हाल ही में केंद्रीय बजट 2025-26 में ज्ञान भारतम मिशन (Gyan Bharatam Mission) की शुरुआत की गई।
ज्ञान भारतम मिशन के बारे में
उद्देश्य: भारत की विशाल पांडुलिपि विरासत का सर्वेक्षण, दस्तावेजीकरण और संरक्षण करना।
फोकस क्षेत्र: यह मिशन मुख्य रूप से शैक्षणिक संस्थानों, संग्रहालयों, पुस्तकालयों और निजी संग्रहकर्ताओं द्वारा रखी गई पांडुलिपियों को लक्षित करता है ताकि उनका व्यवस्थित संरक्षण सुनिश्चित किया जा सके।
उद्देश्य: एक करोड़ से अधिक पांडुलिपियों को कवर करना, ताकि भविष्य की पीढ़ियों के लिए उनके दीर्घकालिक संरक्षण और पहुँच सुनिश्चित की जा सके।
इसके अतिरिक्त, इसका उद्देश्य वैश्विक मंच पर भारत की समृद्ध साहित्यिक और बौद्धिक परंपराओं को बढ़ावा देना है।
NMM का पुनरुद्धार: इस पहल के माध्यम से, सरकार राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन (National Manuscripts Mission-NMM) को पुनर्सक्रिय करने का महत्त्वपूर्ण प्रयास कर रही है, जिसे वर्ष 2003 में लॉन्च किया गया था, लेकिन यह काफी सीमा तक निष्क्रिय रहा था।
बजट आवंटन: ज्ञान भारतम मिशन को समायोजित करने के लिए केंद्रीय बजट 2025-26 में राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन (NMM) के लिए वित्तीय आवंटन में ₹3.5 करोड़ से ₹60 करोड़ तक की उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है।
कार्यान्वयन मंत्रालय: केंद्रीयसंस्कृति मंत्रालय इस पहल के कार्यान्वयन और निष्पादन की देखरेख के लिए जिम्मेदार है।
पांडुलिपि क्या नहीं है?
लिथोग्राफ, जिसमें पत्थर पर चित्र उत्कीर्ण करना और फिर छवि को कागज पर स्थानांतरित करना शामिल है, साथ ही मुद्रित संस्करण भी पांडुलिपियों के रूप में योग्य नहीं हैं।
पांडुलिपियाँ क्या हैं?
परिभाषा: पांडुलिपियाँ हस्तलिखित रचनाओं को संदर्भित करती हैं, जिन्हें कागज, छाल और ताड़ के पत्तों जैसी सामग्रियों पर अंकित किया जा सकता है।
वर्गीकरण मानदंड: पांडुलिपि के रूप में अर्हता प्राप्त करने के लिए, एक दस्तावेज़ कम-से-कम 75 वर्ष प्राचीन होना चाहिए और उसमें वैज्ञानिक, ऐतिहासिक या सौंदर्य संबंधी मूल्य होना चाहिए।
उदाहरण: सबसे प्रसिद्ध भारतीय पांडुलिपियों में से एक बख्शाली पांडुलिपि (Bakhshali Manuscript) है, जो तीसरी या चौथी शताब्दी की है। बर्च की छाल पर लिखा गया यह प्राचीन गणितीय पाठ शून्य के उपयोग का सबसे पहला दर्ज उदाहरण माना जाता है।
विषय: पांडुलिपियों में इतिहास, धर्म, साहित्य, ज्योतिष और कृषि पद्धतियों सहित कई तरह के विषय शामिल हो सकते हैं।
भारत में अनुमानित संख्या: भारत में 80 से अधिक प्राचीन लिपियों में लिखी गई अनुमानित 10 मिलियन पांडुलिपियाँ हैं।
प्रयुक्त लिपियाँ: कुछ प्रमुख प्राचीन लिपियों में ब्राह्मी, कुषाण, गौड़ी, लेप्चा, मैथिली, ग्रंथ और शारदा शामिल हैं।
भाषा वितरण: इनमें से लगभग 75% पांडुलिपियाँ संस्कृत में लिखी गई हैं, जबकि 25% विभिन्न क्षेत्रीय भाषाओं में हैं।
भारत में पांडुलिपि संरक्षण हेतु अन्य पहल
एशियाटिक सोसायटी ऑफ बंगाल (1784): 15 जनवरी, 1784 को सर विलियम जोन्स द्वारा स्थापित यह संस्था पांडुलिपि संरक्षण में अग्रणी है। यह प्राचीन पांडुलिपियों को उनके संरक्षण को सुनिश्चित करने के लिए सक्रिय रूप से डिजिटल बनाती है।
भारत का राष्ट्रीय पुस्तकालय, कोलकाता: भारत के सबसे बड़े पुस्तकालय के रूप में, इसमें लगभग 3,600 दुर्लभ और ऐतिहासिक रूप से महत्त्वपूर्ण पांडुलिपियाँ हैं, जो पांडुलिपि संरक्षण में प्रमुख योगदान देती हैं।
राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन (NMM) (2003): पर्यटन और संस्कृति मंत्रालय द्वारा शुरू की गई इस पहल का उद्देश्य भारत की विशाल पांडुलिपि विरासत की पहचान करना, उसका दस्तावेजीकरण करना और उसका संरक्षण करना है। यह डिजिटलीकरण और संरक्षण प्रयासों के लिए विभिन्न संस्थानों के साथ सहयोग करता है।
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