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चीन की नीतियों का भारत के महत्त्वपूर्ण खनिजों पर प्रभाव

Lokesh Pal January 23, 2025 05:15 62 0

संदर्भ :

हाल ही में चीन ने 28 अमेरिकी संस्थाओं को शामिल करके अपनी निर्यात नियंत्रण सूची का विस्तार किया है, जिससे एयरोस्पेस, सेमीकंडक्टर और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे उच्च तकनीक उद्योगों के लिए महत्त्वपूर्ण खनिजों तक पहुँच प्रतिबंधित हो गई है।

महत्त्वपूर्ण खनिज (Critical Minerals) क्या हैं?

  • ये वे खनिज हैं, जो आर्थिक विकास और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए आवश्यक हैं, लेकिन इनकी भौगोलिक उपलब्धता की कमी और सीमा के कारण आपूर्ति शृंखला में भेद्यता और व्यवधान के कारण इसकी महत्ता बनी हुई है।
  • इन खनिजों का उपयोग अब प्रत्येक स्थान पर- मोबाइल फोन और कंप्यूटर निर्माण से लेकर बैटरी, इलेक्ट्रिक वाहन और सौर पैनल तथा पवन टर्बाइन जैसी हरित प्रौद्योगिकियों तक किया जाता है ।
  • महत्त्वपूर्ण खनिजों का उपयोग सैन्य और नागरिक दोनों उद्देश्यों के लिए किया जा सकता है।

चीन का सामरिक खनिज निर्यात नियंत्रण

  • खनिजों की प्रतिबंधित सूची : टंगस्टन, गैलियम, मैग्नीशियम, बेरीलियम, हेफ़नियम तथा  लिथियम-6 (आइसोटोप) आदि।
  • गणना की गई पद्धति : चीन पश्चिमी देशों और उनके सहयोगियों के लिए महत्त्वपूर्ण खनिजों को लक्षित करता है, विशेष रूप से सेमीकंडक्टर (अर्द्धचालक), बैटरी और उच्च तकनीक निर्माण के लिए।
  • बाधक कारक : चीन उन खनिजों को नियंत्रित करने से बचता है जहाँ वह कच्चे माल के लिए पश्चिमी आयात पर निर्भर करता है। चीन यह सुनिश्चित करता है कि घरेलू उद्योगों या निर्यात-निर्भर क्षेत्रों में कोई व्यवधान न हो।
  • महत्त्वपूर्ण खनिजों का शस्त्रीकरण : दुर्लभ पृथ्वी खनिज प्रतिबंध (2010) जापान पर लगाया गया था, जो चीन द्वारा भू-राजनीतिक उपकरण के रूप में खनिज निर्यात के उपयोग को दर्शाता है।
    • रणनीतिक लक्ष्यों के अनुरूप एंटीमनी, गैलियम और जर्मेनियम जैसे खनिजों पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
    • चीन ने दिसंबर 2023 में दुर्लभ पृथ्वी प्रौद्योगिकियों पर प्रतिबंध लगा दिया और घरेलू प्रभुत्व को मजबूत करने तथा वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं को नियंत्रित करने के लिए दुर्लभ पृथ्वी खनिजों के निष्कर्षण और प्रसंस्करण प्रौद्योगिकियों पर प्रतिबंध लगा दिया।
  • वैश्विक चिंताएँ : संयुक्त राज्य अमेरिका और अन्य देशों के नीति निर्माता महत्त्वपूर्ण खनिजों के लिए बढ़ती प्रतिस्पर्धा के संबंध में चिंतित हैं, जो उच्च तकनीक उद्योगों, बैटरी और अर्द्धचालकों के लिए आवश्यक हैं।
    • यह प्रतिस्पर्धा अब अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक कूटनीति का आधार बन गई है, जो व्यापार, भू-राजनीति और प्रौद्योगिकी प्रभुत्व को प्रभावित कर रही है।
  • भारत के लिए निहितार्थ : भारत को आयात पर निर्भरता कम करने और अपने संसाधन सुरक्षा को मजबूत करने के लिए अपनी घरेलू खनिज अन्वेषण और उत्पादन क्षमता में सुधार करने की आवश्यकता है।
    • आर्थिक विकास और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए महत्त्वपूर्ण खनिजों में आत्मनिर्भरता बढ़ाना आवश्यक है।

भारत सरकार द्वारा उठाए गए प्रमुख कदम

  • महत्त्वपूर्ण खनिजों की पहचान : खान मंत्रालय ने राष्ट्रीय सुरक्षा और औद्योगिक विकास के लिए  30 महत्त्वपूर्ण खनिजों की पहचान की है।
  • काबिल (KABIL) का गठन : खनिज विदेश इंडिया लिमिटेड (KABIL) की स्थापना लिथियम और कोबाल्ट जैसे महत्त्वपूर्ण खनिजों में विदेशी निवेश को सुरक्षित करने के लिए की गई थी।
  • विधायी सुधार : खान और खनिज (विकास और विनियमन) संशोधन अधिनियम, 2023 ने दुर्लभ पृथ्वी तत्त्वों पर प्रतिबंधात्मक वर्गीकरण को हटा दिया, जिन्हें पहले ‘परमाणु खनिज’ माना जाता था।
    • अधिनियम का उद्देश्य निजी क्षेत्र के निवेश को आकर्षित करना और प्रौद्योगिकी साझाकरण को सुविधाजनक बनाना है।

खान एवं खनिज (विकास और विनियमन) संशोधन अधिनियम, 2023 

  • अन्वेषण लाइसेंस की शुरुआत : विदेशी कंपनियों सहित विशेष संसाधन अन्वेषण एजेंसियों को आकर्षित करने के लिए निर्मित किए गए।
    • फर्मों को पूर्ण पैमाने पर खनन कार्यों के लिए प्रतिबद्ध हुए बिना केवल टोही और पूर्वेक्षण पर ध्यान केंद्रित करने की अनुमति देता है।
    • भू-वैज्ञानिक रूप से चुनौतीपूर्ण जमाओं में भागीदारी को प्रोत्साहित करता है।
  • अन्वेषण फर्मों के लिए प्रोत्साहन : खनन शुरू होने के बाद अन्वेषण व्यय का 50% प्रतिपूर्ति, जिसका उद्देश्य प्रारंभिक चरण के संचालन को जोखिम मुक्त करना है।

भारत में महत्त्वपूर्ण खनिजों के विकास में चुनौतियाँ

  • सीमित बाजार रुझान : 2023 में जम्मू और कश्मीर के रियासी जिले में लिथियम भंडार की खोज को भारत के ऊर्जा संक्रमण के लिए एक सफलता के रूप में देखा गया था।
    • एक वर्ष से अधिक समय के बाद, किसी भी कंपनी ने इन संसाधनों के लिए बोली नहीं लगाई, जिससे योजना अधर में रह गई।
  • नीलामी की कम सफलता दर : विभिन्न आँकड़ों से पता चलता है, कि हाल के वर्षों में केवल 48% खनिज ब्लॉक (49 में से 24) की सफलतापूर्वक नीलामी की गई है।
  • लाइसेंसों का सीमित मात्रा में जारी होना : लिथियम, दुर्लभ पृथ्वी तत्त्वों और ग्रेफाइट जैसे खनिजों के लिए केवल कुछ अन्वेषण लाइसेंस ही मंजूर किए गए हैं। अधिकांश लाइसेंस भारतीय सार्वजनिक क्षेत्र की फर्मों को आवंटित किए गए हैं, जिनमें न्यूनतम विदेशी भागीदारी है।
  • सीमित नीलामी : महत्त्वपूर्ण खनिजों की नीलामी में सीमित रुझान देखा गया, जिससे इस क्षेत्र का विकास और धीमा हो गया है।
  • संसाधन वर्गीकरण प्रणाली : भारत की संसाधन वर्गीकरण प्रणाली में अंतर्राष्ट्रीय मानदंडों (G1-G4 स्तर) के साथ संरेखण का अभाव है।
    • अयस्क ग्रेड और मात्रा पर अपूर्ण भू-वैज्ञानिक डेटा संभावित बोलियों के लिए जोखिम बढ़ाता है, जिससे कई ब्लॉक व्यावसायिक रूप से अव्यावहारिक हो जाते हैं।
  • अन्वेषण लाइसेंस की निम्न माँग : निवेश को जोखिम मुक्त करने के उद्देश्य के बावजूद, अन्वेषण लाइसेंस लोगों को आकर्षित करने में विफल रहे हैं।
  • सर्वेक्षण की कमी : भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण के बिना, कई खनन कंपनियाँ अपने प्रस्तावों को कम कर सकती हैं या बोली लगाने से पूरी तरह से मना कर सकती हैं। इसका परिणाम यह होता है कि नीलामी के दौरान मूल्यवान खनिज ब्लॉकों को नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है।

अन्वेषण स्तरों की व्याख्या

स्तर  

विवरण

मुख्य विशेषताएँ

G4 टोही चरण (Reconnaissance Stage)
  • प्रारंभिक, व्यापक स्तर की खोज।
  • खनिज क्षमता वाले क्षेत्रों की पहचान करने के उद्देश्य से।
  • डेटा में कम विश्वास।
G3 प्रारंभिक अन्वेषण चरण (Preliminary Exploration Stage)
  • व्यवस्थित अन्वेषण शुरू होता है।
  • मूलभूत भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण और नमूनाकरण किया जाता है।
  • आँकड़ों में मध्यम विश्वास।
G2 सामान्य अन्वेषण चरण (General Exploration Stage)
  • पहचाने गए खनिज क्षेत्रों का विस्तृत अन्वेषण।
  • ग्रेड अनुमान के लिए ड्रिलिंग, ट्रेंचिंग और नमूनाकरण।
G1 विस्तृत अन्वेषण चरण (Detailed Exploration Stage)
  • सबसे उन्नत चरण।
  • भंडार को परिभाषित करने के लिए डेटा पर्याप्त सटीक है।
  • खनन व्यवहार्यता का मूल्यांकन किया जाता है।

आगे की राह 

  • अग्रिम वित्तीय प्रोत्साहन : इन चुनौतियों से निपटने के लिए, एक संभावित उपाय अन्वेषण चरण के दौरान बड़े अग्रिम वित्तीय प्रोत्साहनों को लागू करना है।
    • यह दृष्टिकोण सेमीकंडक्टर निर्माण परियोजनाओं के बाद तैयार किया जा सकता है, जहाँ महत्त्वपूर्ण प्रारंभिक निवेश सरकारी समर्थन द्वारा समर्थित होते हैं।
  • प्रत्यक्ष पूँजी सहायता : भारत ने महत्त्वपूर्ण खनिज परियोजनाओं के निर्माण के शुरुआती चरणों के दौरान प्रत्यक्ष पूँजी सहायता की घोषणा करके एक सक्रिय रणनीति अपनाई है।
    • इस मॉडल का उद्देश्य तत्काल अन्वेषण लागतों की भरपाई करना, क्षेत्र में अधिक भागीदारी को प्रोत्साहित करना और खनिज संसाधन प्रबंधन की समग्र दक्षता को बढ़ाना है।

निष्कर्ष 

अतः अन्वेषण के लिए अग्रिम पूँजी समर्थन बाजार की विफलता की समस्या को हल करेगा और अनुप्रवाह खनन, अन्वेषण, बिक्री और निर्यात में कई गुना अधिक मूल्य प्राप्त करने में मदद करेगा।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न

चर्चा कीजिए कि महत्त्वपूर्ण खनिजों पर चीन का रणनीतिक नियंत्रण वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं को कैसे प्रभावित करता है; साथ ही महत्त्वपूर्ण खनिजों के विकास की रणनीति के माध्यम से भारत की नीति प्रतिक्रिया का विश्लेषण कीजिए । घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय दोनों आयामों को संबोधित करते हुए इस क्षेत्र में भारत की स्थिति को मजबूत करने के उपाय सुझाइए।

(15 अंक, 250 शब्द)

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