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डी-डॉलरीकरण : ब्रिक्स समूह तथा भारतीय निहितार्थ

Lokesh Pal January 22, 2025 05:45 64 0

संदर्भ :

हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति ने  ब्रिक्स देशों (ब्राजील, रूस, भारत, चीन और  दक्षिण अफ्रीका) पर 100% आयात शुल्क लगाने का पुनः संकेत किया, यदि ये वैश्विक व्यापार में डॉलर की भूमिका को कम करने का प्रयास करते हैं।

डॉलर पर निर्भरता कम करने के उपाय और कारण

  • स्विफ्ट प्रतिबंध : भू-राजनीतिक तनाव के कारण रूस को स्विफ्ट से हटा दिया गया, जिससे डॉलर-प्रधान वित्तीय प्रणाली की कमजोरियाँ उजागर हो गईं। ईरान को सर्वप्रथम 2012 में स्विफ्ट प्रणाली से बाहर कर दिया गया था, जिससे तेहरान पर 2015 के परमाणु समझौते के लिए दबाव बना।
    • ट्रम्प प्रशासन के तहत 2018 में पुनः लगाए गए प्रतिबंधों के कारण ईरान को पुनः बहिष्कार का सामना करना पड़ा, जिससे वह आर्थिक रूप से अलग-थलग पड़ गया।
  • वित्तीय प्रणालियों का अवैध प्रभुत्व : अजय श्रीवास्तव (ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव) ने इस बात पर प्रकाश डाला, कि एकतरफा प्रतिबंधों के लिए स्विफ्ट का लाभ उठाने जैसी अमेरिकी कार्रवाइयों ने देशों को अन्य मुद्रा विकल्प तलाशने हेतु प्रेरित किया है।
    • रूस और ईरान को स्विफ्ट से बाहर रखना इस बात का उदाहरण है, कि अमेरिका वित्तीय अवसंरचना को प्रभाव के साधन के रूप में प्रयोग कर रहा है।
  • डी-डॉलरीकरण के लिए ब्रिक्स पहल : ब्राजील के राष्ट्रपति लुईस इनासियो लूला दा सिल्वा ने भुगतान विकल्पों का विस्तार करने और कमजोरियों को कम करने के लिए एक नई ब्रिक्स मुद्रा बनाने का प्रस्ताव रखा।
    • 2024 में कज़ान शिखर सम्मेलन में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने डॉलर को हथियार के रूप में प्रयोग करने की आलोचना की तथा वित्तीय बहुध्रुवीयता की आवश्यकता पर बल दिया।

रुपये के अंतर्राष्ट्रीयकरण के लिए भारत द्वारा उठाए गए कदम

  • भारतीय रुपये में भुगतान : यूक्रेन युद्ध के दौरान रूस पर प्रतिबंधों के उत्तर में, भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता कम करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के लिए भारतीय रुपये में चालान और भुगतान की अनुमति दी।
  • स्थानीय मुद्रा में व्यापार के लिए समर्थन : ब्रिक्स के कज़ान शिखर सम्मेलन में भारतीय प्रधानमंत्री ने ब्रिक्स आर्थिक सहयोग को बढ़ाने के लिए स्थानीय मुद्राओं और सीमापार भुगतान प्रणालियों में व्यापार के महत्त्व पर प्रकाश डाला।
    • स्थानीय मुद्रा व्यापार पहल को मजबूत करना एक व्यावहारिक, गैर-टकरावपूर्ण रणनीति है।
  • राष्ट्रीय मुद्रा में पारस्परिक निपटान : भारत के विदेश मंत्री ने मुंबई में भारत-रूस अंतर-सरकारी आयोग की बैठक के दौरान, विशेष रूप से वर्तमान भू-राजनीतिक परिस्थितियों में, राष्ट्रीय मुद्राओं में व्यापार के महत्त्व पर बल दिया।

डॉलर पर भारत का नीतिगत दृष्टिकोण

  • डॉलर का विरोध : भारत “सक्रिय रूप से” या “दुर्भावनापूर्ण इरादे” से व्यापार नीतियों में अमेरिकी डॉलर से दूर जाने या उसके विरोध का लक्ष्य नहीं रखता है। यह दृष्टिकोण डॉलर के रणनीतिक विरोध के बजाय व्यावहारिक आवश्यकताओं से प्रेरित है।
    • भारत के हालिया उपायों, जैसे- वोस्त्रो खातों की अनुमति देना और स्थानीय मुद्रा व्यापार समझौते, का उद्देश्य डी-डॉलरीकरण के बजाय व्यापार को जोखिम मुक्त करना है।
  • व्यापार चुनौतियों का समाधान : अमेरिकी नीतियाँ अक्सर कुछ देशों के साथ व्यापार को जटिल बना देती हैं। भारत व्यापार संबंधों को बनाए रखने के लिए “समाधान” की तलाश करता है, मुख्य रूप से उन भागीदार राष्ट्रों के साथ जो डॉलर की कमी का सामना कर रहे हैं। 
    • आर्थिक गतिविधियों को बिना किसी व्यवधान के जारी रखने के लिए वैकल्पिक निपटान तंत्र अपनाए जाते हैं।
  • बहुध्रुवीयता : भारत इस बात पर बल देता है, कि व्यापार तंत्र में विविधता लाना अमेरिका विरोधी नहीं है, बल्कि इसका उद्देश्य बहुध्रुवीयता और वित्तीय स्थिरता है

ब्रिक्स फ्रेमवर्क की चुनौतियाँ

  • कोई निर्णय नहीं : यद्यपि ब्रिक्स देशों ने साझा मुद्रा पर चर्चा की है, परंतु अभी तक कोई निर्णय नहीं लिया गया है।
  • भौगोलिक चुनौतियाँ : यूरोजोन की निकटता के विपरीत ब्रिक्स राष्ट्र विभिन्न क्षेत्रों में फैले हुए हैं, जिससे एकल मुद्रा की व्यवहार्यता जटिल हो जाती है।
  • आर्थिक विषमता : भारतीय निर्यात संगठनों के महासंघ (FIEO) के महानिदेशक अजय सहाय ने ऐसे ढाँचों के प्रति चेतावनी दी, जो ब्रिक्स के भीतर चीन को उसकी बड़ी आर्थिक शक्ति के कारण अनुपातहीन रूप से लाभ पहुँचाते हैं।
  • भिन्न प्राथमिकताएँ : जबकि चीन ब्रिक्स को अमेरिका के प्रतिकार के रूप में उपयोग करने पर जोर दे सकता है, भारत, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका अमेरिका के साथ मतभेदों के कूटनीतिक समाधान को प्राथमिकता देते हैं।

भारत द्वारा डी-डॉलरीकरण के प्रति सतर्क दृष्टिकोण के कारण

  • चीन की मुद्रा युआन का उदय : युआन डॉलर के एक प्रमुख विकल्प के रूप में उभर रहा है, विशेष रूप से रूस में, जहाँ पश्चिमी प्रतिबंधों के बाद यह सबसे अधिक व्यावसाय वाली मुद्रा बन गई है। 
    • चीन के बढ़ते आर्थिक प्रभुत्व से चिंतित भारत ने रूसी तेल आयात के लिए युआन का प्रयोग करने से मना किया है।
  • अति-निर्भरता को संतुलित करना : भारत अमेरिकी डॉलर पर अत्यधिक निर्भरता के प्रति सतर्क है। भू-राजनीतिक अनिश्चितताओं और संभावित द्वितीयक प्रतिबंधों से होने वाले जोखिमों को कम करने के लिए सोने की खरीद में वृद्धि और विदेशों में रखे गए सोने के भंडार को वापस लाना शामिल है।

निष्कर्ष

अंततः भारत का सक्रिय दृष्टिकोण आर्थिक संप्रभुता की रक्षा तथा अमेरिका के साथ सहयोगात्मक  संबंध बनाए  रखने के बीच संतुलन बनाने के उसके प्रयास को दर्शाता है, साथ ही चीन या युआन पर अत्यधिक निर्भरता का विरोध भी करता है।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न

“डी-डॉलरीकरण का अर्थ अमेरिकी डॉलर को चुनौती देने से कहीं अधिक संभावित जोखिमों को कम करना है।” भारत की व्यापार नीतियों और ब्रिक्स पहलों में इसकी भागीदारी के संदर्भ में इस कथन का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिए।

(15 अंक, 250 शब्द)

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