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वैश्विक आवश्यकता तथा भारतीय कार्यबल : एक अवसर या चुनौती

Lokesh Pal February 24, 2025 05:30 10 0

संदर्भ :

FICCI-KPMG द्वारा हाल ही में किए गए अध्ययन “भारतीय कार्यबल की वैश्विक गतिशीलता” में अनुमान लगाया गया है, कि वर्ष 2030 तक कुशल श्रमिकों की वैश्विक कमी 85.2 मिलियन से अधिक हो सकती है, जिससे अनुमानित $8.45 ट्रिलियन का अप्राप्त वार्षिक राजस्व (unrealized annual revenue) होगा, जो जर्मनी और जापान के संयुक्त सकल घरेलू उत्पाद के बराबर है।

मुख्य बिन्दु

  • कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IOT) में प्रगति वैश्विक रोज़गार बाजार को नया आकार दे रही है, जिसमें कई पारंपरिक श्रम-गहन भूमिकाओं का स्थान स्वचालन (ऑटोमेशन) ले रहा है। 
  • भारत में बड़ी संख्या में युवा कार्यशील जनसंख्या है। अगर भारत अपने युवाओं को प्रशिक्षित करता है, तो वह अपने कार्यबल को रणनीतिक रूप से व्यवस्थित कर सकता है और $8.45 ट्रिलियन की क्षमता का दोहन कर महत्त्वपूर्ण आर्थिक विकास कर सकता है।

कार्यबल गतिशीलता के लिए प्रमुख भौगोलिक क्षेत्र

  • मुख्य क्षेत्र : 
    • खाड़ी सहयोग परिषद (जीसीसी) के पास एक बड़ा निर्माण और विनिर्माण क्षेत्र है, जिसे 2030 तक कुशल श्रमिकों की आवश्यकता होगी।
    • यूरोप में वृद्ध होती आबादी को देखते हुए कुशल श्रमिकों की आवश्यकता होगी।
    • ऑस्ट्रेलिया में, जहाँ लोगों की तुलना में भूमि अधिक है, 2030 तक विभिन्न क्षेत्रों में कुशल श्रमिकों की भी आवश्यकता होगी।
      • इनमें से प्रत्येक क्षेत्र की विशिष्ट कार्यबल आवश्यकताएँ हैं, जिन्हें समझना भारत के लिए अपने कुशल श्रमिकों को प्रभावी ढंग से नियुक्त करने के लिए महत्त्वपूर्ण होगा।
  • सभी क्षेत्रों में समान माँग : क्षेत्रीय भिन्नताओं के बावजूद, स्वास्थ्य सेवा उपर्युक्त क्षेत्रों में एक समान आवश्यकता है | कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई), ऑटोमेशन, बिग डेटा और स्थिरता जैसे उभरते क्षेत्र कुशल श्रमिकों की भविष्य की माँग को बढ़ाएंगे।

चुनौतियों के निपटान हेतु प्रमुख सरकारी प्रयास

  • द्विपक्षीय तथा मुक्त व्यापार समझौते : भारत ने भारतीय श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए जीसीसी देशों के साथ कई द्विपक्षीय और मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) किए हैं। 
    • उदाहरण के लिए, संयुक्त भारत-यूएई विजन (Joint India-UAE Vision) में दोनों राष्ट्रों के बीच कौशल विकास  सहयोग के महत्त्व को मान्यता दी गई है, जिससे कुशल श्रमिकों के लिए सुगम आवागमन की सुविधा मिल सके।
  • कौशल विकास कार्यक्रम : भारत सरकार ने कौशल विकास कार्यक्रम (जैसे- स्किल इंडिया पहल) शुरू किए हैं, जिनका उद्देश्य श्रमिकों के कौशल को वैश्विक बाजार की आवश्यकताओं के अनुरूप बनाना है। 
    • ऑनलाइन भर्ती प्रणाली प्रदान करने के लिए डिजिटल प्लेटफॉर्म (जैसे- ई-माइग्रेट) भी स्थापित किए गए हैं, जो श्रमिकों के लिए विधिक सुरक्षा सुनिश्चित करते हैं और उन्हें शोषण से बचाते हैं।

संबंधित चुनौतियाँ

  • विनियामक बाधाएँ : कार्यबल गतिशीलता के लिए एक महत्त्वपूर्ण चुनौती विनियामक और आव्रजन बाधाएँ हैं, जैसे- जटिल वीज़ा प्रक्रियाएँ (शेंगेन वीज़ा) और कठोर कार्य परमिट विनियम।
  • शोषणकारी भर्ती प्रक्रियाएँ : भर्ती संबंधी कदाचार और मानव तस्करी प्रवासी श्रमिकों की सुरक्षा तथा अधिकारों के लिए गंभीर खतरा पैदा करते हैं। 
  • नीतिगत बाधाएँ और कौशल विकास : एक और चुनौती नीतिगत बाधाओं और आवश्यकतानुसार कौशल न होने में निहित है। उदाहरण के लिए, कई भारतीय डिग्रियाँ, विशेष रूप से चिकित्सा में सार्वभौमिक रूप से मान्यता प्राप्त नहीं हैं, जिसके परिणामस्वरूप योग्य पेशेवरों के लिए अल्प-रोज़गार या बेरोज़गारी उत्पन्न हो सकती है।
  • भाषाई और सांस्कृतिक बाधाएँ : भाषाई और सांस्कृतिक अनुकूलन चुनौतियाँ भी कार्यबल एकीकरण और दक्षता में बाधा डाल सकती हैं, जिससे श्रमिकों के लिए विदेशी बाजारों में सफल होने के लिए इन कौशलों को विकसित करना आवश्यक हो जाता है।

समाधान एवं उपाय

  • क्षेत्र-विशिष्ट कौशल प्रशिक्षण : भारत को वैश्विक स्तर पर विशिष्ट कौशल की माँग को पूरा करने के लिए, विशेष रूप से कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई), स्वचालन और स्थिरता जैसे उभरते क्षेत्रों में, लक्षित क्षेत्रों की आवश्यकताओं के अनुरूप कार्यबल प्रशिक्षण कार्यक्रमों को प्राथमिकता देनी चाहिए।
  • भर्ती प्रथाओं को विनियमित करना : शोषणकारी प्रथाओं और मानव तस्करी को रोकने के लिए भर्ती संस्थाओं पर कठोर विनियमन आवश्यक है। यह सुनिश्चित करना, कि श्रमिकों की सुरक्षा की जाए और उन्हें कानूनी प्रक्रियाओं के तहत भर्ती किया जाए, कुशल श्रम के एक विश्वसनीय स्रोत के रूप में भारत की प्रतिष्ठा में सुधार करेगा।
  • योग्यताओं की पारस्परिक मान्यता : शैक्षणिक और व्यावसायिक योग्यताओं की पारस्परिक मान्यता पर केंद्रित अंतर्राष्ट्रीय सहयोग से सीमापार कार्यबल एकीकरण और गतिशीलता को सुगम बनाने में मदद मिलेगी।
  • सार्वजनिक-निजी भागीदारी : केंद्र और राज्य सरकारों दोनों को कार्यबल प्रशिक्षण और वैश्विक रोज़गार सुविधा में निजी क्षेत्र की भागीदारी को प्रोत्साहित करना चाहिए। सार्वजनिक-निजी भागीदारी प्रशिक्षण कार्यक्रमों की गुणवत्ता को बढ़ा सकती है और भारतीय श्रमिकों के लिए अवसरों का विस्तार कर सकती है।
  • चक्रीय प्रवास और गतिशीलता को बढ़ावा देना : अस्थायी कार्य वीज़ा और रोटेशनल  कार्यबल मॉडल (rotational workforce models) को बढ़ावा देने से मेजबान देशों में जनसांख्यिकीय असंतुलन पैदा किए बिना श्रम की कमी को दूर करने में मदद मिल सकती है। चक्रीय प्रवास से श्रमिकों को अपने काम के बाद घर लौटते समय कई अर्थव्यवस्थाओं में योगदान करने का अवसर प्राप्त होता है।

भारत की वैश्विक स्थिति और आर्थिक विकास

  • भारत की प्रतिष्ठा में वृद्धि : अवैध प्रवास को रोककर और श्रमिकों को शोषण से बचाकर, भारत कुशल श्रम के एक विश्वसनीय आपूर्तिकर्ता के रूप में अपनी सकारात्मक प्रतिष्ठा बनाए रख सकता है। इससे देश को वैश्विक स्तर पर मजबूत कूटनीतिक और आर्थिक संबंध निर्मित करने में भी मदद मिलेगी।
  • आर्थिक विकास अनुमान : 16वें वित्त आयोग के अध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया के अनुसार, भारत का सकल घरेलू उत्पाद 2030 तक $6.5 ट्रिलियन से $9 ट्रिलियन तक पहुँच सकता है। इस अनुमान को वास्तविकता प्रदान करना, काफी हद तक $8.45 ट्रिलियन के वैश्विक श्रम बाजार अवसर तक पहुँचने में भारत की सफलता पर निर्भर करेगा।

निष्कर्ष

वैश्विक कौशल की कमी भारत के लिए कुशल श्रम उपलब्ध कराने में अग्रणी राष्ट्र के रूप में स्वयं को स्थापित करने का एक अनूठा अवसर प्रस्तुत करती है। भारत के कार्यबल का भविष्य वैश्विक माँग  के अनुकूल होने और प्रभावी ढंग से प्रतिक्रिया करने की इसकी क्षमता में निहित है, जो इसे अंतर्राष्ट्रीय श्रम बाजार में एक विशेष शक्ति बनाता है।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न

FICCI-KPMG रिपोर्ट में 2030 तक 85.2 मिलियन से अधिक कुशल श्रमिकों की वैश्विक कमी पर प्रकाश डाला गया है, जो भारत के लिए चुनौती और अवसर दोनों प्रस्तुत करता है। इस माँग को पूर्ण करने के लिए भारतीय क्षमता का विश्लेषण कीजिए और कार्यबल की गतिशीलता बढ़ाने हेतु नीतिगत उपाय सुझाइए ।

(15 अंक, 250 शब्द)

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