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UGC विनियम, 2025 का मसौदा

Lokesh Pal January 16, 2025 02:13 46 0

संदर्भ

हाल ही में केंद्रीय शिक्षा मंत्री ने UGC (विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में शिक्षकों तथा शैक्षणिक कर्मचारियों की नियुक्ति और पदोन्नति के लिए न्यूनतम योग्यताएँ और उच्च शिक्षा में मानकों के रखरखाव के लिए उपाय) विनियम, 2025 का मसौदा जारी किया।

संबंधित तथ्य

  • यह मसौदा विश्वविद्यालयों को अपने संस्थानों में शिक्षकों एवं शैक्षणिक कर्मचारियों की नियुक्ति एवं पदोन्नति में प्रक्रियागत लचीलापन प्रदान करेगा। 
  • मसौदा विनियम तथा दिशा-निर्देश सार्वजनिक परामर्श के लिए उपलब्ध हैं, जिसमें हितधारकों से टिप्पणियाँ, सुझाव और प्रतिक्रियाएँ आमंत्रित की गई हैं।

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) के बारे में

  • स्थापना: इसकी स्थापना वर्ष 1956 में UGC अधिनियम, 1956 के तहत एक वैधानिक निकाय के रूप में की गई थी।
    • डॉ. एस राधाकृष्णन की अध्यक्षता वाले विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग की सिफारिश पर स्थापित किया गया था।
    • यह भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय के अधीन कार्य करता है।
  • मुख्यालय: UGC का मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है, तथा इसके क्षेत्रीय कार्यालय पुणे, हैदराबाद, कोलकाता, भोपाल, गुवाहाटी और बंगलूरू में हैं।
  • कार्य
    • संबद्धता एवं मान्यता के लिए मानक निर्धारित करना तथा उन्हें लागू करना।
    • संकाय विकास, छात्रवृत्ति तथा फेलोशिप के लिए योजनाएँ विकसित करना।
    • गुणवत्ता आश्वासन के लिए उच्च शिक्षा संस्थानों की निगरानी तथा विनियमन करना।
    • भारतीय ज्ञान प्रणाली (IKS) तथा  शिक्षा में भारतीय भाषाओं के उपयोग को बढ़ावा देना।

UGC मसौदा विनियम, 2025 की मुख्य विशेषताएँ

  • कुलपतियों (VC) की नियुक्ति 
    • कुलपतियों का चयन एक खोज-सह-चयन समिति द्वारा किया जाएगा, जिसमें निम्नलिखित नामित व्यक्ति शामिल होंगे:
      • चांसलर/विजिटर (अधिकांश राज्य विश्वविद्यालयों के लिए राज्यपाल)।
      • UGC अध्यक्ष।
      • विश्वविद्यालय का सर्वोच्च निकाय (जैसे, सीनेट या सिंडिकेट)।
    • पात्रता मानदंड: इसमें शिक्षा, उद्योग, लोक प्रशासन या सार्वजनिक नीति से जुड़े पेशेवर शामिल हैं।
    • अवधि: कुलपति पाँच वर्ष का कार्यकाल पूरा करेंगे तथा उन्हें फिर से नियुक्ति देने की पात्रता होगी।
  • ‘उल्लेखनीय योगदान’ पर फोकस: संकाय की भर्ती और पदोन्नति में 9 क्षेत्रों में योगदान पर विचार किया जाएगा, जैसे:
    • नवीन शिक्षण विधियाँ।
    • प्रायोजित शोध।
    • भारतीय भाषाओं में शिक्षण।
    • उच्च शिक्षा संस्थानों की नीतियों के अनुरूप स्टार्टअप।
  • कॅरियर उन्नति योजना (CAS): स्कोर-आधारित मेट्रिक्स के बजाय गुणात्मक मूल्यांकन के आधार पर पदोन्नति।
    • अनुसंधान, शिक्षण नवाचार और सामुदायिक सहभागिता में योगदान पर जोर दिया गया।
  • भारतीय ज्ञान प्रणालियों (IKS) को प्रोत्साहन: भारतीय भाषाओं एवं पारंपरिक ज्ञान प्रणालियों में अनुसंधान एवं शिक्षण को बढ़ावा देता है।
  • संकाय भर्ती में लचीलापन: उम्मीदवारों को उनके UG/PG डिग्री से अलग विषयों में नेट/सेट (SET) के माध्यम से शिक्षण भूमिकाओं के लिए अर्हता प्राप्त करने की अनुमति देता है।
    • Ph.D. विशेषज्ञता को पूर्ववर्ती डिग्रियों की तुलना में प्राथमिकता दी गई।
  • संविदा शिक्षकों की भूमिका में वृद्धि: संविदा नियुक्तियों पर 10% की सीमा को हटाता है, जिससे संस्थानों को अधिक संविदा शिक्षकों को नियुक्त करने की सुविधा मिलती है।
  • समावेशिता एवं प्रतिनिधित्व: भर्ती तथा नेतृत्व की भूमिकाओं में कम प्रतिनिधित्व वाले समूहों (SC/ST/OBC/EWS/दिव्यांग व्यक्ति) की भागीदारी को प्रोत्साहित करता है।
  • पारदर्शिता और शासन: निष्पक्षता तथा जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए भर्ती तथा पदोन्नति के लिए सार्वजनिक अधिसूचना तथा सुव्यवस्थित प्रक्रियाओं को अनिवार्य बनाता है।
  • प्रोफेसर ऑफ प्रैक्टिस (PoP): उच्च शिक्षा संस्थान (HEI) नियमित शिक्षण भूमिकाओं से स्वतंत्र, उद्योग पेशेवरों के लिए स्वीकृत पदों के 10% तक को नियुक्त कर सकते हैं।
  • अनुसंधान और उद्यमिता को बढ़ावा देना: संकाय से अनुसंधान प्रयोगशालाओं, स्टार्टअप और डिजिटल सामग्री निर्माण (जैसे- MOOCs) में योगदान की अपेक्षा की जाती है।
  • अनुपालन और दंड: विनियमों का अनुपालन न करने के परिणामस्वरूप हो सकता है:-
    • UGC फंडिंग तथा योजनाओं से वंचित होना।
    • UGC अधिनियम की धारा 2(F) तथा 12B के तहत मान्यता का ह्रास।

राज्यपाल की चांसलर के रूप में भूमिका

  • पदेन कुलाधिपति: अधिकांश राज्य विश्वविद्यालयों में राज्यपाल कुलाधिपति के रूप में कार्य करते हैं, जो मुख्य रूप से एक औपचारिक भूमिका है, लेकिन इसमें प्रमुख प्रशासनिक शक्तियाँ शामिल हैं।
    • कुलाधिपति के रूप में राज्यपाल विश्वविद्यालय के प्रमुख होते हैं तथा उसके कामकाज पर पर्यवेक्षी शक्तियों का प्रयोग करते हैं।
  • नियुक्तियाँ: राज्यपाल, चांसलर के रूप में, प्रमुख अधिकारियों की नियुक्ति करते हैं, जिनमें शामिल हैं:
    • कुलपति (VCs): खोज-सह-चयन समिति द्वारा अनुशंसित पैनल से कुलपतियों की नियुक्ति करता है।
    • विश्वविद्यालय के सिंडिकेट, सीनेट या कार्यकारी परिषद जैसे शासी निकायों के सदस्य।
  • कानूनों और अध्यादेशों का अनुमोदन: राज्यपाल विश्वविद्यालय द्वारा तैयार किए गए कानूनों, अध्यादेशों और विनियमों को मंजूरी देते हैं, यह सुनिश्चित करते हुए कि वे राज्य के कानूनों तथा UGC दिशा-निर्देशों के अनुरूप हैं।

कुलपतियों की नियुक्ति 

  • खोज-सह-चयन समिति का गठन: उच्च शिक्षा के क्षेत्र में प्रतिष्ठित व्यक्तियों से मिलकर बनी एक खोज-सह-चयन समिति का गठन उम्मीदवारों की शॉर्टलिस्टिंग के लिए किया जाता है।
  • केंद्रीय विश्वविद्यालयों में कुलपति की नियुक्ति: कुलाधिपति/विजिटर (आमतौर पर भारत के राष्ट्रपति) समिति द्वारा प्रदान की गई अनुशंसित नामों की सूची में से कुलपति की नियुक्ति करते हैं।
  • राज्य और निजी विश्वविद्यालयों में कुलपति की नियुक्ति: खोज-सह-चयन समिति के एक सदस्य को UGC अध्यक्ष द्वारा नामित किया जाता है।
  • समिति के बाकी सदस्यों की संरचना
    • राज्य विश्वविद्यालयों के लिए: संबंधित राज्य कानूनों के अनुसार गठित।
    • निजी विश्वविद्यालयों के लिए: राज्य सरकार द्वारा अनुमोदित विश्वविद्यालय के शासन ढाँचे द्वारा परिभाषित।

UGC मसौदा विनियम, 2025 के सकारात्मक बिंदु

  • भर्ती और प्रशासन में पारदर्शिता: कुलपतियों (VCs) तथा संकाय की नियुक्ति के लिए सार्वजनिक अधिसूचना और संरचित प्रक्रियाएँ भर्ती में निष्पक्षता एवं जवाबदेही सुनिश्चित करती हैं।
    • चयन समितियों में बाहरी विशेषज्ञों को शामिल करने से संभावित पूर्वाग्रह कम हो जाते हैं।
  • राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के साथ संरेखण: अंतर-विषयक शिक्षा, भारतीय ज्ञान प्रणाली (IKS) तथा संकाय भर्ती में लचीलेपन को बढ़ावा देता है।
    • सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करते हुए वैश्विक मानकों के अनुरूप शैक्षणिक नवाचारों को प्रोत्साहित करना।
  • भारतीय भाषाओं को प्रोत्साहन: भारतीय भाषाओं में अकादमिक शोध और शिक्षण को बढ़ावा देना, समावेशिता तथा सांस्कृतिक संरक्षण को बढ़ावा देना।
    • विविध भाषाई पृष्ठभूमियों को समर्थन तथा कम प्रतिनिधित्व वाले क्षेत्रों को लाभ।
  • नेतृत्व के लिए व्यापक पात्रता: कुलपति की भूमिकाओं के लिए उद्योग, लोक प्रशासन और सार्वजनिक नीति से पेशेवरों को शामिल करने से नेतृत्व के दृष्टिकोण में विविधता आती है।
    • उच्च शिक्षा प्रशासन में क्रॉस-सेक्टर सहयोग को प्रोत्साहित करता है।
    • पूर्व राष्ट्रपति के. आर. नारायणन तथा वैज्ञानिक वाई. नायुदम्मा जैसे ऐतिहासिक उदाहरण बताते हैं कि गैर-शैक्षणिक लोगों ने सफलतापूर्वक विश्वविद्यालयों का नेतृत्व किया है।
  • उल्लेखनीय योगदानों पर ध्यान केंद्रित करना: कठोर शैक्षणिक प्रदर्शन संकेतकों (Academic Performance Indicators- API) को गुणात्मक मूल्यांकनों से प्रतिस्थापित किया जाएगा, जिसमें अभिनव शिक्षण तथा सामुदायिक सहभागिता जैसे योगदानों को मान्यता दी जाएगी।
    • समग्र संकाय विकास तथा शैक्षिक उत्कृष्टता का समर्थन करता है।
  • उन्नत कॅरियर प्रगति: कॅरियर उन्नति योजना (CAS) को सरल बनाता है, नौकरशाही मीट्रिक के बजाय प्रभावशाली योगदान पर जोर देता है।
    • संकाय को सार्थक अनुसंधान, शिक्षण तथा उद्यमशीलता प्रयासों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए प्रेरित करता है।
  • प्रोफेसर ऑफ प्रैक्टिस (PoP): संस्थानों को शिक्षण तथा मार्गदर्शन के लिए उद्योग के पेशेवरों को शामिल करने, छात्रों के बीच व्यावहारिक ज्ञान और कौशल विकास को बढ़ावा देने में सक्षम बनाता है।
  • संस्थानों के लिए स्वायत्तता: संस्थान बिना किसी प्रतिबंध के अनुबंध शिक्षकों की नियुक्ति कर सकते हैं, जिससे तत्काल शिक्षण आवश्यकताओं को पूरा करने में लचीलापन मिलता है।
  • वैश्विक प्रतिस्पर्धा: भारतीय उच्च शिक्षा को अंतर्राष्ट्रीय मानकों के साथ संरेखित करता है, छात्रों एवं संस्थानों को वैश्विक गतिशीलता एवं मान्यता के लिए तैयार करता है।

शिक्षा में केंद्र सरकार की भूमिका

  • केंद्र विधायी, प्रशासनिक और वित्तीय उपायों के माध्यम से भारत में शिक्षा को आकार देने और विनियमित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • संवैधानिक आधार
    • समवर्ती सूची में शिक्षा: शिक्षा समवर्ती सूची (सातवीं अनुसूची, अनुच्छेद-246) के अंतर्गत आती है, जो केंद्र एवं राज्यों दोनों को इस पर कानून बनाने की अनुमति देती है।
    • संघ सूची प्राधिकरण: संघ सूची की प्रविष्टि 66 केंद्र को उच्च शिक्षा, अनुसंधान और वैज्ञानिक और तकनीकी संस्थानों में मानकों का समन्वय एवं निर्धारण करने का अधिकार देती है।
  • विधायी भूमिका
    • शिक्षा पर राष्ट्रीय नीतियाँ: केंद्र राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 जैसी राष्ट्रीय स्तर की नीतियाँ तैयार करता है ताकि शिक्षा प्रणाली को समावेशिता, अंतःविषयता तथा वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता की ओर निर्देशित किया जा सकता है।
    • नियामक निकाय
      • केंद्र निम्नलिखित निकायों की स्थापना तथा देखरेख करता है:
        • उच्च शिक्षा के लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC)।
        • राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT)।
        • अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (AICTE)।
        • प्रतियोगी परीक्षाएँ आयोजित करने के लिए राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी (NTA)।
  • प्रशासनिक भूमिका
    • राज्यों के साथ समन्वय: केंद्र शैक्षिक प्रशासन के लिए एक रूपरेखा प्रदान करता है, साथ ही राज्यों को अपनी स्थानीय आवश्यकताओं के अनुरूप नीतियाँ बनाने के लिए प्रोत्साहित करता है।
      • उदाहरण के रूप में: शिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTE) 2009, समग्र शिक्षा अभियान।
    • केंद्रीय योजनाओं का कार्यान्वयन: इस तरह की राष्ट्रव्यापी पहलों का प्रशासन करता है।
      • स्कूल में उपस्थिति तथा पोषण में सुधार के लिए मध्याह्न भोजन योजना
      • डिजिटल और ऑनलाइन शिक्षा के लिए पीएम ईविद्या (PM eVidya) तथा स्वयं (SWAYAM)
    • नियुक्तियाँ और प्रशासन: केंद्रीय विश्वविद्यालयों और संस्थानों में कुलपति जैसे प्रमुख अधिकारियों की नियुक्ति UGC विनियमों द्वारा निर्धारित प्रक्रियाओं के माध्यम से की जाती है।
  • वित्तीय भूमिका
    • बजटीय सहायता: केंद्र योजनाओं तथा अनुदानों के माध्यम से शैक्षिक बुनियादी ढाँचे और अनुसंधान के विकास के लिए धन आवंटित करता है।
      • उदाहरण
        • संस्थानों में पूँजीगत व्यय के वित्तपोषण के लिए उच्च शिक्षा वित्तपोषण एजेंसी (HEFA)।
        • समग्र शिक्षा अभियान और राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान (RUSA) जैसी केंद्र प्रायोजित योजनाएँ।
    • अनुसंधान एवं नवाचार का वित्तपोषण: निम्नलिखित निकायों के माध्यम से अनुसंधान का समर्थन करता है:
      • वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR)
      • जैव प्रौद्योगिकी विभाग (DBT)
      • भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICSSR)।

UGC मसौदा विनियम, 2025 की चुनौतियाँ

  • संघवाद की चुनौतियाँ: कुलपतियों की नियुक्ति में राज्यपालों (कुलपतियों) की भूमिका में वृद्धि राज्य सरकारों की भूमिका को दरकिनार कर देती है, जिससे विश्वविद्यालय प्रशासन में उनकी स्वायत्तता कम हो जाती है।
    • तमिलनाडु तथा केरल सरकार ने इन प्रावधानों का कड़ा विरोध किया है तथा इन्हें संविधान के संघीय ढाँचे का प्रत्यक्ष उल्लंघन माना है।
  • अकादमिक नेतृत्व का कमजोर होना: उद्योग या सार्वजनिक प्रशासन से गैर-शिक्षाविदों को कुलपति के रूप में कार्य करने की अनुमति देने से अकादमिक अखंडता तथा फोकस से समझौता करने का जोखिम है।
    • इसके परिणामस्वरूप नियुक्तियाँ शैक्षणिक योग्यता के बजाय राजनीतिक आधार पर प्रभावित हो सकती हैं।
  • समानता की चुनौतियाँ: ग्रामीण तथा कम वित्तपोषित संस्थानों में प्रयोगशाला विकास और उल्लेखनीय योगदान जैसे मानदंडों को लागू करने के लिए आवश्यक बुनियादी ढाँचे और संसाधनों तक पहुँच की कमी है।
    • डिजिटल सामग्री निर्माण तथा ऑनलाइन सीखने पर जोर देने से उन संस्थानों और क्षेत्रों को नुकसान होता है, जहाँ इंटरनेट और तकनीक तक सीमित पहुँच है।
  • वित्तीय चुनौतियाँ: उच्च शिक्षा के वित्तपोषण में 17% की कमी (बजट 2024) संस्थानों के लिए अंतःविषय प्रणालियों और बुनियादी ढाँचे के उन्नयन जैसे संसाधन-गहन सुधारों को लागू करना जटिल बनाती है।
    • स्टार्टअप तथा प्रायोजित अनुसंधान पर जोर देने से संस्थानों को निजी वित्तपोषण की ओर जाने का जोखिम है, जो संभावित रूप से सार्वजनिक कल्याण पर ध्यान केंद्रित करने को कमजोर करता है।
  • कार्यान्वयन चुनौतियाँ: विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित कई विश्वविद्यालयों में अनुसंधान-केंद्रित और अंतःविषय सुधारों को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए प्रशिक्षित कर्मियों एवं बुनियादी ढाँचे की कमी है।
    • छोटे संस्थान स्टार्टअप पहल, प्रायोजित अनुसंधान और प्रयोगशाला विकास जैसे सुधारों को लागू करने के वित्तीय बोझ से बढ़ सकते हैं।
  • गुणवत्ता संबंधी चुनौतियाँ: अनुबंधित शिक्षण नियुक्तियों पर 10% की सीमा हटाने से अस्थायी संकाय पर निर्भरता बढ़ने का जोखिम है, जिससे नौकरी की असुरक्षा एवं शिक्षण की गुणवत्ता में कमी आएगी।
    • संकाय सदस्यों को विविध गुणात्मक मीट्रिक को पूरा करने के लिए बढ़ते दबाव का सामना करना पड़ता है, जो छात्रों को पढ़ाने और सलाह देने में उनकी प्रभावशीलता को कम कर सकता है।
  • तकनीकी चुनौतियाँ: विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित संस्थानों में बड़े पैमाने पर खुले ऑनलाइन पाठ्यक्रम (MOOC) तथा अन्य ऑनलाइन शिक्षण पहलों का समर्थन करने के लिए आवश्यक उपकरणों और बुनियादी ढाँचे की कमी हो सकती है।
    • संकाय और प्रशासक AI-संचालित शिक्षा एवं अंतःविषय शिक्षण प्लेटफॉर्म जैसी उन्नत तकनीकों को एकीकृत करने के लिए संघर्ष कर सकते हैं।
  • क्षेत्रीय और संस्थागत असमानताएँ: शहरी क्षेत्रों में स्थित संस्थान सुधारों को लागू करने के लिए बेहतर ढंग से सुसज्जित हैं, जिससे शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों के बीच शिक्षा की गुणवत्ता में अंतर बढ़ रहा है।
    • स्थापित विश्वविद्यालयों के शीघ्र अनुकूलन की संभावना अधिक होती है, जबकि छोटे या नए संस्थान पिछड़ सकते हैं, जिससे पूरे देश में असमान प्रगति हो सकती है।

कुलपति नियुक्तियों पर राज्य बनाम केंद्र

  • केरल: कन्नूर विश्वविद्यालय के कुलपति को राज्यपाल द्वारा पुनः नियुक्त करने पर वर्ष 2021 में विवाद शुरू हुआ।
    • वर्ष 2023 में, विधानसभा ने राज्यपाल की जगह शिक्षाविदों को कुलपति नियुक्त करने के लिए एक विधेयक पारित किया; राष्ट्रपति की स्वीकृति का इंतजार है।
  • पश्चिम बंगाल: राज्यपाल द्वारा एकतरफा अंतरिम कुलपति नियुक्तियों की अनुमति देने वाले वर्ष 2023 के उच्च न्यायालय के आदेश को राज्य की चुनौती पर सर्वोच्च न्यायालय विचार कर रहा है।
    • वर्ष 2023 में, विधानसभा ने राज्यपाल की जगह मुख्यमंत्री को कुलपति नियुक्त करने के लिए एक विधेयक पारित किया; राज्यपाल की स्वीकृति का इंतजार है।
    • वर्ष 2024 में, उच्चतम न्यायालय ने कुलपति चयन समितियों की देखरेख के लिए पूर्व मुख्य न्यायाधीश यू. यू. ललित को नियुक्त किया।
  • तमिलनाडु: वर्ष 2022 में, राज्य सरकार ने कुलपति नियुक्त करने की अनुमति देने वाले दो विधेयक पारित किए; इन्हें राज्यपाल द्वारा अनुमोदित नहीं किया गया।
    • वर्ष 2023 में, राज्यपाल ने UGC के नामित व्यक्ति को शामिल नहीं करने के लिए खोज समिति की अधिसूचनाओं पर आपत्ति जताई, जिससे नियुक्तियाँ लंबित रह गईं।

आगे की राह

  • सहयोगात्मक नीति निर्माण: सुनिश्चित करना कि संघीय ढाँचे को बनाए रखने के लिए विश्वविद्यालय प्रशासन में राज्य सरकारों की सार्थक भूमिका हो।
    • केंद्र तथा राज्य के हितों को संतुलित करने के लिए कुलपति चयन प्रक्रिया में राज्य के नामांकित व्यक्तियों को शामिल करना।
  • समान संसाधन आवंटन: उल्लेखनीय योगदान के मानदंडों को पूरा करने के लिए ग्रामीण तथा संसाधन-सीमित संस्थानों के लिए लक्षित वित्त पोषण तथा अनुदान प्रदान करना।
    • छोटे संस्थानों के लिए क्षमता निर्माण कार्यक्रम शुरू करना।
  • अकादमिक नेतृत्व को मजबूत करना: अकादमिक अखंडता को बनाए रखने के लिए कुलपति की पात्रता को अकादमिक तथा प्रशासनिक अनुभव के मिश्रण वाले व्यक्तियों तक सीमित करना।
    • अकादमिक उत्कृष्टता को प्राथमिकता देते हुए नेतृत्व की भूमिकाओं के लिए स्पष्ट मानक स्थापित करना।
  • अनुबंधित नियुक्तियों की निगरानी करना: शिक्षण पदों में गुणवत्ता और स्थिरता बनाए रखने के लिए संविदा नियुक्तियों के लिए एक सीमा या दिशानिर्देश पुनः लागू करना।
    • अनुबंधित शिक्षकों को प्रदर्शन के आधार पर स्थायी भूमिकाओं में बदलने के लिए मार्ग प्रदान करना।
  • समावेशीपन को बढ़ावा देना: असमानताओं को बढ़ाने से रोकने के लिए वंचित क्षेत्रों में संस्थानों और छात्रों के लिए छात्रवृत्ति एवं सहायता तंत्र विकसित करना।
    • विशेष रूप से कम संसाधन वाले विश्वविद्यालयों के लिए अनुसंधान अनुदान प्रदान करना।
  • संकाय विकास कार्यक्रम: संकाय को नए शिक्षण मॉडल, अंतःविषय शिक्षण तथा शोध अपेक्षाओं के अनुकूल बनाने के लिए प्रशिक्षित करना।
    • कौशल विकास कार्यशालाओं के लिए शैक्षणिक निकायों तथा उद्योग विशेषज्ञों के साथ साझेदारी करना।
  • पारदर्शी शासन पर ध्यान देना: राजनीतिक हस्तक्षेप तथा पूर्वाग्रह को कम करने के लिए भर्ती एवं पदोन्नति प्रक्रियाओं में जवाबदेही लागू करना।
    • विश्वविद्यालय प्रशासन के लिए नियमित ऑडिट तथा स्वतंत्र निरीक्षण समितियाँ

निष्कर्ष

UGC विनियम, 2025 का मसौदा, NEP 2020 के साथ संरेखित दूरदर्शी सुधारों को प्रस्तुत करता है, लेकिन वे संघवाद, समानता तथा शैक्षणिक अखंडता को कमजोर करने का जोखिम उठाते हैं। इन चिंताओं को दूर करने के लिए सहयोगात्मक नीति निर्माण, संसाधन आवंटन और चरणबद्ध कार्यान्वयन की आवश्यकता है।

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