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आठवां हिंद महासागर सम्मेलन : भारत के लिए सामरिक व रणनीतिक महत्त्व

Lokesh Pal February 17, 2025 05:00 53 0

संदर्भ:

हाल ही में भारत सिंगापुर और ओमान जैसे अपने हिंद महासागर साझेदारों के साथ मस्कट में आठवें हिंद महासागर सम्मेलन (आईओसी) की मेजबानी कर रहा है।

भारत-ओमान समुद्री संबंध:

  • ऐतिहासिक संबंध: भारत की तरह ओमान का भी समुद्री यात्रा का समृद्ध इतिहास है, जिसके समुद्री संबंध 5,000 साल से भी पुराने हैं।
  • रणनीतिक साझेदार: दोनों देश हिन्द महासागर में, रणनीतिक साझेदार हैं, जो क्षेत्रीय विकास और सुरक्षा पर सहयोग करते हैं।

हिंद महासागर का ऐतिहासिक महत्व:

  • नामकरण: अटलांटिक और आर्कटिक महासागरों के विपरीत, जिनके नाम ग्रीक पौराणिक कथाओं से लिए गए हैं, हिंद महासागर का नाम इस क्षेत्र पर भारत के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक प्रभाव के आधार पर रखा गया है।
    • हिंद महासागर और “इंडियन ओशियन” को हजारों सालों से समुद्री यात्रियों व व्यापारिक शक्तियों द्वारा व्यापक रूप से पहचाना जाता रहा है।
  • प्राचीन व्यापार नेटवर्क: हिंद महासागर भारतीय व्यापारियों के लिए एक महत्वपूर्ण व्यापार मार्ग के रूप में कार्य करता था, जिसमें मणिग्रामम चेट्टी और नानादेसिस शामिल थे।
    • पल्लव, चोल और आंध्र जैसे भारतीय राजवंश समुद्री वाणिज्य में सक्रिय रूप से लगे हुए थे, जिससे क्षेत्रीय व्यापारिक संबंध मजबूत हुए।
  • प्राचीन ग्रंथों में महत्व: कौटिल्य के अर्थशास्त्र ने आर्थिक और रणनीतिक योजना में समुद्री व्यापार और नौसैनिक शक्ति के महत्व पर जोर दिया।
  • भारतीय समुद्री प्रभाव: प्रसिद्ध चीनी यात्री फा-हियान ने 415 ई. में अपने एक दस्तावेज में दावा किया कि सीलोन से श्री विजया (आधुनिक इंडोनेशिया) तक की उनकी यात्रा में 200 व्यापारी शामिल थे, जो “ब्राह्मणवादी धर्म” का पालन करते थे, जो भारत की समुद्री पहुंच को उजागर करता है।
  • औपनिवेशिक नियंत्रण: पहली सहस्राब्दी के दौरान, भारत ने हिंद महासागर व्यापार नेटवर्क में एक प्रमुख आर्थिक स्थिति को बनाए रखने में योगदान दिया है। 
    • समय के साथ, पुर्तगाली, डच और ब्रिटिश सहित यूरोपीय औपनिवेशिक शक्तियों ने समुद्री मार्गों पर नियंत्रण कर लिया, जिससे समुद्री व्यापार पर भारत की स्वायत्तता कम हो गई। 
  • प्रारंभिक चेतावनी: के एम पणिक्कर, एक प्रतिष्ठित राजनयिक और चीन और फ्रांस में भारत के राजदूत, हिंद महासागर के सामरिक महत्व को उजागर करने वाले पहले लोगों में से थे।
    • 1945 में प्रकाशित अपनी पुस्तक, “भारत और भारतीय महासागर” में उन्होंने भारत के प्रायद्वीपीय भूगोल और समुद्री व्यापार पर उसकी निर्भरता पर जोर दिया।

समुद्री शक्ति की उपेक्षा:

  • औपनिवेशिक दृष्टिकोण: प्रमुख नाविक होने के बावजूद, अंग्रेजों ने अपने 200 साल के शासन के दौरान भारत के लिए एक मजबूत समुद्री नौसेना विकसित करने में निवेश नहीं किया।
  • स्वतंत्रता के बाद समुद्री महत्त्व एवं रणनीतिक पहल : स्वतंत्रता के बाद, भारतीय सरकारों ने महासागरों के रणनीतिक महत्व को दरकिनार करते हुए भूमि-आधारित युद्ध को प्राथमिकता दी।
    • नौसेना और जहाज निर्माण क्षेत्रों पर कम से कम ध्यान दिया गया, जिससे भारत का समुद्री विकास सीमित हो गया।
  • भारत का पिछड़ना: दशकों की उपेक्षा के कारण, भारत जहाज निर्माण और नौसेना पोत उत्पादन जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में अन्य प्रमुख शक्तियों से पीछे रहा।
  • वैश्विक रैंकिंग: भारत केवल 0.06% बाजार हिस्सेदारी के साथ वैश्विक जहाज निर्माण में 20वें स्थान पर है।
  • महाद्वीपीय मानसिकता: पणिक्कर की अंतर्दृष्टि के बावजूद, भारतीय नेतृत्व भूमि-आधारित सुरक्षा चिंताओं में व्यस्त रहा। महाद्वीपीय खतरों पर सरकार के ध्यान ने समुद्री रणनीति और नौसेना विस्तार की उपेक्षा की।
    • इस अनदेखी ने हिंद महासागर क्षेत्र में एक प्रमुख समुद्री शक्ति के रूप में भारत के उभरने में, विलंब किया।

हिंद महासागर का महत्व:

  • सांस्कृतिक जुड़ाव: जबकि “इंडो-पैसिफिक” एक भू-राजनीतिक संरचना है, जो बड़ी शक्तियों के बीच प्रतिद्वंद्विता से चिह्नित होता है। अतः हिंद महासागर एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक निरंतरता का प्रतिनिधित्व करता है।
    • हिन्द-प्रशांत या इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के विपरीत, जहाँ रणनीतिक प्रतिस्पर्धा हावी है, हिंद महासागर सदियों से शांतिपूर्ण आदान-प्रदान का केंद्र रहा है।
  • विस्तार: हिंद महासागर दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा महासागर है। यह व्यापार, विरासत और साझा इतिहास के माध्यम से 26 तटीय देशों को आपस में जोड़ता है।
  • भूआबद्ध देशों के लिए पहुँच: हिंद महासागर न केव ल तटीय राज्यों के लिए बल्कि नेपाल और भूटान जैसे (भू-आबद्ध) भूमि से घिरे देशों के लिए भी महत्वपूर्ण है, जो वैश्विक व्यापार और संपर्क के लिए उनकी प्राथमिक पहुँच के रूप में कार्य करता है।
  • आर्थिक महत्व: फारस की खाड़ी से लेकर मलक्का जलडमरूमध्य तक, हिंद महासागर दुनिया के कई देशों के लिए मुख्य व्यापारिक धमनी के रूप में कार्य करता है। अतः हिंद महासागर एक महत्वपूर्ण वैश्विक व्यापार मार्ग है क्योंकि यह –
    • यह दुनिया के 70% कंटेनर ट्रैफ़िक को व्यवस्थित करता है।
    • यह भारत के 80% बाहरी व्यापार और 90% ऊर्जा व्यापार को सुगम बनाता है।
  • वैश्विक उपस्थिति: अतः हिंद महासागर आज एक रणनीतिक क्षेत्र है, जहां सैन्य और वाणिज्यिक गतिविधियां बढ़ रही हैं। अमेरिका और ब्रिटेन अपने डिएगो गार्सिया बेस के साथ और फ्रांस रीयूनियन द्वीप के साथ पहले से ही इस क्षेत्र में सक्रिय हैं।
    • इसके अलावा, चीन अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए इस क्षेत्र में भारी निवेश कर रहा है।

भारत द्वारा अपने समुद्री प्रभाव को बढ़ाने के लिए उठाए गए कदम:

  • सागर नीति: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में, भारत ने एक सक्रिय समुद्री रणनीति अपनाई है। 2015 में शुरू की गई सागर पहल (क्षेत्र में सभी के लिए सुरक्षा और विकास) का उद्देश्य क्षेत्रीय स्थिरता और सहयोग को बढ़ाना है।
  • ब्लू वाटर नीति: भारत खुद को एक प्रभावशाली ब्लू-वाटर शक्ति और ग्लोबल साउथ के लिए एक अग्रणी आवाज़ के रूप में स्थापित करना चाहता है।

हिंद महासागर में उभरती चुनौतियाँ:

  • विवादित स्थान: हिंद महासागर बढ़ते साम्राज्यवाद व भौगोलिक महत्त्व के कारण एक बहुत ही विवादित स्थान बन गया है, जहाँ प्रमुख नौसैनिक बलों की सतह और पानी के नीचे की गतिविधियाँ होती रहती हैं।
  • चीन का प्रभाव: पारंपरिक रूप से यूरोपीय फर्मों द्वारा प्रबंधित किए जाने वाले पानी के नीचे के संचार नेटवर्क में अब चीनी निर्मित हुआवेई पनडुब्बी केबल शामिल हैं।
  • जोखिम एवं खतरे: इस क्षेत्र से संबंधित प्रमुख खतरों में शामिल हैं:
    • समुद्री डकैती और समुद्री आतंकवाद
    • अवैध मछली पकड़ना और हथियारों की तस्करी
    • जलवायु परिवर्तन और समुद्र का बढ़ता स्तर
    • आपदा राहत और निकासी सहित मानवीय संकट

क्षेत्रीय समुद्री नेतृत्व:

  • समुद्री शक्ति का सिद्धांत: अल्फ्रेड महान का सिद्धांत कहता है कि हिंद महासागर में समुद्री वर्चस्व वैश्विक प्रभाव की ओर ले जाता है।
  • रणनीतिक मंच: हिंद महासागर सम्मेलन क्षेत्रीय नेताओं को यह सुनिश्चित करने के लिए एक मंच प्रदान करता है कि हिंद महासागर उनके सामूहिक प्रबंधन के अधीन बना रहे।

निष्कर्ष :

हिंद-प्रशांत क्षेत्र में, एक प्रमुख शक्ति के रूप में भारत के उदय के लिए समुद्री सहयोग को मजबूत करना महत्वपूर्ण है। एक मजबूत नौसैनिक उपस्थिति, रणनीतिक साझेदारी और आर्थिक प्रभाव भारत को क्षेत्रीय गतिशीलता को आकार देने में सक्षम बनाएगा।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न: “हिंद महासागर क्षेत्र (आईओआर) अपने सामरिक महत्व और आर्थिक क्षमता के कारण वैश्विक भू-राजनीति के नए केंद्र के रूप में उभर रहा है।” इस कथन के संदर्भ में, बढ़ती वैश्विक शक्ति प्रतिस्पर्धा के बीच क्षेत्रीय स्थिरता सुनिश्चित करने और अपने राष्ट्रीय हितों को सुरक्षित करने में, भारत की भूमिका का विश्लेषण करें।

(15 अंक, 250 शब्द)

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