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डिजिटल शासन का महत्त्व, चुनौतियाँ एवं प्रगति

Lokesh Pal January 07, 2025 05:15 14 0

संदर्भ:

डिजिटल गवर्नेंस के लिए भारत के प्रयास का उद्देश्य नागरिक सेवाओं को बढ़ाना और सरकारी कर्मचारियों को सशक्त बनाना है। इस क्षेत्र में, उल्लेखनीय प्रगति के बावजूद, इसकी क्षमता को पूरी तरह से साकार करने में चुनौतियाँ बनी हुई हैं।

शासन और डिजिटल परिवर्तन की भूमिका:

  • शासन पर चाणक्य का प्रभाव: कुशल शासन-कौशल, रणनीतिक योजना और नैतिक शासन के चाणक्य के सिद्धांत, डेटा-संचालित निर्णय-निर्माण, संसाधन अनुकूलन और पारदर्शिता पर जोर देकर डिजिटल शासन के साथ संरेखित होते हैं।
  • डिजिटल गवर्नेंस: डिजिटल गवर्नेंस सरकारी कर्मचारियों और सेवा प्रदाताओं (जैसे ठेकेदारों) के काम करने के तरीके में तेजी से परिवर्तन सुनिश्चित कर रहा है।
    • डिजिटल शासन का आशय, सरकारी सेवाएं प्रदान करने के लिए डिजिटल प्रौद्योगिकी का उपयोग है।
  • शासन में डिजिटल उपकरणों की आवश्यकता: जैसे-जैसे प्रौद्योगिकी दुनिया को तेजी से आकार दे रही है, सरकारी कर्मचारियों को दक्षता में सुधार लाने और बढ़ती सार्वजनिक अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए डिजिटल प्लेटफार्मों कोअपनाने में रुचि दिखाने की आवश्यकता है।

डिजिटल शासन संबंधी प्रमुख पहल:

  • iGOT कर्मयोगी प्लेटफॉर्म: यह 2020 में लॉन्च किया गया था। यह ऑनलाइन प्रशिक्षण पोर्टल सरकारी कर्मचारियों को डेटा एनालिटिक्स, लोक प्रशासन और डिजिटल प्रौद्योगिकियों में कौशल से सुसज्जित करता है।
    • यह गतिशील डिजिटल युग में निरंतर सुधार के लिए लचीला और समयानुकूल व्यक्तिगत शिक्षण प्रदान करता है।
  • ई-ऑफिस पहल: ई-ऑफिस प्रणाली कागजी कार्रवाई को कम करती है, कार्यप्रवाह को स्वचालित करती है, शिकायत निवारण को सुव्यवस्थित करती है, दक्षता बढ़ाती है, वास्तविक समय संचार को सक्षम बनाती है, और सरकारी कार्यों में पारदर्शिता को बढ़ावा देती है।
  • सरकारी ई-बाज़ार (GeM): सरकारी ई-बाजार प्लेटफ़ॉर्म खरीद प्रक्रियाओं को ऑनलाइन करके उनमें परिवर्तन लाने में सक्षम है। 
    • डिजिटल प्लेटफॉर्म पर यह परिवर्तन खरीद को सुव्यवस्थित बनाता है, तथा इसे सभी हितधारकों के लिए अधिक पारदर्शी, कुशल और सुलभ बनाता है।

डिजिटल गवर्नेंस को लागू करने में चुनौतियाँ:

  • परिवर्तन का प्रतिरोध: परिवर्तन का प्रतिरोध (नौकरशाही जड़ता), विशेष रूप से कार्यबल के कुछ क्षेत्रों में, एक महत्वपूर्ण बाधा उत्पन्न करता है। नौकरशाही संरचनाएं अनुकूलन करने में धीमी हो सकती हैं, और कर्मचारी नई प्रौद्योगिकियों को अपनाने के लिए अपनी कार्य करने की तत्परता में भिन्न प्रकृति के होते हैं।
  • डिजिटल डिवाइड: डिजिटल डिवाइड शासन के समक्ष एक और बड़ी चुनौती है, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में जहां हाई-स्पीड इंटरनेट और डिजिटल उपकरणों तक पहुंच सीमित है।
  • साइबर सुरक्षा जोखिम: साइबर हमलों और डेटा उल्लंघनों में वृद्धि के साथ, डिजिटल शासन प्रणाली में विश्वास बनाए रखने के लिए संवेदनशील जानकारी की सुरक्षा महत्वपूर्ण है।
  • प्रोत्साहन का अभाव: भागीदारी को रोजगार के अवसरों या वास्तविक दुनिया की परियोजनाओं जैसे ठोस परिणामों से जोड़े बिना, iGOT कर्मयोगी प्लेटफॉर्म सार्थक कौशल विकास के उपकरण के बजाय केवल उपस्थिति ट्रैकर बनकर रह जाएंगे।

निरंतर सीखने की आवश्यकता:

  • डिजिटल उपकरणों के तेजी से विकास के लिए सरकारी कर्मचारियों के लिए निरंतर प्रशिक्षण और कौशल उन्नयन के अवसरों की आवश्यकता है।
  • निरंतर सीखना यह सुनिश्चित करता है कि कर्मचारी अपनी भूमिकाओं में सक्षम, अनुकूलनशील और आत्मविश्वासी बने रहें। 
  • क्षमता निर्माण कार्यक्रम गतिशील और प्रौद्योगिकी के नए विकास के प्रति उत्तरदायी होने चाहिए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कार्यबल हमेशा उभरती चुनौतियों का सामना करने के लिए तत्पर रहें।

निष्कर्ष:

सफलता की कुंजी यह सुनिश्चित करने में निहित है कि सभी कर्मचारी, चाहे उनकी पृष्ठभूमि, पद या स्थान कुछ भी हो इसकी चिंता करे वगैर डिजिटल युग में कामयाब होने के लिए सुसज्जित हों। तभी भारत एक ऐसा शासन मॉडल हासिल कर सकता है जो सभी के लिए पारदर्शी, जवाबदेह और समावेशी हो।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न: जबकि iGOT कर्मयोगी और ई-ऑफिस जैसी डिजिटल गवर्नेंस पहल भारतीय प्रशासन में एक आदर्श बदलाव का प्रतिनिधित्व करती हैं, डिजिटल विभाजन और नौकरशाही प्रतिरोध की चुनौतियाँ बनी हुई हैं। आलोचनात्मक रूप से जाँच करें कि भारत कैसे साइबर सुरक्षा और अपने कार्यबल की सार्थक क्षमता निर्माण सुनिश्चित करते हुए समावेशी शासन के साथ तकनीकी उन्नति को संतुलित कर सकता है।

(15 अंक, 250 शब्द)

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