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कोडाइकनाल सौर वेधशाला

Lokesh Pal January 28, 2025 04:02 44 0

संदर्भ

भारत एवं विदेश से 200 से अधिक सौर भौतिक विज्ञानी ‘सूर्य, अंतरिक्ष मौसम एवं सौर-तारकीय कनेक्शन’ पर एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के लिए बंगलूरू में एकत्र हुए। 

संबंधित तथ्य

  • भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान (IIA) द्वारा आयोजित यह कार्यक्रम कोडाइकनाल सौर वेधशाला (Kodaikanal Solar Observatory- KSO) की 125वीं वर्षगाँठ का प्रतीक है, जो सौर भौतिकी अनुसंधान को आगे बढ़ाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका का जश्न मना रहा है।

सौर वेधशाला के बारे में

  • सौर वेधशाला सूर्य के अवलोकन एवं अध्ययन के लिए समर्पित एक सुविधा है। उदाहरणों में अमेरिका में राष्ट्रीय सौर वेधशाला तथा भारत में कोडईकनाल सौर वेधशाला शामिल हैं।

सूर्य का अध्ययन करना महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि

  • सौर गतिविधियाँ पृथ्वी पर प्रभाव डालती है: सौर तूफान एवं ज्वालाएँ उपग्रहों, विद्युत ग्रिडों एवं संचार प्रणालियों को बाधित कर सकती हैं।
  • अंतरिक्ष मौसम की भविष्यवाणी: सौर वेधशालाएँ अंतरिक्ष मौसम की घटनाओं की भविष्यवाणी करने में मदद करती हैं, जिससे शमन उपायों की अनुमति मिलती है।
  • मौलिक भौतिकी को समझना: सूर्य का अध्ययन परमाणु संलयन एवं चुंबकीय क्षेत्र जैसी मूलभूत प्रक्रियाओं में अंतर्दृष्टि प्रदान करता है।

भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान

  • मुख्यालय: बंगलूरू
  • स्थापना: वर्ष 1971
  • स्वायत्तता: भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (DST) द्वारा पूर्ण रूप से वित्तपोषित।
  • फोकस क्षेत्र: खगोल विज्ञान, खगोल भौतिकी एवं संबंधित क्षेत्रों में अनुसंधान।

कोडाइकनाल सौर वेधशाला

  • स्वामित्व एवं संचालन: भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान (IIA) द्वारा प्रबंधित।
  • स्थापना: वर्ष 1899
  • स्थान: तमिलनाडु के पलानी हिल्स में स्थित, अपनी अनुकूल वायुमंडलीय परिस्थितियों के लिए चुना गया।
  • उत्पत्ति: इस साक्ष्य के आधार पर कि सौर गतिविधियाँ भारत में मौसमी वर्षा वितरण से जुड़ी हुई हैं, ब्रिटिश राज में विशेष रूप से गठित अकाल आयोग ने सिफारिश की थी कि भारत सरकार नियमित रूप से सौर अवलोकन करे।
  • इस प्रकार एक भारतीय सौर वेधशाला के विचार की उत्पत्ति हुई, जिसका उद्देश्य ‘सूर्य में होने वाले परिवर्तनों का व्यवस्थित परीक्षण और अध्ययन करना तथा भारतीय मौसम विज्ञान की व्यापक विशेषताओं के साथ उनके सह-संबंधों का अध्ययन करना था।’
  • नींव: वर्ष 1895 में मद्रास के तत्कालीन गवर्नर लॉर्ड वेनलॉक द्वारा रखी गई।
  • उद्देश्य: वर्ष 1875-1877 के ग्रेट ड्राउट (Great Drought) से प्रेरित होकर, सौर गतिविधियों एवं मानसून के बीच संबंधों का अध्ययन करने के लिए स्थापित किया गया।
  • महत्त्वपूर्ण योगदान
    • एवरशेड प्रभाव: वर्ष 1909 में खोजा गया, जो ‘सनस्पॉट’ से गैस के ‘रेडियल’ बहिर्वाह को दर्शाता है।
    • टॉवर टनल टेलीस्कोप: सूर्य का निरीक्षण करने के लिए 3-मिरर कोलोस्टेट प्रणाली का उपयोग करता है।
    • KSO ने सनस्पॉट, सोलर फ्लेयर्स एवं कोरोनल मास इजेक्शन जैसी सौर घटनाओं का अध्ययन करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 
    • सौर डेटा का भंडार: 125 वर्ष प्राचीन KSO में बुनियादी फोटोग्राफिक प्लेटों या फिल्मों पर दर्ज सौर डेटा से 10 टेराबाइट्स के 1.48 लाख डिजिटाइज्ड सौर चित्र शामिल हैं।
      • इनमें 33,500 श्वेत-प्रकाश छवियाँ (सूर्य के धब्बे दिखाती हैं) और 20वीं सदी की शुरुआत से प्रत्येक दिन रिकॉर्ड की गई सूर्य की हजारों अन्य छवियाँ शामिल हैं।
      • KSO एकमात्र वेधशाला है, जो इतनी लंबी अवधि के लिए 75 प्रतिशत से अधिक कवरेज के साथ उच्च-रिजॉल्यूशन वाली डिजिटल छवियाँ प्रदान करती है।

भारत में अन्य प्रमुख अंतरिक्ष वेधशालाएँ

  • मद्रास वेधशाला (चेन्नई, 1792): इस क्षेत्र की पहली वेधशाला, बाद में वर्ष 1899 में KSO में विलय कर दी गई।
    • वर्ष 1812-1825 तक सूर्य, चंद्रमा, सितारों एवं ग्रहों पर खगोलीय डेटा रिकॉर्ड किया गया।
  • भारतीय खगोलीय वेधशाला (हानले, लद्दाख): IIA द्वारा संचालित प्रमुख वेधशाला, लद्दाख में स्थित है।
  • माउंट आबू इन्फ्रारेड वेधशाला (राजस्थान): गुरुशिखर में स्थित, भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला (PRL) द्वारा संचालित।
    • अवरक्त खगोल विज्ञान पर ध्यान केंद्रित करता है।
  • विशाल मेट्रोवेव रेडियो टेलीस्कोप (पुणे): ‘नेशनल सेंटर फॉर रेडियो एस्ट्रोफिजिक्स’ (NCRA) द्वारा प्रबंधित।
    • इसमें 30 पूरी तरह से संचलन योग्य परवलयिक रेडियो दूरबीनें हैं।

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