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विश्व व्यापार संगठन की प्रासंगिकता : चुनौतियाँ एवं सुधार

Lokesh Pal February 11, 2025 05:15 10 0

सन्दर्भ:  

15 अप्रैल 2025 को मारकेश समझौते पर हस्ताक्षर की 30वीं वर्षगांठ मनाई जाएगी। विश्व व्यापार संगठन की स्थापना करने वाले मारकेश समझौते पर 15 अप्रैल 1994 को हस्ताक्षर किए गए थे, जिसके परिणामस्वरूप 1 जनवरी 1995 को विश्व व्यापार संगठन का जन्म हुआ।

  • उत्पत्ति: विश्व व्यापार संगठन (WTO), जो 1995 में टैरिफ और व्यापार पर सामान्य समझौते (GATT) के उत्तराधिकारी के रूप में अस्तित्व में आया था। इस संगठन का मुख्य उद्देश्य मुक्त और निष्पक्ष वैश्विक व्यापार को बढ़ावा देना है। इस मिशन के माध्यम से यह सुनिश्चित करना था कि बाधाओं को कम करके और बातचीत के लिए एक मंच प्रदान करके व्यापार सुचारू रूप से, पूर्वानुमानित और यथासंभव स्वतंत्र रूप से प्रवाहित हो।

विश्व व्यापार संगठन की विश्वसनीयता में गिरावट:

  • प्रारंभ में, वैश्विक व्यापार की आधारशिला रहे विश्व व्यापार संगठन को अब गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जिनमें बढ़ता आर्थिक राष्ट्रवाद, व्यापार युद्ध और संस्थागत निष्क्रियता शामिल है।
  • विवाद निपटान तंत्र की निष्क्रियता : विश्व व्यापार संगठन का विवाद निपटान तंत्र, जिसे कभी इसका मुकुट रत्न कहा जाता था, 2019 से निष्क्रिय हो गया है। 
    • कारण: WTO का विवाद निपटान तंत्र, जो कभी इसका मुकुट रत्न था, 2019 से अमेरिका द्वारा न्यायिक नियुक्तियों को अवरुद्ध करने के कारण निष्क्रिय हो गया है। इसने व्यापार विवादों को हल करने और नियमों को प्रभावी ढंग से लागू करने की WTO की क्षमता को कमजोर कर दिया है।
  • अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध: विश्व व्यापार संगठन अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध को संबोधित करने में विफल रहा, क्योंकि दोनों देशों ने इसके ढांचे को दरकिनार कर दिया, एकतरफा टैरिफ और प्रतिशोधात्मक उपाय लागू किए, जिससे विश्व व्यापार संगठन की घटती प्रासंगिकता और उजागर हुई।
  • आर्थिक राष्ट्रवाद: संरक्षणवाद का उदय इसका इस प्रमुख कारण है। उदाहरण के लिए, अमेरिका की “अमेरिका फर्स्ट” और भारत की “आत्मनिर्भर भारत” जैसी नीतियां।  ये नीतियाँ यह दर्शाती हैं कि देश बहुपक्षीय समाधानों पर अपने हितों को प्राथमिकता दे रहे हैं।
  • बौद्धिक संपदा अधिकार: विश्व व्यापार संगठन के भीतर विवाद का एक प्रमुख मुद्दा बौद्धिक संपदा अधिकारों (आईपीआर) में, विशेष रूप से बौद्धिक संपदा अधिकारों के व्यापार-संबंधित पहलुओं (ट्रिप्स) समझौते के तहत हेरफेर करने का रहा है।
    • प्रतिकूल: विकसित राष्ट्रों, विशेष रूप से अमेरिका और यूरोपीय संघ ने, बौद्धिक संपदा अधिकार कानूनों का उपयोग अपने फार्मास्यूटिकल और प्रौद्योगिकी उद्योगों को लाभ पहुंचाने के लिए किया है, जो अक्सर विकासशील देशों के लिए नुकसानदायक होता है।
    • महामारी की अवधि : उदाहरण के लिए, COVID-19 महामारी के दौरान, WTO को चिकित्सा संबंधी विभिन्न टीकों पर पेटेंट सुरक्षा को माफ करने के आह्वान पर धीमी प्रतिक्रिया के लिए व्यापक आलोचना का सामना करना पड़ा।
  • क्षेत्रीय व्यापार समझौतों का उदय: विश्व व्यापार संगठन में ठहराव के साथ-साथ क्षेत्रीय व्यापार समझौतों (आरटीए) जैसे ट्रांस-पैसिफिक पार्टनरशिप के लिए व्यापक और प्रगतिशील समझौता (सीपीटीपीपी) और क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (आरसीईपी) की प्रमुखता भी बढ़ रही है।
    • अधिकार को दरकिनार करना: ये समझौते WTO ढांचे को दरकिनार करते हैं, जिससे देशों को व्यापार उदारीकरण के लिए वैकल्पिक रास्ते मिलते हैं। यह WTO के अधिकार को कमजोर करता है, क्योंकि देशों को बहुपक्षीय प्रणाली के बाहर व्यापार शर्तों पर बातचीत करना अधिक फायदेमंद लगता है।
  • विकासशील देशों की प्रतिबद्धताओं में  उपेक्षा : विकासशील देश, जो कभी आशा करते थे कि विश्व व्यापार संगठन व्यापार असमानताओं का समाधान करेगा, अब उपेक्षित महसूस कर रहे हैं।
    • उनकी चिंताओं को दूर करने के लिए 2001 में शुरू किया गया दोहा विकास एजेंडा अभी भी अधूरा है। आर्थिक विशेषज्ञों का मानना है कि अमीर देश कृषि सब्सिडी देना जारी रखते हैं, जिससे विकासशील देश नुकसान में रहते हैं। 
    • इसके अतिरिक्त, विकसित देशों द्वारा पर्यावरण और श्रम मानकों का उपयोग गरीब अर्थव्यवस्थाओं से निर्यात को प्रतिबंधित करने के लिए गैर-टैरिफ बाधाओं के रूप में किया गया है। अपने वादों को पूरा करने में WTO की विफलता ने उभरते देशों के बीच असंतोष को बढ़ावा दिया है और विश्वास को खत्म किया है।

आगे की राह:

  • अपीलीय निकाय को बहाल करना : विश्व व्यापार संगठन के विवाद समाधान तंत्र को बहाल करने के लिए अपीलीय निकाय को पुनर्जीवित करना महत्वपूर्ण है।
  • व्यापार नियमों को प्रभावी ढंग से लागू करना : वैश्विक व्यापार नियमों के प्रवर्तन को मजबूत करने से विश्वास और अधिकार पुनः प्राप्त करने में मदद मिलेगी।
  • समान लाभ सुनिश्चित करना : विकसित और विकासशील दोनों देशों को वैश्विक व्यापार नीतियों से समान रूप से लाभ मिलना चाहिए।
  • आईपीआर के दुरुपयोग को संबोधित करना : निष्पक्ष व्यापार के लिए बौद्धिक संपदा अधिकारों के हेरफेर से निपटना आवश्यक है।
  • निष्पक्ष कृषि नीतियां सुनिश्चित करना : विकासशील देशों के लिए समान अवसर उपलब्ध कराने हेतु कृषि नीतियों में सुधार की आवश्यकता है।
  • विकासशील देशों के हितों को प्राथमिकता देना: विकासशील देशों की आवश्यकताओं और प्राथमिकताओं को गंभीरता से रेखांकित करना, विश्व व्यापार संगठन की प्रभावशीलता के लिए आवश्यक है।

निष्कर्ष:

अतः वर्तमान चुनौतियों के मद्देनजर तत्काल सुधार नहीं किए गए, तो वैश्विक व्यापार प्रणाली शीघ्र ही उस संस्था के पतन का गवाह बन सकती है, जिसे कभी वैश्विक आर्थिक सहयोग के लिए अपरिहार्य माना जाता था।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न: विश्व व्यापार संगठन (WTO) की स्थापना मुक्त और निष्पक्ष व्यापार को सुविधाजनक बनाने के लिए की गई थी। हालाँकि, बढ़ते आर्थिक राष्ट्रवाद और व्यापार युद्धों के कारण इसका प्रभाव लगातार कम होता जा रहा है। वैश्विक व्यापार प्रशासन में WTO की घटती भूमिका में योगदान देने वाले कारकों का आलोचनात्मक विश्लेषण करें। इसकी विश्वसनीयता और प्रभावशीलता को बहाल करने के उपाय सुझाएँ।

(15 अंक, 250 शब्द)

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