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भारत की आर्थिक महत्त्वाकांक्षा को आगे बढ़ाने के लिए उभरते क्षेत्रों की आवश्यकता

Lokesh Pal January 14, 2025 05:33 29 0

संदर्भ

हाल ही में भारत के G-20 शेरपा अमिताभ कांत ने भारत को एक विकसित राष्ट्र बनाने तथा वर्ष 2047 तक 32 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था के लक्ष्य को हासिल करने के लिए उभरते क्षेत्रों (सनराइज सेक्टर्स) की महत्त्वपूर्ण भूमिका पर जोर दिया है।

संबंधित तथ्य

  • उभरते क्षेत्रों में वैश्विक नेतृत्व: भारत को अपना आर्थिक भविष्य सुरक्षित करने के लिए उभरते क्षेत्रों में वैश्विक चैंपियन बनना होगा।
    • आयात पर निर्भरता कम करने और घरेलू क्षमताओं को बढ़ाने के लिए सौर पैनलों और इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs) का विनिर्माण महत्त्वपूर्ण है।
  • तकनीकी बदलाव और स्वच्छ ऊर्जा: भारत के लिए वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्द्धी बने रहने के लिए अत्याधुनिक तकनीक की ओर एक क्रांतिकारी बदलाव आवश्यक है।
    • लागत-प्रतिस्पर्द्धी स्वच्छ प्रौद्योगिकी समाधान प्रदान करना आर्थिक तथा पर्यावरणीय स्थिरता बनाए रखने के लिए महत्त्वपूर्ण है।
  • निजी ऋण से सकल घरेलू उत्पाद: भारत का निजी ऋण-से-GDP अनुपात अमेरिका, यूरोप और चीन से पीछे है। उभरते क्षेत्रों में विकास को बढ़ावा देने के लिए इस अनुपात को बढ़ाना आवश्यक है।

उभरते क्षेत्र (सनराइज सेक्टर) क्या हैं?

  • परिभाषा: उभरते क्षेत्र (सनराइज सेक्टर) वे उद्योग हैं, जो अभी अपने प्रारंभिक चरण में हैं, लेकिन इनके तेजी से बढ़ने और वैश्विक अर्थव्यवस्था पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव डालने की उम्मीद है।

विशेषताएँ

  • लाभप्रदता और वृद्धि में गिरावट।
  • नई तकनीक या बाजार के रुझानों के अनुकूल न हो पाना।
  • बेकार मशीनरी और उच्च परिचालन लागत।
  • उत्पाद नवाचार की कमी और कम वित्तपोषण।
  • गिरावट के कारण
    • सीमित नवाचार और विचारों में ठहराव।
    • बाजार की कमजोरियाँ और ग्राहकों की पसंद में बदलाव।
    • तकनीकी उन्नयन की उच्च लागत।
  • उदाहरण
    • स्वच्छ ऊर्जा: सौर, पवन तथा हरित हाइड्रोजन।
    • इलेक्ट्रिक मोबिलिटी: EV विनिर्माण और बैटरी प्रौद्योगिकियाँ।
    • डिजिटल प्रौद्योगिकियाँ: कृत्रिम बुद्धिमत्ता, ब्लॉकचेन और क्वांटम कंप्यूटिंग।
    • जैव प्रौद्योगिकी: जीनोम एडिटिंग और सिंथेटिक जीवविज्ञान।
  • महत्त्व
    • रोजगार सृजन, नवाचार को बढ़ावा देने और प्रतिस्पर्द्धात्मकता में सुधार करके आर्थिक विकास को गति देना।
    • स्थायित्व लक्ष्यों और ऊर्जा स्वतंत्रता में योगदान देना।

सनराइज सेक्टर में अनुकरणीय प्रगति

  • नवीकरणीय ऊर्जा: भारत नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता के मामले में विश्व स्तर पर तीसरे स्थान पर है तथा अपने सौर और पवन ऊर्जा बुनियादी ढाँचे का तेजी से विस्तार कर रहा है।
    • राष्ट्रीय सौर मिशन जैसी पहल का लक्ष्य वर्ष 2030 तक 500 गीगावाट नवीकरणीय क्षमता स्थापित करना है।
  • इलेक्ट्रिक वाहन: हाइब्रिड तथा इलेक्ट्रिक वाहनों के तेजी से अपनाने और विनिर्माण (FAME) योजना जैसी पहलों से समर्थित EV अपनाने में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
    • प्रमुख ऑटो निर्माता लीथियम-आयन बैटरी उत्पादन तथा EV पारिस्थितिकी तंत्र में निवेश कर रहे हैं।
  • डिजिटल परिवर्तन: भारत AI, मशीन लर्निंग और ब्लॉकचेन में स्टार्टअप्स के लिए एक केंद्र बन गया है, जिसकी वैश्विक मान्यता बढ़ रही है।
    • डिजिटल इंडिया तथा स्टार्टअप इंडिया जैसे कार्यक्रमों ने तकनीक-संचालित विकास के लिए अनुकूल वातावरण को बढ़ावा दिया है।

भारत में उभरते क्षेत्रों के लिए चुनौतियाँ

  • तकनीकी पिछड़ापन: भारतीय उद्योग, विशेष रूप से सौर पैनल निर्माण में, वैश्विक प्रतिस्पर्द्धियों से 5-7 वर्ष पीछे हैं, जिससे बाजार में नेतृत्व के अवसर सीमित हो रहे हैं।
  • बुनियादी ढाँचे और निवेश में कमी: EV चार्जिंग, नवीकरणीय ऊर्जा भंडारण और डिजिटल नेटवर्क के लिए उन्नत बुनियादी ढाँचे की कमी मापनीयता में बाधा डालती है।
    • GDP अनुपात में निजी ऋण की अपर्याप्तता, स्टार्टअप्स और नए उद्यमों के लिए पूँजी की उपलब्धता को सीमित करती है।
  • नीति और विनियामक बाधाएँ: जटिल विनियामक ढाँचे और नीति कार्यान्वयन में देरी निजी निवेश को हतोत्साहित करती है।
    • महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों तथा घटकों पर आयात निर्भरता लागत बढ़ाती है और घरेलू नवाचार में बाधा डालती है।
  • कुशल कार्यबल की कमी: AI, नवीकरणीय ऊर्जा और बायोटेक जैसे अत्याधुनिक क्षेत्रों में कुशल पेशेवरों की कमी उद्योग के विकास को बाधित करती है।
  • जीवाश्म ईंधन पर उच्च निर्भरता: नवीकरणीय ऊर्जा में प्रगति के बावजूद, जीवाश्म ईंधन अभी भी भारत के ऊर्जा परिदृश्य में प्रभावी बने हुए है, जिससे स्वच्छ ऊर्जा में बदलाव में देरी हो रही है।

आगे की राह

  • नीतिगत सुधार और प्रोत्साहन: उभरते क्षेत्रों में घरेलू और विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिए विनियामक ढाँचे को सरल बनाना।
    • स्वच्छ ऊर्जा और उभरती प्रौद्योगिकियों में निवेश करने वाली कंपनियों के लिए कर में छूट और सब्सिडी प्रदान करना।
  • अनुसंधान और विकास को बढ़ावा देना: विशेष रूप से EV बैटरी, सौर पैनल और AI अनुप्रयोगों जैसे क्षेत्रों में R&D में सार्वजनिक और निजी निवेश बढ़ाना।
    • उभरते उद्योगों में नवाचार के लिए उत्कृष्टता केंद्र स्थापित करना।
  • बुनियादी ढाँचा विकास: विकास को समर्थन देने के लिए EV चार्जिंग स्टेशनों, नवीकरणीय ऊर्जा ग्रिड और डिजिटल नेटवर्क के लिए बुनियादी ढाँचे का विस्तार करना।
    • सौर और EV विनिर्माण जैसे क्षेत्रों के लिए औद्योगिक क्लस्टर विकसित करना।
  • वित्तीय पहुँच बढ़ाना: उभरते क्षेत्रों में स्टार्टअप और छोटे व्यवसायों को ऋण देने के लिए बैंकों और वित्तीय संस्थानों को प्रोत्साहित करके भारत के निजी ऋण-से-जीडीपी अनुपात को मजबूत करना।
  • कौशल विकास: उभरती प्रौद्योगिकियों में कौशल बढ़ाने और पुनः कौशल (Reskilling) बढ़ाने के लिए राष्ट्रव्यापी कार्यक्रम शुरू करना।
    • उद्योग-प्रासंगिक पाठ्यक्रम बनाने के लिए शैक्षणिक संस्थानों के साथ सहयोग करना।
  • वैश्विक सहयोग: ग्रीन हाइड्रोजन और AI जैसे क्षेत्रों में प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और सह-विकास के लिए अंतरराष्ट्रीय साझेदारी बनाना।
    • भारत को सतत् नवाचार के केंद्र के रूप में स्थापित करने के लिए G20 जैसे प्लेटफॉर्म का लाभ उठाना।

भारत में सनराइज सेक्टर को बढ़ावा देने के लिए उठाए गए कदम

पहल

विवरण

लक्ष्य

मेक इन इंडिया इसका उद्देश्य प्रोत्साहन प्रदान करके और नियामक बाधाओं को कम करके भारत में विनिर्माण को प्रोत्साहित करना है। वर्ष 2025 तक सकल घरेलू उत्पाद में विनिर्माण की हिस्सेदारी को 25% तक बढ़ाना।
आत्मनिर्भर भारत घरेलू उद्योगों को बढ़ावा देकर और आयात पर निर्भरता कम करके आत्मनिर्भरता को बढ़ावा दिया जाता है। महत्त्वपूर्ण उभरते क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करते हुए एक आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था का निर्माण करना।
उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (PLI) योजनाएँ उन्नत बैटरी भंडारण, फार्मास्यूटिकल्स और सेमीकंडक्टर जैसे प्रमुख क्षेत्रों में विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करता है। 1.97 लाख करोड़ रुपये का निवेश आकर्षित करना तथा उद्योगों में रोजगार सृजित करना।
हाइब्रिड और इलेक्ट्रिक वाहनों का तेजी से अपनाना तथा विनिर्माण (FAME) इलेक्ट्रिक वाहनों और चार्जिंग बुनियादी ढाँचे के लिए सब्सिडी की पेशकश करके EV अपनाने को प्रोत्साहित किया जाता है। वर्ष 2030 तक 30% तक इलेक्ट्रिक वाहनों की पहुँच का लक्ष्य।
राष्ट्रीय क्वांटम मिशन भारत में क्वांटम कंप्यूटिंग और प्रौद्योगिकी विकास पर ध्यान केंद्रित करता है। वर्ष 2030 तक 50 क्यूबिट वाले क्वांटम कंप्यूटर का निर्माण करना।
राष्ट्रीय इलेक्ट्रिक मोबिलिटी मिशन योजना इलेक्ट्रिक तथा हाइब्रिड वाहनों के विकास और अपनाने का समर्थन करता है। वर्ष 2026 तक भारत को EV विनिर्माण में अग्रणी बनाना।
प्रधानमंत्री सूक्ष्म खाद्य प्रसंस्करण उद्यमों का औपचारिकीकरण (PM-FME) सूक्ष्म खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों को वित्तीय, तकनीकी और व्यावसायिक सहायता प्रदान करता है। वर्ष 2025 तक 2,00,000 उद्यमों को औपचारिक रूप देना तथा ODOP (एक जिला, एक उत्पाद) को समर्थन देना।

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