्ष्मजीवों सहित प्रजातियों की विविधता
    • पारिस्थितिकी तंत्र विविधता: पारिस्थितिकी तंत्र की विविधता, जो जीवित और निर्जीव जीवों और उनकी अंतःक्रियाओं से बनी होती है।
  • खतरा
    • जलवायु परिवर्तन: वैश्विक जलवायु के गर्म होने से पारिस्थितिकी तंत्र की प्रकृति बदल रही है, जिससे जीवों पर खतरा मंडरा रहा है।
    • आवास की हानि और विखंडन: विकास के नाम पर प्राकृतिक आवासों को खंडित और नष्ट किया जा रहा है।
    • आक्रामक प्रजातियाँ: आक्रामक प्रजातियाँ देशज प्रजातियों के अस्तित्व को खतरे में डाल सकती हैं, जिससे विलुप्ति और आनुवंशिक विविधता में कमी आ सकती है।
    • प्रदूषण: मानवीय गतिविधियों से होने वाले प्रदूषण से हार्मोनल परिवर्तन हो सकते हैं, जो वन्य जीवों के विकास और प्रजनन अंगों को प्रभावित करते हैं।

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