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उच्च शिक्षण संस्थानों में रैगिंग का खतरा

Lokesh Pal February 22, 2025 12:37 31 0

संदर्भ

हाल ही में केरल के कोट्टायम स्थित सरकारी नर्सिंग कॉलेज और तिरुवनंतपुरम स्थित सरकारी कार्यवत्तोम कॉलेज में रैगिंग की घटनाओं ने रैगिंग के मुद्दे को सुर्खियों में ला दिया है।

रैगिंग की परिभाषा

  • सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2001 के एक मामले (विश्व जागृति मिशन केस) में रैगिंग को परिभाषित किया था।
  • रैगिंग में शामिल है:
    • अव्यवस्थित आचरण: कोई भी ऐसा कार्य, चाहे वह बोला गया हो या लिखा गया हो, जो किसी नए/जूनियर छात्र को चिढ़ाता हो, उसके साथ अभद्र व्यवहार करता हो अथवा उसके साथ अनुचित तरीके से पेश आता हो।
    • उग्र/अनुशासनहीन व्यवहार: ऐसी गतिविधियाँ, जो नए/जूनियर छात्रों को परेशान, कठिनाई या मनोवैज्ञानिक नुकसान पहुँचाती हैं।
    • डर उत्पन्न करना: नए/जूनियर छात्रों में डर या आशंका उत्पन्न करने वाली गतिविधियाँ।
    • जबरन कार्रवाई: छात्रों से ऐसे कार्य करने के लिए कहना, जो वे सामान्य रूप से नहीं करते, जिससे उन्हें शर्मिंदगी या शर्मिंदगी महसूस हो।
    • प्रभाव: नए/जूनियर छात्रों के शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
  • शारीरिक, मनोवैज्ञानिक, लैंगिक या मौखिक दुर्व्यवहार हो सकता है।
  • अवसाद, चिंता और कभी-कभी आत्महत्या जैसे प्रतिकूल प्रभाव भी हो सकते हैं।

रैगिंग की घटनाएँ तथा आँकड़े

  • केरल मामला (वर्ष 2025): कोट्टायम के एक सरकारी नर्सिंग कॉलेज का एक वीडियो दर्शाता है कि एक छात्र को बाँधकर पीटा जा रहा है, जो रैगिंग के लगातार जारी मुद्दे को उजागर करता है।
  • UGC हेल्पलाइन डेटा (वर्ष 2009-2023)
    • रैगिंग की 8,000 से अधिक शिकायतें दर्ज की गईं।
    • वर्ष 2012 (358) से वर्ष 2022 (1,103) तक शिकायतों में 208% की वृद्धि।
    • वर्ष 2012 से वर्ष 2023 तक रैगिंग के कारण कथित तौर पर 78 छात्रों की मौत।
  • राज्यवार आँकड़े
    • मौतें: महाराष्ट्र (10), उत्तर प्रदेश तथा तमिलनाडु (7-7), तेलंगाना (6), आंध्र प्रदेश (5), मध्य प्रदेश (4)।
    • शिकायतें: उत्तर प्रदेश (1,202), मध्य प्रदेश (795), पश्चिम बंगाल (728), ओडिशा (517), बिहार (476), महाराष्ट्र (393)।
  • सर्वाधिक शिकायतें वाली संस्थाएँ
    • बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (72)
    • मौलाना आजाद राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, भोपाल (53)
    • MKCG मेडिकल कॉलेज, बेरहामपुर (49)

रैगिंग के व्यापक प्रकार

रैगिंग को उसकी गंभीरता और प्रकृति के आधार पर तीन मुख्य प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है:

  • हल्की रैगिंग: अक्सर इसे ‘परिचय सत्र’ के रूप में प्रस्तुत किया जाता है, लेकिन यह नए छात्रों के लिए अपमानजनक हो सकता है। उदाहरण:
    • जूनियर्स को एक खास तरीके से अपना परिचय देने के लिए (जैसे, सीनियर्स के सामने झुकना, ‘सर’ या ‘मैडम’ जैसे खास अभिवादन का प्रयोग करना) कहना।
    • ड्रेस कोड लागू करना (जैसे, बेमेल कपड़े पहनना, सिर मुंडवाना)।
    • नए छात्रों को सार्वजनिक स्थानों पर गाना, नाचना या अभिनय करवाना।
    • लहजे, तौर-तरीकों या शारीरिक बनावट का मजाक उड़ाना।
    • मनोवैज्ञानिक प्रभाव: इससे आत्म-सम्मान में कमी, चिंता और भावनात्मक संकट हो सकता है।
  • मध्यम रैगिंग: इसमें ऐसी जबरदस्ती की गई गतिविधियाँ शामिल हैं, जो असुविधा, भय या शर्मिंदगी का कारण बनती हैं। उदाहरण:
    • नए छात्रों को कार्य निपटाने या वरिष्ठों की सेवा करने के लिए मजबूर करना।
    • उन्हें अपमानजनक भाषा का उपयोग करने या दूसरों का अपमान करने के लिए मजबूर करना।
    • नए छात्रों से अपमानजनक कार्य करने के लिए (जैसे- अजनबियों को प्रपोज करना, अश्लील चुटकुले सुनाना) कहना।
    • सामाजिक अलगाव: नए छात्रों को अनदेखा किया जाना, बहिष्कृत किया जाना या साथियों के साथ घुलने-मिलने से प्रतिबंधित किया जाना।
    • प्रभाव: सामाजिक चिंता, हीन भावना और अवसाद की ओर ले जाता है।
  • गंभीर रैगिंग: सबसे खतरनाक रूप, जो अक्सर गंभीर शारीरिक, मनोवैज्ञानिक या यौन शोषण का कारण बनता है। उदाहरण के लिए
    • मारपीट, थप्पड़ मारना या शारीरिक हमला।
    • जबरन शराब पीना, धूम्रपान या मादक पदार्थों का सेवन।
    • यौन उत्पीड़न (जैसे, कपड़े उतारना, अश्लील हरकतें करने के लिए मजबूर करना)।
    • यातना या अत्यधिक अपमान, जिससे आघात, आत्महत्या का प्रयास या यहाँ तक कि मृत्यु भी हो सकती है।
    • कानूनी परिणाम: IPC की धारा 323, 324, 354, 506, 305 और 306 के तहत दंडनीय।

भारत में रैगिंग क्यों जारी है?

सख्त प्रवर्तन का अभाव

  • कानूनों का कमजोर क्रियान्वयन: सर्वोच्च न्यायालय के दिशा-निर्देशों और UGC विनियमों का अक्सर शैक्षणिक संस्थानों द्वारा सख्ती से पालन नहीं किया जाता है।
    • UGC विनियमों का खंड 9.4, जो गैर-अनुपालन करने वाले कॉलेजों के खिलाफ कार्रवाई की अनुमति देता है, वर्ष 2009 के बाद से कभी भी लागू नहीं किया गया है।
  • संस्थागत निष्क्रियता: कई कॉलेज और विश्वविद्यालय रैगिंग की शिकायतों को ‘मामूली विवाद’ या ‘आंतरिक झगड़े’ के रूप में खारिज कर देते हैं।
    • अधिकारी अक्सर FIR दर्ज करने या अपराधियों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई करने में विफल रहते हैं।

सांस्कृतिक सामान्यीकरण

  • संस्कार: रैगिंग को अक्सर कई कुलीन संस्थानों में ‘परंपरा’ या ‘दीक्षा अनुष्ठान’ के रूप में देखा जाता है।
    • वरिष्ठ इसे जूनियर के साथ ‘विवाद हल करना (Break the Ice)’ या ‘संबंध बनाने’ के तरीके के रूप में उचित ठहराते हैं।
  • साथियों का दबाव: जिन छात्रों को अतीत में रैगिंग का सामना करना पड़ा था, वे अक्सर इस चक्र को जारी रखते हैं, यह मानते हुए कि जूनियर को रैग करना उनका ‘अधिकार’ है।
    • ‘हमने कष्ट सहा है, इसलिए उन्हें भी सहना चाहिए’ की मानसिकता प्रचलित है।

जागरूकता तथा संवेदनशीलता का अभाव

  • परिणामों की अज्ञानता: कई छात्र, विशेष रूप से वरिष्ठ, रैगिंग से होने वाले गंभीर मनोवैज्ञानिक और शारीरिक नुकसान से अनजान हैं।
    • संस्थान अक्सर छात्रों को रैगिंग के नकारात्मक प्रभावों के बारे में शिक्षित करने के लिए अभिविन्यास कार्यक्रम आयोजित करने में विफल रहते हैं।
  • आक्रामकता का सामान्यीकरण: स्कूलों में, शरारत को अक्सर सामान्य माना जाता है, जिससे छात्रों को लगता है कि आक्रामक व्यवहार स्वीकार्य है।

रिपोर्ट करने का डर

  • धमकी और प्रतिशोध: पीड़ितों को अक्सर यह डर रहता है कि अगर वे रैगिंग की शिकायत करते हैं तो वरिष्ठों से प्रतिशोध की कार्रवाई की जाएगी।
    • रिपोर्टिंग तंत्र में नाम न बताने की वजह से पीड़ित आगे आने से कतराते हैं।
  • सामाजिक कलंक: पीड़ितों को रैगिंग की शिकायत करने में शर्म या शर्मिंदगी महसूस हो सकती है, उन्हें सामाजिक बहिष्कार या “कमजोर” करार दिए जाने का डर रहता है।

अपर्याप्त शिकायत निवारण तंत्र

  • अप्रभावी रैगिंग विरोधी समितियाँ: कागजों पर कई संस्थानों में रैगिंग विरोधी समितियाँ होती हैं, लेकिन वे अक्सर कार्य नहीं करतीं या उनमें अधिकार की कमी होती है।
    • शिकायतों को या तो नजरअंदाज कर दिया जाता है या उनका तुरंत समाधान नहीं किया जाता है।
  • जवाबदेही की कमी: संस्थाएँ अक्सर रैगिंग की घटनाओं की जिम्मेदारी लेने में विफल रहती हैं और उन्हें प्रणालीगत विफलताओं के बजाय ‘व्यक्तिगत व्यवहार’ पर दोष देती हैं।

कानूनी और परिभाषा संबंधी चुनौतियाँ

  • कोई स्पष्ट कानूनी परिभाषा नहीं: भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत रैगिंग को एक विशिष्ट अपराध के रूप में परिभाषित नहीं किया गया है, जिसके कारण असंगत प्रवर्तन होता है।
    • इस पर अक्सर गलत तरीके से रोक लगाने (IPC की धारा 339) या गलत तरीके से कारावास (IPC की धारा 340) जैसे सामान्य प्रावधानों के तहत मुकदमा चलाया जाता है।
  • देरी से न्याय: रैगिंग के मामलों में कानूनी कार्यवाही अक्सर धीमी होती है और अपराधियों को शायद ही कभी गंभीर परिणामों का सामना करना पड़ता है।

प्रतिस्पर्द्धी और पदानुक्रमित वातावरण 

  • पावर डायनेमिक्स: पेशेवर कॉलेजों (जैसे- मेडिकल और इंजीनियरिंग) में, सीनियर अक्सर अत्यधिक प्रतिस्पर्द्धी माहौल में जूनियर पर प्रभुत्व जताने के लिए रैगिंग का इस्तेमाल करते हैं।
    • संस्थानों की पदानुक्रमिक संरचना वरिष्ठता और अधिकार की संस्कृति को बढ़ावा देती है।
  • अभिजात्यवाद: अभिजात्य संस्थान अक्सर रैगिंग को “परंपरा” के रूप में उचित ठहराते हैं, जिससे इसे समाप्त करना जटिल हो जाता है।

छात्र सहायता प्रणालियों का अभाव

  • अपर्याप्त परामर्श सेवाएँ: कई संस्थानों में रैगिंग के पीड़ितों की सहायता के लिए उचित परामर्श सेवाओं का अभाव है।
    • रैगिंग के कारण मनोवैज्ञानिक आघात का अनुभव करने वाले छात्रों को अक्सर वह सहायता नहीं मिल पाती, जिसकी उन्हें आवश्यकता होती है।
  • सहपाठियों के सहयोग का अभाव: अक्सर डर या उदासीनता के कारण आस-पास के लोग या सहपाठी रैगिंग की घटनाओं में हस्तक्षेप करने अथवा रिपोर्ट करने में विफल रहते हैं।

सामाजिक दृष्टिकोण

  • हिंसा का सामान्यीकरण: आक्रामक व्यवहार को अक्सर समाज में सामान्य माना जाता है, जिससे छात्रों को लगता है कि रैगिंग हानिरहित या यहाँ तक कि लाभकारी भी है।
    • यह विचार कि रैगिंग छात्रों को “सख्त बनाती है” एक आम गलत धारणा है।
  • लैंगिक और जातिगत गतिशीलता: रैगिंग अक्सर भेदभावपूर्ण रूप लेती है, लैंगिक, जाति या क्षेत्रीय पृष्ठभूमि के आधार पर छात्रों को निशाना बनाती है।

आर्थिक एवं प्रशासनिक बाधाएँ

  • संसाधनों की कमी: कई संस्थानों, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में, रैगिंग विरोधी उपायों को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए संसाधनों की कमी है।
    • सीसीटीवी कैमरे लगाना, हेल्पलाइन स्थापित करना और नियमित निरीक्षण करना वित्तीय और प्रशासनिक सहायता की आवश्यकता है।
  • अधिकारियों पर अधिक बोझ: कॉलेज प्रशासन अक्सर अन्य जिम्मेदारियों के बोझ तले दब जाता है, जिससे रैगिंग से निपटने में लापरवाही होती है।

शैक्षणिक संस्थानों में रैगिंग के निहितार्थ

  • शारीरिक क्षति तथा चोटें: रैगिंग में अक्सर शारीरिक शोषण शामिल होता है, जिससे चोट, दिव्यांगता या यहाँ तक कि मृत्यु भी हो सकती है।
    • वर्ष 2023 में, जाधवपुर विश्वविद्यालय में एक 17 वर्षीय छात्र की कथित रैगिंग के बाद छात्रावास की बालकनी से गिरने से मृत्यु हो गई। इस घटना में शारीरिक हमला और अपमान शामिल था।
  • छात्र आत्महत्याओं में वृद्धि: UGC डेटा (2012-2023) में पूरे भारत में रैगिंग के कारण 78 छात्रों की आत्महत्या दर्ज की गई।
    • KIIT (वर्ष 2025) में एक 20 वर्षीय छात्र ने कथित तौर पर उत्पीड़न और संस्थागत सहायता की कमी का सामना करने के बाद आत्महत्या कर ली।
  • मनोवैज्ञानिक आघात: रैगिंग से गंभीर मनोवैज्ञानिक क्षति होती है, जिसमें चिंता, अवसाद और अभिघातजन्य तनाव विकार (PTSD) शामिल हैं।
    • वर्ष 2024 में, गुजरात मेडिकल कॉलेज में एक छात्र की रैगिंग के दौरान घंटों खड़े रहने के लिए मजबूर होने के बाद मृत्यु हो गई। इस घटना ने कई जूनियर को आघात पहुँचाया और अपने वरिष्ठों से डरने लगे।
  • ड्रॉपआउट दरें तथा शैक्षणिक व्यवधान: रैगिंग के कारण छात्र संस्थानों से बाहर हो जाते हैं, जिससे उनकी शिक्षा और कॅरियर की संभावनाएँ बाधित होती हैं।
    • वर्ष 2018 में, तमिलनाडु के एक प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग कॉलेज में एक छात्रा ने रैगिंग के दौरान यौन उत्पीड़न और अपमान का सामना करने के बाद कॉलेज छोड़ दिया।
  • हिंसा तथा आक्रामकता का सामान्यीकरण: रैगिंग हिंसक और आक्रामक व्यवहार को सामान्य बनाती है, जिससे कैंपस में नकारात्मक संस्कृति का निर्माण होता है।
    • केरल नर्सिंग कॉलेज केस (वर्ष 2025) में, एक वीडियो में दिखाया गया था कि एक छात्र को खाट से बाँधा जा रहा था और वरिष्ठों द्वारा प्रताड़ित किया जा रहा था।
  • भय और धमकी: रैगिंग से भय और धमकी का माहौल बनता है, जिससे छात्र घटनाओं की रिपोर्ट करने से हतोत्साहित होते हैं।
    • वर्ष 2022 में, कोलकाता विश्वविद्यालय में एक छात्र को रैगिंग की रिपोर्ट करने पर गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी दी गई। 
  • सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव: रैगिंग हानिकारक सामाजिक पदानुक्रम को मजबूत करती है और लिंग, जाति और क्षेत्र के आधार पर भेदभाव को बढ़ावा देती है। 
    • वर्ष 2020 में, महाराष्ट्र के एक कॉलेज में एक दलित छात्र को रैगिंग के दौरान जाति आधारित गालियों और अपमान का सामना करना पड़ा। 
    • UGC की एक रिपोर्ट से पता चला है कि रैगिंग की 30% घटनाओं में यौन उत्पीड़न या लिंग आधारित हिंसा शामिल थी।

रैगिंग से संबंधित समितियाँ

  • राघवन समिति 2007
    • पूर्व CBI निदेशक आर.के. राघवन की अध्यक्षता में राघवन समिति का गठन वर्ष 2007 में शैक्षणिक संस्थानों में रैगिंग के मुद्दे को संबोधित करने के लिए किया गया था।
    • इन सिफारिशों को बाद में वर्ष 2009 में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) द्वारा औपचारिक रूप दिया गया।
  • राघवन समिति की सिफारिशें
    • रैगिंग विरोधी समितियाँ: विश्वविद्यालय, कॉलेज और विभाग स्तर पर रैगिंग विरोधी समितियाँ स्थापित करना।
    • रैगिंग विरोधी दस्ते: छात्रावासों और परिसरों में अचानक छापे और निरीक्षण करने के लिए रैगिंग विरोधी दस्ते बनाएँ।
    • छात्रों से शपथ-पत्र: छात्रों और उनके अभिभावकों के लिए प्रवेश के समय शपथ पत्र प्रस्तुत करना अनिवार्य करना, जिसमें रैगिंग में शामिल न होने का वचन दिया गया हो।
    • सार्वजनिक घोषणा: संस्थानों को पोस्टर, नोटिस और आधिकारिक संचार के माध्यम से रैगिंग को रोकने के लिए अपनी प्रतिबद्धता सार्वजनिक रूप से घोषित करनी चाहिए।
    • अनुकरणीय दंड: रैगिंग के दोषी पाए जाने वालों के लिए सख्त और अनुकरणीय दंड लागू करें, जिसमें निलंबन, निष्कासन और छात्रवृत्ति रद्द करना शामिल है।
    • FIR दर्ज करना: यह अनिवार्य करना कि संस्थान रैगिंग की शिकायत मिलने के 24 घंटे के भीतर पुलिस में प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज करें।
    • अनुशासनात्मक कार्रवाई: ऐसे संस्थानों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करना, जो रैगिंग को रोकने या शिकायतों का तुरंत समाधान करने में विफल रहते हैं।
    • जागरूकता अभियान: छात्रों, शिक्षकों और अभिभावकों को रैगिंग के नकारात्मक प्रभावों के बारे में शिक्षित करने के लिए नियमित जागरूकता अभियान चलाना।
    • रैगिंग विरोधी हेल्पलाइन: 24/7 एंटी-रैगिंग हेल्पलाइन स्थापित करें जहाँ छात्र गुमनाम रूप से घटनाओं की रिपोर्ट कर सकें।
    • कानूनी ढाँचा: रैगिंग को एक आपराधिक अपराध के रूप में देखें और सुनिश्चित करें कि अपराधियों को कानूनी परिणामों का सामना करना पड़े।
    • संस्थाओं की जवाबदेही: रैगिंग को रोकने या शिकायतों का समाधान करने में विफल रहने के लिए संस्थानों को जवाबदेह ठहराएँ।
    • पाठ्यक्रम में समावेशन: NCERT तथा SCERT शिक्षा पाठ्यक्रम में “मानवाधिकार” के तहत रैगिंग को एक विषय के रूप में जोड़ने पर विचार करेंगे।
  • उन्नी समिति
    • वर्ष 1999 के मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) से रैगिंग को रोकने के लिए विश्वविद्यालयों को दिशा-निर्देश जारी करने को कहा।
    • UGC  ने रैगिंग की जाँच करने और रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के रजिस्ट्रार प्रोफेसर केपीएस उन्नी के नेतृत्व में चार सदस्यीय समिति का गठन किया।
    • इसने रैगिंग को रोकने के लिए छात्र सुरक्षा, संस्थागत जवाबदेही और प्रभावी शिकायत निवारण तंत्र पर जोर दिया।

भारत में रैगिंग रोकने के लिए कानून

UGC विनियम (वर्ष 2009)

  • उच्च शिक्षण संस्थानों में रैगिंग की समस्या को रोकने के लिए UGC के नियम
    • ये नियम राघवन समिति की सिफारिशों पर आधारित थे।
    • धारा 9.4: UGC को रैगिंग रोकने में विफल रहने वाले संस्थानों के खिलाफ कार्रवाई करने की अनुमति देता है।

भारतीय न्याय संहिता (BNS), 2023

यद्यपि रैगिंग BNS के अंतर्गत कोई विशिष्ट अपराध नहीं है, फिर भी इसके लिए विभिन्न धाराओं के अंतर्गत मुकदमा चलाया जा सकता है:

  • धारा 329(1) (गलत तरीके से रोकना): किसी व्यक्ति को उस दिशा में जाने से रोकना, जिस दिशा में जाने का उसे अधिकार है, दण्डनीय है।
  • धारा 329(2) (गलत तरीके से बंधक बनाना): किसी व्यक्ति को गैर-कानूनी तरीके से बंधक बनाना।
  • धारा 351(2) (आपराधिक धमकी): किसी व्यक्ति को डराने के लिए धमकी देना या कार्य करना।
  • धारा 115(1) (स्वेच्छा से चोट पहुँचाना): शारीरिक नुकसान पहुँचाना।
  • धारा 74 (यौन दुराचार करने के लिए हमला या आपराधिक बल का प्रयोग): किसी महिला के साथ यौन दुराचार करने के लिए हमला या आपराधिक बल का प्रयोग करने पर दण्ड दिया जाता है।
  • धारा 108 (आत्महत्या के लिए उकसाना): यदि रैगिंग के कारण आत्महत्या होती है, तो अपराधियों पर उकसाने का आरोप लगाया जा सकता है।

राज्य-विशिष्ट रैगिंग विरोधी कानून

कई राज्यों ने रैगिंग रोकने के लिए अपने स्वयं के कानून बनाए हैं

  • केरल रैगिंग निषेध अधिनियम (1998): रैगिंग को परिभाषित करता है और आरोपी छात्रों को निलंबित या बर्खास्त करने का आदेश देता है।
    • संस्थानों को रैगिंग की घटनाओं के बारे में पुलिस को सूचित करने की आवश्यकता होती है।
    • रैगिंग की रिपोर्ट न करने को “समझा गया उकसावा” माना जाता है।
  • आंध्र प्रदेश रैगिंग निषेध अधिनियम (1997): कारावास और जुर्माने सहित सख्त दंड का प्रावधान करता है।
    • कॉलेजों में रैगिंग विरोधी समितियों के गठन का आदेश देता है।
  • महाराष्ट्र रैगिंग निषेध अधिनियम (1999): रैगिंग के लिए निष्कासन और आपराधिक आरोपों सहित दंड का प्रावधान करता है।
    • संस्थानों को रैगिंग विरोधी नोटिस प्रमुखता से प्रदर्शित करने की आवश्यकता होती है।
  • असम रैगिंग निषेध अधिनियम (1998): छात्रावासों और परिसरों में रैगिंग को रोकने पर ध्यान केंद्रित करते हुए अन्य राज्य कानूनों के समान प्रावधान।

अन्य कानूनी प्रावधान

  • यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम (2012)
    • यदि रैगिंग में नाबालिगों का यौन उत्पीड़न या हमला शामिल है, तो अपराधियों पर POCSO के तहत आरोप लगाया जा सकता है।
    • अपराध की गंभीरता के आधार पर सजा में 3 वर्ष से लेकर आजीवन कारावास तक की सजा शामिल है।
  • सूचना प्रौद्योगिकी (IT) अधिनियम (2000)
    • साइबर रैगिंग (जैसे, ऑनलाइन उत्पीड़न या धमकाना) पर IT अधिनियम के तहत मुकदमा चलाया जा सकता है।
    • धारा 66A (अब निरस्त) और धारा 67 (अश्लील सामग्री प्रकाशित करना) का इस्तेमाल ऑनलाइन रैगिंग से निपटने के लिए किया गया था।

रैगिंग पर सर्वोच्च न्यायालय के उल्लेखनीय मामले

  • विश्व जागृति मिशन बनाम केंद्र सरकार (वर्ष 2001): रैगिंग को जूनियर्स को नुकसान पहुँचाने वाले अव्यवस्थित आचरण के रूप में परिभाषित किया गया; गंभीर मामलों के लिए एंटी-रैगिंग कमेटियों और एफआईआर को अनिवार्य बनाया गया।
  • अमन काचरू केस (वर्ष 2009): अमन काचरू की मौत के बाद, कोर्ट ने रैगिंग को एक आपराधिक अपराध करार दिया और अपराधियों को 4 वर्ष की जेल की सजा सुनाई।
  • केरल विश्वविद्यालय बनाम काउंसिल, प्रिंसिपल, कॉलेज (वर्ष 2009): रैगिंग को आपराधिक अपराध घोषित किया गया; संस्थानों को निर्देश दिया गया कि वे रैगिंग विरोधी समितियाँ गठित करें तथा 24 घंटे के भीतर FIR दर्ज करें।
  • एस. हरीश बनाम तमिलनाडु राज्य (वर्ष 2015): रैगिंग को मानवाधिकारों का उल्लंघन बताया; UGC विनियमों के सख्त क्रियान्वयन और पीड़ितों के लिए काउंसलिंग पर जोर दिया।
  • जादवपुर विश्वविद्यालय केस (वर्ष 2023): रैगिंग के कारण एक छात्र की मौत का स्वतः संज्ञान लिया; उन्होंने कड़ी निगरानी, ​​सीसीटीवी निगरानी और जवाबदेही की माँग की।

रैगिंग उन्मूलन की दिशा में आगे की राह

  • कानूनों का सख्ती से पालन: UGC विनियमन (2009) और सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों का सख्ती से पालन सुनिश्चित करना।
    • रैगिंग को रोकने या शिकायतों का समाधान करने में विफल रहने पर संस्थानों को जवाबदेह ठहराएँ।
  • जागरूकता और संवेदनशीलता: छात्रों और कर्मचारियों को रैगिंग के हानिकारक प्रभावों के बारे में शिक्षित करने के लिए नियमित रूप से अभिविन्यास कार्यक्रम और कार्यशालाएँ आयोजित करना।
    • जागरूकता फैलाने और सम्मान तथा समावेशिता की संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए मीडिया अभियानों का उपयोग करना।
  • शिकायत निवारण तंत्र को मजबूत करना: अनाम रिपोर्टिंग के लिए 24/7 हेल्पलाइन और सुरक्षित शिकायत बॉक्स स्थापित करना।
    • शिकायतों पर समय पर कार्रवाई सुनिश्चित करना तथा मुखबिरों को प्रतिशोध से बचाएँ।
  • निगरानी एवं परिवीक्षण: गतिविधियों की निगरानी के लिए छात्रावासों, सामान्य क्षेत्रों और परिसरों में सीसीटीवी कैमरे लगाएँ।
  • एंटी-रैगिंग दस्तों द्वारा अचानक छापे और निरीक्षण करना।
  • दंडात्मक उपाय: अपराधियों के लिए निलंबन, निष्कासन और आपराधिक आरोपों सहित सख्त दंड लगाएँ।
    • रैगिंग रोकने में विफल रहने वाले संस्थानों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करना।
  • परामर्श और सहायता प्रणाली: रैगिंग के पीड़ितों को आघात से निपटने में मदद करने के लिए परामर्श सेवाएँ प्रदान करना।
    • रैगिंग के प्रत्यक्षदर्शी छात्रों को सहायता प्रदान करना और उन्हें घटनाओं की रिपोर्ट करने के लिए प्रोत्साहित करना।
  • समुदाय और साथियों की भागीदारी: वरिष्ठ छात्रों को मार्गदर्शक के रूप में कार्य करने और सकारात्मक परिसर संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए प्रेरित करना।
    • रैगिंग विरोधी पहल में माता-पिता और स्थानीय समुदायों को शामिल करना।

निष्कर्ष

रैगिंग एक मूलभूत समस्या है, जिसके लिए छात्रों, संस्थानों और अधिकारियों के सामूहिक प्रयास की आवश्यकता है। कानूनों को सख्ती से लागू करके, जागरूकता बढ़ाकर और सम्मान की संस्कृति को बढ़ावा देकर, भारत रैगिंग को समाप्त किया जा सकता है तथा सभी छात्रों के लिए एक सुरक्षित और समावेशी वातावरण बना सकता है।

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