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OYO की नई नीति : मानवीय अधिकारों का हनन

Lokesh Pal January 16, 2025 05:15 4 0

संदर्भ :

हाल ही में प्रसिद्ध कंपनी ‘OYO’ ने घोषणा की, कि अविवाहित युगल को उसके साझेदार होटलों में प्रवेश की अनुमति नहीं दी जाएगी

निजता संबंधी समस्याएँ 

  • लोकप्रिय मीडिया : पायल कपाड़िया की पुरस्कार विजेता फिल्म ”ऑल वी इमेजिन एज लाइट” एक युवा युगल अनु और शियाज़  की यात्रा को दर्शाती है, जो एकांत स्थान पाने के लिए संघर्ष करते हैं।
  • भारत में गोपनीयता संबंधी चुनौतियाँ : हालाँकि ये पात्र काल्पनिक हैं, लेकिन उनकी समस्या वास्तविकता है जिसका सामना भारत में विवाह-पूर्व संबंधों में शामिल कई युवा करते हैं, जहाँ  गोपनीयता एक दुर्लभ वस्तु है।
    • लोकप्रिय होटल एग्रीगेटर OYO द्वारा हाल ही में लागू की गई नीतियों के कारण गोपनीयता के लिए संघर्ष और भी चिंतनीय होने की आशंका है।
  • मानदंड और कानूनों के बीच संघर्ष : भारत में युवा युगलों के लिए गोपनीयता का मुद्दा सामाजिक मानदंड और कानूनी अधिकारों के बीच गहरे संघर्ष को उजागर करता है।
  • OYO की नई नीति : OYO ने घोषणा की है, कि अविवाहित युगलों को अब उसके साझेदार होटलों में प्रवेश की अनुमति नहीं दी जाएगी। होटलों को स्थानीय संवेदनशीलता के आधार पर इस नियम को लागू करने की स्वतंत्रता दी गई है।
    • सभी युगलों को चेक-इन के समय “उनके मध्य संबंधों का वैध प्रमाण” प्रस्तुत करना अनिवार्य होगा।
  • तात्कालिक कारण : OYO ने बताया कि यह निर्णय नागरिक समाज समूहों और नागरिकों के अनुरोध पर लिया गया, जिसमें कंपनी से ऐसी नीति अपनाने का आग्रह किया गया था।
  • नीति का कार्यान्वयन : प्रारंभ में यह नीति केवल मेरठ, उत्तर प्रदेश के होटलों पर लागू होगी, लेकिन रिपोर्ट्स से पता चलता है कि OYO अपने आवेदन को अन्य शहरों में भी विस्तारित कर सकता है। 
  • वैवाहिक स्थिति के आधार पर भेदभाव : ”संबंध का वैध प्रमाण” प्रदान करने की व्यावहारिकता से परे, यह स्पष्ट है कि OYO साझेदार होटलों को वैवाहिक स्थिति के आधार पर ग्राहकों के साथ भेदभाव करने के लिए प्रोत्साहित कर रहा है। 
  • विधिक निवारण का प्रश्न : हालाँकि मुख्य प्रश्न यह है, कि क्या इस नीति से प्रतिकूल रूप से प्रभावित लोगों को संविधान या अन्य किसी माध्यम से विधिक या कानूनी निवारण मिल सकता है ।

गोपनीयता और संबंधों पर विधिक दृष्टिकोण

  • विवाह-पूर्व संबंधों को मान्यता : विभिन्न निर्णयों में सर्वोच्च न्यायालय ने व्यक्तियों के विवाह-पूर्व संबंध बनाने के अधिकार को मान्यता दी है।
  • चुनने की स्वतंत्रता का अधिकार : ”शफीन जहान बनाम अशोकन के. एम.” (2020) में  अदालत ने पुष्टि की, कि संविधान के अनुच्छेद 21 में व्यक्तियों को अपने साथी चुनने का अधिकार शामिल है, चाहे वह विवाह के भीतर हो या बाहर।
  • साहचर्य का अधिकार : ”नवतेज सिंह जौहर बनाम भारत संघ” (2018) मामले में सभी व्यक्तियों के शारीरिक, भावनात्मक, मानसिक और यौन साहचर्य के अधिकार को मान्यता दी गई।
  • गोपनीयता, सम्मान और स्वायत्तता : सर्वोच्च न्यायालय के अन्य निर्णयों में इस बात पर बल दिया गया है, कि अनुच्छेद 21 से प्राप्त गोपनीयता, सम्मान और स्वायत्तता के अधिकार लोगों को निम्नलिखित स्वतंत्रता प्रदान करते हैं :
    • सहमति से, अंतरंग या यौन संबंधों में संलग्न होना।
    • यदि वे चाहें तो अपने साथी के साथ सहवास कर सकते हैं।
    • कई अविवाहित युगलों के लिए होटल सेवाओं का उपयोग करना इन अधिकारों का प्रयोग करने का एक माध्यम है।
  • व्यापक अनुप्रयोग : विवाह-पूर्व संबंधों में रहने वाले व्यक्तियों के अलावा, अलग-अलग लिंग के व्यक्ति जो मित्र, सहकर्मी या चचेरे भाई-बहन हैं, वे भी एक साथ यात्रा कर सकते हैं और उन्हें OYO की सेवाओं की आवश्यकता हो सकती है।

संवैधानिक प्रावधान

  • मूल अधिकारों की प्रवर्तनीयता : संवैधानिक योजना के तहत, संविधान के भाग-III में निहित मूल अधिकार प्राथमिक रूप से राज्य और उसके साधनों के विरुद्ध प्रवर्तनीय हैं, न कि गैर-राज्य अभिनेताओं के विरुद्ध।
  • संवैधानिक उपचार : जब राज्य उनके मूल अधिकारों का उल्लंघन करता है, तो नागरिक न्यायालयों से संवैधानिक उपचार की मांग कर सकते हैं। हालाँकि, ये अधिकार उन मामलों में लागू नहीं होते जहाँ कोई निजी पक्ष उनके प्रयोग में बाधा डालता है।
  • अधिकारों का ऊर्ध्वाधर और क्षैतिज अनुप्रयोग : संवैधानिक अधिकारों को आमतौर पर “ऊर्ध्वाधर” तरीके से (अर्थात् राज्य के विरुद्ध) लागू माना जाता है, न कि “क्षैतिज” तरीके से (अर्थात् निजी व्यक्तियों या संस्थाओं के मध्य)।

संवैधानिक और विधिक अंतराल

  • अधिकारों के ऊर्ध्वाधर मॉडल से विचलन : संविधान में तीन स्पष्ट प्रावधान शामिल हैं, जो अधिकारों के पारंपरिक “ऊर्ध्वाधर” मॉडल से विचलन प्रदर्शित करते हैं:
    • अनुच्छेद 15(2): सार्वजनिक स्थानों और सेवाओं तक पहुँचने में धर्म, नस्ल, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव को रोकता है।
    • अनुच्छेद 17: अस्पृश्यता का निषेध करता है।
    • अनुच्छेद 23: मानव तस्करी और बलात् श्रम पर रोक लगाता है।
  • क्षैतिज अधिकारों का विस्तार : कौशल किशोर बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2023) में सर्वोच्च न्यायालय ने माना, कि अनुच्छेद 21 के तहत अधिकार को निजी पक्षों के खिलाफ भी लागू किया जा सकता है, जिससे क्षैतिज अधिकारों का दायरा बढ़ जाता है।
  • अनुच्छेद 15(2) की सीमाएँ : जबकि अनुच्छेद 15(2) धर्म, जाति और अन्य सूचीबद्ध आधारों पर भेदभाव को रोकता है, यह स्पष्ट रूप से वैवाहिक स्थिति को शामिल नहीं करता है, जिससे OYO की नीति जैसे मामलों में इसकी प्रयोज्यता में अस्पष्टता बनी रहती है।
  • अनुच्छेद 21 के बारे में अनिश्चितता : कौशल किशोर निर्णय में निजी संस्थाओं के विरुद्ध अनुच्छेद 21 को लागू करने के निहितार्थ अस्पष्ट बने हुए हैं। 
    • सुसंगत न्यायशास्त्र के अभाव के कारण यह अनिश्चित है, कि क्या अविवाहित युगल ऐसे मामलों में अनुच्छेद 21 के तहत अधिकारों का दावा कर सकते हैं।

आगे की राह

  • भेदभाव विरोधी कानून की आवश्यकता : वर्तमान कानून सीमित सुरक्षा प्रदान करते हैं, जैसे वैवाहिक स्थिति की चिंता किए बिना महिलाओं को दिए जाने वाले अधिकार। हालाँकि, एक व्यापक भेदभाव विरोधी कानून की आवश्यकता है :
    • वैवाहिक स्थिति, लिंग, जाति, यौन अभिविन्यास या अन्य विशेषताओं के आधार पर भेदभाव से व्यक्तियों की रक्षा करना।
    • आवास, रोजगार और वाणिज्यिक सेवाओं सहित निजी लेनदेन पर लागू होता है।
  • विधायी और सामाजिक परिवर्तन : संवैधानिक अधिकारों का प्रयोग करने की क्षमता निजी व्यक्ति या संस्थाओं की अनुकूल परिस्थितियाँ बनाने की इच्छा पर निर्भर करती है।
    • वैवाहिक स्थिति, धर्म या लिंग पहचान जैसे आधार पर भेदभाव, न केवल होटल सेवाओं तक पहुँच को प्रभावित करता है, बल्कि आवास, रोजगार और संपत्ति के स्वामित्व को भी प्रभावित करता है।
    • इस समस्या से निपटने के लिए निजी और सार्वजनिक क्षेत्रों में समानता सुनिश्चित करने हेतु विधायी और सामाजिक परिवर्तन की आवश्यकता है।
    • सामाजिक मानदंड प्रायः बहुसंख्यकों द्वारा निर्धारित किए जाते हैं और उन्हें प्राथमिकता देने से बहुसंख्यकों के मूल्यों को बढ़ावा मिलने का खतरा रहता है, जबकि अल्पसंख्यक समुदायों के मूल्यों को दबा दिया जाता है।
  • सहिष्णुता की आवश्यकता : सहिष्णुता की आवश्यकता महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि सामाजिक मानदंड कठोर हो सकते हैं। समाज को अधिक सहिष्णुता अपनानी चाहिए और कानूनी प्रावधानों को स्पष्ट किया जाना चाहिए।

निष्कर्ष

बहुमत की निरंकुशता अधिकांशतः निजी क्षेत्र में उतनी स्पष्ट नहीं होती है। संभवतः किसी कार्य को सामाजिक स्वीकृति न मिले, लेकिन संविधान हमें इसे करने का अधिकार देता है। कानून को, चाहे वह किसी भी रूप में हो, इस अधिकार की रक्षा करनी चाहिए।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न

विभिन्न मूलभूत सुविधाओं का लाभ उठाने के लिए संबंधों की प्रामाणिकता की अनिवार्यता जैसी नीतियाँ, जो अविवाहित युगलों को निजी स्थानों पर लाभ से वंचित करती हैं, व्यक्तिगत स्वतंत्रता और निजता के अधिकार संबंधी महत्त्वपूर्ण चिंताएँ उत्पन्न करती हैं। चर्चा कीजिए कि भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 सामाजिक मानदंडों और प्रतिबंधात्मक नीतियों के विरुद्ध इन अधिकारों की रक्षा किस प्रकार करता है? 

(15 अंक, 250 शब्द)

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