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भारत-तालिबान वार्ता

Lokesh Pal January 13, 2025 02:20 21 0

संदर्भ

हाल ही में भारतीय विदेश सचिव ने दुबई में तालिबान के कार्यवाहक विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी से मुलाकात की। यह बैठक अगस्त 2021 में सत्ता में वापसी के बाद से तालिबान के साथ भारत की सर्वोच्च स्तरीय भागीदारी का प्रतिनिधित्व करती है।

तालिबान के साथ भारत के संबंधों में हालिया बदलाव

  • व्यावहारिक दृष्टिकोण: भारत ने तालिबान के शासन को औपचारिक मान्यता न दिए जाने के बावजूद, तालिबान के साथ व्यावहारिक जुड़ाव की दिशा में कदम बढ़ाया है। अब ध्यान अलगाव से हटकर सुरक्षा चिंताओं, व्यापार और मानवीय सहायता पर केंद्रित हो गया है।
    • बैठक में भारत से विकास परियोजनाओं को पुनः आरंभ करने तथा स्वास्थ्य सेवा और शरणार्थी पुनर्वास जैसे क्षेत्रों में भौतिक सहायता प्रदान करने के तालिबान के अनुरोध पर चर्चा की गई।
  • मानवीय सहायता: भारत ने मानवीय प्रयासों में अपनी भागीदारी बढ़ाने पर सहमति जताई, जिसमें अफगानिस्तान के स्वास्थ्य क्षेत्र को और अधिक सहायता देना तथा शरणार्थियों के पुनर्वास के प्रयास शामिल हैं।
    • भारत ने पहले ही 50,000 मीट्रिक टन गेहूँ, 300 टन दवाइयाँ एवं टीके जैसी महत्त्वपूर्ण सहायता प्रदान की है।

  • व्यापार और संपर्क: चर्चा का मुख्य केंद्रीय विषय पाकिस्तान के बंदरगाहों को दरकिनार करते हुए व्यापार और वाणिज्यिक गतिविधियों के लिए एक प्रमुख प्रवेश द्वार के रूप में चाबहार बंदरगाह के उपयोग को बढ़ावा देना था।
    • अफगानिस्तान के व्यापार के लिए भारत का समर्थन तथा चाबहार बंदरगाह के माध्यम से संपर्क का विस्तार भारत और क्षेत्र के साथ अफगानिस्तान के आर्थिक संबंधों को मजबूत करने के लिए आवश्यक है।
  • सुरक्षा चिंताएँ: भारत की मुख्य सुरक्षा चिंता यह सुनिश्चित करना है कि अफगानिस्तान का उपयोग लश्कर, जैश और ISKP जैसे आतंकवादी समूहों द्वारा भारत विरोधी गतिविधियों के लिए न किया जाए।
    • अफगानिस्तान में भारतीय हितों एवं सुविधाओं के लिए सुरक्षा गारंटी पर तालिबान द्वारा भारत को दिए गए आश्वासनों पर चर्चा की गई, जिसमें भारत की कुछ प्राथमिक सुरक्षा आशंकाओं का समाधान किया गया।
  • पाकिस्तान के साथ तनावपूर्ण संबंध: पाकिस्तान-तालिबान संबंध लगातार तनावपूर्ण होते जा रहे हैं, विशेषतः अफगानिस्तान की धरती पर पाकिस्तान के हवाई हमलों के कारण, जिसकी भारत ने जनवरी 2025 में निंदा की थी।
    • पाकिस्तान के साथ तालिबान की बढ़ती असहजता भारत को तालिबान के साथ जुड़कर अफगानिस्तान में अपनी स्थिति मजबूत करने का अवसर प्रदान करती है।
  • तालिबान के लिए रणनीतिक स्वायत्तता: तालिबान ने रणनीतिक स्वायत्तता प्रदर्शित करने और पाकिस्तान पर अपनी निर्भरता कम करने की इच्छा व्यक्त की है, जो उसकी विदेश नीति में बदलाव का संकेत है।
    • तालिबान ने अपनी संतुलित तथा अर्थव्यवस्था-केंद्रित विदेश नीति के हिस्से के रूप में  भारत को एक प्रमुख क्षेत्रीय भागीदार के रूप में देखते हुए, संबंधों को मजबूत करने में रुचि दिखाई है।
  • मानवाधिकारों की चिंताओं के बावजूद निरंतर जुड़ाव: तालिबान की दमनकारी नीतियों के बावजूद, खासकर महिलाओं के अधिकारों के संबंध में, भारत ने विकास सहयोग और मानवीय सहायता पर ध्यान केंद्रित करते हुए अपनी भागीदारी जारी रखी है।
    • भारत ने दोहराया है कि वह तालिबान शासन को औपचारिक रूप से मान्यता प्रदान नहीं करेगा, लेकिन अपने राष्ट्रीय सुरक्षा हितों और मानवीय प्रतिबद्धताओं के आधार पर जुड़ेगा।

भारत-अफगानिस्तान संबंध: ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य

प्राचीन काल

  • सिंधु घाटी सभ्यता: ऐतिहासिक संबंध सिंधु घाटी सभ्यता से जुड़े हैं, जहाँ व्यापार और सांस्कृतिक आदान-प्रदान प्रमुख थे।
  • गांधार क्षेत्र: आधुनिक अफगानिस्तान का हिस्सा गांधार, वैदिक युग में 16 महाजनपदों में से एक था। यह मौर्य साम्राज्य द्वारा शुरू किए गए बौद्ध धर्म का केंद्र था।
    • बामियान बुद्ध: इन भव्य मूर्तियों ने इस क्षेत्र में बौद्ध धर्म के प्रभाव को प्रदर्शित किया।
  • सांस्कृतिक आदान-प्रदान: अफगानिस्तान सांस्कृतिक आदान-प्रदान और भारत में इस्लाम के प्रसार के लिए प्रवेश द्वार के रूप में कार्य करता था।
  • राजनीतिक एकीकरण: मुगलों सहित भारतीय उपमहाद्वीप के कई शासकों की पृष्ठभूमि अफगानिस्तान  से संबंधित थीं, जिससे दोनों क्षेत्र आपस में जुड़ गए।

औपनिवेशिक युग

  • आंग्ल-अफगान संबंध: अफगानिस्तान की रणनीतिक स्थिति के कारण ब्रिटिश भारत तथा अफगानिस्तान के बीच कई संघर्ष हुए, जिनमें आंग्ल-अफगान युद्ध (वर्ष 1839-1842, वर्ष 1878-1880) भी शामिल हैं।
  • डूरंड रेखा: ब्रिटिशों द्वारा वर्ष 1893 में स्थापित इस सीमा रेखा के कारण क्षेत्र में दीर्घकालिक विवाद और अस्थिरता बनी रही।
    • अफगानिस्तान ने कभी भी आधिकारिक तौर पर डूरंड रेखा को अफगानिस्तान तथा पाकिस्तान के बीच की सीमा के रूप में मान्यता नहीं दी है।

स्वतंत्रता के पश्चात्

  • मैत्री संधि (वर्ष 1950): भारत और अफगानिस्तान ने औपचारिक राजनयिक संबंध स्थापित किए, जिसमें आपसी सम्मान और संप्रभुता पर जोर दिया गया।
  • अफगानिस्तान की तटस्थता: एशियाई संबंध सम्मेलन (वर्ष 1947) में भागीदारी ने भारत के साथ तटस्थता और मैत्रीपूर्ण संबंधों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता पर जोर दिया।
  • सोवियत-अफगान संबंध (वर्ष 1979-1989): भारत ने शीतयुद्ध के दौरान सोवियत समर्थित अफगान सरकार का समर्थन किया, ऐसा करने वाला वह एकमात्र दक्षिण एशियाई देश था।

आधुनिक युग

  • तालिबान युग (वर्ष 1996-2001): तालिबान शासन के दौरान संबंधों में कमी आई, जिसकी वजह कंधार अपहरण (वर्ष 1999) जैसी घटनाएँ मानी जाती हैं।
  • तालिबान के बाद (वर्ष 2001): भारत ने तालिबान के पतन के बाद अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई, बुनियादी ढाँचे और क्षमता निर्माण परियोजनाओं के लिए 3 बिलियन डॉलर से अधिक की प्रतिबद्धता जताई।
    • विकासात्मक गतिविधियाँ 
      • सलमा बाँध (अफगान-भारत मैत्री बाँध): वर्ष 2016 में पूरा हुआ।
      • जरंज-डेलाराम राजमार्ग: चाबहार बंदरगाह के माध्यम से ईरान के साथ व्यापार को सुगम बनाया।

अफगानिस्तान के साथ वार्ता करने के भारत के निर्णय के पीछे कारण

  • पाकिस्तान-तालिबान के बीच तनावपूर्ण संबंध: पाकिस्तान तथा तालिबान के बीच कभी घनिष्ठ रहे गठबंधन में बढ़ते तनाव के कारण कमी आ गई है।
    • तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) को तालिबान का समर्थन और अफगान क्षेत्र पर पाकिस्तान के हवाई हमलों ने तनाव उत्पन्न किया है।
    • इससे भारत को अफगानिस्तान में कदम रखने तथा पाकिस्तान के प्रभाव का मुकाबला करने का अवसर मिलता है।
  • चीन का बढ़ता प्रभाव: चीन ने तालिबान के साथ अपने संबंधों को और गहरा किया है, जिसमें राजदूतों का आदान-प्रदान और शहरी विकास परियोजनाओं को शुरू करना शामिल है।
    • बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के तहत अफगानिस्तान के प्राकृतिक संसाधनों में चीन के निवेश से भारत के क्षेत्रीय हितों को खतरा है, जिसके कारण दिल्ली को अपने प्रभाव की रक्षा के लिए कदम उठाने पड़ रहे हैं।
  • अमेरिकी नीति में बदलाव और ट्रंप की वापसी: डोनाल्ड ट्रंप की अमेरिकी राष्ट्रपति के रूप में पुनः वापसी से अमेरिका-तालिबान के बीच नए सिरे से जुड़ाव देखने को मिल सकता है।
    • भारत का लक्ष्य तालिबान के साथ संभावित अमेरिकी पुनः संपर्क से पहले अफगानिस्तान में अपने हितों को सुरक्षित करना है।
  • क्षेत्रीय सुरक्षा और आतंकवाद निरोध: एक स्थिर अफगानिस्तान यह सुनिश्चित करने के लिए महत्त्वपूर्ण है कि लश्कर-ए-तैयबा (LeT) तथा जैश-ए-मोहम्मद (JeM) जैसे आतंकवादी समूहों द्वारा भारत विरोधी गतिविधियों के लिए अपने क्षेत्र का उपयोग न करना।
  • आर्थिक अवसर: ताँबा, लोहा, लीथियम तथा दुर्लभ मृदा तत्त्वों सहित अफगानिस्तान की अप्रयुक्त खनिज संपदा भारत के लिए आर्थिक अवसर प्रस्तुत करती है।
    • भारत पहले ही सलमा बाँध तथा अफगान संसद जैसी बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं में 3 बिलियन डॉलर का निवेश कर चुका है, जिससे अफगानिस्तान की आर्थिक वृद्धि और भारत के प्रति सद्भावना बढ़ेगी।
  • ईरान का कमजोर होना: ईरान समर्थित समूहों जैसे- हिज्बुल्लाह, हमास पर हमलों तथा मिसाइल हमलों के बाद घरेलू स्थिरता और इजरायल के साथ तनाव बढ़ा है।
    • अफगानिस्तान पर ईरान का कम ध्यान भारत के लिए इस क्षेत्र में अपनी भूमिका बढ़ाने के लिए स्थान देता है।
  • रूस का रणनीतिक बदलाव: यूक्रेन युद्ध में उलझा रूस मध्य एशिया में इस्लामी चरमपंथी समूहों से खतरों का मुकाबला करने के लिए तालिबान जैसे समूहों के साथ गठबंधन करना चाहता है।
    • तालिबान के साथ संबंधों को सामान्य बनाने की रूस की इच्छा भू-राजनीतिक समीकरणों में बदलाव को प्रदर्शित करती है, जिससे भारत को सक्रिय रूप से जुड़ने के लिए प्रेरित किया जाता है।
  • रणनीतिक स्थान: अफगानिस्तान मध्य एशिया के प्रवेश द्वार के रूप में कार्य करता है, जो भारत को ऊर्जा-समृद्ध बाजारों तक पहुँच प्रदान करता है और ईरान में चाबहार बंदरगाह के माध्यम से पाकिस्तान को बायपास करता है।
    • भारत द्वारा निर्मित जारंज-डेलाराम राजमार्ग जैसी परियोजनाएँ भारत, अफगानिस्तान और मध्य एशिया के बीच व्यापार तथा संपर्क को सुविधाजनक बनाती हैं।
  • सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संबंध: अफगानिस्तान तथा भारत के बीच सिंधु घाटी सभ्यता से लेकर इस क्षेत्र में बौद्ध धर्म के प्रसार तक गहरे सभ्यतागत संबंध हैं
    • भारत द्वारा छात्रवृत्ति और सांस्कृतिक आदान-प्रदान के प्रावधान से लोगों के बीच संबंध मजबूत होते हैं, प्रत्येक वर्ष हजारों अफगान छात्र भारत में अध्ययन करते हैं।

तालिबान के साथ भारत के जुड़ाव के निहितार्थ

सकारात्मक प्रभाव

  • क्षेत्रीय स्थिरता: तालिबान के साथ जुड़ाव भारत को आतंकवाद का मुकाबला करके और अफगानिस्तान को भारत विरोधी गतिविधियों का केंद्र बनने से रोककर क्षेत्रीय स्थिरता को प्रभावित करने का अवसर प्रदान करता है।
    • यह अफगानिस्तान में भारत की उपस्थिति को मजबूत करता है, चीन के बढ़ते प्रभाव और पाकिस्तान के रणनीतिक लक्ष्यों के बीच संतुलन बनाता है।
  • पश्चिम की ओर देखो नीति: अफगानिस्तान भारत की पश्चिम की ओर भू-राजनीतिक रणनीति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
  • निवेश का संरक्षण: तालिबान के साथ जुड़कर भारत अफगानिस्तान में अपने 3 बिलियन डॉलर के निवेश की सुरक्षा करता है, जिसमें सलमा बाँध, जरांज-डेलाराम राजमार्ग तथा अफगान संसद जैसी महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढाँचा परियोजनाएँ शामिल हैं।
    • रुकी हुई विकास परियोजनाओं को पुनः शुरू करने से अफगान जनता के बीच भारत के प्रति सद्भावना बनी रहेगी।
  • बेहतर व्यापार और संपर्क: चाबहार बंदरगाह का लाभ उठाने से पाकिस्तान को दरकिनार करते हुए अफगानिस्तान तथा मध्य एशिया के लिए निर्बाध व्यापार मार्ग सुनिश्चित होता है।
    • व्यापार संबंधों को मजबूत करने से क्षेत्र में आर्थिक गतिविधियाँ बढ़ेगी तथा भारतीय निर्यात के लिए नए बाजार खुलेंगे।
  • आतंकवाद विरोधी सहयोग: तालिबान के साथ बातचीत से यह सुनिश्चित करने में सहायता मिलती है कि लश्कर-ए-तैयबा (LeT) तथा जैश-ए-मोहम्मद (JeM) जैसे समूह अफगानिस्तान की धरती का प्रयोग भारत के विरुद्ध न कर सकें।
    • इस्लामिक स्टेट-खुरासान प्रांत (ISKP) के विरुद्ध तालिबान का आश्वासन भारत की सुरक्षा चिंताओं के अनुरूप है।
  • मानवीय सहायता संबंधी कूटनीति: गेहूँ, टीके और दवाइयों जैसी मानवीय सहायता प्रदान करने से भारत की छवि में एक जिम्मेदार वैश्विक शक्ति के रूप में वृद्धि होती है।
    • अफगान नागरिक समाज के साथ संबंधों को मजबूत करने से लोगों के बीच आपसी संबंधों को बढ़ावा मिलता है।

नकारात्मक प्रभाव

  • तालिबान शासन को वैध बनाना: औपचारिक मान्यता के बिना तालिबान के साथ जुड़ना, विशेषकर महिलाओं और अल्पसंख्यकों के प्रति अप्रत्यक्ष रूप से एक ऐसे शासन को वैध बनाने का जोखिम है, जो अपनी दमनकारी नीतियों के लिए जाना जाता है।
    • इससे घरेलू तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आलोचना हो सकती है, जो भारत के लोकतांत्रिक मूल्यों को चुनौती दे सकती है।
  • सुरक्षा जोखिम: तालिबान के आश्वासनों के बावजूद, आतंकवादी समूहों द्वारा भारत को निशाना बनाकर सीमा पार आतंकवाद के लिए अफगानिस्तान को आधार के रूप में इस्तेमाल करने का जोखिम बना हुआ है।
    • अफगानिस्तान में बिगड़ती सुरक्षा स्थिति दक्षिण एशिया में फैल सकती है, जिससे क्षेत्रीय शांति प्रभावित हो सकती है।

  • पश्चिमी सहयोगियों के साथ तनावपूर्ण संबंध: तालिबान के साथ घनिष्ठ संबंध पश्चिमी देशों की नीतियों के साथ संरेखित नहीं हो सकते हैं, विशेषकर तालिबान के मानवाधिकार उल्लंघन की आलोचना करने वाले देशों की नीतियों के साथ।
    • यह अफगानिस्तान में लोकतांत्रिक शासन को प्राथमिकता देने वाले देशों के साथ भारत की साझेदारी को प्रभावित कर सकता है।
  • पाकिस्तान के साथ जटिल संबंध: हालाँकि पाकिस्तान-तालिबान संबंध तनावपूर्ण हैं, भारत की भागीदारी इस्लामाबाद से प्रतिक्रिया को भड़का सकती है, जिससे तनाव बढ़ सकता है।
    • पाकिस्तान इसका प्रयोग अफगानिस्तान में भारतीय हितों के विरुद्ध छद्म गतिविधियों को बढ़ाने के लिए कर सकता है।
  • तालिबान की अप्रत्याशित नीतियाँ: तालिबान के आंतरिक विभाजन और एक सुसंगत शासन संरचना की कमी उन्हें एक अविश्वसनीय भागीदार बनाती है।
    • परिवर्तित हित और नीतियाँ भारत के निवेश और दीर्घकालिक रणनीतिक हितों को खतरे में डाल सकती हैं।

अफगानिस्तान में भारत की पहल और परियोजनाएँ

बुनियादी ढाँचे का विकास

  • सलमा बाँध (अफगान-भारत मैत्री बांध): इसका निर्माण वर्ष 2016 में पूरा हुआ, हेरात प्रांत में यह जलविद्युत तथा सिंचाई परियोजना अफगानिस्तान के ऊर्जा तथा कृषि क्षेत्रों के लिए भारत के समर्थन को प्रदर्शित करती है।
  • जरंज-डेलाराम राजमार्ग: वर्ष 2009 में निर्मित, 218 किलोमीटर लंबी सड़क अफगानिस्तान को ईरान के चाबहार बंदरगाह से जोड़ती है, जिससे व्यापार में सुविधा होती है।
    • भारत के सीमा सड़क संगठन द्वारा निर्मित।
  • अफगान संसद भवन: वर्ष 2015 में उद्घाटन की गई इस ऐतिहासिक परियोजना की लागत ₹970 करोड़ है तथा यह अफगान लोकतंत्र के प्रति भारत की प्रतिबद्धता का प्रतीक है।
  • शहतूत बाँध परियोजना: वर्ष 2021 में घोषित इस बाँध की योजना काबुल को पेयजल उपलब्ध कराने तथा आस-पास के क्षेत्रों में सिंचाई का समर्थन करने के लिए बनाई गई है।

सामुदायिक विकास परियोजनाएँ

  • उच्च प्रभाव वाली सामुदायिक विकास परियोजनाएँ (HICDP): वर्ष 2005 से भारत ने सभी 34 प्रांतों में शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल, कृषि तथा जल प्रबंधन पर केंद्रित 400 से अधिक परियोजनाएँ क्रियान्वित की हैं।
    • उदाहरण: स्कूलों, स्वास्थ्य केंद्रों और जल आपूर्ति प्रणालियों का निर्माण।

व्यापार एवं संपर्क

  • चाबहार बंदरगाह: वर्ष 2017 में शुरू हुआ यह बंदरगाह अफगानिस्तान को अंतरराष्ट्रीय बाजारों तक पहुँचने और भारत को पाकिस्तान को दरकिनार करते हुए मध्य एशिया के साथ व्यापार करने में मदद करता है।
  • एयर फ्रेट कॉरिडोर: वर्ष 2017 में शुरू किया गया यह कॉरिडोर अफगानिस्तान से सूखे मेवे, कालीन तथा औषधीय पौधों जैसे सामानों को भारत में निर्यात करने में सक्षम बनाता है।

शैक्षिक तथा क्षमता निर्माण कार्यक्रम

  • अफगान छात्रों के लिए छात्रवृत्ति: वर्ष 2005 से भारत अफगान छात्रों को प्रतिवर्ष 1,000 ICCR छात्रवृत्तियाँ प्रदान करता रहा है।
    • वर्ष 2023 तक हजारों अफगान छात्र भारतीय विश्वविद्यालयों से स्नातक की डिग्री प्राप्त कर चुके हैं।
  • तकनीकी प्रशिक्षण: भारत अफगान पेशेवरों के लिए भारतीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग (ITEC) प्रशिक्षण स्लॉट प्रदान करता है, जो शासन एवं प्रशासन पर केंद्रित है।
    • वर्ष 2014 में अफगान राष्ट्रीय कृषि विज्ञान और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (ANASTU) की स्थापना का समर्थन किया।

स्वास्थ्य एवं मानवीय सहायता

  • चिकित्सा सहायता: भारत ने वर्ष 2015 में काबुल में एक चिकित्सा निदान केंद्र की स्थापना की।
    • वर्ष 2020-2021 में महामारी के दौरान खाद्य सुरक्षा के लिए 50,000 मीट्रिक टन गेहूँ के साथ-साथ कोविड-19 टीके, पोलियो टीके तथा दवाएँ प्रदान की गईं।
  • खाद्य सुरक्षा और पोषण: वर्ष 2002 से भारत ने संयुक्त राष्ट्र विश्व खाद्य कार्यक्रम का समर्थन किया है तथा अफगानी विद्यालयी बच्चों को उच्च प्रोटीन वाले बिस्कुट वितरित किए हैं।

रक्षा एवं सुरक्षा सहयोग

  • सैन्य उपकरण: भारत ने वर्ष 2015-2016 में अफगान वायु सेना को उनकी रक्षा क्षमताओं को बढ़ाने के लिए Mi-25 अटैक हेलीकॉप्टर उपहार में दिए।
  • अफगान सुरक्षा बलों को प्रशिक्षण: वर्ष 2011 से, भारत ने राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (NDA) और भारतीय सैन्य अकादमी (IMA) जैसे संस्थानों में अफगान राष्ट्रीय रक्षा और सुरक्षा बलों (ANDSF) के कर्मियों को प्रशिक्षित किया है।

भारत-अफगानिस्तान संबंधों में चुनौतियाँ

  • सुरक्षा चिंताएँ: अफगानिस्तान के अस्थिर राजनीतिक माहौल ने लश्कर-ए-तैयबा (LeT), जैश-ए-मोहम्मद (JeM) तथा इस्लामिक स्टेट-खुरासान प्रांत (ISKP) जैसे आतंकवादी समूहों को सक्रिय होने का अवसर प्रदान किया है, जिससे भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा उत्पन्न हो रहा है।
    • कंधार विमान अपहरण (वर्ष 1999) तथा अफगानिस्तान में भारतीय संपत्तियों पर हमले चरमपंथी समूहों द्वारा उत्पन्न सुरक्षा जोखिमों को रेखांकित करते हैं।
  • पाकिस्तान का प्रभाव: पाकिस्तान, अफगानिस्तान का रणनीतिक संदर्भ के लिए एक उपकरण के रूप में उपयोग करता है तथा भारत के प्रति शत्रुतापूर्ण समूहों, जैसे हक्कानी नेटवर्क का समर्थन करता है, जिससे भारत की भागीदारी जटिल हो जाती है।
    • तालिबान के साथ पाकिस्तान के संबंधों और आतंकवाद को समर्थन देने में उसकी कथित भूमिका ने क्षेत्र में भारत के रणनीतिक लक्ष्यों के लिए प्रतिकूल माहौल उत्पन्न कर दिया है।
  • तालिबान की आंतरिक नीतियाँ: समावेशी सरकार के प्रति तालिबान की प्रतिबद्धता की कमी और मानवाधिकारों का उल्लंघन, विशेष रूप से महिलाओं तथा अल्पसंख्यकों के विरुद्ध, भारत के लिए कूटनीतिक जुड़ाव को उचित ठहराना चुनौतीपूर्ण बना देता है।
    • भारत ने लगातार अफगान-नेतृत्व, स्वामित्व वाली शांति प्रक्रिया का समर्थन किया है, जो तालिबान के बहिष्कारपूर्ण शासन के विपरीत है।
  • क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्विता तथा बाह्य प्रभाव: चीन, रूस और ईरान जैसे देशों ने अफगानिस्तान में अपना प्रभाव बढ़ा दिया है, जिससे भारत के सामरिक तथा आर्थिक हित संभावित रूप से दरकिनार हो गए हैं।
    • बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के तहत अफगानिस्तान की प्राकृतिक संसाधन परियोजनाओं में चीन की भागीदारी से क्षेत्र में भारत की आर्थिक भागीदारी कमजोर होने का खतरा है।
  • कनेक्टिविटी तथा व्यापार बाधाएँ: भौगोलिक बाधाओं और पाकिस्तान द्वारा अफगानिस्तान को पारगमन व्यापार की अनुमति देने से इनकार करने के कारण भारत की अफगान बाजारों तक पहुँच में बाधा उत्पन्न हुई है।
    • व्यापार के लिए चाबहार बंदरगाह तथा जरांज-डेलाराम राजमार्ग पर निर्भरता, विश्वसनीय और लागत प्रभावी संपर्क स्थापित करने में भारत के सामने आने वाली कठिनाइयों को रेखांकित करती है।

भारत-अफगानिस्तान संबंधों के लिए आगे की राह

  • तालिबान के साथ व्यावहारिक संपर्क बनाए रखना: भारत के रणनीतिक हितों की रक्षा के लिए कूटनीतिक तथा कार्यात्मक स्तर पर तालिबान के साथ संपर्क बनाए रखना तथा शासन को औपचारिक मान्यता देने से बचना।
    • यह सुनिश्चित करने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए कि अफगान धरती का उपयोग भारत विरोधी गतिविधियों, जैसे लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद और ISKP जैसे आतंकवादी समूहों को शरण देने के लिए न किया जाए।
  • मानवीय सहायता को बढ़ावा देना: लोगों के बीच संबंधों को मजबूत करने तथा सद्भावना को बढ़ावा देने के लिए स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा और खाद्य सुरक्षा में सहायता प्रयासों का विस्तार करना।
    • विद्यालय, अस्पताल और स्वच्छ जल प्रणालियों जैसी उच्च प्रभाव वाली, समुदाय-उन्मुख परियोजनाओं पर ध्यान केंद्रित करना।
  • क्षेत्रीय साझेदारी को मजबूत करना: अफगानिस्तान को स्थिर करने तथा क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करने के लिए ईरान, रूस तथा मध्य एशियाई देशों जैसे देशों के साथ सहयोग करना।
    • व्यापार और सुरक्षा पर समन्वित कार्रवाई के लिए सार्क (SAARC) तथा SCO जैसे मंचों का लाभ उठाना।
  • निवेश और कनेक्टिविटी को सुरक्षित करना: सलमा बाँध, जरंज-डेलाराम राजमार्ग तथा अन्य परियोजनाओं सहित अफगानिस्तान के बुनियादी ढाँचे में भारत के 3 बिलियन डॉलर के निवेश को सुरक्षित रखना।
    • अफगानिस्तान की व्यापारिक पहुँच और मध्य एशिया के साथ भारत की कनेक्टिविटी को बढ़ाने के लिए चाबहार बंदरगाह के उपयोग को बढ़ावा देना।
  • समावेशी शासन तथा मानवाधिकारों का समर्थन करना: एक समावेशी सरकार के गठन का समर्थन करना, जो महिलाओं के अधिकारों और अल्पसंख्यकों की सुरक्षा का सम्मान करने पर केंद्रित हो, साथ ही इन मुद्दों पर तालिबान के साथ सावधानीपूर्वक बातचीत करना।
    • दीर्घकालिक संस्थागत तथा सामाजिक ढाँचे के निर्माण के लिए अफगान नागरिक समाज के साथ सहयोग करना।
  • आतंकवाद विरोधी सहयोग पर ध्यान केंद्रित करना: अफगानिस्तान में आतंकवाद के फिर से उभरने को रोकने के लिए क्षेत्रीय शक्तियों के साथ मिलकर कार्य करना।
    • चरमपंथी समूहों का मुकाबला करने और भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा की रक्षा के लिए खुफिया जानकारी साझा करना और अफगान सुरक्षा तंत्र को मजबूत करना।

निष्कर्ष

अफगानिस्तान के शासन में तालिबान के स्थायित्व’ के लिए व्यावहारिक भागीदारी की आवश्यकता है। भारत को अपनी ‘एक्ट वेस्ट’ नीति के तहत अपनी मानवीय, आर्थिक और कूटनीतिक पहुँच का विस्तार करना चाहिए, साथ ही क्षेत्रीय और वैश्विक चुनौतियों का सावधानीपूर्वक सामना करना चाहिए।

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