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गतिशील भूजल संसाधन मूल्यांकन रिपोर्ट 2024

Lokesh Pal January 08, 2025 01:56 34 0

संदर्भ

हाल ही में केंद्रीय जल शक्ति मंत्री ने वर्ष 2024 के लिए पूरे देश के लिए गतिशील भूजल संसाधन मूल्यांकन रिपोर्ट जारी की। यह मूल्यांकन केंद्रीय भूजल बोर्ड (CGWB) और राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा संयुक्त रूप से किया गया था।

केंद्रीय भूजल बोर्ड (CGWB) 

  • गठन: भूजल नीतियों और कार्यक्रमों को विकसित करने के लिए एक्सप्लोरेटरी ट्यूबवेल्स ऑर्गनाइजेशन (Exploratory Tubewells Organization- ETO) का नाम बदलकर वर्ष 1970 में इसे गठित किया गया।
  • संरचना: एक बहु-विषयक वैज्ञानिक संगठन, जिसमें जल विज्ञानी, भू-भौतिकीविद्, रसायनज्ञ, जलविज्ञानी और अभियंता शामिल हैं।
  • मुख्यालय: फरीदाबाद, हरियाणा में अवस्थित है।
  • केंद्रीय भूजल प्राधिकरण (CGWA)
    • पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 की धारा 3(3) के तहत गठित।
    • भारत में भूजल विकास और प्रबंधन के विनियमन और नियंत्रण के लिए जिम्मेदार।

भूजल 

  • भूजल वह जल है, जो मिट्टी एवं चट्टानों से निस्पंदित होता है और भूमिगत रूप से जमा होता है।
  • जिन चट्टानों में भूजल जमा होता है, उन्हें जलभृत (Aquifers) कहा जाता है, जो आमतौर पर बलुआ पत्थर, बजरी, चूना पत्थर या रेत से निर्मित होती हैं।
  • भारत वैश्विक स्तर पर भूजल का सबसे बड़ा उपभोक्ता है, जो वैश्विक भूजल संसाधनों का लगभग 25% उपयोग करता है।
  • भूजल भारत की कृषि और पेयजल सुरक्षा का मुख्य आधार है, जो सिंचाई में लगभग 62%, ग्रामीण जल आपूर्ति में 85% और शहरी जल आपूर्ति में 50% योगदान देता है।

भारत में भू-जल विनियमन

  • कानूनी ढाँचा: भारत में कानूनी ढाँचा, भू-जल स्वामित्व और अधिकारों को स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं करता है।
    • भूजल अधिकार भारतीय सुखाधिकार अधिनियम, 1882 (Indian Easement Act 1882) पर आधारित हैं, जो भूजल स्वामित्व को भूमि अधिकारों से जोड़ता है।
    • सार्वजनिक न्यास का सिद्धांत (उच्चतम न्यायालय, 2004) भूजल को एक सामान्य संसाधन के रूप में संरक्षित करने की सरकारी जिम्मेदारी पर जोर देता है।

  • विनियामक तंत्र: केंद्रीय भूजल प्राधिकरण (CGWA) विनियमन लागू करता है, ‘अधिसूचित क्षेत्रों’ (Notified Areas) की घोषणा करता है और भूजल निष्कर्षण के लिए अनापत्ति प्रमाण-पत्र (No Objection Certificates- NOC) जारी करता है।
  • संवैधानिक ढाँचा: भूजल राज्य सूची के अंतर्गत आता है, जिससे अलग-अलग राज्यों को इसके प्रबंधन की प्राथमिक जिम्मेदारी मिलती है। केंद्र सरकार नीतियों और कार्यक्रमों के माध्यम से मार्गदर्शन प्रदान करती है।
  • नीति और विनियमन प्रयास: भूजल के संरक्षण, सुरक्षा, विनियमन और प्रबंधन के लिए मॉडल विधेयक (2017) भूजल को निजी संपत्ति के बजाय एक साझा संसाधन के रूप में मानने का प्रस्ताव करता है।
    • महाराष्ट्र जैसे कुछ राज्यों ने भूजल निष्कर्षण को विनियमित करने और साझा संसाधनों की रक्षा करने के लिए कानून बनाए हैं।

रिपोर्ट की मुख्य विशेषताएँ

  • भूजल पुनर्भरण और निष्कर्षण
    • कुल वार्षिक भूजल पुनर्भरण: 446.90 बिलियन क्यूबिक मीटर (BCM)।
    • निष्कर्षण योग्य भूजल संसाधन: 406.19 BCM (प्राकृतिक निर्वहन के लिए लेखांकन के बाद)।
    • वार्षिक भूजल निष्कर्षण: 245.64 BCM 
    • भूजल निष्कर्षण का चरण: 60.47% (राष्ट्रीय औसत)।

भूजल निष्कर्षण का चरण (Stage of Groundwater Extraction-SOE) वार्षिक निष्कर्षण योग्य भूजल संसाधन की तुलना में सभी उपयोगों के लिए वार्षिक भूजल निष्कर्षण का प्रतिशत है।

  • मूल्यांकन इकाइयों का वर्गीकरण
    • कुल मूल्यांकित इकाइयाँ: 6,746 (ब्लॉक/मंडल/तालुका)
      • सुरक्षित इकाइयाँ: 4,951 (73.4%) – वर्ष 2017 में 62.6% से बढ़ीं।
      • अति-शोषित इकाइयाँ: 751 (11.1%) – वर्ष 2017 में 17.24% से कम हुई।
      • महत्त्वपूर्ण इकाइयाँ: 206 (3.05%)।
      • अर्द्ध-महत्त्वपूर्ण इकाइयाँ: 711 (10.5%)।
      • लवणीय इकाइयाँ: 127 (1.8%)- जलभृतों में खारे या लवणीय भूजल के कारण।
  • क्षेत्रीय विविधताएँ
    • भूजल निष्कर्षण का चरण > 100%: पंजाब, राजस्थान, दादरा और नागर हवेली तथा दमन और दीव, हरियाणा और दिल्ली।
    • भूजल निष्कर्षण का चरण > 90% से 100%: शून्य
    • भूजल निष्कर्षण का चरण > 70% से 90%: तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, पुडुचेरी और चंडीगढ़।

    • भूजल निष्कर्षण का चरण < 70%: आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, असम, बिहार, छत्तीसगढ़, गोवा, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, ओडिशा, सिक्किम, तेलंगाना, त्रिपुरा, उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल, अंडमान और निकोबार, जम्मू और कश्मीर, लद्दाख, लक्षद्वीप।
  • भूजल संबंधी आँकड़े (वर्ष 2017-2024)
    • वर्ष 2017 से भूजल पुनर्भरण में 15 BCM की वृद्धि हुई है।
    • वर्ष 2017 की तुलना में भूजल निष्कर्षण में 3 BCM की कमी आई है।
    • टैंकों, तालाबों और संरक्षण संरचनाओं से पुनर्भरण में 11.36 BCM की वृद्धि हुई है (वर्ष 2017 में 13.98 BCM से वर्ष 2024 में 25.34 BCM तक)।
  • भूजल पुनर्भरण में योगदान
    • वर्षा: वर्षा कुल भूजल पुनर्भरण में 61% योगदान देती है, जो इसे प्राथमिक योगदानकर्ता बनाता है।
    • जल निकाय, टैंक और तालाब: पुनर्भरण में महत्त्वपूर्ण योगदानकर्ता, इन स्रोतों से पुनर्भरण वर्ष 2017 से वर्ष 2024 तक 11.36 BCM (13.98 BCM से 25.34 BCM) तक बढ़ गया है।
  • जल गुणवत्ता संबंधी चिंताएँ 
    • भूजल में संदूषक: आर्सेनिक, फ्लोराइड, नाइट्रेट और यूरेनियम जैसे प्रदूषकों की मौजूदगी विभिन्न क्षेत्रों में भूजल की गुणवत्ता को प्रभावित करती है।
    • लवणीय भूजल: 127 मूल्यांकन इकाइयों (1.8%) को लवणीय जल के रूप में वर्गीकृत किया गया है, मुख्य रूप से अधोभौमजल जलभृत (Phreatic Aquifers) में खारे या लवणीय भूजल के कारण।
    • सिंचाई उपयुक्तता: 81% भूजल नमूने सिंचाई के लिए उपयुक्त माने जाते हैं।
      • पूर्वोत्तर राज्यों में 100% भूजल को सिंचाई के लिए ‘उत्कृष्ट’ के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
    • क्षेत्रीय प्रदूषण: उच्च विद्युत चालकता (EC) और विशिष्ट संदूषकों वाले क्षेत्रों को प्रदूषण के हॉटस्पॉट के रूप में पहचाना जाता है, जो कृषि अपवाह और औद्योगिक निर्वहन से उत्पन्न होता है।
  • वर्ष 2024 में भूजल की स्थिति
    • वर्ष 2023 की तुलना में 128 मूल्यांकन इकाइयों में सुधार।
    • सरकारी योजनाओं के तहत वर्षा जल संचयन और संरक्षण प्रयासों पर अधिक ध्यान दिया गया।

भूजल की स्थिति में सुधार के पीछे के कारक (मूल्यांकन रिपोर्ट, 2024 के अनुसार)

  • जल संरक्षण संरचनाओं से पुनर्भरण में वृद्धि: वर्ष 2017 से टैंकों, तालाबों और जल संरक्षण संरचनाओं (WCS) से पुनर्भरण में 11.36 BCM की वृद्धि हुई है, जिसने भूजल सुधार में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।
  • वर्षा जल संचयन: जल शक्ति अभियान और अटल भूजल योजना जैसी सरकारी योजनाओं के तहत ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में वर्षा जल संचयन संरचनाओं का कार्यान्वयन किया जा रहा है।
  • कृत्रिम पुनर्भरण उपाय: जलभृतों में कृत्रिम पुनर्भरण को बढ़ाने के लिए चेक डैम, अंतःस्त्रवण टैंक (Percolation Tanks) और पुनर्भरण कुओं का निर्माण।
  • सरकारी पहल: जल शक्ति अभियान- कैच द रेन अभियान (2024), राष्ट्रीय जलभृत मानचित्रण और प्रबंधन (National Aquifer Mapping and Management-NAQUIM) और भूजल के कृत्रिम पुनर्भरण के लिए मास्टर प्लान (2020) जैसे प्रमुख कार्यक्रम संचालित किए जा रहे हैं। 
  • जल निष्कर्षण में कमी: बेहतर जल प्रबंधन प्रथाओं और वैकल्पिक जल स्रोतों के उपयोग के कारण वर्ष 2017 से भूजल निष्कर्षण में 3 BCM की कमी आई है।
  • सामुदायिक भागीदारी: जागरूकता अभियान और जल संरक्षण और कुशल उपयोग प्रथाओं में स्थानीय समुदायों की सक्रिय भागीदारी बढ़ी है।
  • उन्नत कृषि पद्धतियाँ: ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई जैसी जल-कुशल सिंचाई तकनीकों को अपनाना, भूजल पर निर्भरता कम करना और पुनर्भरण में सहायता करना।
  • प्राकृतिक निर्वहन प्रबंधन: प्राकृतिक निर्वहन और जलभृतों की पुनःपूर्ति के लिए क्षेत्रों का आवंटन करना।

भारत में भूजल उपयोग पैटर्न

  • कृषि 
    • प्राथमिक उपयोग: भूजल का उपयोग मुख्य रूप से सिंचाई के लिए किया जाता है, जो कुल निकासी का 60% से अधिक है।
      1. धान, गन्ना और गेहूँ जैसी जल-गहन फसलों के लिए आवश्यक है, विशेषकर पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में।
  • घरेलू उपयोग: निकाले गए भूजल का लगभग 11% घरेलू उद्देश्यों के लिए उपयोग किया जाता है।
    • इसमें 85% ग्रामीण परिवारों के लिए पेयजल आपूर्ति और शहरी घरेलू माँग का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा शामिल है।
  • औद्योगिक उपयोग: लगभग 5-10% भूजल का उपयोग उद्योगों में किया जाता है, विशेषकर उन क्षेत्रों में जहाँ सतही जल की उपलब्धता सीमित है।
    • कपड़ा, कागज, इस्पात और खाद्य प्रसंस्करण जैसे उद्योगों में आम है।
  • क्षेत्रीय विविधताएँ 
    • उत्तर-पश्चिमी राज्य (पंजाब, हरियाणा, राजस्थान): सतही जल की कम उपलब्धता के कारण सिंचाई के लिए भूजल पर उच्च निर्भरता।
    • दक्षिणी राज्य (तमिलनाडु, कर्नाटक): असमान वर्षा और सतही जल के अत्यधिक दोहन के कारण घरेलू और कृषि उद्देश्यों के लिए भूजल पर निर्भरता।
  • शहरी माँग: शहरी केंद्र नगरपालिका जल आपूर्ति के पूरक के लिए भूजल पर काफी हद तक निर्भर हैं, विशेषकर जल की कमी वाले शहरों में।
  • पेयजल स्रोत के रूप में भूजल: यह भारत की कुल पेयजल आवश्यकताओं का 60% से अधिक पूर्ण करता है, जो सार्वजनिक जल आपूर्ति में इसकी महत्त्वपूर्ण भूमिका को उजागर करता है।

भारत में भूजल की कमी के कारण

  • अत्यधिक सिंचाई संबंधी जल की माँग: कृषि के लिए भूजल का अत्यधिक दोहन किया जाता है, जो कुल निकासी का 60% से अधिक है।
    • विशेषकर शुष्क और अर्द्ध-शुष्क क्षेत्रों में चावल और गन्ने जैसी जल-गहन फसलों की कृषि से जल की कमी और बढ़ जाती है।
  • अकुशल सिंचाई पद्धतियाँ: बाढ़ सिंचाई का प्रमुख उपयोग, जिसमें जल की अधिक बर्बादी होती है।
    • ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई जैसी जल-संरक्षक तकनीकों को व्यापक रूप से अपनाने का अभाव।
  • अनियमित भूजल निष्कर्षण: कड़े कानूनों और निगरानी की कमी के कारण भूजल का अंधाधुंध दोहन हो रहा है, विशेष तौर पर कृषि एवं औद्योगिक उपयोगों के लिए।
  • शहरीकरण और जनसंख्या वृद्धि: तेजी से बढ़ते शहरी विस्तार के कारण पीने और औद्योगिक उद्देश्यों के लिए भूजल की माँग बढ़ रही है।
    • निर्माण गतिविधियों के कारण जल निकायों पर अतिक्रमण और पुनर्भरण क्षेत्रों की हानि।
  • जलवायु परिवर्तन: अनियमित वर्षा पैटर्न भूजल पुनर्भरण को कम करता है।
    • लगातार सूखा और मानसून की तीव्रता में कमी से जलभृत पुनःपूर्ति पर और अधिक दबाव पड़ता है।
  • पुनर्भरण क्षेत्रों में कमी: वनों की कटाई, आर्द्रभूमि का नुकसान और हरित आवरण में कमी प्राकृतिक भूजल पुनर्भरण को कम करती है।
  • प्रदूषण: औद्योगिक अपशिष्टों, कृषि अपवाह और अनुचित सीवेज निपटान के कारण जलभृतों का प्रदूषण जल को अनुपयुक्त बनाता है, जिससे सीमित स्वच्छ स्रोतों पर अत्यधिक निर्भरता होती है।
  • विद्युत पर सरकारी सब्सिडी: कृषि के लिए सब्सिडी प्राप्त विद्युत के कारण बिजली के पंपों का उपयोग करके जल का अत्यधिक उपयोग होता है।
  • वर्षा जल संचयन को कम अपनाना: जागरूकता और नीतियों के बावजूद, शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में वर्षा जल संचयन प्रथाओं का कम उपयोग किया जाता है।
  • भू-वैज्ञानिक बाधाएँ: कठोर चट्टान वाले जलभृतों (जैसे, प्रायद्वीपीय भारत) क्षेत्रों में, कम पारगम्यता के कारण भूजल पुनर्भरण स्वाभाविक रूप से सीमित है।

भूजल प्रबंधन के लिए सरकारी पहल

  • महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (MGNREGS): इसमें जल संरक्षण और जल संचयन संरचनाएँ शामिल हैं, जो ग्रामीण जल सुरक्षा को बढ़ाती हैं।
  • जल शक्ति अभियान (JSA): वर्ष 2019 में शुरू किया गया, अब अपने 5वें चरण [‘कैच द रेन (Catch the Rain) 2024] में है, जिसमें विभिन्न योजनाओं के अभिसरण के माध्यम से ग्रामीण और शहरी जिलों में वर्षा जल संचयन और जल संरक्षण पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
  • अटल कायाकल्प और शहरी परिवर्तन मिशन (AMRUT) 2.0: स्टॉर्म वाटर ड्रेन के माध्यम से वर्षा जल संचयन का समर्थन करता है और ‘जलभृत प्रबंधन योजनाओं (Aquifer Management Plans) के माध्यम से भूजल पुनर्भरण को बढ़ावा देता है।
  • अटल भूजल योजना (2020): भूजल प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित करते हुए 7 राज्यों के 80 जिलों में जल-तनावग्रस्त ग्राम पंचायतों को लक्षित करता है।
  • प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY): इसका उद्देश्य हर खेत को पानी, जल निकायों की मरम्मत और नवीनीकरण तथा सतही लघु सिंचाई योजनाओं जैसे घटकों के माध्यम से सिंचाई कवरेज का विस्तार करना एवं जल उपयोग दक्षता में सुधार करना है।
  • जल उपयोग दक्षता ब्यूरो (BWUE): जल शक्ति मंत्रालय ने 20 अक्तूबर, 2022 को राष्ट्रीय जल मिशन के तहत जल उपयोग दक्षता ब्यूरो (BWUE) की स्थापना की है, जो देश में सिंचाई, पेयजल आपूर्ति, विद्युत उत्पादन, उद्योग आदि जैसे विभिन्न क्षेत्रों में जल उपयोग दक्षता में सुधार को बढ़ावा देने के लिए एक सुविधाकर्ता के रूप में कार्य करेगा।
  • मिशन अमृत सरोवर (2022): इसका उद्देश्य जल संचयन और संरक्षण के लिए प्रत्येक जिले में 75 अमृत सरोवरों का निर्माण या पुनरुद्धार करना है।
  • राष्ट्रीय जलभृत मानचित्रण (NAQUIM): केंद्रीय भूजल बोर्ड (CGWB) द्वारा 25 लाख वर्ग किलोमीटर से अधिक क्षेत्र में पूरा किया गया, जो भूजल पुनर्भरण और संरक्षण योजनाओं का समर्थन करता है।
  • भूजल के कृत्रिम पुनर्भरण के लिए मास्टर प्लान (2020): CGWB द्वारा विकसित, 185 BCM वर्षा का दोहन करने के लिए 1.42 करोड़ वर्षा जल संचयन और पुनर्भरण संरचनाओं की योजना है।
  • जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण विभाग द्वारा राष्ट्रीय जल नीति (2012) तैयार की गई है, जो वर्षा जल संचयन और जल संरक्षण की वकालत करती है और वर्षा के प्रत्यक्ष उपयोग के माध्यम से जल की उपलब्धता बढ़ाने की आवश्यकता पर भी प्रकाश डालती है।
  • PMKSY का वाटरशेड विकास घटक (WDC-PMKSY): यह वर्षा सिंचित और बंजर भूमि पर ध्यान केंद्रित करता है, जिसमें मृदा संरक्षण, वर्षा जल संचयन और आजीविका विकास जैसी गतिविधियाँ शामिल हैं।

भारत में भूजल से जुड़ी चुनौतियाँ

  • कृषि के लिए अत्यधिक दोहन: भारत में भूजल दोहन का लगभग 89% हिस्सा कृषि के लिए है।
    • पंजाब और हरियाणा जैसे राज्य धान और गेहूँ जैसी जल-गहन फसलों के लिए भूजल पर बहुत अधिक निर्भर हैं, जिसके कारण जल स्तर में प्रतिवर्ष 0.5-1 मीटर की गिरावट आ रही है।
  • जल स्तर में गिरावट: भारत में 750 से अधिक ब्लॉक (11.1%) को ‘अति-दोहित’ (Over-Exploited) (2024 रिपोर्ट) के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
    • उत्तर भारत, विशेष रूप से पंजाब और राजस्थान में, भूजल स्तर गंभीर स्तर तक कम हो गया है, जिसके कारण कुछ क्षेत्रों में गहरे बोरवेल की आवश्यकता है।
  • प्रदूषण और संदूषण: आर्सेनिक, फ्लोराइड, नाइट्रेट और यूरेनियम जैसे प्रदूषक पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और राजस्थान जैसे क्षेत्रों में भूजल को प्रभावित करते हैं।
    • पश्चिम बंगाल में 20 मिलियन से अधिक लोग पीने योग्य जल में आर्सेनिक संदूषण से प्रभावित हो रहे हैं।
  • खारे जल का अतिक्रमण: गुजरात, तमिलनाडु और ओडिशा जैसे तटीय क्षेत्रों में ताजे भूजल के अत्यधिक दोहन के कारण खारे जल का अतिक्रमण हो रहा है।
    • चेन्नई में, खारे जल के प्रवेश से जल की गुणवत्ता प्रभावित होती है, जिससे यह पीने के लिए अनुपयुक्त हो जाता है।
  • कृषि में अकुशल उपयोग: बाढ़ सिंचाई के प्रमुख उपयोग से अपव्यय होता है और भूजल का अकुशल उपयोग होता है।
    • गुजरात और महाराष्ट्र में किसान सरकारी सब्सिडी के बावजूद ड्रिप सिंचाई के बजाय पारंपरिक तरीकों पर निर्भर हैं।
  • शहरीकरण और औद्योगीकरण: शहरी और औद्योगिक माँग में वृद्धि से जलभृतों पर दबाव पड़ता है।
    • बंगलूरू और चेन्नई जैसे शहरों में जल की कमी का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि अत्यधिक निकासी के कारण कुएँ सूख गए हैं, जिससे कुछ क्षेत्रों में जल स्तर 20 मीटर से अधिक नीचे चला गया है।
  • जलवायु परिवर्तन और वर्षा परिवर्तनशीलता: अनियमित वर्षा और मानसून की तीव्रता में कमी प्राकृतिक पुनर्भरण को प्रभावित करती है।
    • मराठवाड़ा (महाराष्ट्र) जैसे क्षेत्रों में, बार-बार होने वाले सूखे के कारण भूजल पुनःपूर्ति गंभीर रूप से सीमित हो जाती है, जिससे कमी और बढ़ जाती है।

गतिशील भूजल संसाधन मूल्यांकन रिपोर्ट, 2024 की सिफारिशें

  • जल संतुलन अध्ययन: भूजल, वर्षा, सतही जल और वाष्पोत्सर्जन के बीच की अंतःक्रियाओं को बेहतर ढंग से समझने के लिए विस्तृत अध्ययन करना।
    • इस तरह के अध्ययनों को मूल्यांकन सटीकता में सुधार करने के लिए विभिन्न जल विज्ञान व्यवस्थाओं (जैसे, कठोर चट्टानी इलाके, जलोढ़ मैदान) के अनुरूप बनाया जाना चाहिए।
  • जलभृत लक्षण वर्णन: वर्षा अंतःस्यंदन कारक (RIF), सिंचाई से प्रवाह, तथा संरक्षण संरचनाओं से पुनर्भरण योगदान जैसे मापदंडों के मानदंडों को परिष्कृत करने के लिए अधिक प्रयोगात्मक अध्ययन करना।
    • ये जानकारियाँ भूजल संसाधन के सटीक आकलन में सहायक होंगी।
  • प्रबंधन के साथ मूल्यांकन को जोड़ना: प्रबंधन हस्तक्षेप, जैसे जल संरक्षण संरचनाएँ, विशिष्ट मूल्यांकन इकाइयों में भूजल स्थितियों को कैसे प्रभावित करती हैं, इसका मूल्यांकन करने के लिए केस अध्ययन आरंभ करना।
    • इससे हस्तक्षेप रणनीतियों को मान्य एवं अनुकूलित करने में मदद मिलेगी।
  • अस्थायी उपलब्धता अध्ययन: भूजल उपलब्धता में समय-समय पर होने वाले बदलावों को ध्यान में रखने के लिए मौसमी आकलन से आगे बढ़ना होगा, विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जहाँ कठोर चट्टानी भू-भाग जैसी महत्त्वपूर्ण जल-भूवैज्ञानिक चुनौतियाँ हैं।
    • डिजिटल वाटर लेवल रिकॉर्डर (DWLR) का उपयोग करके लगातार निगरानी की सिफारिश की जाती है।
  • डेटाबेस निर्माण और अद्यतन: भूजल संसाधनों का एक व्यापक डाटाबेस विकसित करना तथा उसे नियमित रूप से अद्यतन करना, जिसमें पुनर्भरण, निष्कर्षण और गुणवत्ता संबंधी आँकड़े शामिल हों।
    • इसके लिए राज्य और केंद्रीय एजेंसियों के बीच बेहतर समन्वय तथा सटीक डेटा संग्रहण और विश्लेषण के लिए समर्पित जनशक्ति की आवश्यकता होगी।
  • नीति और नियामक कार्रवाई: भूजल निष्कर्षण पर सख्त नियम लागू करना, कुशल सिंचाई तकनीकों को प्रोत्साहित करना तथा भूजल स्थिरता में सुधार के लिए वर्षा जल संचयन और कृत्रिम पुनर्भरण को बढ़ावा देना।

भारत में भूजल प्रबंधन के लिए आगे की राह

  • वर्षा जल संचयन को बढ़ावा देना: भूजल को रिचार्ज करने के लिए शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर वर्षा जल संचयन प्रणाली लागू करना।
  • जल-कुशल सिंचाई तकनीक अपनाना: कृषि में जल की बर्बादी को कम करने के लिए ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई को बढ़ावा देना, जो निकाले गए भूजल का 85% से अधिक उपभोग करता है।
  • भूजल विनियमन को मजबूत करना: भूजल निष्कर्षण को विनियमित करने के लिए कानून लागू करना, विशेष रूप से अत्यधिक दोहन वाले क्षेत्रों में।
  • कृत्रिम पुनर्भरण संरचनाएँ: जलभृतों के कृत्रिम पुनर्भरण को बढ़ाने के लिए चेक डैम, परकोलेशन टैंक और पुनर्भरण कुएँ बनाना।
  • जलभृत मानचित्रण और प्रबंधन: महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों की पहचान करने और स्थानीय प्रबंधन योजनाएँ विकसित करने के लिए राष्ट्रीय जलभृत मानचित्रण और प्रबंधन (NAQUIM) कार्यक्रम के तहत जलभृतों का पूरा मानचित्रण करना।
  • सामुदायिक भागीदारी: जागरूकता अभियानों और प्रोत्साहन कार्यक्रमों के माध्यम से भूजल संरक्षण में भाग लेने के लिए स्थानीय समुदायों को सशक्त बनाना।
  • एकीकृत जल प्रबंधन: समग्र संसाधन स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए सतही जल और भूजल प्रबंधन को एकीकृत करना।
    • नदी पुनर्कायाकल्प कार्यक्रमों को भूजल पुनर्भरण प्रयासों से जोड़ना।
  • डेटा संग्रह और निगरानी में सुधार: भूजल आकलन की सटीकता में सुधार करने और पुनर्भरण और निष्कर्षण स्तरों की निगरानी करने के लिए डिजिटल वाटर लेवल रिकॉर्डर (DWLR) का उपयोग करना।
  • जल गुणवत्ता के मुद्दों का समाधान: आर्सेनिक, फ्लोराइड, नाइट्रेट और औद्योगिक प्रदूषकों से होने वाले प्रदूषण से निपटने के उपायों को लागू करना।

निष्कर्ष 

गतिशील भूजल संसाधन मूल्यांकन रिपोर्ट, 2024 भूजल पुनर्भरण और कम निकासी में महत्त्वपूर्ण सुधारों पर प्रकाश डालती है, जो संरक्षण प्रयासों की सफलता को दर्शाती है। हालाँकि, अत्यधिक निकासी, क्षेत्रीय असमानताएँ और प्रदूषण जैसी चुनौतियाँ बनी हुई हैं, जिससे भविष्य की पीढ़ियों के लिए भूजल का सतत् उपयोग सुनिश्चित करने के लिए निरंतर प्रबंधन, विनियामक उपाय और सामुदायिक भागीदारी की आवश्यकता है।

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