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सूर्यास्त के बाद महिलाओं की गिरफ़्तारी

Lokesh Pal February 27, 2025 03:07 17 0

संदर्भ

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS), 2023 के अनुसार सूर्यास्त के बाद और सूर्योदय से पहले महिलाओं को गिरफ्तार करना निर्देशात्मक है और अनिवार्य नहीं है, जैसा कि हाल ही में मद्रास उच्च न्यायालय ने निर्णय दिया है।

संबंधित तथ्य

  • मद्रास उच्च न्यायालय की मदुरै पीठ का यह निर्णय दीपा बनाम एस. विजयलक्ष्मी एवं अन्य मामले में दिया गया है।
  • निर्णय
    • उच्च न्यायालय की दो न्यायाधीशों वाली पीठ ने एक अपील में कहा कि दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 46(4) निर्देशात्मक है, न कि अनिवार्य है।
      • इसने उच्च न्यायालय के एकल न्यायाधीश के उस निर्णय को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि गिरफ्तारी CrPC की धारा 46(4) का उल्लंघन है।
    • अवैध नहीं: वैधानिक आवश्यकता का पालन न करने पर गिरफ्तारी को अवैध घोषित नहीं किया जा सकता है।
    • जनहित में नहीं: प्रक्रिया का यांत्रिक पालन जनहित को नुकसान पहुँचा सकता है क्योंकि इससे महिला अपराधी देश के कानून से बच सकती हैं।
    • सुरक्षा: उच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि निर्देश का उल्लंघन करने वाले अधिकारी को लिखित स्पष्टीकरण देना होगा।
    • दिशा-निर्देश: न्यायालय ने पुलिस को दिशा-निर्देश जारी करने का निर्देश दिया है, जिसमें स्पष्ट किया जाएगा कि असाधारण परिस्थितियाँ क्या होती हैं?
  • कारण: इस प्रावधान को अनिवार्य नहीं माना जा सकता है, क्योंकि इस धारा में प्रावधान के गैर-अनुपालन के परिणाम का उल्लेख नहीं किया गया है।

महिलाओं की गिरफ्तारी से संबंधित कानूनी प्रावधान

  • दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 46(4)
    • परिचय: यह धारा को वर्ष 2005 में जोड़ा गया था, जिसमें हिरासत में महिलाओं पर भारतीय विधि आयोग की 135वीं रिपोर्ट (1989) और वर्ष 1996 में विधि आयोग की 154वीं रिपोर्ट की सिफारिशों को कुछ परिवर्तनों के साथ स्वीकार किया गया था।
    • उद्देश्य: इसे महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए एक लाभकारी प्रावधान के रूप में शामिल किया गया था।
    • प्रावधान
      • किसी भी महिला को सूर्यास्त के बाद और सूर्योदय से पहले गिरफ्तार नहीं किया जाएगा।
      • असाधारण परिस्थितियाँ: गिरफ्तारी की आवश्यकता वाली असाधारण परिस्थितियों में, महिला पुलिस अधिकारी को लिखित रिपोर्ट देकर क्षेत्राधिकार मजिस्ट्रेट की पूर्व अनुमति लेनी होगी।
        • प्रावधान में यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि असाधारण स्थिति क्या होगी।
      • गिरफ्तार करने वाले पुलिस अधिकारी को महिला को शारीरिक रूप से स्पर्श नहीं करना चाहिए, जब तक कि वह महिला पुलिस अधिकारी न हो या परिस्थितियों के कारण ऐसा करना आवश्यक न हो।
  • भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 43(5)
    • यह पुलिस द्वारा किसी महिला की गिरफ्तारी के लिए CrPC की धारा 46(4) के समान है।
  • सर्वोच्च न्यायालय का रुख
    • सर्वोच्च न्यायालय ने महाराष्ट्र राज्य को दिए गए बॉम्बे उच्च न्यायालय के निर्देश पर टिप्पणी करते हुए कहा है कि किसी विशेष परिस्थिति में उक्त निर्देश का सख्ती से अनुपालन करने से व्यावहारिक कठिनाइयाँ उत्पन्न होंगी।
      • बॉम्बे उच्च न्यायालय का निर्देश: इसने सभी पुलिस अधिकारियों को निर्देश जारी किए कि किसी भी महिला को महिला कांस्टेबल की मौजूदगी के बिना हिरासत में नहीं लिया जाएगा, और किसी भी स्थिति में सूर्यास्त के बाद और सूर्योदय से पहले नहीं।

गलत गिरफ्तारी का उपाय

  • दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 358: इसमें गिरफ्तारी के लिए पर्याप्त आधार के बिना गिरफ्तार किए गए व्यक्तियों को मुआवजा देने का प्रावधान है।
  • भारतीय दंड संहिता की धारा 342: यदि किसी व्यक्ति को अवैध रूप से गिरफ्तार किया जाता है या जहाँ गिरफ्तारी दुर्भावनापूर्ण या बाह्य कारकों से प्रेरित सिद्ध होती है, तो संबंधित पुलिस अधिकारी पर गलत तरीके से हिरासत में रखने का मुकदमा चलाया जा सकता है।
  • बंदी प्रत्यक्षीकरण (Habeas Corpus): यह एक कानूनी उपाय है जो किसी व्यक्ति को न्यायालय के समक्ष गैरकानूनी हिरासत या कारावास को चुनौती देने की अनुमति देता है।
    • इस रिट को भारत के संविधान के अनुच्छेद 32 के अंतर्गत सर्वोच्च न्यायालय द्वारा तथा अनुच्छेद 226 के अंतर्गत उच्च न्यायालय द्वारा जारी किया जा सकता है।
  • सिविल मामले
    • पुलिस पर मुकदमा करना: गैरकानूनी गिरफ्तारी से होने वाली क्षति के लिए पुलिस या संबंधित प्राधिकारी के विरुद्ध सिविल मुकदमा दायर किया जा सकता है।

गिरफ्तार हुई महिला के अधिकार

  • निःशुल्क कानूनी सहायता का अधिकार: भारतीय संविधान के अनुच्छेद 39A में सिविल या आपराधिक कार्यवाही का खर्च वहन करने में असमर्थ व्यक्तियों को निःशुल्क कानूनी सहायता प्रदान करने का प्रावधान है।
    • CrPC की धारा 304: विधिक सेवा प्राधिकरण नियुक्त कानूनी परामर्शदाता की मुद्रण लागत और अनुवाद शुल्क सहित कानूनी कार्यवाही की लागत वहन करेगा।
  • दुर्व्यवहार के विरुद्ध अधिकार
    • धारा 46(1), CrPC की शर्त: किसी आरोपी महिला की गिरफ्तारी के मामले में, गिरफ्तारी की मौखिक धमकी पर हिरासत में उसकी प्रस्तुति को माना जाएगा।
    • किसी आरोपी महिला की गिरफ्तारी की प्रक्रिया में केवल महिला पुलिस अधिकारी को ही उसे स्पर्श करने की अनुमति है।
  • गिरफ्तारी और जमानत के आधार के संबंध में जानकारी पाने का अधिकार
    • धारा 50(1), CrPC: सभी गिरफ्तार व्यक्ति अपनी गिरफ्तारी के आधार के बारे में पुलिस अधिकारी से जानकारी प्राप्त करने के हकदार हैं।
    • धारा 50(2), CrPC: किसी महिला को उसके इस अधिकार के बारे में जानकारी दी जानी चाहिए कि यदि उसे गैर-जमानती अपराध के अलावा किसी अन्य अपराध के लिए बिना वारंट के गिरफ्तार किया जाता है, तो उसकी ओर से जमानतदारों की व्यवस्था करने के बाद उसे जमानत पर रिहा किया जा सकता है।
  • हिरासत के दौरान अधिकार
    • धारा 57 CrPC: उचित परिस्थितियों में गिरफ्तार व्यक्ति को 24 घंटे से अधिक समय तक पुलिस हिरासत में नहीं रखा जा सकता है।
      • महिला: उसकी हिरासत की व्यवस्था शालीनता और महिला की विनम्रता को ध्यान में रखते हुए की जानी चाहिए। गिरफ्तार किए गए पुरुषों और महिलाओं को एक ही लॉकअप में नहीं रखा जा सकता है।

उल्लेखनीय मामले

  • भारती एस कंधार बनाम मारुति गोविंद जाधव 2012: इस मामले में मुख्य मुद्दा गिरफ्तारी प्रक्रियाओं का घोर उल्लंघन था, जिसमें न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि पुलिस कार्रवाई ने संहिता की धारा 46 की उपधारा (4) का उल्लंघन किया है।
    • यह प्रावधान महिलाओं को सूर्यास्त के बाद और सूर्योदय से पहले बिना किसी उचित कारण के गिरफ्तार किए जाने से बचाता है। ऐसी गिरफ्तारी करने के लिए, असाधारण परिस्थितियाँ मौजूद होनी चाहिए और न्यायिक मजिस्ट्रेट से पूर्व अनुमति की आवश्यकता होती है।
  • शीला बारसे बनाम महाराष्ट्र राज्य 1983: एक पत्रकार द्वारा दायर ‘रिट याचिका’ में बॉम्बे सेंट्रल जेल में महिला कैदियों पर पुलिस द्वारा किए गए हमलों और उन पर किए गए अत्याचारों का उल्लेख किया गया था।
    • निर्देश
      • महिला संदिग्धों का पृथक्करण: महिला संदिग्धों को हिरासत में रखने के लिए विशेष रूप से सुरक्षित इलाकों में चार या पाँच पुलिस लॉक-अप चुनें, जहाँ महिला कांस्टेबलों की निगरानी में रहें। महिला संदिग्धों को ऐसे लॉक-अप में नहीं रखा जाना चाहिए जहाँ पुरुष संदिग्धों को रखा जाता है।
      • महिला पूछताछ प्रक्रिया: महिलाओं से पूछताछ केवल महिला पुलिस अधिकारियों या कांस्टेबलों की मौजूदगी में ही की जानी चाहिए।
      • गिरफ्तार किए गए व्यक्तियों को सूचित करना: गिरफ्तार किए गए व्यक्तियों को तुरंत उनकी गिरफ्तारी के कारणों के बारे में सूचित किया जाना चाहिए।
      • कानूनी सहायता समिति को अधिसूचना: जब किसी व्यक्ति को गिरफ्तार किया जाता है और उसे पुलिस लॉक-अप में ले जाया जाता है, तो पुलिस को तुरंत निकटतम कानूनी सहायता समिति को सूचित करना चाहिए।

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