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भारत और अमेरिका के बीच पारस्परिक टैरिफ प्रभाव को कम करने के लिए वार्ता

Lokesh Pal February 27, 2025 03:10 17 0

संदर्भ

भारत एवं अमेरिका दोनों देशों द्वारा लगाए गए पारस्परिक शुल्कों के प्रभाव को कम करने के लिए वार्ता कर रहे हैं।

  • इसका उद्देश्य व्यापारिक अवरोधों को कम करना और वर्ष 2025 के अंत तक व्यापार समझौते को अंतिम रूप देना है।

पारस्परिक टैरिफ के बारे में

  • यदि देश A, देश B से आयात पर टैरिफ लगाता है, तो देश B, देश A से आयात पर समान टैरिफ लगाकर जवाबी कार्रवाई कर सकता है, तब इसे पारस्परिक टैरिफ कहा जाता है।
    • उच्च टैरिफ से लागत में वृद्धि होती है, जिससे वैश्विक व्यापार में कमी आती है।
  • पारस्परिक टैरिफ में अमेरिकी के हित
    • संयुक्त राज्य अमेरिका को देशों, विशेषकर चीन के साथ भारी व्यापार असंतुलन का सामना करना पड़ रहा है।
    • वर्ष 2023-24 में भारत के साथ, अमेरिका का वस्तुओं व्यापर में 35.31 बिलियन अमरीकी डॉलर का व्यापार घाटा है। इस अंतर को समाप्त करने के लिए, अमेरिकी राष्ट्रपति द्वारा शुल्क आरोपित किये जा रहे हैं।
  • अमेरिकी टैरिफ के कारण जोखिम में शामिल क्षेत्र: खाद्य उत्पाद, वस्त्र, परिधान, विद्युत मशीनरी, रत्न एवं आभूषण, फार्मास्यूटिकल्स और ऑटोमोबाइल क्षेत्र टैरिफ वृद्धि के कारण नकारात्मक प्रभावों का सामना कर सकते हैं।

भारत पर प्रभाव

  • निर्यात का महंगा होना: भारतीय वस्तुओं पर उच्च अमेरिकी टैरिफ अमेरिकी बाजार में कपड़ा, फार्मास्यूटिकल्स और ऑटो पार्ट्स को कम प्रतिस्पर्धी बना देगा।
  • व्यापार घाटा कम होना: भारत व्यापार को संतुलित करने के लिए अमेरिका से आयात (जैसे- रक्षा उपकरण, तेल एवं गैस) बढ़ा सकता है, जिससे अमेरिका के साथ उसका 36.74 बिलियन डॉलर का व्यापार अधिशेष कम हो जाएगा।
  • भारतीय रुपए का कमजोर होना: अमेरिका से अधिक आयात से अमेरिकी डॉलर की माँग बढ़ेगी, जिससे भारतीय रुपया कमजोर होगा और भारत का आयात बिल बढ़ेगा।
  • आत्मनिर्भर भारत पर प्रभाव: यदि अमेरिका भारत पर अमेरिकी वस्तुओं की खरीद बढ़ाने के लिए दबाव डालता है, तो भारत की आत्मनिर्भरता की पहल धीमी हो सकती है।
  • विदेशी निवेश पर प्रभाव: अमेरिकी फर्म उच्च टैरिफ से बचने के लिए भारत में स्थानीय उत्पादन को प्राथमिकता दे सकती हैं, जिससे भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) को बढ़ावा मिल सकता है।

भारतीय व्यापार, 2023-24 में हालिया रुझान

  • वर्ष 2023-24 में भारत को अपने शीर्ष दस व्यापारिक साझेदारों में से 9 के साथ व्यापार घाटा हुआ।
  • चीन अमेरिका को पीछे छोड़ते हुए भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बनकर उभरा है, जिसके साथ द्विपक्षीय व्यापार 118.4 बिलियन डॉलर तक पहुँच गया।
    • वर्ष 2023-24 में भारत-अमेरिका द्विपक्षीय व्यापार 118.28 बिलियन डॉलर रहा।
  • वर्ष 2021-22 और वर्ष 2022-23 में अमेरिका भारत का शीर्ष व्यापारिक साझेदार था, लेकिन अब वह दूसरे स्थान पर आ गया है।

भारत का व्यापार अधिशेष और घाटा

  • वर्ष 2023-24 में भारत का अमेरिका के साथ व्यापार अधिशेष 36.74 बिलियन डॉलर था।
  • भारत के साथ व्यापार अधिशेष वाले देशों में यू.के., बेल्जियम, इटली, फ्रांस और बांग्लादेश शामिल हैं।
  • चीन ($85 बिलियन), रूस, कोरिया और हांगकांग के साथ भारत का व्यापार घाटा बढ़ा है।
  • UAE, सऊदी अरब, रूस, इंडोनेशिया और इराक के साथ व्यापार घाटा कम हुआ है।

दीर्घकालिक लाभ

  • भारतीय उपभोक्ताओं के लिए सस्ते अमेरिकी सामान: टैरिफ में कमी से भारतीय उपभोक्ताओं के लिए अमेरिकी उत्पाद अधिक किफायती हो सकते हैं।
  • मजबूत व्यापार संबंध और आर्थिक विकास: भारत और अमेरिका के बीच व्यापार सहयोग में वृद्धि से भारत की वैश्विक आर्थिक स्थिति में सुधार हो सकता है।

भारत-अमेरिका व्यापार संबंधों को बेहतर बनाने के उपाय

  • टैरिफ बाधाओं को कम करना: भारत और अमेरिका को सहज व्यापार को प्रोत्साहित करने के लिए आयात शुल्क कम करने की दिशा में कार्य करना चाहिए।
  • ऊर्जा व्यापार को मजबूत करना: भारतीय व्यापार को संतुलित करने के लिए अमेरिका से ऊर्जा आयात, विशेष रूप से तेल और गैस में वृद्धि करनी चाहिए।
  • बाजार पहुंँच को बढ़ाना: भारत अमेरिकी कृषि और उच्च तकनीक उत्पादों के लिए बाजार तक अधिक पहुंँच की अनुमति दे सकता है।
  • व्यापार साझेदारी में विविधता लाना: भारत को किसी एक देश पर निर्भरता कम करने के लिए यूरोप और मध्य पूर्व के माध्यम से व्यापार मार्गों का विस्तार करना चाहिए।
  • प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और निवेश को प्रोत्साहित करना: दोनों देशों को पारस्परिक रूप से लाभ पहुंँचाने के लिए प्रौद्योगिकी, रक्षा और परमाणु ऊर्जा में सहयोग बढ़ाया जाना चाहिए।
  • दीर्घकालिक व्यापार समझौते पर वार्ता करना: भारत और अमेरिका को एक व्यापक व्यापार समझौते का लक्ष्य रखना चाहिए जो टैरिफ और गैर-टैरिफ बाधाओं को संबोधित करता हो।
  • आपूर्ति श्रृंखलाओं को संरेखित करना: भारत को अमेरिकी और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में एकीकृत करने के लिए अपनी भू-राजनीतिक स्थिति का लाभ प्राप्त करना चाहिए।

इन उपायों को अपनाकर भारत और अमेरिका व्यापारिक अवरोधों को कम कर सकते हैं, द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ा सकते हैं और अपनी आर्थिक साझेदारी को मजबूत कर सकते हैं।

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