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लाउडस्पीकर का उपयोग ‘धर्म का अनिवार्य हिस्सा’ नहीं

Lokesh Pal January 29, 2025 02:56 36 0

संदर्भ

हाल ही में बॉम्बे उच्च न्यायालय ने महाराष्ट्र सरकार को निर्देश दिया कि वह लाउडस्पीकर, पब्लिक एड्रेस सिस्टम (PAS) या किसी भी अन्य ध्वनि-उत्सर्जक गैजेट में डेसिबल के स्तर को नियंत्रित करने के लिए एक अंतर्निहित तंत्र का निर्माण करे, जिसका उपयोग पूजा स्थलों या संस्थानों में किया जाता है, चाहे वे किसी भी धर्म के हों।

बॉम्बे उच्च न्यायालय का निर्णय

  • बॉम्बे उच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि लाउडस्पीकर का उपयोग किसी भी धर्म का अनिवार्य हिस्सा नहीं है।
  • महाराष्ट्र सरकार और मुंबई पुलिस को ध्वनि प्रदूषण नियमों को सख्ती से लागू करने का निर्देश दिया।
  • लाउडस्पीकर और पब्लिक एड्रेस सिस्टम (PAS) के लिए डेसिबल सीमाओं का अंशांकन और स्वतः निर्धारण का सुझाव दिया गया।

धार्मिक आयोजनों हेतु अनिवार्यता परीक्षण

  • सिद्धांत की उत्पत्ति: शिरूर मठ मामले (1954) में सर्वोच्च न्यायालय की 7 न्यायाधीशों की पीठ द्वारा प्रस्तुत किया गया।
    • न्यायालय ने माना कि अनुच्छेद-25 (धर्म की स्वतंत्रता) के तहत ‘धर्म’ शब्द से जुड़े सभी अनुष्ठान एवं प्रथाएँ शामिल हैं।
    • न्यायपालिका ने किसी धर्म की आवश्यक और अनावश्यक प्रथाओं को निर्धारित करने की जिम्मेदारी ली।
  • अनिवार्यता परीक्षण की मुख्य विशेषताएँ
    • उद्देश्य: केवल उन धार्मिक प्रथाओं की रक्षा करना, जो किसी धर्म के लिए आवश्यक एवं अभिन्न हैं।
    • न्यायिक भूमिका: न्यायालय यह जाँच करते हैं कि क्या कोई प्रथा है:
      • धार्मिक ग्रंथों में निहित है।
      • ऐतिहासिक रूप से धर्म का अभिन्न अंग है।
      • अधिकांश अनुयायियों द्वारा इसका पालन किया जाता है।
  • उदाहरण: सबरीमाला मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने जाँच की कि क्या मासिक धर्म की आयु वाली महिलाओं को प्रवेश से बाहर रखना हिंदू धर्म की एक अनिवार्य प्रथा है।
    • अयोध्या मामले (1994) में, न्यायालय ने निर्णय दिया कि मस्जिद इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है, क्योंकि नमाज कहीं भी पढ़ी जा सकती है।

न्यायिक टिप्पणियाँ

  • स्वास्थ्य संबंधी खतरे: ध्वनि प्रदूषण एक बड़ा स्वास्थ्य खतरा है, जो मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है।
  • मौलिक अधिकार बनाम सार्वजनिक हित: न्यायालयों ने धार्मिक स्वतंत्रता (अनुच्छेद-25) को सार्वजनिक स्वास्थ्य एवं व्यवस्था के साथ संतुलित किया है।
    • लाउडस्पीकर का उपयोग एक आवश्यक धार्मिक प्रथा नहीं है।
  • प्रवर्तन संबंधी चुनौतियाँ पुलिस एवं अधिकारी प्रायः राजनीतिक या सांप्रदायिक दबाव के कारण ध्वनि प्रदूषण नियमों को लागू करने में विफल रहते हैं।
    • न्यायालयों ने सख्त कार्यान्वयन और जवाबदेही की आवश्यकता पर बल दिया है।

मुख्य निर्देश

  • पूजा स्थलों और संस्थानों में डेसिबल स्तर को नियंत्रित करने के लिए अंतर्निहित तंत्र विकसित करना।
    • इन स्पीकरों में डेसिबल सीमाओं का अंशांकन या स्वतः निर्धारण (Calibration or Auto-Fixation) करना।
  • पुलिस डेसिबल मापने वाले ऐप का उपयोग करेगी और ध्वनि सीमा (Noise Limit) का उल्लंघन करने वाले उपकरणों को जब्त करेगी।
  • शिकायतकर्ताओं के लिए सुरक्षा: प्रतिशोध से बचने के लिए पहचान का खुलासा नहीं किया जाना चाहिए।
  • चार-चरणीय श्रेणीबद्ध दंड प्रणाली
    • पहला उल्लंघन: पुलिस, अपराधी को चेतावनी जारी करेगी।
    • दोहरा उल्लंघन: संबंधित ट्रस्ट या संगठनों पर जुर्माना आरोपित करेगी।
      • आगे उल्लंघन करने पर सख्त कार्रवाई की चेतावनी जारी करेगी।
    • लगातार उल्लंघन: पुलिस लाउडस्पीकर या ध्वनि-उत्सर्जक उपकरण जब्त करेगी।
    • लगातार गैर-अनुपालन: लाउडस्पीकर के उपयोग के लिए लाइसेंस रद्द करेगी।
      • संबंधित कानूनों के तहत अपराधियों के विरुद्ध शिकायत दर्ज करेगी।

वर्ष 2016 बॉम्बे उच्च न्यायालय का निर्णय 

  • संविधान के अनुच्छेद-25 (धर्म की स्वतंत्रता) और अनुच्छेद-19(1)(A) (भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) के तहत लाउडस्पीकर के उपयोग को मौलिक अधिकार के रूप में नहीं माना जा सकता है।
  • ध्वनि प्रदूषण (विनियमन और नियंत्रण) नियम, 2000 के सख्त कार्यान्वयन के लिए निर्देश।
  • शांत क्षेत्रों में लाउडस्पीकर का उपयोग प्रतिबंधित।

सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय

  • जुलाई 2005: सार्वजनिक स्थानों पर रात 10 बजे से सुबह 6 बजे के बीच लाउडस्पीकर और संगीत प्रणालियों के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया गया (आपात स्थिति को छोड़कर)।
    • ध्वनि प्रदूषण से होने वाले स्वास्थ्य संबंधी खतरों का हवाला दिया गया।
  • अक्टूबर 2005: त्योहारों के दौरान वर्ष में 15 दिन के लिए ध्वनि मानदंडों में छूट दी गई, तथा मध्य रात्रि तक लाउडस्पीकर बजाने की अनुमति दी गई।
    • राज्य ध्वनि मानदंडों में ढील देने का अधिकार अन्य प्राधिकारियों को नहीं सौंप सकते है।

ध्वनि प्रदूषण के बारे में

  • केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के अनुसार, ध्वनि प्रदूषण को ‘अवांछित ध्वनि’ के रूप में परिभाषित किया गया है।
  • इसे वायु (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1981 के तहत वायु प्रदूषक माना जाता है।
  • इसे पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत ‘ध्वनि प्रदूषण (विनियमन एवं नियंत्रण) नियम, 2000’ द्वारा विनियमित किया जाता है।
  • ध्वनि प्रदूषण मानदंड
    • आवासीय क्षेत्र
      • दिन के समय (सुबह 6 बजे से रात 10 बजे तक): अधिकतम 55 डेसिबल।
      • रात के समय (रात 10 बजे से सुबह 6 बजे तक): अधिकतम 45 डेसिबल।
    • शांत क्षेत्र: अस्पतालों, स्कूलों और न्यायालयों के पास के क्षेत्र जहाँ लाउडस्पीकरों का उपयोग प्रतिबंधित है।

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