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ब्रुसेलोसिस

Lokesh Pal February 08, 2025 03:31 23 0

संदर्भ 

हाल ही में कोट्टक्कल, मलप्पुरम (केरल) की एक आठ वर्षीय लड़की की ब्रुसेलोसिस नामक संक्रामक रोग से मृत्यु हो गई।

संबंधित तथ्य

  • यह संक्रमण बिना पाश्चुरीकृत दूध के सेवन से संबंधित है। केरल में हालिया वर्षों में इस रोग के कुछ मामले सामने आए हैं।

ब्रुसेलोसिस रोग 

  • ब्रुसेलोसिस, ब्रुसेला प्रजाति के कारण होने वाला एक जीवाणु जनित रोग है, जो मुख्य रूप से मवेशियों, बकरियों, भेड़, सूअर एवं कुत्तों को प्रभावित करता है।
  • जूनोटिक रोग: ब्रुसेलोसिस जानवरों द्वारा प्रसारित सबसे व्यापक जूनोटिक रोगों में से एक है।
    • पशु उद्योगों एवं शहरीकरण का विस्तार, तथा पशुपालन एवं खाद्य प्रबंधन में स्वच्छ उपायों की कमी, आंशिक रूप से ब्रुसेलोसिस के सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए खतरा बने रहने का कारण है।
  • संचरण: मनुष्य इस रोग से निम्नलिखित  माध्यम से ग्रसित होता है:
    • संक्रमित जानवरों से प्रत्यक्ष संपर्क।
    • दूषित पशु उत्पादों, विशेष रूप से बिना पाश्चुरीकृत दूध एवं पनीर का सेवन करना।
    • वायुजनित जीवाणुओं के  अंतःश्वसन से।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, मानव-से-मानव संचरण अत्यंत दुर्लभ है।
  • ब्रुसेलोसिस के लक्षण: बुखार, कमजोरी एवं थकान, वजन में कमी तथा सामान्य अस्वस्थता।
  • अवधि: यह एक सप्ताह से दो महीने तक होती है, अधिकांश मामलों में लक्षण दो से चार सप्ताह के भीतर दिखाई देते हैं।
  • उपचार: ब्रुसेलोसिस का उपचार डॉक्सीसाइक्लिन एवं स्ट्रेप्टोमाइसिन सहित एंटीबायोटिक दवाओं के संयोजन से किया जाता है।

ब्रुसेला (बी. एबॉर्टस) 

  • संक्रमण एवं प्रसार: ब्रुसेला रेटिकुलोएंडोथेलियल प्रणाली को संक्रमित करता है, जहाँ यह लंबे समय तक जीवित रहता है।
  • प्रजनन एवं स्तनग्रंथि  संक्रमण: मवेशियों की गर्भावस्था के दौरान, यह ट्रोफोब्लास्ट एवं स्तन ग्रंथियों में संक्रमण करता है, जिससे व्यापक प्रतिकृतिकरण (Replication) होता  है।
  • संचरण: गर्भपात, दुग्ध, प्लेसेंटा एवं भ्रूण के माध्यम से प्रसार का कारण बनता है, जो संक्रमण का प्राथमिक स्रोत बन जाता है।
  • पर्यावरणीय अस्तित्व: कार्बनिक पदार्थों में हफ्तों तक जीवित रहता है लेकिन सूर्यप्रकाश  में नष्ट हो जाता है।
  • रोकथाम: पाश्चुरीकरण या किण्वन बैक्टीरिया को समाप्त करता है।
  • महामारी विज्ञान (Epidemiology): जंगली जानवरों से संक्रमण फैलता है, मनुष्य और घोड़े इसके वाहक नहीं हैं।

निवारक उपाय 

  • पशुधन का टीकाकरण: मवेशियों, बकरियों एवं भेड़ों का टीकाकरण संचरण को नियंत्रित करने में सहायता कर सकता है।
  • दूध का पाश्चुरीकरण: यह सुनिश्चित करना कि उपभोग से पहले दूध एवं डेयरी उत्पादों का पाश्चुरीकरण किया जाए, जिससे संक्रमण से बचा जा सके।
  • जन जागरूकता अभियान: लोगों को बिना पाश्चुरीकृत दूध के खतरों के बारे में शिक्षित करना एवं सुरक्षित डेयरी प्रथाओं को बढ़ावा देना।
  • नियामक नीतियाँ: बिना पाश्चुरीकृत दूध एवं डेयरी उत्पादों की बिक्री तथा वितरण पर कठोर नियम लागू करना।

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