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भारत की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था

Lokesh Pal February 28, 2025 02:49 45 0

संदर्भ

अंतरिक्ष विभाग ने इस बात पर प्रकाश डाला है कि भारत की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था कुछ वर्षों में पाँच गुना बढ़कर 8.4 बिलियन डॉलर से 44 बिलियन डॉलर हो जाने की उम्मीद है, जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था में मूल्यवर्धन होगा और वह विकसित भारत @2047 की ओर अग्रसर होगी।

भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र

  • वर्तमान मूल्य: भारत के अंतरिक्ष उद्योग का मूल्य लगभग 8.4 बिलियन डॉलर है, जो वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में 2% का योगदान देता है।
  • सरकारी व्यय: अंतरिक्ष कार्यक्रमों पर वार्षिक व्यय लगभग 2 बिलियन डॉलर है।
  • उपग्रह प्रक्षेपण और राजस्व: वर्ष 1999 से, भारत ने 34 देशों के लिए 381 उपग्रह लॉन्च किए हैं, जिससे 279 मिलियन डॉलर का राजस्व प्राप्त हुआ है।
  • वैश्विक स्थिति: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) विश्व की छठी सबसे बड़ी राष्ट्रीय अंतरिक्ष एजेंसी है।
  • भविष्य की संभावना: भारत की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था वर्ष 2033 तक 35,200 करोड़ रुपये ($44 बिलियन) तक बढ़ सकती है, जो वैश्विक हिस्सेदारी का 8% हिस्सा होगी।

अंतरिक्ष और ISRO के लिए सरकारी पहल

  • IN-SPACe: भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्द्धन और प्राधिकरण केंद्र (IN-SPACe) अंतरिक्ष गतिविधियों में निजी क्षेत्र की भागीदारी को सुगम बनाता है, नीति और विनियामक समर्थन सुनिश्चित करता है।
  • न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL) का शुभारंभ: NSIL इसरो की प्रौद्योगिकियों और उपग्रह प्रक्षेपणों का व्यावसायीकरण करता है, जिससे वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में भारत की उपस्थिति का विस्तार होता है।
  • बजट आवंटन: भारत ने बजट वर्ष 2025- 2026 में अंतरिक्ष विभाग को लगभग 13416 करोड़ रुपये आवंटित किए।
  • शिक्षा और नवाचार पर ध्यान: युवा वैज्ञानिक कार्यक्रम (युविका) जैसे कार्यक्रम और IIT और IIS के साथ सहयोग भारत में अंतरिक्ष शिक्षा एवं अनुसंधान तथा विकास को बढ़ावा देते हैं।
  • भारतीय अंतरिक्ष नीति, 2023: नीति में इसरो, इन-स्पेस और निजी अभिकर्ताओं के लिए भूमिकाएँ परिभाषित की गई हैं, जिसमें व्यावसायीकरण और अनुसंधान एवं विकास पर ध्यान केंद्रित किया गया है, जबकि इसरो रणनीतिक मिशनों पर ध्यान केंद्रित करेगा।

इसरो की वर्तमान उपलब्धियाँ

  • चंद्रयान-3 मिशन: इसरो ने चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास विक्रम लैंडर को सफलतापूर्वक उतारा, जिससे भारत ऐसा करने वाला पहला देश बन गया।
    • इस मिशन में प्रज्ञान रोवर भी तैनात किया गया, जिसने स्थल पर प्रयोग किए, जिसमें सल्फर और अन्य तत्वों का पता लगाना शामिल था।
  • आदित्य-L1 मिशन: इसरो ने सूर्य के वायुमंडल का अध्ययन करने के लिए आदित्य-L1 को लॉन्च किया, जिसमें कोरोना, सौर पवनें और चुंबकीय तूफान शामिल हैं।
  • एक्सपोसैट: एक्सपोसैट भारत का पहला ‘एक्स-रे पोलरिमेट्री’ अंतरिक्ष मिशन है और नासा के IPEX (वर्ष 2021) के बाद यह दूसरी अंतरिक्ष-आधारित वेधशाला है।
  • गगनयान मानव अंतरिक्ष उड़ान की तैयारी: इसरो ने गगनयान मिशन के लिए महत्त्वपूर्ण परीक्षण पूरे किए, जिसमें ‘क्रू एस्केप सिस्टम’ परीक्षण भी शामिल है।
    • गगनयान का लक्ष्य भारत को अंतरिक्ष में मानव भेजने वाला चौथा देश बनाना है।

भारत में अंतरिक्ष क्षेत्र की संभावनाएँ

  • उल्लेखनीय वृद्धि की संभावना: भारत की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था, जिसका वर्तमान मूल्य ₹6,700 करोड़ ($8.4 बिलियन) है और वैश्विक बाजार में इसकी हिस्सेदारी 2% है, के वर्ष 2033 तक ₹35,200 करोड़ ($44 बिलियन) तक बढ़ने का अनुमान है, जिससे इसकी वैश्विक हिस्सेदारी 8% हो जाएगी।
  • घरेलू और निर्यात बाजार की संभावना: अगले दशक में घरेलू बाजार के ₹6,400 करोड़ ($8.1 बिलियन) से बढ़कर ₹26,400 करोड़ ($33 बिलियन) होने की उम्मीद है, जबकि निर्यात बाजार के ₹2,400 करोड़ ($0.3 बिलियन) से बढ़कर ₹88,000 करोड़ ($11 बिलियन) होने की उम्मीद है।
  • अपेक्षित निवेश: अगले 10 वर्षों में अनुमानित ₹17,600 करोड़ ($22 बिलियन) निवेश की परिकल्पना की गई है।
  • निजी क्षेत्र की मजबूत भागीदारी: IN-SPACe और ISRO निजी क्षेत्र की अधिक भागीदारी को बढ़ावा दे रहे हैं, जिसमें सहयोग, नियामक सहायता और गैर-सरकारी संस्थाओं (NGE) को प्रौद्योगिकी हस्तांतरण पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है।

भारत में अंतरिक्ष स्टार्टअप की स्थिति

  • अंतरिक्ष स्टार्टअप में तीव्र वृद्धि: भारत में अंतरिक्ष स्टार्टअप की संख्या वर्ष 2022 में केवल 1 से बढ़कर वर्ष 2024 में लगभग 200 हो गई है।
  • सरकारी सहायता और नीतिगत परिवर्तन: इस महत्त्वपूर्ण वृद्धि का श्रेय भारत सरकार द्वारा नीतिगत सुधारों, विशेष रूप से अंतरिक्ष क्षेत्र को निजी हितधारकों के लिए खोलने और सार्वजनिक-निजी भागीदारी को प्रोत्साहित करने के निर्णय को दिया जाता है, ।
  • क्षेत्र में निवेश में वृद्धि: अकेले वर्ष 2023 में, भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र में लगभग ₹1000 करोड़ का निवेश किया गया, जो मजबूत वित्तीय समर्थन और निवेशकों के विश्वास को दर्शाता है।
  • MSME और निजी क्षेत्र की बढ़ती भूमिका: लगभग 450 MSME अब अंतरिक्ष से संबंधित उद्योगों में संलग्न हैं।

भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र के समक्ष विद्यमान चुनौतियाँ

  • बजट की कमी: हाँलाकि इसरो को वैश्विक मान्यता प्राप्त है, फिर भी यह प्रमुख अंतरिक्ष एजेंसियों की तुलना में अपेक्षाकृत कम बजट के साथ कार्य करता है।
    • इसरो का वर्तमान वार्षिक बजट लगभग 1.6 बिलियन डॉलर है वही नासा का वर्तमान वार्षिक बजट 25 बिलियन डॉलर है।
  • तकनीकी अंतर: भारत अभी भी भारी-भरकम रॉकेट और उन्नत पुन: प्रयोज्य प्रक्षेपण प्रौद्योगिकियों को विकसित करने में पिछड़ हुआ है, जो महत्त्वपूर्ण अंतरिक्ष अन्वेषण और लागत को कम करने हेतु आवश्यक हैं।
    • भारत का सबसे शक्तिशाली रॉकेट, LVM3 (लॉन्च व्हीकल मार्क-3), भूस्थिर कक्षा (Geostationary Orbit – GTO) तक 4,000 किलोग्राम की पेलोड क्षमता से युक्त है, जबकि स्पेसएक्स का फाल्कन हेवी 26,700 किलोग्राम को GTO तक ले जा सकता है।
  • अंतरिक्ष मलबे का प्रबंधन: उपग्रह प्रक्षेपणों में वृद्धि से अंतरिक्ष मलबे का खतरा बढ़ जाता है, जिससे परिचालन उपग्रहों और भविष्य के मिशनों को खतरा होता है।
    • इसरो ने अंतरिक्ष मलबे को ट्रैक करने के लिए प्रोजेक्ट NETRA शुरू किया है, लेकिन इस दिशा में अधिक व्यापक उपायों की आवश्यकता है।
  • प्रतिभा पलायन: भारत के कई शीर्ष वैज्ञानिक और इंजीनियर देश में सीमित फंडिंग, वेतन और अनुसंधान प्रोत्साहन के कारण बेहतर अवसरों के लिए विदेश चले जाते हैं।
  • भू-राजनीतिक बाधाएँ: अंतरिक्ष में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग वैश्विक प्रतिबंधों और मिसाइल प्रौद्योगिकी नियंत्रण व्यवस्था (MTCR) जैसे प्रौद्योगिकी निषेध व्यवस्थाओं द्वारा प्रतिबंधित हैं।
    • ये प्रतिबंध भारत के लिए महत्त्वपूर्ण अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों और घटकों तक पहुँच को कठिन बनाते हैं।

आगे की राह

  • बजट आवंटन में वृद्धि: भारत को अंतरिक्ष कार्यक्रमों में वैश्विक औसत निवेश से तारतम्यता स्थापित करने के लिए अंतरिक्ष अनुसंधान हेतु उच्च वित्त पोषण को प्राथमिकता देनी चाहिए।
  • सार्वजनिक-निजी भागीदारी: IN-SPACe (भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्धन और प्राधिकरण केंद्र) के माध्यम से, भारत तकनीकी क्षमताओं को बढ़ाने और वाणिज्यिक अंतरिक्ष अवसरों का विस्तार करने के लिए निजी हितधारकों को शामिल कर सकता है।
    • अमेरिका में, स्पेसएक्स और ब्लू ओरिजिन जैसी निजी अंतरिक्ष कंपनियों ने अंतरिक्ष क्षेत्र से संबंधित नवाचारों में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।
  • स्वदेशी नवाचार: अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में आत्मनिर्भरता को मजबूत करने के लिए, भारत को निम्नलिखित में निवेश करना चाहिए:
    • गहरे अंतरिक्ष अन्वेषण के लिए GSLV Mk-III जैसी भारी-भरकम रॉकेट तकनीकें।
    • उपग्रह और अंतरग्रहीय मिशनों में बेहतर दक्षता के लिए उन्नत प्रणोदन प्रणाली।
  • मानव संसाधन पर ध्यान: भारत की अंतरिक्ष महत्वाकांक्षाओं को बनाए रखने के लिए शीर्ष प्रतिभाओं को बनाए रखना आवश्यक है। उपायों में शामिल हैं:
    • वैज्ञानिकों और इंजीनियरों के लिए आकर्षक प्रोत्साहन।
    • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के माध्यम से वैश्विक प्रदर्शन।
  • कौशल निर्माण कार्यक्रम, जैसे कि कौशल भारत मिशन के तहत अंतरिक्ष से संबंधित प्रशिक्षण को एकीकृत करना ताकि कुशल कार्यबल तैयार किया जा सके।
  • अंतरिक्ष मलबे का शमन: बढ़ते उपग्रह प्रक्षेपणों के साथ, भारत को कक्षीय स्थिरता के लिए प्रौद्योगिकियों का विकास करना चाहिए।
    • इसे पृथ्वी की कक्षाओं की दीर्घकालिक स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए वैश्विक अंतरिक्ष मलबे शमन प्रयासों में भी सक्रिय रूप से भाग लेना चाहिए।

स्पेस विजन, 2047

  • स्पेस विजन, 2047 में भारत को उसकी स्वतंत्रता के 100वें वर्ष तक एक अग्रणी अंतरिक्ष शक्ति के रूप में स्थापित करने के लिए एक महत्वाकांक्षी रोडमैप की रूपरेखा दी गई है।

स्पेस विजन, 2047 के अंतर्गत लक्ष्य

  • भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (BAS): भारत अपना स्वयं का अंतरिक्ष स्टेशन, भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन स्थापित करने की योजना बना रहा है, जिसका प्रथम मॉड्यूल वर्ष 2028 में प्रक्षेपित किया जाएगा।
    • सम्पूर्ण स्टेशन के वर्ष 2035 तक चालू होने की उम्मीद है।
  • चालक दल चंद्र मिशन: भारत का लक्ष्य वर्ष 2040 तक चंद्रमा पर मानवयुक्त मिशन भेजना है, जो उसके मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम में एक महत्त्वपूर्ण मील का पत्थर होगा।
    • यह मिशन गगनयान परियोजना और BAS के विकास सहित पूर्व के मिशनों से प्राप्त प्रौद्योगिकियों और अनुभवों पर आधारित होगा।
  • चंद्रयान-4 मिशन: वर्ष 2027 के लिए निर्धारित, चंद्रयान-4 एक चंद्र नमूना वापसी मिशन है, जिसे चंद्रमा की सतह की मृदा और चट्टान के नमूनों को एकत्र कर  पृथ्वी पर वापस लाने के लिए डिजाइन किया गया है।
  • वीनस ऑर्बिटर मिशन (VOM): VOM का उद्देश्य शुक्र की सतह और उपसतह, वायुमंडलीय प्रक्रियाओं और उसके वायुमंडल पर सूर्य के प्रभाव का अध्ययन करना है।
    • इसे वर्ष 2028 तक प्रक्षेपित करने की योजना है।
  • अगली पीढ़ी का प्रक्षेपण यान (NGLV): इन महत्वाकांक्षी मिशनों के संचालन के लिए भारत NGLV का विकास कर रहा है।
    • NGLV एक पुन: प्रयोज्य, कम लागत वाला प्रक्षेपण यान है, जिसके वर्ष 2032 तक चालू होने की उम्मीद है।
    • यह वाहन भारत की पेलोड क्षमता को बढ़ाएगा और अंतरिक्ष तक पहुँचने की लागत को कम करेगा, जिससे अधिक निरंतरऔर किफायती मिशनों का संचालन संभव हो सकेगा।

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