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RBI की रेपो दर में कटौती

Lokesh Pal February 08, 2025 03:26 26 0

संदर्भ

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की मौद्रिक नीति समिति (MPC) ने रेपो रेट में 25 आधार अंक (bps) की कटौती की घोषणा की है, जिससे यह घटकर 6.25% हो गई है।

संबंधित तथ्य 

  • वर्ष 2024- वर्ष 2025 के लिए GDP वृद्धि 6.4% रहने का अनुमान है, जो चार वर्षों में सबसे कम है।
  • RBI ने अगले वित्त वर्ष (2025-26) के लिए GDP वृद्धि 6.7% रहने का अनुमान लगाया है।
  • सरकार के आर्थिक सर्वेक्षण में वर्ष 2025- 2026 के लिए 6.3-6.8% के बीच वृद्धि का अनुमान लगाया गया है, जिसे बाह्य खाते, राजकोषीय समेकन और स्थिर निजी खपत का समर्थन प्राप्त है।

रेपो दर में कटौती

  • रेपो दर में यह कटौती पाँच वर्ष में पहली बार की (पिछली कटौती मई 2020 में की गई थी) गई है।
  • इससे पहले रेपो दर 6.5% थी।
  • यह निर्णय छह सदस्यीय मौद्रिक नीति समिति (MPC) द्वारा सर्वसम्मति से लिया गया।
  • दर में कटौती का उद्देश्य उधार को सस्ता करके, खर्च और निवेश को प्रोत्साहित करके आर्थिक गतिविधि को बढ़ावा देना है।
  • यह केंद्र द्वारा व्यक्तिगत आयकर में कटौती के तुरंत बाद किया गया है, जो आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए समन्वित प्रयासों को दर्शाता है।

निर्णय का संभावित प्रभाव

  • रेपो दर में कमी से बाहरी बेंचमार्क ऋण दरें (External Benchmark Lending Rates-EBLR) कम हो जाएँगी, जिससे उधारकर्ताओं के लिए EMI कम हो जाएगी।
  • फंड आधारित ऋण दर (Marginal Cost of Fund-Based Lending Rate-MCLR) की सीमांत लागत से जुड़े ऋणों पर ब्याज दरें भी कम हो सकती हैं।

मौद्रिक नीति समिति (MPC)

  • MPC भारतीय रिजर्व बैंक की छह सदस्यीय समिति है, जो देश की मौद्रिक नीति, मुख्य रूप से रेपो दर निर्धारित करने के लिए जिम्मेदार है।
  • कानूनी ढाँचा: MPC के लिए एक वैधानिक और संस्थागत ढाँचा प्रदान करने के लिए RBI अधिनियम, 1934 को वित्त अधिनियम, 2016 द्वारा संशोधित किया गया था।
  • मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण: MPC का लक्ष्य उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) मुद्रास्फीति को 4% पर रखना है, जिसमें 2% से 6% की सहनशीलता बैंड है।
  • संरचना: इसमें अध्यक्ष सहित 6 सदस्य हैं।
    • RBI के 3 सदस्य।
    • सरकार द्वारा मनोनीत 3 बाहरी सदस्य।
    • RBI के गवर्नर MPC के पदेन अध्यक्ष के रूप में कार्य करते हैं।
  • बैठक की आवृत्ति: MPC को वर्ष में कम-से-कम चार बार परिचर्चा करना आवश्यक है।
  • कोरम: एक वैध बैठक के लिए कम-से-कम चार सदस्यों की आवश्यकता होती है।
  • मतदान: प्रत्येक सदस्य के पास एक वोट होता है।
    • बराबरी की स्थिति में, गवर्नर के पास दूसरा या निर्णायक वोट होता है।
  • मौद्रिक नीति रिपोर्ट: RBI प्रत्येक छह महीने में एक मौद्रिक नीति रिपोर्ट जारी करता है, जिसमें मुद्रास्फीति की उत्पत्ति की व्याख्या की जाती है तथा अगले 6-8 महीनों के लिए मुद्रास्फीति अनुमान प्रदान किए जाते हैं।

रेपो दर 

  • रेपो दर (पुनर्खरीद समझौता दर) वह ब्याज दर है, जिस पर वाणिज्यिक बैंक सरकारी प्रतिभूतियों को संपार्श्विक के रूप में गिरवी रखकर RBI से धन उधार लेते हैं। 
  • यह अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति तथा तरलता को नियंत्रित करने का एक साधन है।

रेपो दर में परिवर्तन का प्रभाव

  • रेपो दर में वृद्धि से उधार लेने की लागत बढ़ जाती है, जिससे ऋण महंगे हो जाते हैं, मुद्रा आपूर्ति कम हो जाती है और मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने में सहायता मिलती है।
  • इसके विपरीत, रेपो दर में कमी से उधार लेने की लागत कम हो जाती है, जिससे ऋण सस्ते हो जाते हैं, मुद्रा आपूर्ति बढ़ जाती है और निवेश और आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलता है।
  • उदाहरण: यदि RBI रेपो दर को 6.5% से घटाकर 6.25% कर देता है, तो बैंक कम ब्याज दर पर पैसा उधार ले सकते हैं, जिससे व्यवसायों और उपभोक्ताओं के लिए ऋण सस्ते हो जाते हैं।

रिवर्स रेपो दर

  • रिवर्स रेपो दर वह दर है, जिस पर RBI वाणिज्यिक बैंकों को उनके अधिशेष धन के लिए भुगतान करता है। यह हमेशा रेपो दर से कम होती है। 
  • इसका उपयोग बैंकिंग प्रणाली से अतिरिक्त तरलता को अवशोषित करने के लिए किया जाता है, जिससे मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने में मदद मिलती है।

रिवर्स रेपो दर में परिवर्तन का प्रभाव

  • रिवर्स रेपो दर में वृद्धि बैंकों को RBI के पास अधिक धन जमा करने के लिए प्रोत्साहित करती है, जिससे उधार देने के लिए उपलब्ध धन कम हो जाता है और मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने में मदद मिलती है।
  • इसके विपरीत, रिवर्स रेपो दर में कमी बैंकों को RBI के पास जमा करने से हतोत्साहित करती है, जिससे उधार देने के लिए उपलब्ध धन बढ़ जाता है और निवेश और आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा मिलता है।
  • उदाहरण: यदि RBI रिवर्स रेपो दर बढ़ाता है, तो बैंक उधार देने के बजाय RBI के पास अपना धन जमा करना पसंद करते हैं, जिससे अर्थव्यवस्था में तरलता कम हो जाती है।

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