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भारत-फ्राँस संबंध

Lokesh Pal February 14, 2025 04:54 79 0

संदर्भ

भारत के प्रधानमंत्री ने राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के निमंत्रण पर AI एक्शन समिट में भाग लेने के लिए फ्राँस का दौरा किया।

संबंधित तथ्य 

  • दोनों नेताओं ने द्विपक्षीय सहयोग और वैश्विक तथा क्षेत्रीय मामलों पर द्विपक्षीय चर्चा की तथा भारत-फ्राँस रणनीतिक साझेदारी के लिए होराइजन 2047 रोडमैप की प्रगति की समीक्षा की।

जैतापुर परमाणु ऊर्जा संयंत्र (JNPP)

  • स्थान: महाराष्ट्र का जैतापुर क्षेत्र।
  • वर्ष 2008 में हस्ताक्षरित।
  • क्षमता: 9900 मेगावाट की योजना बनाई गई, जो इसे विश्व का सबसे बड़ा परमाणु ऊर्जा संयंत्र बनाती है।
  • प्रौद्योगिकी: यूरोपीय दाब वाले रिएक्टरों (European Pressurized Reactors-EPR) का उपयोग करता है।
    • यह एक उन्नत तीसरी पीढ़ी का रिएक्टर है, जो उन्नत सुरक्षा, दक्षता और उच्च विद्युत उत्पादन (प्रति रिएक्टर ~1650 मेगावाट) के लिए जाना जाता है।
  • इसे EDF (फ्राँस) के साथ विकसित किया जा रहा है; भारत-फ्राँस असैन्य परमाणु सहयोग के तहत इस समझौते पर हस्ताक्षर किए गए। 
    • EDF छह EPR रिएक्टरों की आपूर्ति करेगा।

यात्रा के मुख्य निष्कर्ष

  • परमाणु सहयोग
    • आधुनिक परमाणु रिएक्टरों का संयुक्त विकास: ऊर्जा सुरक्षा और कम कार्बन अर्थव्यवस्था में परमाणु ऊर्जा की भूमिका की औपचारिक मान्यता।
    • जैतापुर परमाणु ऊर्जा संयंत्र (JNPP): भारत-फ्राँस सहयोग के माध्यम से 6 EPR रिएक्टर बनाने के लिए समझौता।
    • असैन्य परमाणु ऊर्जा पर विशेष कार्य बल: परमाणु परियोजनाओं की देख-रेख के लिए स्थापित।
    • लघु मॉड्यूलर रिएक्टरों (SMR) तथा उन्नत मॉड्यूलर रिएक्टरों (AMR) पर आशय-पत्र: अगली पीढ़ी की परमाणु प्रौद्योगिकी में भावी सहयोग को बढ़ावा देना।
    • शिक्षा एवं प्रशिक्षण समझौता: भारत के वैश्विक परमाणु ऊर्जा भागीदारी केंद्र (GCNEP), परमाणु ऊर्जा विभाग (DAE) और फ्राँस के राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा और प्रौद्योगिकी संस्थान (INSTN), फ्राँसीसी वैकल्पिक ऊर्जा और परमाणु ऊर्जा आयोग (CEA) के बीच।
  • आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस एवं इनोवेशन
    • भारत-फ्राँस AI रोडमैप: सुरक्षित, खुले और विश्वसनीय AI पर संयुक्त रूप से सहयोग करना।
      • भारत अगली AI समिट की मेजबानी करेगा।
    • भारत-फ्राँस नवाचार वर्ष (वर्ष 2026): प्रौद्योगिकी, संस्कृति और शिक्षा पर ध्यान केंद्रित करते हुए अंतर-क्षेत्रीय पहल की घोषणा की गई।
  • हिंद-प्रशांत एवं वैश्विक सहयोग
    • भारत-प्रशांत त्रिकोणीय विकास सहयोग: तीसरे देशों में संयुक्त जलवायु और SDG परियोजनाएँ।
    • भारत-मध्य पूर्व-यूरोप कॉरिडोर (IMEC) को मजबूत करना: IMEC के निर्माण पर काम करने पर सहमति हुई।
      • व्यापार और बुनियादी ढाँचे को बढ़ाने के लिए कनेक्टिविटी साझेदारी।
    • वैश्विक शासन सुधार: फ्राँस ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता के लिए समर्थन दोहराया।
  • लोगों के बीच आपसी संबंध और सांस्कृतिक संबंध
    • सांस्कृतिक समझौते की 60वीं वर्षगाँठ (वर्ष 1966): वर्ष 2026 के नवाचार वर्ष के अंतर्गत सांस्कृतिक आदान-प्रदान की योजनाएँ।
    • मार्सिले में भारतीय वाणिज्य दूतावास: राजनयिक और सांस्कृतिक संबंधों को मजबूत करने के लिए उद्घाटन औपचारिक रूप से किया गया।
    • भारतीय छात्र गतिशीलता लक्ष्य: सुव्यवस्थित वीजा प्रक्रिया और छात्रवृत्ति के साथ वर्ष 2030 तक फ्राँस में 30,000 छात्रों की शिक्षा का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
    • ऐतिहासिक संबंध: विश्वयुद्धों में भारतीय सैनिकों की भूमिका और वीर सावरकर के मार्सिले से संबंध सहित साझा इतिहास की मान्यता।
    • ओलंपिक समर्थन: भारत की वर्ष 2036 की ‘ओलंपिक बिड’ के लिए फ्राँसीसी विशेषज्ञता साझा करना।

फ्राँस के मार्सिले में माजर्गेस वाॅर सिमेट्री (Mazargues War Cemetery)

  • महत्त्व: यह प्रथम विश्वयुद्ध के 1,487 और द्वितीय विश्वयुद्ध के 267 सैनिकों के शहीद होने की याद में स्थापित किया गया है, जिनमें 998 भारतीय सैनिक शामिल थे।
  • ऐतिहासिक संदर्भ: वर्ष 1925 में ब्रिटिश फील्ड मार्शल सर विलियम बर्डवुड द्वारा स्मारक का अनावरण किया गया।
  • प्रथम विश्वयुद्ध (वर्ष 1914-1918): 1.3 मिलियन भारतीय सैनिकों ने सेवाएँ दी; जिनमें 74,000+ सैनिकों को वीर गति प्राप्त हुई।
    • युद्ध के विभिन्न क्षेत्र
      • पश्चिमी मोर्चा (वर्ष 1914): यप्रेस सैलिएंट (बेल्जियम) की रक्षा की, न्यूवे-चैपल की लड़ाई।
      • वापसी (वर्ष 1915): ब्रिटिश नस्लीय चिंताओं के कारण पश्चिम एशिया चले गए।
      • पश्चिम एशिया: गल्लीपोली (1,000+ मौतें) और मेसोपोटामिया में ओटोमन के विरुद्ध लड़ाई लड़ी।
        • रसद पहुँचाने में भारतीय खच्चर चालकों की उल्लेखनीय भूमिका रही।
    • राजनीतिक संदर्भ: अंग्रेजों ने भारतीय समर्थन प्राप्त करने के लिए युद्ध के बाद स्वशासन का वादा किया था।
  • द्वितीय विश्वयुद्ध (वर्ष 1939-1945): 30 लाख भारतीय सैनिकों ने अपनी सेवाएँ दी; जिनमें 87,000 सैनिकों की मौतें हुईं।
    • युद्ध के विभिन्न क्षेत्र
      • एशिया-प्रशांत: बर्मा में जापानी सेना को रोका (वर्ष 1943-1944), कोहिमा-इंफाल में निर्णायक लड़ाई (1944)।
      • यूरोप: लॉजिस्टिक भूमिकाएँ (आपूर्ति लाइनें, पशु प्रबंधन); सीमित सीमावर्ती युद्ध।


लघु मॉड्यूलर रिएक्टर (Small Modular Reactors- SMR)

  • ये परमाणु रिएक्टर हैं, जिनकी विद्युत क्षमता 300 मेगावाट (MW) प्रति यूनिट तक है।
  • इन्हें कारखानों में बनाने और विभिन्न क्षेत्रों में भेजने के लिए डिजाइन किया गया है, जिससे ये पारंपरिक बड़े रिएक्टरों की तुलना में अधिक प्रबंधनीय हैं।
  • SMR की मुख्य विशेषताएँ 
    • मॉड्यूलरिटी: ये घटक फैक्टरी में बनाए जाते हैं और साइट पर ही असेंबल किए जाते हैं, जिससे निर्माण समय एवं लागत कम हो जाती है।
    • सुरक्षा में वृद्धि: वे निष्क्रिय सुरक्षा प्रणालियों का उपयोग करते हैं, जो मानवीय हस्तक्षेप या बाहरी शक्ति के बिना कार्य कर सकते हैं।
    • स्केलेबिलिटी: आवश्यकतानुसार कई इकाइयाँ जोड़ी जा सकती हैं, जिससे वे अलग-अलग विद्युत की माँगों के लिए लचीली हो जाती हैं।
    • स्थान के लिए अनुकूल: दूरस्थ स्थानों या छोटे ग्रिडों के लिए उपयुक्त जहाँ बड़े रिएक्टर व्यावहारिक नहीं हैं।

उन्नत मॉड्यूलर रिएक्टर (Advanced Modular Reactors- AMRs)

  • AMR, SMR का अद्यतन रूप हैं।
  • वे उन्नत प्रौद्योगिकी और शीतलक, जैसे तरल लवण या गैसों को शामिल करते हैं, जिससे उन्हें उच्च तापमान और दक्षता पर संचालित करने की अनुमति मिलती है।
  • SMR की मुख्य विशेषताएँ 
    • उन्नत शीतलक: हीलियम, सोडियम या तरल लवण जैसे शीतलक का उपयोग दक्षता और सुरक्षा में सुधार करता है।
    • उच्च तापमान: 600 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान पर कार्य कर सकता है, औद्योगिक प्रक्रियाओं और हाइड्रोजन उत्पादन के लिए उपयोगी है।
    • ईंधन संबंधी लचीलापन: थोरियम और पुनर्चक्रित परमाणु अपशिष्ट सहित विभिन्न ईंधन प्रकारों का उपयोग करने में सक्षम।
    • दीर्घ परिचालन क्षमता: कम ईंधन भरने की आवृत्ति के साथ दीर्घ परिचालन समय के लिए डिजाइन किया गया।

भारत-फ्राँस  संबंधों का इतिहास

  • प्रारंभिक अंतर्क्रियाएँ (17वीं-18वीं शताब्दी)
    • औपनिवेशिक उपस्थिति: फ्राँस ने 17वीं शताब्दी के दौरान भारत में अपनी औपनिवेशिक उपस्थिति दर्ज कराई तथा व्यापार एवं क्षेत्रीय नियंत्रण के लिए ब्रिटिश और पुर्तगालियों के साथ प्रतिस्पर्द्धा की।
      • फ्राँसीसी ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना वर्ष 1664 में हुई थी और पांडिचेरी (अब पुडुचेरी), चंद्रनगर (अब चंदननगर), माहे, यानम और कराईकल में व्यापारिक केंद्र स्थापित किए गए थे।
    • एंग्लो-फ्रेंच प्रतिद्वंद्विता: ब्रिटिश और फ्रेंच ईस्ट इंडिया कंपनियों के बीच कर्नाटक युद्ध (वर्ष 1746-1763) दक्षिण भारत पर नियंत्रण के लिए लड़ा गया था।
      • अंततः फ्राँसीसी पराजित हुए, जिससे भारत में उनकी क्षेत्रीय महत्त्वाकांक्षाएँ समाप्त हो गईं।

होराइजन 2047: भारत-फ्राँस रणनीतिक रोडमैप

  • उद्देश्य: वर्ष 2047 तक भारत-फ्राँस संबंधों के भविष्य की रूपरेखा तैयार करना, भारत की स्वतंत्रता और कूटनीतिक संबंधों का शताब्दी वर्ष मनाना।
  • स्वीकृति: जुलाई 2023, प्रधानमंत्री मोदी की फ्राँस यात्रा के दौरान।
  • प्रमुख क्षेत्र     
    • रक्षा: सहयोग में वृद्धि, संयुक्त परियोजनाएँ।
    • अंतरिक्ष: ISRO-CNES सहयोग को मजबूत किया गया।
    • परमाणु ऊर्जा: जैतापुर और मॉड्यूलर रिएक्टरों के माध्यम से स्थायी समाधानों पर ध्यान केंद्रित करना।
    • नवाचार और तकनीक: AI, साइबर सुरक्षा और डिजिटल बुनियादी ढाँचे में उन्नति को बढ़ावा देना।
    • सतत् विकास: जलवायु कार्रवाई, ब्लू इकॉनमी, स्वच्छ ऊर्जा।
    • सांस्कृतिक आदान-प्रदान: लोगों के बीच संबंधों को बढ़ावा देना।
    • भारत-प्रशांत: क्षेत्रीय सहयोग के लिए विशिष्ट रोडमैप।
  • उद्देश्य: रणनीतिक स्वायत्तता, वैश्विक चुनौती प्रतिक्रिया, और नवाचार को बढ़ावा देना।


  • स्वतंत्रता के बाद का युग (वर्ष 1947-1990 के दशक तक)
    • राजनयिक संबंध: भारत और फ्राँस ने भारत की स्वतंत्रता के तुरंत बाद वर्ष 1947 में राजनयिक संबंध स्थापित किए।
      • फ्राँस ने शीतयुद्ध के दौरान भारत के गुटनिरपेक्ष रुख का समर्थन किया और सोवियत संघ के साथ भारत के घनिष्ठ संबंधों के बावजूद संतुलित संबंध बनाए रखा।
    • सांस्कृतिक संबंध: फ्राँसीसी इंस्टिट्यूट ऑफ पांडिचेरी (वर्ष 1955) और भारत में एलायंस फ्राँसेसे  नेटवर्क ने सांस्कृतिक और शैक्षणिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
    • आर्थिक सहयोग: फ्राँस भारत के औद्योगिकीकरण प्रयासों में एक प्रमुख भागीदार बन गया, विशेष रूप से ऊर्जा, विमानन और बुनियादी ढाँचे जैसे क्षेत्रों में।
  • रणनीतिक साझेदारी (वर्ष 1998-वर्तमान तक)
    • ऐतिहासिक समझौता: वर्ष 1998 में, भारत और फ्राँस ने अपनी पहली रणनीतिक साझेदारी पर हस्ताक्षर किए, जिसने द्विपक्षीय संबंधों में एक नए युग की शुरुआत की। यह किसी भी देश के साथ भारत की पहली रणनीतिक साझेदारी थी।
    • साझेदारी के स्तंभ: यह साझेदारी तीन मुख्य स्तंभों पर आधारित है: रक्षा और सुरक्षा, असैन्य परमाणु सहयोग और अंतरिक्ष सहयोग।
    • रक्षा सहयोग: फ्राँस एक विश्वसनीय रक्षा साझेदार रहा है, जिसने मिराज 2000 लड़ाकू जेट और स्कॉर्पीन पनडुब्बियों जैसे उन्नत सैन्य उपकरण की आपूर्ति की है।
    • असैन्य परमाणु सहयोग: भारत-अमेरिका परमाणु समझौते (वर्ष 2008) के बाद फ्राँस ने भारत के असैन्य परमाणु कार्यक्रम का समर्थन करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

21वीं सदी में प्रमुख उपलाब्धियाँ

  • वर्ष 2008: फ्राँस ने NSG छूट के दौरान भारत का समर्थन किया, जिससे भारत वैश्विक स्तर पर असैन्य परमाणु व्यापार में शामिल हो सका।
  • वर्ष 2015: प्रधानमंत्री मोदी ने फ्राँस का दौरा किया और दोनों देशों ने अक्षय ऊर्जा, शहरी विकास और आतंकवाद-रोधी क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने पर सहमति जताई।
  • वर्ष 2016: राफेल सौदे पर हस्ताक्षर किए गए, जो रक्षा सहयोग में एक महत्त्वपूर्ण मील का पत्थर सिद्ध हुआ।
  • वर्ष 2018: राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने भारत का दौरा किया और दोनों देशों ने हिंद महासागर क्षेत्र में सहयोग के लिए संयुक्त रणनीतिक दृष्टिकोण को अपनाया।
  • वर्ष 2023: रणनीतिक साझेदारी की 25वीं वर्षगाँठ मनाई गई और अगले 25 वर्षों के लिए साझेदारी का मार्गदर्शन करने के लिए होराइजन 2047 रोडमैप को अपनाया गया।

भारत-फ्राँस सहयोग के प्रमुख क्षेत्र

रक्षा एवं सुरक्षा सहयोग

  • रक्षा खरीद एवं औद्योगिक सहयोग
    • राफेल जेट: भारत ने फ्राँस से 36 राफेल लड़ाकू विमान खरीदे हैं।
      • भारतीय नौसेना के लिए 26 राफेल-एम लड़ाकू विमानों के लिए बातचीत जारी है।
    • स्कॉर्पीन पनडुब्बी परियोजना (P-75): छठी तथा अंतिम पनडुब्बी, INS वाग्शीर, का जनवरी 2025 में परिचालन शुरू किया गया।
      • इसके साथ ही DRDO द्वारा विकसित एयर इंडिपेंडेंट प्रोपल्शन (AIP) संरेखण  के साथ 3 अन्य स्कॉर्पीन पनडुब्बियों पर सहयोग किया जा रहा है।
      • भविष्य की P75-AS पनडुब्बियों के लिए एकीकृत लड़ाकू प्रणाली (Integrated Combat System-ICS) पर विचार किया जा रहा है।
    • मिसाइल तथा इंजन सहयोग: सफ़रान ग्रुप के साथ जेट और हेलीकॉप्टर इंजन पर चल रही वार्ताएँ।
      • लंबी दूरी की मिसाइलों, निर्देशित युद्ध सामग्री और वायु रक्षा प्रणालियों पर सहयोग।
      • भारत ने फ्राँस को पिनाका MBRL (मल्टी-बैरल रॉकेट लॉन्चर) प्राप्त करने पर विचार करने के लिए आमंत्रित किया।

यूरोड्रोन कार्यक्रम के बारे में

  • यूरोड्रोन एक रिमोटली पायलटेड एयरक्राफ्ट सिस्टम (Remotely Piloted Aircraft System-RPAS) है।
  • यह जर्मनी, फ्राँस, इटली और स्पेन को शामिल करते हुए चार देशों की पहल है।
  • इसे ‘यूरोपीय संप्रभुता के लिए यूरोपीय कार्यक्रम’ के रूप में परिकल्पित किया गया है।
    • इस पहल की स्थापना वर्ष 2022 में की गई थी और इसकी प्रारंभिक डिजाइन समीक्षा (PDR) वर्ष 2024 में पारित हो गई थी।
  • इनके द्वारा प्रबंधितः संयुक्त आयुध सहयोग संगठन (Organisation for Joint Armament Cooperation-OCCAR)।

    • यूरोड्रोन MALE कार्यक्रम में पर्यवेक्षक के रूप में भारत: OCCAR की मध्यम ऊँचाई वाली दीर्घ-स्थायी ड्रोन परियोजना में भागीदारी।
  • सैन्य अभ्यास तथा समुद्री सहयोग
    • संयुक्त सैन्य अभ्यास: वरुण (नौसेना), गरुड़ (वायु सेना), शक्ति (सेना), ला पेरोस (बहुपक्षीय)।
    • भारतीय नौसेना और फ्राँसीसी कैरियर स्ट्राइक ग्रुप संयुक्त अभियान: फ्राँस के चार्ल्स डी गॉल विमानवाहक पोत ने जनवरी 2025 में भारत का दौरा किया।
      • समुद्री गश्त और पनडुब्बी रोधी युद्ध में सहयोग को बढ़ावा दिया जा रहा है।
    • समुद्री निगरानी और हिंद-प्रशांत रणनीति: भारत के सूचना संलयन केंद्र-हिंद महासागर क्षेत्र (IFC-IOR) में फ्राँसीसी संपर्क अधिकारी के साथ सहयोग।
      • चीन के विस्तारवाद का मुकाबला करने और क्षेत्रीय सुरक्षा बढ़ाने के लिए संयुक्त हिंद-प्रशांत रणनीति।

असैन्य परमाणु सहयोग

  • परमाणु संलयन में संयुक्त अनुसंधान: भारत फ्राँस में अंतरराष्ट्रीय थर्मोन्यूक्लियर प्रायोगिक रिएक्टर (International Thermonuclear Experimental Reactor-ITER) का सदस्य है।

अंतरराष्ट्रीय थर्मोन्यूक्लियर प्रायोगिक रिएक्टर (International Thermonuclear Experimental Reactor- ITER) के बारे में

  • स्थान: कैडाराचे, फ्राँस।
  • उद्देश्य: बड़े पैमाने पर, कार्बन-मुक्त ऊर्जा स्रोत के रूप में परमाणु संलयन की व्यवहार्यता को प्रदर्शित करना।
    • 50 मेगावाट इनपुट से 500 मेगावाट संलयन ऊर्जा उत्पन्न करना।
  • प्रयुक्त प्रौद्योगिकी: टोकामक, एक चुंबकीय परिरोध उपकरण जो नाभिकीय संलयन के लिए प्लाज्मा को नियंत्रित करता है।
  • ईंधन स्रोत: ड्यूटेरियम और ट्रिटियम नाभिक, शून्य उत्सर्जन के साथ विशाल ऊर्जा का उत्पादन करते हैं।
  • स्थिति: वर्ष 2010 से निर्माणाधीन, वर्ष 2039 तक ड्यूटेरियम-ट्रिटियम संलयन अभिक्रियाएँ शुरू होने की संभावना है।

अंतरिक्ष एवं डिजिटल सहयोग

  • ISRO-CNES सहयोग के 50 से अधिक वर्ष
    • थर्मल इन्फ्रा-रेड इमेजिंग सैटेलाइट फॉर हाई-रिज़ॉल्यूशन नेचुरल रिसोर्स असेसमेंट (Thermal Infra-Red Imaging Satellite for High-Resolution Natural Resource Assessment-TRISHNA) उपग्रह वैश्विक स्तर पर सतह के तापमान और जल प्रबंधन की निगरानी के लिए थर्मल इन्फ्रारेड इमेजिंग के लिए। (वर्ष 2026 में लॉन्च)
    • पृथ्वी अवलोकन और समुद्री डोमेन जागरूकता परियोजनाएँ।
  • रणनीतिक अंतरिक्ष वार्ता: फ्राँस और भारत उपग्रह विकास, मानव अंतरिक्ष उड़ान और अंतरिक्ष स्थिति जागरूकता में सहयोग को गहरा करेंगे।
  • साइबर सुरक्षा तथा AI सहयोग: फ्राँस के AI एक्शन समिट (वर्ष 2025) के बाद भारत अगली AI समिट की मेजबानी करेगा।
    • AI पर भारत-फ्राँस रोडमैप लॉन्च किया गया, जिसमें सुरक्षित, खुले और भरोसेमंद AI पर ध्यान केंद्रित किया गया।
    • 10 भारतीय स्टार्टअप फ्राँसीसी इनक्यूबेटर स्टेशन एफ (F) में शामिल हुए।
  • फ्राँस में UPI भुगतान का विस्तार: फ्राँस में UPI रीयल-टाइम भुगतान प्रणाली का उपयोग किया जाएगा, जिससे वित्तीय सहयोग का विस्तार होगा।

व्यापार एवं आर्थिक सहयोग

  • द्विपक्षीय व्यापार (वर्ष 2024-25): एयरोस्पेस, रक्षा, ऊर्जा, उपभोक्ता वस्तुओं में व्यापार रिकॉर्ड ऊँचाई पर पहुँच गया।
    • वर्ष 2023- 2024 में द्विपक्षीय व्यापार 13.38 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया।
    • फ्राँस भारत का 11वाँ  सबसे बड़ा निवेशक है, जिसका FDI 10.76 बिलियन डॉलर है।
  • भारत-फ्राँस  CEO फोरम
    • पहचाने गए प्रमुख क्षेत्र: विमानन, शहरी विकास, नवीकरणीय ऊर्जा, उन्नत विनिर्माण।
    • नागरिक हेलीकॉप्टरों के निर्माण के लिए टाटा-एयरबस साझेदारी।
  • भारतीय स्टार्टअप और MSME के लिए समर्थन: भारतीय माइक्रोफाइनेंस और महिला उद्यमिता में €13 मिलियन निवेश के लिए समझौता।
  • सतत शहरी विकास और हरित प्रौद्योगिकी: ऊर्जा, बुनियादी ढाँचे, सतत शहरी विकास पर संयुक्त कार्य समूह (Joint Working Groups- JWG)।

हिंद-प्रशांत एवं वैश्विक बहुपक्षीय सहयोग

  • भारत-फ्राँस इंडो-पैसिफिक त्रिकोणीय विकास सहयोग: तीसरे देशों (छोटे द्वीपीय राष्ट्रों और अफ्रीकी राज्यों) में जलवायु तथा SDG-आधारित परियोजनाओं पर ध्यान केंद्रित करना।
  • UNSC सुधार और बहुपक्षवाद: फ्राँस UNSC में भारत की स्थायी सदस्यता का समर्थन करता है।
    • सामूहिक अत्याचारों के मामलों में वीटो शक्ति के उपयोग को विनियमित करने पर सहयोग।
  • ब्लू इकॉनमी: फ्राँस तथा भारत द्वारा वर्ष 2022 में अपनाए गए ब्लू इकॉनमी और महासागर शासन पर रोडमैप के तहत, समुद्री अनुसंधान पर फ्राँसीसी समुद्र के दोहन के लिए अनुसंधान संस्थान (IFREMER) तथा भारत के राष्ट्रीय महासागर प्रौद्योगिकी संस्थान (NIOT) के बीच साझेदारी की शुरुआत।
  • जलवायु कार्रवाई और समुद्री संरक्षण
    • फ्राँस, भारत के साथ अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) तथा आपदा रोधी अवसंरचना गठबंधन (CDRI) का सह-नेतृत्व कर रहा है।
    • संयुक्त राष्ट्र महासागर सम्मेलन (UNOC) के तहत समुद्री जैव विविधता और महासागर शासन पर अधिक ध्यान दिया जा रहा है।
      • जून 2025 में फ्राँस के नीस में आयोजित होने वाले तीसरे UNOC-3 का उद्देश्य सतत् विकास के लिए महासागरों, समुद्रों और समुद्री संसाधनों के संरक्षण और स्थायी उपयोग के लिए आगे और तत्काल कार्रवाई का समर्थन करना है। (SDG14-जल के नीचे जीवन)।

लोगों के बीच आपसी संपर्क और सांस्कृतिक सहयोग

  • शिक्षा और कौशल विकास
    • सितंबर 2024 में शुरू की गई अंतरराष्ट्रीय कक्षा योजना, भारतीय छात्रों को शीर्ष फ्राँसीसी विश्वविद्यालयों में फ्रेंच भाषा और अकादमिक तैयारी का एक वर्ष प्रदान करती है; वर्ष 2025 तक छात्रों की संख्या बढ़कर 10,000 होने की उम्मीद है।
      • लक्ष्य: वर्ष 2030 तक फ्राँस में 30,000 भारतीय छात्र।
    • भारत-फ्राँस प्रवासन और गतिशीलता भागीदारी समझौते (Migration and Mobility Partnership Agreement- MMPA) के तहत रोजगार और प्रवास के लिए युवा पेशेवर योजना (Young Professionals Scheme- YPS) शुरू की गई।
    • व्यावसायिक प्रशिक्षण और कौशल विकास के लिए द्विपक्षीय समझौता।
  • सांस्कृतिक आदान-प्रदान और ऐतिहासिक संबंध
    • दिसंबर 2024 में दिल्ली स्थित राष्ट्रीय संग्रहालय और फ्राँस म्यूजियम डेवलपमेंट के बीच एक समझौते पर हस्ताक्षर किए गए। 
      • संग्रहालय सहयोग और पेशेवर प्रशिक्षण को बढ़ाना, फ्राँस राष्ट्रीय समुद्री विरासत परिसर में भागीदारी पर भी विचार कर रहा है। 
    • ‘बोनजोर इंडिया’ (Bonjour India) और ‘नमस्ते फ्राँस’ उत्सवों का आयोजन​।

भारत-फ्राँस संबंधों में चुनौतियाँ

  • यूरोपीय संघ के साथ मुक्त व्यापार समझौते (FTA) का अभाव: भारत और यूरोपीय संघ (EU), जिसका फ्राँस एक प्रमुख सदस्य है, ने भारत-यूरोपीय संघ द्विपक्षीय व्यापार और निवेश समझौते (Bilateral Trade and Investment Agreement- BTIA) को अंतिम रूप नहीं दिया है।
    • भारत-यूरोपीय संघ FTA के लिए बातचीत वर्ष 2007 में शुरू हुई थी, लेकिन बाजार पहुँच, बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR) तथा विनियामक बाधाओं पर मतभेदों के कारण यह रुकी हुई है।
    • पहले से रुके हुए मुद्दों को हल करने के उद्देश्य से वर्ष 2022 में इसे फिर से शुरू किया गया।
  • नौकरशाही और विनियामक बाधाएँ: भारत में फ्राँसीसी निवेशकों को जटिल विनियमन, नीतिगत अनिश्चितता और अनुमोदन में देरी के कारण चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
    • राफेल सौदे के ऑफसेट दायित्वों को पूरा करने में डसॉल्ट का संघर्ष रक्षा सौदों के लिए भारत के सख्त अनुपालन नियमों को उजागर करता है।
  • वीजा और गतिशीलता प्रतिबंध: भारतीय पेशेवरों और छात्रों को फ्राँस में लंबे समय तक वीजा प्रसंस्करण समय, कार्य परमिट मुद्दों और भाषा बाधाओं का सामना करना पड़ता है।
    • जर्मनी या U.K. की तुलना में भारतीय IT पेशेवरों को दीर्घकालिक कार्य परमिट प्राप्त करना मुश्किल होता है।
  • रक्षा प्रौद्योगिकी हस्तांतरण में धीमी प्रगति: फ्राँस, भारत का एक प्रमुख रक्षा आपूर्तिकर्ता है, लेकिन लागत संबंधी चिंताओं और सुरक्षा संवेदनशीलताओं के कारण प्रौद्योगिकी हस्तांतरण समझौतों में देरी होती है।
    • जेट इंजन सहयोग [सफ़रान (Safran) और HAL]: अगली पीढ़ी के लड़ाकू जेट इंजनों के सह-विकास पर बातचीत तकनीक-साझाकरण शर्तों को लेकर रुकी हुई है।
  • इंडो-पैसिफिक में रणनीतिक मतभेद: भारत और फ्राँस इंडो-पैसिफिक सुरक्षा हितों को साझा करते हैं, लेकिन परिचालन प्राथमिकताओं और प्रतिबद्धताओं में अंतर मौजूद हैं।
    • फ्राँस दक्षिण प्रशांत (न्यू कैलेडोनिया, पोलिनेशिया) पर ध्यान केंद्रित करता है, जबकि भारत हिंद महासागर को प्राथमिकता देता है।
  • बहुपक्षीय मुद्दों पर राजनीतिक और कूटनीतिक मतभेद: फ्राँस भारत की स्थायी UNSC सदस्यता का समर्थन करता है, लेकिन वैश्विक शासन सुधारों और जलवायु वार्ता में मतभेद हैं।
  • जलवायु वार्ता (COP शिखर सम्मेलन): फ्राँस भारत पर तेजी से कार्बन तटस्थता के लिए प्रतिबद्ध होने का दबाव डालता है, जबकि भारत ‘सामान्य लेकिन विभेदित जिम्मेदारियों’ (CBDR) पर जोर देता है।

आगे की राह

  • भारत-यूरोपीय संघ मुक्त व्यापार समझौते (FTA) को तेजी से आगे बढ़ाना: भारत को उच्च माँग वाले फ्राँसीसी निर्यात (शराब, डेयरी, उपभोग की वस्तुएँ) पर टैरिफ में कटौती की पेशकश करनी चाहिए, जबकि फ्राँस को भारतीय IT सेवाओं, वस्त्र और फार्मास्यूटिकल्स पर प्रतिबंधों को कम करना चाहिए।
    • एक द्विपक्षीय निवेश संधि (BIT) भारत में फ्राँसीसी निवेशकों के लिए एक स्थिर ढाँचा प्रदान कर सकती है।
  • व्यापार को संतुलित करना और गैर-टैरिफ बाधाओं को संबोधित करना: बासमती चावल और समुद्री निर्यात पर सैनिटरी और फाइटोसैनिटरी (SPS) बाधाओं जैसे मुद्दों को हल करने के लिए व्यापार मंत्रालयों के बीच बातचीत की जानी चाहिए।
    • व्यापार अंतर को संतुलित करने के लिए भारतीय विनिर्माण (मेक इन इंडिया पहल) में फ्राँसीसी निवेश को प्रोत्साहित करना।
  • रक्षा और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण समझौतों को गहरा करना: तकनीकी हस्तांतरण के लिए स्पष्ट शर्तों को सुनिश्चित करके सफ़रान और HAL के साथ राफेल जेट इंजन के सह-विकास में तेजी लाना।
    • पूर्ण स्टील्थ प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के साथ स्कॉर्पीन पनडुब्बी सहयोग को बढ़ावा देना।
    • इंडो-पैसिफिक के लिए उन्नत ड्रोन, मिसाइलों और नौसैनिक परिसंपत्तियों का संयुक्त उत्पादन पर जोर देना।
  • इंडो-पैसिफिक रणनीतिक सहयोग को बढ़ाना: अधिक संयुक्त नौसैनिक अभ्यास (वरुण, ला पेरोस) और समुद्री निगरानी।
    • इंडो-पैसिफिक में एक स्थायी रणनीतिक नौसैनिक उपस्थिति स्थापित (जैसे, संयुक्त गश्ती मिशन) करना ।
    • भारत-फ्राँस-ऑस्ट्रेलिया और भारत-फ्राँस-UAE त्रिपक्षीय वार्ता का विस्तार करना।
  • परमाणु ऊर्जा और स्वच्छ प्रौद्योगिकी सहयोग का विस्तार करना: वित्तपोषण समाधानों के साथ जैतापुर परमाणु ऊर्जा परियोजना में तेजी लाना।
    • छोटे मॉड्यूलर रिएक्टरों (SMR) और उन्नत मॉड्यूलर रिएक्टरों (AMR) पर सहयोग को मजबूत करना।
    • ग्रीन हाइड्रोजन, बैटरी स्टोरेज और सौर ऊर्जा (अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन) में भारत-फ्राँस सहयोग का विस्तार करना।
  • वीजा और गतिशीलता प्रतिबंधों को आसान बनाना: भारतीय IT पेशेवरों और शोधकर्ताओं के लिए तेजी से कार्य वीजा प्रसंस्करण को लागू करना।
    • U.K. के 2-वर्षीय वीजा कार्यक्रम की तरह भारतीय छात्रों के लिए अध्ययन के बाद कार्य परमिट प्रदान करना।
    • पारस्परिक कार्यबल एकीकरण के लिए भारत-फ्राँस युवा पेशेवर योजना (YPS) का विस्तार करना।
  • AI, डिजिटल और साइबर सुरक्षा सहयोग को मजबूत करना: संयुक्त AI विकास के लिए भारत-फ्राँस AI रोडमैप (2026 नवाचार वर्ष) को लागू करना।
    • साइबर सुरक्षा संवाद और डेटा सुरक्षा समझौतों का विस्तार करना।
    • ‘स्टेशन एफ (F)’ जैसे इनक्यूबेटरों के माध्यम से संयुक्त AI और तकनीकी स्टार्टअप को प्रोत्साहित करना।
  • लोगों-से-लोगों के बीच और सांस्कृतिक संबंधों को मजबूत करना: सांस्कृतिक कूटनीति को बढ़ावा देने के लिए ‘बोनजोर इंडिया’ तथा ‘नमस्ते फ्राँस’ उत्सवों का विस्तार करना।
    • ऐतिहासिक पर्यटन संबंधों को मजबूत करना।
    • शहर-स्तरीय सिस्टर-सिटी साझेदारी को बढ़ावा देना।

निष्कर्ष

भारत-फ्राँस संबंध रक्षा, परमाणु ऊर्जा, AI, व्यापार, इंडो-पैसिफिक सुरक्षा और सांस्कृतिक कूटनीति को शामिल करते हुए एक व्यापक रणनीतिक साझेदारी में विकसित हो रहे हैं। होराइजन 2047 रोडमैप के साथ, दोनों राष्ट्र संप्रभुता, प्रौद्योगिकी विनिमय और वैश्विक सहयोग को मजबूत करने का लक्ष्य रखते हैं, जिससे भारत फ्राँस साझेदारी भारत की विदेश नीति में एक प्रमुख स्तंभ बन जाती है।

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