Lokesh Pal
January 02, 2025 05:15
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हाल के वर्षों में संसदीय सत्रों में सार्थक चर्चाओं की अपेक्षा व्यवधान अधिक देखने को मिले हैं तथा हालिया शीतकालीन सत्र भी इसका अपवाद नहीं था। चूँकि सत्तारूढ़ दल और विपक्ष दोनों ही विघटनकारी व्यवहार में लिप्त थे, इसलिए राष्ट्र ने विधायी प्रक्रिया की गरिमा और कार्यक्षमता में गंभीर गिरावट देखी।
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