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भारतीय विश्वविद्यालयों में रैगिंग की समस्या

Lokesh Pal February 24, 2025 05:15 8 0

संदर्भ: 

कोट्टायम के एक सरकारी नर्सिंग कॉलेज में हाल ही में हुई रैगिंग की घटना से लोगों में व्यापक असंतोष फैल गया है|

उच्चतर शिक्षा संस्थानों में रैगिंग का स्याह पक्ष

  • रैगिंग को प्रायः एक संस्कार के रूप में देखा जाता है, जो नए विद्यार्थियों को उच्चतर शिक्षा   संस्थानों (HEI) के परिसर में समायोजित होने में मदद करता है। 
  • जबकि वरिष्ठ विद्यार्थियों के साथ स्वस्थ व्यवहार से जूनियर्स अथवा कनिष्ठों को विश्वविद्यालय परिसर की परम्पराओं को सीखने और एक सहयोगी परिदृश्य को बढ़ावा देने में मदद मिल सकती है, रैगिंग एक गंभीर मुद्दा बन गया है, क्योंकि इससे उत्पीड़न, अपमान और हिंसा के मामले सामने आते हैं। 
  • ये घटनाएँ दीर्घकालिक आघात का कारण बन सकती हैं तथा मैत्रीपूर्ण एवं समावेशी परिसर वातावरण बनाने के उद्देश्य को कमजोर कर सकती हैं।
  • परंपरा से आतंक तक : रैगिंग विद्यार्थियों के बीच मेलजोल और एकीकरण का एक तरीका होना चाहिए, लेकिन यह अक्सर उत्पीड़न का एक खतरनाक रूप बन जाता है। 
    • उत्पीड़न का साधन : सहायक वातावरण उपलब्ध कराने के बजाय, रैगिंग हिंसक व्यवहार से जुड़ी होती है, जिससे सौहार्दपूर्ण वातावरण के बजाय भय का माहौल उत्पन्न होता है। 
    • रैगिंग या आपराधिक मंशा? : रैगिंग के नकारात्मक प्रभाव अनेक दुखद घटनाओं से उजागर हुए हैं, जिनमें केरल के कोट्टायम नर्सिंग कॉलेज और तिरुवनंतपुरम के करियावट्टोम कॉलेज की घटनाएँ शामिल हैं, जो परंपरा की आड़ में रैगिंग की खराब  प्रवृत्ति को उजागर करती हैं।

कानूनी उपाय

  • विभिन्न मामले और रैगिंग विरोधी नियम : सर्वोच्च न्यायालय ने 2001 के विश्व जागृति मिशन मामले में रैगिंग विरोधी दिशा-निर्देश जारी किए थे।
    • बाद में, अमन काचरू की दुखद मृत्यु के कारण राघवन समिति का गठन हुआ। समिति की सिफारिशें विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी), 2009 के रैगिंग विरोधी नियमों की नींव बनीं।
  • कानूनी उपायों के बावजूद हिंसा जारी : 2012 से 2023 के बीच रैगिंग के कारण कुल 78 विद्यार्थियों की मृत्यु हो गई और कई अन्य को गंभीर दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ा। 
    • 2022 में आईआईटी खड़गपुर के विद्यार्थी फैजान अहमद की मृत्यु इसका हालिया  उदाहरण है। शुरुआत में आत्महत्या का संदेह होने के बाद फैजान के मामले की अब हत्या के तौर पर जाँच की जा रही है।

वर्तमान उपायों की प्रभावशीलता का पुनर्मूल्यांकन

  • अकेले कानूनी ढाँचा पर्याप्त नहीं : यद्यपि रैगिंग विरोधी दिशा-निर्देशों को क्रियान्वित किया गया है, लेकिन उनका प्रवर्तन असंगत बना हुआ है, साथ ही संस्थागत संस्कृति में भी कोई विशेष परिवर्तन नहीं आया है। 
  • सक्रिय निगरानी और सांस्कृतिक परिवर्तन : रैगिंग को समाप्त करने के लिए संस्थानों को सक्रिय दृष्टिकोण अपनाना होगा, जिसमें बेहतर निगरानी, ​​सांस्कृतिक परिवर्तन और विनियमों का मजबूत प्रवर्तन शामिल है। 
    • इस परिवर्तन में सकारात्मक वरिष्ठ-कनिष्ठ (senior-junior) संबंधों को बढ़ावा देना और एक ऐसा वातावरण तैयार करना शामिल है, जिसमें सम्मान, समावेशिता और मार्गदर्शन को महत्त्व दिया जाता हो।

व्यावहारिक रणनीतियाँ

  • व्यवहार संबंधी आकलन और निगरानी : उच्चतर शिक्षा संस्थानों को नए विद्यार्थियों के लिए सुरक्षित और स्वागत योग्य माहौल सुनिश्चित करने के लिए अपने कार्यों में व्यवहार संबंधी आकलन को एकीकृत करना चाहिए। सक्रिय निगरानी से संभावित खतरों के बारे में जानकारी मिल सकती है। 
  • परामर्श कार्यक्रम : संरचित सलाह कार्यक्रमों को बढ़ावा देने से विद्यार्थियों के बीच स्वस्थ वार्ता को बढ़ावा मिल सकता है। इन कार्यक्रमों में सम्मान, सहानुभूति और सहपाठियों के समर्थन पर बल दिया जाना चाहिए। 
    • जिन विद्यार्थियों में आपराधिक व्यवहार के लक्षण दिखाई देते हैं, उन्हें काउंसलिंग दी जानी चाहिए या रैगिंग रोकने के लिए अनुशासनात्मक कार्रवाई करनी चाहिए।
  • सोशल मीडिया का उपयोग : रैगिंग के परिणामों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए सोशल मीडिया का उपयोग किया जा सकता है, साथ ही विद्यार्थियों के व्यवहार पर भी नजर रखी जा सकती है।
  • शिकायत निपटान प्रणाली : उच्चतर शिक्षा संस्थानों को एक समयबद्ध ऑनलाइन शिकायत प्रणाली लागू करनी चाहिए, जो निष्पक्षता, पारदर्शिता और प्राकृतिक न्याय सुनिश्चित करे।
    • संरचनात्मक प्रणाली : इसकी शुरुआत छोटी किन्तु आवश्यक शिकायतों की जाँच  से होनी चाहिए, इसके बाद वर्गीकरण, मुद्दे की पहचान, मध्यस्थता और समाधान किया जाना चाहिए।
    • पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए शिकायतों को निपटाने वाले अधिकारियों के नाम और पदनाम सार्वजनिक रूप से सुलभ होने चाहिए।
  • अन्य उपाय : विश्वविद्यालयों को रैगिंग के प्रति शून्य सहिष्णुता की नीति अपनानी चाहिए तथा प्रत्येक विश्वविद्यालय का अपना स्वयं का रैगिंग विरोधी दस्ता (anti-ragging squad) होना चाहिए।

निष्कर्ष

स्पष्ट है कि रैगिंग की समस्या का कोई एक समाधान नहीं है। सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है, कि शैक्षणिक संस्थानों, विद्यार्थियों और पूरे समाज की सामूहिक कार्रवाई से ही एक निवास योग्य सुरक्षित वातावरण निर्मित किया जा सकता है।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न

कठोर कानूनी ढाँचे और सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों के बावजूद, भारतीय उच्चतर शिक्षा संस्थानों (HEI) में रैगिंग की प्रक्रिया जारी है। इसके लिए उत्तरदायी सामाजिक-सांस्कृतिक और संस्थागत कारकों का विश्लेषण कीजिए तथा इसे प्रभावी रूप से समाप्त करने के उपाय सुझाइए।

(15 अंक, 250 शब्द)

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