अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) ने वर्ल्ड एम्प्लॉयमेंट एंड सोशल आउटलुक: ट्रेंड्स 2025 रिपोर्ट प्रकाशित की।
यह वैश्विक श्रम बाजार के रुझानों का गहन विश्लेषण प्रदान करता है, जिसमें धीमा आर्थिक सुधार, निरंतर युवा बेरोजगारी एवं वैश्विक रोजगारों के बढ़ते अंतराल जैसी चुनौतियों पर प्रकाश डाला गया है।
रिपोर्ट के मुख्य बिंदु
वैश्विक बेरोजगारी स्थिरता
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) ने यह रिपोर्ट जारी की, जिसमें बताया गया कि वैश्विक बेरोजगारी दर वर्ष 2024 में 5% पर स्थिर रहने की संभावना है।
वर्ष 2025 तक इस स्तर को बनाए रखने का अनुमान है, जो रोजगार सृजन में एक स्थिर स्थिति का संकेत देता है।
युवा बेरोजगारी संबंधी चिंताएँ
समग्र स्थिरता के बावजूद, युवा बेरोजगारी उच्च बनी हुई है, युवा पुरुषों एवं महिलाओं के लिए दर 12% से अधिक है।
आर्थिक विकास में मंदी
वैश्विक अर्थव्यवस्था में वर्ष 2024 में 3.3% से 3.2% की मंदी का अनुभव हुआ, धीरे-धीरे मंदी से रोजगार सृजन सीमित होने की संभावना है।
नीतिगत अनुशंसाएँ
ILO के महानिदेशक गिल्बर्ट हॉन्गबो सामाजिक न्याय के लिए नए दृष्टिकोण की आवश्यकता पर जोर देते हैं।
उन्होंने कम आय वाले देशों में रोजगार सृजन एवं विकास को प्रोत्साहित करने के लिए शिक्षा में निवेश तथा प्रवासी प्रेषण का लाभ उठाने की सिफारिश की है।
रिपोर्ट में निम्नलिखित चुनौतियों पर प्रकाश डाला गया
भू-राजनीतिक तनाव, जलवायु परिवर्तन की बढ़ती लागत एवं अनसुलझे ऋण मुद्दे श्रम बाजारों पर दबाव उत्पन्न कर रहे हैं।
वर्ष 2024 में लगभग 402.4 मिलियन नौकरियों में कमी देखी गई, जो पिछले वर्ष की तुलना में लगभग 2.3 मिलियन अधिक है। इसमें वे लोग भी शामिल हैं, जिन्होंने निराशा के कारण रोजगार की तलाश बंद कर दी है।
अनौपचारिक रोजगार और कार्यशील गरीबी महामारी-पूर्व की स्थिति में लौट गई है, तथा निम्न आय वाले देशों को पर्याप्त रोजगार सृजन में सबसे बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO)
मुख्यालय: अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) का मुख्यालय जिनेवा, स्विट्जरलैंड में है।
स्थापना: इसकी स्थापना वर्ष 1919 में सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने एवं विश्व स्तर पर श्रम स्थितियों में सुधार के लिए वर्साय की संधि के द्वारा की गई थी।
सदस्यता: ILO के 187 सदस्य देश हैं, जिनमें भारत भी शामिल है, जो इसका संस्थापक सदस्य था। यह पहली एवं एकमात्र त्रिपक्षीय संयुक्त राष्ट्र एजेंसी है, जिसमें संतुलित निर्णय लेने को सुनिश्चित करने के लिए सरकारों, नियोक्ताओं तथा श्रमिकों के प्रतिनिधि शामिल हैं।
प्रमुख सम्मेलन: ILO ने 190 सम्मेलनों को अपनाया है, जिनमें शामिल हैं:
कन्वेंशन नंबर 87 (1948): संगठन की स्वतंत्रता एवं संगठित होने के अधिकार का संरक्षण।
कन्वेंशन नंबर 98 (1949): संगठित होने एवं सामूहिक सौदेबाजी का अधिकार।
कन्वेंशन नंबर 138 (1973): रोजगार के लिए न्यूनतम आयु।
कन्वेंशन नंबर 182 (1999): बाल श्रम के सबसे अनुचित रूपों का उन्मूलन।
प्रमुख रिपोर्टें
वर्ल्ड एम्प्लॉयमेंट एंड सोशल आउटलुक (WESO): वैश्विक रोजगार रुझानों को निगरानी करता है।
वैश्विक वेतन रिपोर्ट: वेतन एवं आय असमानता के रुझानों का विश्लेषण करती है।
ILO मॉनिटर: श्रम बाजारों पर COVID-19 जैसे संकटों के प्रभाव की जाँच करता है।
महत्त्व
ILO अंतरराष्ट्रीय श्रम मानक निर्धारित करता है, उचित कार्य को बढ़ावा देता है, एवं सतत् विकास लक्ष्यों (SDGs) के कार्यान्वयन का समर्थन करता है, विशेष रूप से लक्ष्य-8: सभ्य कार्य तथा आर्थिक विकास।
सामाजिक न्याय के माध्यम से शांति को बढ़ावा देने के प्रयासों के लिए इसे वर्ष 1969 में नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
त्रिपक्षीय संरचना: ILO एक त्रिपक्षीय संरचना पर कार्य करता है, जिसमें सरकारों, नियोक्ताओं एवं श्रमिकों के प्रतिनिधि शामिल होते हैं, जो नीति-निर्माण तथा श्रम प्रशासन में एक संतुलित दृष्टिकोण सुनिश्चित करते हैं।
ILO के कार्य
सामाजिक न्याय को बढ़ावा देना: ILO सभी के लिए उचित कार्य को बढ़ावा देकर सामाजिक न्याय प्राप्त करने की दिशा में कार्य करता है।
मुख्य श्रम मानक: ILO मुख्य श्रम मानक निर्धारित करता है, जिसमें बलात् श्रम, बाल श्रम एवं रोजगार में भेदभाव का उन्मूलन शामिल है।
वैश्विक श्रम नीतियों पर प्रभाव: ILO वर्ल्ड एम्प्लॉयमेंट एंड सोशल आउटलुक जैसी प्रभावशाली रिपोर्ट तैयार करके वैश्विक श्रम नीतियों को आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
सतत् रोजगार की सिफारिश: ILO समावेशी एवं सतत् रोजगार नीतियों की सिफारिश करता है, जिसमें युवाओं, महिलाओं तथा वंचित समूहों के लिए अच्छे काम के अवसरों पर जोर दिया जाता है।
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