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दुबई में, भारत और अफगानिस्तान के वरिष्ठ अधिकारियों की बैठक सम्पन्न

Lokesh Pal January 10, 2025 05:00 59 0

संदर्भ:

हाल ही में, भारत और अफगानिस्तान के वरिष्ठ अधिकारियों ने दुबई में, मुलाकात की और दोनों देशों के मध्य विभिन्न सुरक्षा चिंताओं से लेकर क्रिकेट तक कई मुद्दों पर सफल संवाद सम्पन्न किया गया।

अफ़गानिस्तान के साथ भारत के राजनयिक संबंध:

  • उच्च स्तरीय वार्ता: भारतीय विदेश सचिव विक्रम मिस्री और अफ़गानिस्तान के विदेश मंत्री मावलवी आमिर खान मुत्ताकी ने दुबई में उच्च स्तरीय वार्ता की, जो 2021 के बाद से भारत और तालिबान के बीच उच्चतम स्तर की वार्ता थी।
    • इस वार्ता में, बातचीत द्विपक्षीय संबंधों के विस्तार, ईरान के चाबहार बंदरगाह के माध्यम से व्यापार को बढ़ाने और संभावित सहयोगी विकास परियोजनाओं पर ध्यान केंद्रित किया गया।
  • सुरक्षा चिंताएँ : भारत का लक्ष्य अपने क्षेत्रीय प्रभाव को बनाए रखने और चीन और पाकिस्तान की भूमिकाओं को संतुलित करने के लिए अफ़गानिस्तान के वर्तमान नेतृत्व के साथ अपने संबंधों को स्थिर करना है।
    • उदाहरण के लिए: भारत ने शुरू में म्यांमार के सैन्य प्रशासन से तटस्थता बनाई, लोकतांत्रिक शासन की वकालत की और लोकतंत्र को समर्थित महत्त्वपूर्ण आंदोलनों का भी समर्थन किया।
    • गैर-संलग्नता की इस अवधि ने चीन को म्यांमार के साथ अपने सामरिक और आर्थिक संबंधों को मजबूत करने की अनुमति दी, जिससे इस क्षेत्र में उसका प्रभाव बढ़ा।
    • चीन की गहरी होती उपस्थिति के भू-राजनीतिक निहितार्थों को पहचानते हुए, भारत ने 1990 के दशक के मध्य में अपनी विदेश नीति को फिर से तैयार किया।
    • इस संदर्भ में, व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाते हुए भारत ने म्यांमार के सत्तारूढ़ प्राधिकारियों के साथ कूटनीतिक और आर्थिक संबंध स्थापित किए तथा लोकतांत्रिक सिद्धांतों को बढ़ावा देने के स्थान पर सुरक्षा और राजनीतिक हितों को प्राथमिकता दी।

पाकिस्तान-अफगानिस्तान संबंध:

  • अफगानिस्तान के पूर्वी पकटिका प्रांत में पाकिस्तानी हवाई हमलों के बाद पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच संबंध लगभग जटिल बने हुए हैं, जिसके परिणामस्वरूप कथित तौर पर कुछ नागरिक हताहत हुए हैं।

अफ़गानिस्तान का भू-राजनीतिक महत्व:

  • रणनीतिक स्थिति: अफ़गानिस्तान की रणनीतिक स्थिति ने इसे वैश्विक राजनीति में एक केंद्रीय खिलाड़ी के रूप में स्थापित किया है, जो प्रमुख शक्तियों के बीच बातचीत को प्रभावित करता है। मध्य एशिया, मध्य पूर्व और दक्षिण एशिया से इसकी निकटता ने इसे अंतर्राष्ट्रीय हित का केंद्र बिंदु बना दिया है।
  • बफ़र ज़ोन: 19वीं शताब्दी के दौरान, अफ़गानिस्तान ने ज़ारिस्ट रूस और शाही ब्रिटेन के बीच प्रतिद्वंद्विता के बीच एक बफर ज़ोन की भूमिका निभाई है।
  • शीत युद्ध काल: शीत युद्ध काल में, अफ़गानिस्तान संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ के बीच विवाद का एक केंद्रीय बिंदु बन गया।
  • 9/11 के बाद की अवधि: 11 सितंबर, 2001 की घटनाओं के बाद, अफ़गानिस्तान एक बार फिर “आतंकवाद के खिलाफ़ युद्ध” के दौरान वैश्विक भू-राजनीति में एक केंद्र बिंदु बनकर उभरने लगा है।
    • संयुक्त राज्य अमेरिका ने 1980 के दशक में सोवियत आक्रमण के दौरान अफ़गान मुजाहिदीन लड़ाकों का समर्थन किया था। 1990 के दशक में तालिबान के उदय के बाद, अमेरिका ने उन्हें आतंकवादी संगठन घोषित कर दिया।
    • 11 सितंबर, 2001 के हमलों के बाद, अमेरिका ने तालिबान को सत्ता से हटाने के लिए एक गठबंधन का नेतृत्व किया।
    • इसके बावजूद, तालिबान फिर से संगठित हो गया, पड़ोसी पाकिस्तान में समर्थन और शरण का लाभ उठाते हुए, जिसने उन्हें हराने के अमेरिकी प्रयासों में व्यवधान उत्पन्न किया।
    • लगभग दो दशकों के संघर्ष के बाद, अमेरिका ने 2020 में तालिबान के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिसके परिणामस्वरूप अमेरिकी सेना की वापसी हुई और अगस्त 2021 में तालिबान की सत्ता में वापसी हुई।
  • भारत-अफगानिस्तान संबंध: भारत और अफगानिस्तान के संबंध ऐतिहासिक हैं, विशेषकर ये सिंधु घाटी सभ्यता से जुड़े हुए हैं। भारत की स्वतंत्रता के बाद, 4 जनवरी, 1950 को मैत्री संधि पर हस्ताक्षर करके इन संबंधों को औपचारिक रूप दिया गया, जिसने स्थायी द्विपक्षीय संबंधों की नींव रखी।

अमेरिका के उदासीन रुख के बाद भारत-तालिबान संबंधों का विकास:

  • प्रारंभिक संपर्क (2021): तालिबान द्वारा सत्ता पर कब्ज़ा करने के कुछ दिनों बाद भारतीय राजदूत दीपक मित्तल ने दोहा में तालिबान नेताओं से मुलाकात की।
  • बाद की बैठकें: हालांकि भारतीय अधिकारियों ने कम महत्वपूर्ण संपर्क बनाए रखा, जिसमें 2022 में तालिबान नेताओं के साथ संयुक्त सचिव जे पी सिंह की बैठकें शामिल हैं।
  • हालिया बढ़ी हुई सहभागिता: परियोजनाओं में निरंतरता सुनिश्चित करने के लिए काबुल स्थित भारतीय  दूतावास में एक तकनीकी टीम तैनात की गई थी।

भारत-तालिबान संबंध:

  • अफ़गानिस्तान नीति: भारत ने अपने राष्ट्रीय हितों की सेवा और अफ़गान आबादी की ज़रूरतों को पूरा करने के बीच संतुलन बनाए रखते हुए अफ़गानिस्तान के प्रति अपनी नीति को परिश्रमपूर्वक तैयार किया है, जो लोकतांत्रिक मूल्यों और मानवीय सहायता के प्रति भारतीय अटूट प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
  • तालिबान के उदय का प्रभाव: 1990 के दशक में जब तालिबान पाकिस्तान की इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (ISI) के समर्थन से सत्ता में काबिज हुआ, तो भारत और अफ़गानिस्तान के बीच संबंध प्रभावित हुए।
    • 1999 में कंधार में इंडियन एयरलाइंस की फ़्लाइट IC 814 के अपहरण के बाद यह प्रभाव और भी बढ़ गया।
  • तालिबान का पुनर्निर्माण: 2001 में,  जब हामिद करज़ई देश के राष्ट्रपति बने, लोकतंत्र की आंशिक बहाली के साथ रिश्ते में सुधार आना शुरू हुआ।
    • भारत ने बुनियादी ढांचे, रक्षा, स्वास्थ्य और शिक्षा सहित विभिन्न क्षेत्रों में अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण में फिर से भाग लिया। 
    • 2001 से, भारत ने अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण के लिए 1.2 बिलियन डॉलर की पेशकश की है, जिससे यह अफगानिस्तान के विकास हेतु सबसे बड़ा क्षेत्रीय दाता बन गया है।

अफ़गानिस्तान के लिए भारत द्वारा शुरू की गई विकास पहल:

  • बुनियादी ढांचे का विकास: भारत ने डेलाराम-जरंज राजमार्ग और सलमा बांध जैसी महत्वपूर्ण परियोजनाएँ शुरू की हैं, जिनका उद्घाटन 4 जून, 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया था।
  • स्वास्थ्य सेवा: काबुल में इंदिरा गांधी बाल स्वास्थ्य संस्थान का पुनर्निर्माण, जिसे मूल रूप से 1969 में भारतीय सहायता से स्थापित किया गया था, और एक नए संसद भवन का निर्माण, जिसका उद्घाटन 2015 में मोदी और अफ़गान राष्ट्रपति गनी ने किया, इन क्षेत्रों में भारत के समर्थन को रेखांकित करता है।
  • शैक्षणिक और चिकित्सा आदान-प्रदान: शैक्षणिक आदान-प्रदान कार्यक्रमों के तहत भारत में उच्च शिक्षा व तकनीकी शिक्षा के लिए आने वाले अफ़गान छात्रों की संख्या में वृद्धि हुई है और चिकित्सा पर्यटन में अफ़गानों की भागीदारी में वृद्धि हुई है।
  • तालिबान की वापसी का प्रभाव: अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद 2021 में तालिबान के पुनरुत्थान ने अफ़गानिस्तान में भारत के विकासात्मक और मानवीय प्रयासों के लिए चुनौतियाँ खड़ी कर दीं।
  • निरंतर मानवीय सहायता और समर्थन: इन चुनौतियों के बावजूद, भारत ने संकट के दौरान अफ़गानिस्तान का समर्थन करना जारी रखा है।
    • कोविड-19 महामारी के दौरान, भारत ने मानवीय सहायता के रूप में 50,000 मीट्रिक टन गेहूं और आवश्यक चिकित्सा आपूर्ति प्रदान की। हालाँकि, भारत ने यह स्पष्ट कर दिया है कि अफ़गानिस्तान को आतंकवादी संगठनों को भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा हितों के खिलाफ़ अपने क्षेत्र का उपयोग करने से रोकना चाहिए|

निष्कर्ष :

दुबई में तालिबान के साथ भारत की रणनीतिक वार्ता, कूटनीतिक भागीदारी, क्षेत्रीय स्थिरता और मानवीय उद्देश्यों को बढ़ावा देते हुए अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए एक रणनीतिक प्रयास को दर्शाती है।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न :

प्रश्न. “तालिबान के साथ भारत का जुड़ाव राष्ट्रीय हितों और मानवीय मूल्यों के बीच संतुलन को दर्शाता है।” भारत की अफगानिस्तान नीति के संदर्भ में इस कथन की विस्तारपूर्वक चर्चा करें।

(10 अंक, 150 शब्द)

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