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उच्चतम न्यायालय ने राजनीति के अपराधीकरण पर सवाल उठाए

Lokesh Pal February 13, 2025 01:14 65 0

संदर्भ 

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने दोषी ठहराए गए व्यक्तियों के संसद एवं राज्य विधानसभाओं में लौटने पर चिंता जताई है और संभावित हितों के टकराव पर सवाल उठाया है।

सांसदों/विधायकों के विरुद्ध लंबित आपराधिक मामले

  • सांसदों और विधायकों के खिलाफ करीब 5,000 आपराधिक मामले अभी भी लंबित हैं, जबकि उच्चतम न्यायालय ने पहले भी इनके त्वरित निपटारे के निर्देश दिए थे।
  • 42% मौजूदा लोकसभा सदस्यों के खिलाफ आपराधिक मामले लंबित हैं।

मामले की पृष्ठभूमि

  • दोषी व्यक्तियों पर चुनाव लड़ने और राजनीतिक पद धारण करने पर आजीवन प्रतिबंध लगाने की माँग करते हुए एक जनहित याचिका (PIL) दायर की गई।
  • उच्चतम न्यायालय की दो जजों की बेंच इस मामले की सुनवाई कर रही है।
  • मुख्य चुनौती: जनहित याचिका में जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के प्रावधानों को चुनौती दी गई है, जो दोषी राजनेताओं के लिए अयोग्यता की अवधि को उनकी सजा पूरी करने के छह वर्ष बाद तक सीमित करता है।

राजनीति का अपराधीकरण

  • राजनीति का अपराधीकरण चुनावी राजनीति में आपराधिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्तियों की बढ़ती भागीदारी को दर्शाता है।
  • यह तब होता है जब भ्रष्टाचार, हत्या, जबरन वसूली और बलात्कार जैसे गंभीर अपराधों में शामिल राजनेता, कानून निर्माता या उम्मीदवार विधायी निकायों में प्रवेश करते हैं।
  • यह प्रवृत्ति लोकतंत्र को कमजोर करती है, जनता के विश्वास को खत्म करती है और सुशासन को बाधित करती है।

राजनीति के अपराधीकरण के कारण

  • राजनेताओं और अपराधियों के बीच गठजोड़: राजनेता अक्सर चुनाव के दौरान अपने संसाधनों और प्रभाव का लाभ उठाने के लिए आपराधिक तत्वों के साथ गठबंधन करते हैं।
  • वोट बैंक की राजनीति: राजनीतिक दल कभी-कभी विशिष्ट समुदायों या क्षेत्रों से वोट हासिल करने के लिए आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों को नामित करते हैं।
  • भ्रष्टाचार एवं काला धन: राजनीतिक प्रणाली में अवैध धन का प्रवाह आपराधिक संबंधों वाले उम्मीदवारों को व्यापक अभियानों को वित्तपोषित करने में सक्षम बनाता है
  • कानून का कमजोर प्रवर्तन और न्यायिक देरी: न्यायिक प्रणाली के भीतर अक्षमता और देरी आपराधिक आरोपों वाले व्यक्तियों को चुनाव लड़ने की अनुमति देती है।
  • अंतर-पार्टी लोकतंत्र की कमी: राजनीतिक दलों के भीतर पारदर्शी और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं की अनुपस्थिति उम्मीदवारों का चयन ईमानदारी के बजाय जीतने की क्षमता के आधार पर करती है।
  • मतदाता व्यवहार जाति और धर्म से प्रभावित होता है: मतदाता कभी-कभी उम्मीदवार के आपराधिक इतिहास की तुलना में जाति या धार्मिक संबद्धता को प्राथमिकता देते हैं, जिससे आपराधिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्ति पहचान की राजनीति के आधार पर चुनाव जीतने में सक्षम हो जाते हैं।

राजनीति के अपराधीकरण के निहितार्थ

  • लोकतांत्रिक मूल्यों का क्षरण: आपराधिक राजनेता चुनावों को प्रभावित करने के लिए धन और बाहुबल का उपयोग करके लोकतांत्रिक प्रक्रिया को कमजोर करते हैं।
    • बिहार और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में मतदाताओं को डराने-धमकाने और चुनावी हिंसा की हालिया रिपोर्टें आई हैं।
  • कानून के शासन का कमजोर होना: आपराधिक राजनेता अक्सर कानून प्रवर्तन एजेंसियों को प्रभावित करते हैं और अपने मामलों की जाँच में देरी करते हैं।
    • लंबी कानूनी लड़ाई के कारण हाई-प्रोफाइल राजनेताओं पर मुकदमा चलाने में देरी होती है।
  • भ्रष्टाचार में वृद्धि: आपराधिक पृष्ठभूमि वाले नेता लोगों की सेवा करने के बजाय निजी लाभ के लिए सार्वजनिक पद का दुरुपयोग करते हैं।
    • 2G स्पेक्ट्रम घोटाला और कोयला आवंटन घोटाला, जिसमें राजनेता और व्यावसायिक संस्थाएँ शामिल हैं।
  • दोषपूर्ण शासन और नीति-निर्माण: आपराधिक राजनेता राष्ट्रीय विकास पर व्यक्तिगत और पार्टी हितों को प्राथमिकता देते हैं।
    • आपराधिक आरोपों का सामना कर रहे सांसदों की मौजूदगी के कारण पुलिस और न्यायिक सुधारों में देरी होती है।
  • कानून एवं व्यवस्था पर प्रभाव: आपराधिक राजनेता आपराधिक नेटवर्क की रक्षा के लिए अपने प्रभाव का उपयोग करते हैं, जिससे संगठित अपराध में वृद्धि होती है।
    • राजनीतिक रूप से अस्थिर क्षेत्रों में जबरन वसूली, भूमि हड़पने और सांप्रदायिक हिंसा में वृद्धि होती है।

राजनीति के अपराधीकरण पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय

  • ‘एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स’ बनाम ‘यूनियन ऑफ इंडिया’ (2002): उच्चतम न्यायालय ने निर्णय दिया कि मतदाताओं को अनुच्छेद 19(1)(A) (सूचना का अधिकार) के तहत उम्मीदवारों की आपराधिक, वित्तीय और शैक्षिक पृष्ठभूमि जानने का मौलिक अधिकार है।
    • इसके कारण फॉर्म 26 की शुरुआत हुई, जिसे उम्मीदवारों को चुनाव से पहले जमा करना होता है।
  • रमेश दलाल बनाम भारत संघ (2005): सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि किसी अपराध के लिए दोषी ठहराए गए और कारावास की सजा पाए मौजूदा सांसद या विधायक को तुरंत पद पर बने रहने के लिए अयोग्य घोषित कर दिया जाता है।
  • पब्लिक इंटरेस्ट फाउंडेशन बनाम भारत संघ (2019): सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि राजनीतिक दलों को अपने उम्मीदवारों के आपराधिक रिकॉर्ड को अपनी आधिकारिक वेबसाइटों, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म और समाचार पत्रों पर प्रकाशित करना होगा।

जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951

  • जन प्रतिनिधित्व अधिनियम (RPA), 1951, भारत में चुनावों के लिए रूपरेखा, उम्मीदवारों की योग्यता एवं अयोग्यता निर्धारित करता है।
  • RPA की धारा 8 आपराधिक दोषसिद्धि के कारण चुनाव लड़ने से व्यक्तियों की अयोग्यता से संबंधित है।

धारा 8: कुछ अपराधों के लिए दोषसिद्धि पर अयोग्यता

  • किसी व्यक्ति को कुछ अपराधों के लिए दोषी ठहराए जाने पर चुनाव लड़ने से अयोग्य घोषित कर दिया जाता है:
    • उनकी जेल की सजा की अवधि, तथा रिहाई के बाद अतिरिक्त छह वर्ष।
  • अयोग्यता की ओर ले जाने वाले अपराध
    • भ्रष्टाचार (भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के अंतर्गत)
    • चुनावों के दौरान रिश्वतखोरी, अनुचित प्रभाव एवं व्यक्तित्व का उपयोग।
    • समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना।
    • बलात्कार से संबंधित अपराध।
    • आतंकवादी गतिविधियाँ या गैरकानूनी कार्य (UAPA, POTA, आदि)
    • महिलाओं एवं बच्चों के खिलाफ अपराध।
    • दहेज से संबंधित अपराध।
    • मादक पदार्थों की तस्करी।
    • ऐसे व्यक्ति जिन्हें अपराधों के लिए दोषी ठहराया गया है और दो वर्ष या उससे अधिक के कारावास की सजा सुनाई गई है।

सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व निर्देश

  • लिली थॉमस बनाम भारत संघ, 2013: धारा 8(4) को निरस्त कर दिया, जिसके तहत दोषी सांसदों/विधायकों को पद पर बने रहने की अनुमति दी गई थी, बशर्ते कि वे 3 महीने के भीतर अपील करें।
    • अब, दोषसिद्धि के तुरंत बाद अयोग्यता लागू हो जाती है।
  • वर्ष 2017 में, न्यायालय ने सांसदों/विधायकों के मामलों में तेजी लाने के लिए 10 राज्यों में 12 विशेष अदालतों की स्थापना का निर्देश दिया।
  • वर्ष 2023 में, न्यायालय ने सांसदों/विधायकों के खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों के निपटान की निगरानी के लिए और निर्देश जारी किए।

विभिन्न समितियों की सिफारिशें

  • विधि आयोग की 244वीं रिपोर्ट (2014) में दोषी राजनेताओं पर आजीवन प्रतिबंध लगाने की सिफारिश की गई थी।
    • इसमें प्रस्ताव दिया गया था कि गंभीर अपराधों के आरोपी व्यक्तियों को चुनाव लड़ने से रोका जाना चाहिए।
  • द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग (2008) ने काले धन पर निर्भरता कम करने के लिए चुनावों के लिए राज्य द्वारा धन मुहैया कराने का सुझाव दिया था।
  • वोहरा समिति की रिपोर्ट (1993) ने अपराधियों, राजनेताओं और नौकरशाहों के बीच तालमेल को उजागर किया और राजनीतिक भ्रष्टाचार को रोकने के लिए मजबूत कानूनों की सिफारिश की।

चुनौतियाँ एवं मुद्दे

  • विलंबित परीक्षण: राजनेता दोषसिद्धि में देरी के लिए कानूनी खामियों का लाभ उठाते हैं, जिससे उन्हें अयोग्य ठहराए जाने से पहले कई चुनाव लड़ने का अवसर मिल जाता है।
  • राजनीतिक प्रतिशोध के लिए दुरुपयोग: विपक्षी नेताओं को अयोग्य ठहराने के लिए उनके खिलाफ झूठे मामले दर्ज किए जाने का जोखिम है।
  • राजनीति का उच्च अपराधीकरण: इन प्रावधानों के बावजूद, 40% से अधिक सांसदों/विधायकों पर आपराधिक मामले हैं, जिससे प्रवर्तन पर चिंता बढ़ रही है।
    • ‘एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स’ द्वारा किए गए विश्लेषण से पता चला है कि नव निर्वाचित लोकसभा सदस्यों में से 46%, कुल 251 हैं। यह वर्ष 2009 के बाद से 55% की वृद्धि दर्शाता है।
  • आजीवन प्रतिबंध की आवश्यकता: दोषी ठहराए गए राजनेताओं पर आजीवन प्रतिबंध नहीं है, जिससे उन्हें अयोग्य ठहराए जाने की अवधि के बाद राजनीति में वापस आने का अवसर मिलता है।

आगे की राह

  • त्वरित सुनवाई तंत्र: सांसदों और विधायकों से जुड़े मामलों के लिए विशेष फास्ट-ट्रैक अदालतें स्थापित करना ताकि समयबद्ध सुनवाई सुनिश्चित हो सके।
  • कानूनी प्रावधानों को मजबूत करना: बलात्कार, हत्या और भ्रष्टाचार जैसे जघन्य अपराधों में दोषी ठहराए गए राजनेताओं पर आजीवन प्रतिबंध लगाने के लिए जनप्रतिनिधित्त्व अधिनियम की धारा 8 में संशोधन करना।
  • चुनावी सुधार: भारत के चुनाव आयोग (ECI) को राजनीतिक दलों के लिए यह अनिवार्य बनाना चाहिए कि वे यह बताएँ कि उन्होंने आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों का चयन क्यों किया।
    • रामबाबू सिंह ठाकुर बनाम सुनील ठाकुर (2020) में न्यायालय ने राजनीतिक दलों को अपने उम्मीदवारों के आपराधिक इतिहास को प्रकाशित करने तथा उन्हें चुनाव लड़ने के कारण बताने का आदेश दिया। 
  • न्यायिक एवं संस्थागत सुधार: राजनेताओं से जुड़े मामलों में स्थगन को प्रतिबंधित करके तथा गवाहों को समय पर समन सुनिश्चित करके प्रक्रियागत देरी को रोकना। 
  • मतदाता जागरूकता और नागरिक समाज की भागीदारी: आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों के चुनाव को हतोत्साहित करने के लिए बड़े पैमाने पर मतदाता जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करना।

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