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नाइट्रोजन प्रदूषण में वृद्धि

Lokesh Pal January 24, 2025 03:40 113 0

संदर्भ

खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) की एक हालिया रिपोर्ट में नाइट्रोजन प्रदूषण में खतरनाक वृद्धि पर प्रकाश डाला गया है।

रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष,

  • उत्सर्जन में वृद्धि: मनुष्य प्रतिवर्ष 150 टेराग्राम (Tg) अभिक्रियाशील नाइट्रोजन उत्सर्जित करते हैं, जो जलवायु परिवर्तन के कारण वर्ष 2100 तक 600 Tg/वर्ष तक पहुँचने का अनुमान है।
  • नाइट्रोजन उपयोग दक्षता (NUE): वैश्विक NUE 56% (1961) से घटकर 40% (1980 के दशक) हो गई और वर्ष 2022 तक 56% हो गई।
  • मुख्य योगदानकर्ता: पशुधन उत्सर्जन, सिंथेटिक उर्वरकों, भूमि-उपयोग परिवर्तनों और खाद के साथ कुल नाइट्रोजन उत्सर्जन का एक-तिहाई हिस्सा है।
  • क्षेत्रीय प्रभाव: व्यापक उर्वरक दुरुपयोग के कारण नाइट्रोजन प्रदूषण उत्तरी अमेरिका, पश्चिमी यूरोप और एशिया के कुछ हिस्सों में सबसे गंभीर है।
  • फसल भिन्नताएँ: NUE फसल के अनुसार भिन्न होती है, जैसे सोयाबीन (80%) बनाम फल/सब्जियाँ (2010 में 14%)।

नाइट्रोजन के बारे में

  • वायुमंडल में नाइट्रोजन: पृथ्वी के वायुमंडल का 78% हिस्सा नाइट्रोजन से बना है, लेकिन यह नाइट्रोजन निष्क्रिय रूप में मौजूद है, जिसका उपयोग अधिकांश जीव नहीं कर सकते हैं।

नाइट्रोजन उपयोग दक्षता (Nitrogen Use Efficiency-NUE)

  • नाइट्रोजन उपयोग दक्षता से तात्पर्य किसी फसल की उपज से है, जो उसे उपलब्ध नाइट्रोजन (प्राकृतिक एवं कृत्रिम) के सापेक्ष है।
  • इसे फसलों द्वारा प्रभावी रूप से उपयोग की जाने वाली नाइट्रोजन की मात्रा और लागू की गई नाइट्रोजन की मात्रा के अनुपात के रूप में परिभाषित किया जाता है। यह मापता है कि कोई पौधा विकास और उत्पादकता के लिए नाइट्रोजन का कितना अच्छा उपयोग करता है।

  • अभिक्रियाशील नाइट्रोजन: फलियों द्वारा नाइट्रोजन स्थिरीकरण और औद्योगिक तरीकों (जैसे- हैबर-बॉश प्रक्रिया) जैसी प्राकृतिक प्रक्रियाओं के माध्यम से, नाइट्रोजन अभिक्रियाशील एवं उपयोग करने योग्य हो जाता है।
    • हैबर-बॉश प्रक्रिया में हाइड्रोजन (H2) के साथ अभिक्रिया के माध्यम से वायुमंडलीय नाइट्रोजन (N2) का अमोनिया (NH3) में रूपांतरण शामिल है।
    • इस प्रक्रिया में एक धातु उत्प्रेरक (fe-आयरन) का उपयोग किया जाता है और यह उच्च तापमान तथा दाब में संचालित होता है।
    • इसने पिछली सदी में वैश्विक खाद्य उत्पादन को काफी बढ़ावा दिया है।
  • नकारात्मक प्रभाव: पिछले 150 वर्षों में मानव-चालित नाइट्रोजन प्रवाह में दस गुना वृद्धि हुई है। प्रतिवर्ष लगभग 80% अभिक्रियाशील नाइट्रोजन पर्यावरण में नष्ट हो जाती है, जिससे मृदा और जल प्रदूषण, जैव विविधता का ह्रास और स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ होती हैं।

नाइट्रोजन प्रदूषण के स्रोत

  • कृषि: सिंथेटिक उर्वरकों का अत्यधिक उपयोग।
    • पशुधन उत्सर्जन, वैश्विक नाइट्रोजन प्रदूषण में लगभग एक-तिहाई का योगदान देता है।
    • उर्वरक का कुप्रबंधन।

  • औद्योगिक गतिविधियाँ: कारखानों और कोयला बिजली संयंत्रों से उत्सर्जन।
  • वाहन उत्सर्जन: निकास से नाइट्रोजन ऑक्साइड।
  • भूमि-उपयोग परिवर्तन: वनों की कटाई और आवास परिवर्तन।

नाइट्रोजन प्रदूषण का प्रभाव

  • जलवायु परिवर्तन: ग्रीनहाउस गैस के रूप में नाइट्रस ऑक्साइड, कार्बन डाइऑक्साइड से 300 गुना अधिक शक्तिशाली है और इसका वायुमंडलीय जीवनकाल 200 वर्ष है, जो ग्लोबल वार्मिंग और ओजोन क्षरण में महत्त्वपूर्ण योगदान देता है।
  • जैव विविधता हानि: पारिस्थितिकी तंत्रों का अत्यधिक उर्वरीकरण, जिससे संवेदनशील प्रजातियाँ प्रतिस्पर्द्धा से बाहर हो जाती हैं।
    • महासागरीय ‘मृत क्षेत्रों’ का निर्माण और विषाक्त शैवाल का प्रस्फुटन।
  • स्वास्थ्य जोखिम: नाइट्रोजन ऑक्साइड के कारण जमीनी स्तर पर ओजोन और धुंध के कारण श्वसन संबंधी बीमारियाँ होती हैं।
    • कृषि अमोनिया उत्सर्जन से निकलने वाले खतरनाक कण स्वास्थ्य को और खराब करते हैं।
  • आर्थिक लागत: वैश्विक स्तर पर नाइट्रोजन संसाधन के नुकसान की वार्षिक लागत 200 बिलियन डॉलर आँकी गई है।

नाइट्रोजन प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए अंतरराष्ट्रीय प्रयास

  • कोलंबो घोषणा: वर्ष 2030 तक नाइट्रोजन के उत्सर्जन को आधा करने के उद्देश्य से एक वैश्विक पहल।
    • अनुसंधान और संधारणीय प्रथाओं में निवेश को प्रोत्साहित करता है।
  • संयुक्त राष्ट्र रूपरेखा: सतत विकास लक्ष्यों (SDG) में नाइट्रोजन प्रबंधन का एकीकरण।
    • नाइट्रोजन से संबंधित चुनौतियों का समाधान करने वाले बहुपक्षीय पर्यावरण समझौते।
  • वैज्ञानिक सहयोग: UNEP नाइट्रोजन स्रोतों और शमन रणनीतियों पर अनुसंधान का समर्थन करता है।

नाइट्रोजन प्रदूषण से निपटने के लिए आगे की राह

  • संधारणीय कृषि को बढ़ावा देना: नाइट्रोजन की हानि को कम करने और NUE को बढ़ाने के लिए जैविक उर्वरकों, जैविक नाइट्रोजन निर्धारण और कृषि उपयोग को प्रोत्साहित करना।
  • प्रभावी नीतिगत ढाँचे अपनाना: नाइट्रोजन के उपयोग को विनियमित करने के लिए क्षेत्र-विशिष्ट नीतियाँ विकसित करना, जिसमें परिपत्र जैव-अर्थव्यवस्था दृष्टिकोण और संधारणीय पशुधन वितरण पर जोर दिया जाए।
  • उद्योग प्रथाओं को बढ़ाना: उर्वरक उत्पादन के दौरान ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करना और अपशिष्ट को कम करने के लिए भंडारण, परिवहन और अनुप्रयोग प्रक्रियाओं में सुधार करना।
  • जागरूकता और प्रशिक्षण बढ़ाना: पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने के लिए किसानों को कुशल नाइट्रोजन उपयोग, खाद प्रबंधन और फसल चक्रण रणनीतियों के बारे में शिक्षित करना।
  • वैश्विक प्रतिबद्धताएँ: नाइट्रोजन उत्सर्जन को कम करने और जैव विविधता लक्ष्यों को पूरा करने के लिए पेरिस समझौते और कोलंबो घोषणा जैसे वैश्विक ढाँचों के साथ राष्ट्रीय लक्ष्यों को संरेखित करना।

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