अरब सागर और पश्चिमी घाट के बीच स्थित कोंकण क्षेत्र अपनी अनूठी भौगोलिक विशेषताओं के लिए प्रसिद्ध है, जिसमें सदा (Sada) परिदृश्य भी शामिल है।
सदा (Sada) परिदृश्य के बारे में
परिभाषा और गठन: सदा पश्चिमी घाट के कोंकण क्षेत्र में समतल-शीर्ष वाले लैटेराइट क्षेत्र हैं, जो सदियों से कटाव के कारण निर्मित हुए हैं। स्थानीय रूप से, “सदा” शब्द का अर्थ एक बड़ा समतल क्षेत्र है।
वे महाराष्ट्र के सतारा जिले के पठारों के समान हैं, जिन्हें स्थानीय रूप से पाथर (Pathar) कहा जाता है, जिसका कास पठार (Kaas Plateau) एक प्रसिद्ध उदाहरण है।
कोंकण क्षेत्र के बारे में
अवस्थिति: पश्चिमी भारत में अरब सागर (पश्चिम) और पश्चिमी घाट (पूर्व) के बीच अवस्थित है।
दमन गंगा नदी (मुंबई के उत्तर में) से तेरेखोल नदी (महाराष्ट्र-गोवा सीमा) तक लगभग 330 मील (530 किमी.) तक फैला हुआ है।
भूगोल
इसमें ठाणे, ग्रेटर मुंबई, रायगढ़ और रत्नागिरी जैसे क्षेत्र शामिल हैं।
मौसमी नदियों, निम्न लैटेराइट पठारों और क्रमिक खाड़ियाँ और हेडलैंड की विशेषता।
आर्थिक गतिविधियाँ
कृषि: फसलों में चावल, दालें, सब्जियाँ, फल और नारियल शामिल हैं।
अन्य: मछली पकड़ना, नमक और लोहा/मैंगनीज खनन।
ऐतिहासिक महत्त्व
यूनानियों, मिस्रियों और अरबों के साथ मसाला व्यापार के लिए प्रसिद्ध।
यहाँ एलिफेंटा और कन्हेरी गुफा मंदिर जैसे ऐतिहासिक स्थल हैं।
विशेषताएँ: ये क्षेत्र वर्ष के अधिकांश समय बंजर रहते हैं, लेकिन मानसून के दौरान यहाँ अद्वितीय स्थानिक वनस्पतियाँ जैसे- पिंडा कॉनकेनेंसिस (Pinda Concanensis) पनपती हैं।
इस क्षेत्र के जैव विविधता सर्वेक्षण में 459 पौधों की प्रजातियाँ दर्ज की गईं, जिनमें से 105 कोंकण क्षेत्र के लिए स्थानिक हैं।
खेती के तरीके: मानसून के मौसम के दौरान, स्थानीय लोग पारंपरिक कृषि विधियों का उपयोग करके चावल और नानचनी [एल्यूसिन कोराकाना (Eleusine Coracana)] जैसे फसलों की कृषि के लिए सदा के छोटे-छोटे टुकड़ों पर खेती करते हैं, जिसमें कीटनाशकों और रासायनिक उर्वरकों का उपयोग नहीं किया जाता है।
बारहमासी जल स्रोत: सदा की छिद्रपूर्ण लैटेराइट मृदा प्रभावी रूप से वर्षा जल को अवशोषित करती है, जिससे खुले कुओं, खोदे गए कुओं, झरनों तथा बारहमासी धाराओं के माध्यम से पूरे वर्ष मीठे जल की आपूर्ति होती है।
कोंकण सदा के जियोग्लिफ (Geoglyphs)
परिभाषा: सदा में प्राचीन जियोग्लिफ (Geoglyphs) मौजूद हैं, जो लेटराइट पत्थर पर उत्कीर्ण की गई प्रागैतिहासिक शैल कला का एक रूप है।
प्रकार: इन जियोग्लिफ में शैल चित्र, नक्काशी, कप के निशान और वलय के निशान शामिल हैं, जिनमें से कुछ लगभग 10,000 वर्ष प्राचीन हैं।
यूनेस्को उल्लेख: ‘कोंकण जियोग्लिफ’ को यूनेस्को की सूची में शामिल किया गया है।
महत्त्वपूर्ण स्थल: भारत की सबसे बड़ी चट्टान उत्कीर्णन या जियोग्लिफ रत्नागिरी जिले के काशेली (Kasheli) में स्थित है।
पारिस्थितिकी महत्त्व
जैव विविधता: सदा एक समृद्ध पारिस्थितिकी तंत्र का समर्थन करता है, जिसमें 459 पौधों की प्रजातियाँ (कोंकण क्षेत्र में 105 स्थानिक), सरीसृपों की 31 प्रजातियाँ, उभयचरों की 13 प्रजातियाँ, पक्षियों की 169 प्रजातियाँ और स्तनधारियों की 41 प्रजातियाँ शामिल हैं।
वन्यजीव पर्यावास: यह संवेदनशील प्रजातियों जैसे कि सुभेद्य (IUCN की रेड लिस्ट में स्थिति) इंडियन फ्लैपशेल टर्टल [लिसेमिस पंक्टाटा(Lissemys Punctata)], साथ ही तेंदुए, सियार, लकड़बग्घा, बार्किंग हिरण और प्रवासी पक्षियों के लिए महत्त्वपूर्ण आवास प्रदान करता है।
सांस्कृतिक महत्त्व: इस क्षेत्र के जल निकायों को देवताओं को समर्पित स्थानीय अनुष्ठानों के हिस्से के रूप में संरक्षित किया जाता है, जिससे इन प्राकृतिक संसाधनों की स्वच्छता और स्थिरता सुनिश्चित होती है।
खतरा
विकासात्मक परियोजनाएँ: बागानों, आवासीय क्षेत्रों और अन्य परियोजनाओं के विकास से प्रेरित भूमि-उपयोग परिवर्तनों से सदा खतरे में है।
लैटेराइट खनन: लैटेराइट पत्थरों के लिए खनन गतिविधियाँ इस संवेदनशील पारिस्थितिकी तंत्र के लिए एक महत्त्वपूर्ण जोखिम उत्पन्न करती हैं।
‘बंजर भूमि’ वर्गीकरण: बंजर भूमि एटलस में ‘बंजर भूमि’ के रूप में इसका वर्गीकरण खतरों को बढ़ाता है, संरक्षण प्रयासों और सदा के पारिस्थितिक महत्त्व को कमजोर करता है।
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