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आर्द्रभूमि संरक्षण को मुख्यधारा में लाने की आवश्यकता

Lokesh Pal March 01, 2025 05:45 21 0

संदर्भ:

हाल ही में, मेघालय का एक स्वप्रेरित मामला भारत में आर्द्रभूमि संरक्षण संबंधी चुनौतियों को उजागर करता है, तथा उनके पारिस्थितिक महत्व और मजबूत संरक्षण उपायों की आवश्यकता पर बल देता है। 

आर्द्रभूमि का महत्व:

  • जैव विविधता को समर्थन: आर्द्रभूमि जैव विविधता को समर्थन देती हैंजल चक्र को विनियमित करती हैं तथा कार्बन सिंक के रूप में कार्य करती हैं
  • क्षेत्रफल: वर्तमान समय में लगभग 12.1 मिलियन वर्ग किमी (पृथ्वी की सतह का ~6%) क्षेत्र में आद्रभूमियों का विस्तार है।
  • पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएँ: वैश्विक पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं में 40.6% का योगदान (जैसे, बाढ़ नियंत्रण, जल शोधन, जलवायु शमन)। देती हैं। आद्रभूमियाँ विविध प्रजातियों के लिए महत्वपूर्ण आवास प्रदान करने में सहायक हैं।

आर्द्रभूमि संरक्षण प्रयास:

  • रामसर कन्वेंशन (1971): आर्द्रभूमि संरक्षण और सतत उपयोग के लिए अंतर्राष्ट्रीय संधि।
  • विश्व आर्द्रभूमि दिवस (2 फरवरी): आर्द्रभूमि संरक्षण के प्रति जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से प्रत्येक वर्ष 2 फरवरी को विश्व आद्रभूमि दिवस मनाया जाता है।
  • 2025 की थीम: “हमारे साझा भविष्य के लिए वेटलैंड्स की सुरक्षा” (ब्रंडलैंड रिपोर्ट, 1987 के साथ संरेखित)।

आर्द्रभूमियों के लिए खतरे:

  • मानवीय गतिविधियाँ: जनसंख्या वृद्धि, शहरीकरण, औद्योगीकरण, भूमि की मांग।
  • जलवायु परिवर्तन: बढ़ता तापमान, वर्षा पैटर्न में परिवर्तन।
  • आर्द्रभूमियों के ह्रास से संबंधित आँकड़े:
    • 1900 से अब तक 50% आर्द्रभूमियाँ मानवीय हस्तक्षेप के कारण नष्ट हो गयीं।
    • 1970-2015 के बीच 35% की गिरावट (प्राकृतिक वनस्पति हानि की दर से अधिक) दर्ज की गई है।
    • 1970 के बाद से 81% अंतर्देशीय और 36% तटीय आर्द्रभूमि प्रजातियों में कमी आई है।

वैश्विक संरक्षण पहल:

  • वैश्विक रणनीतियों के साथ एकीकरण: आर्द्रभूमि संरक्षण को अब सतत विकास के लिए आवश्यक माना जा रहा है, जिससे इन्हें वैश्विक रणनीतियों के साथ एकीकृत करने पर बल दिया जा रहा है।  
    • रामसर कन्वेंशन (2022) के 14वें सम्मेलन (COP14) में आर्द्रभूमि संरक्षण को व्यापक पर्यावरण नीतियों से जोड़ने पर जोर दिया गया।
  • प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय संबंध:
    • सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी): आर्द्रभूमि जल सुरक्षा, जैव विविधता और जलवायु लचीलेपन में योगदान देती हैं।
    • वैश्विक जैव विविधता लक्ष्य: आर्द्रभूमियों की सुरक्षा से जैव विविधता संरक्षण लक्ष्यों को पूरा करने में मदद मिलती है।
    • पारिस्थितिकी तंत्र बहाली पर संयुक्त राष्ट्र दशक: आर्द्रभूमियाँ महत्वपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र हैं, जिन्हें बहाली के लिए लक्षित किया गया है।
    • जलवायु परिवर्तन शमन: आर्द्रभूमियाँ कार्बन सिंक के रूप में कार्य करती हैं और बाढ़ नियंत्रण में मदद करती हैं।
  • कोविड-19 महामारी का प्रभाव : कोविड-19 महामारी के बाद जैव विविधता के नुकसान और जलवायु परिवर्तन के बारे में जागरूकता बढ़ी है। आर्द्रभूमि के और अधिक क्षरण को रोकने के लिए तत्काल और समन्वित कार्रवाई की आवश्यकता है।
  • रामसर रणनीतिक योजना: टिकाऊ आर्द्रभूमि प्रबंधन के लिए नीतियों को मजबूत करना। वैश्विक पर्यावरणीय स्थिरता लक्ष्यों के साथ आर्द्रभूमि संरक्षण प्रयासों को संरेखित करना।

भारत में आर्द्रभूमि की स्थिति:

  • आर्द्रभूमि कवरेज: रामसर कन्वेंशन के हस्ताक्षरकर्ता के रूप में भारत ने वर्ष 2025 तक के आँकड़ों के मुताबिक 89 रामसर स्थलों को अंतर्राष्ट्रीय महत्व की आर्द्रभूमि के रूप में  नामित किया है।
    • ये आर्द्रभूमियाँ विविध पारिस्थितिक तंत्रों में फैली हुई हैं, जिनमें तटीय क्षेत्र, नदी क्षेत्र (जैसे, ऊपरी गंगा) और हिमालयी क्षेत्र शामिल हैं। 
    • हालाँकि, रामसर नामकरण संरक्षण की गारंटी नहीं देता है, क्योंकि शहरीकरण और अतिक्रमण के कारण क्षरण जारी है।
  • विस्तार: राष्ट्रीय वेटलैंड दशकीय परिवर्तन एटलस (2017-18) के अनुसार भारत में वेटलैंड लगभग 15.98 मिलियन हेक्टेयर में फैले हुए हैं। इनमें से 66.6% प्राकृतिक वेटलैंड हैं , जबकि अन्य मानव निर्मित हैं।
  • आर्द्रभूमि का सिकुड़ना: पिछले चार दशकों में भारत की 30% प्राकृतिक आर्द्रभूमि नष्ट हो गई है। इसके अतिरिक्त प्रमुख शहरी केंद्रों में आर्द्रभूमियों का गंभीर नुकसान हुआ है। उदाहरण के लिए: 
    • मुंबई: 71% की हानि (1970-2014)।
    • पूर्वी कोलकाता वेटलैंड्स: 36% हानि (1991-2021)।
    • चेन्नई: 85% की हानि (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ अध्ययन)।
  • आद्रभूमि ह्रास का प्रभाव: कोलंबिया के कैली में किए गए एक अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि आर्द्रभूमि के नष्ट होने से शहरी क्षेत्रों में प्रति वर्ष 76,827 डॉलर प्रति हेक्टेयर तथा अर्ध-शहरी क्षेत्रों में 30,354 डॉलर प्रति हेक्टेयर की आर्थिक हानि हो सकती है।

आगे की राह: 

  • पारिस्थितिकी पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करना:  जबकि भारत में अधिकांश प्रबंधन पहल पारिस्थितिकी और पर्यावरण संबंधी चिंताओं को रेखांकित करती हैं, लेकिन उनमें समग्र दृष्टिकोण का अभाव है। इस संदर्भ में किए गए विभिन्न शोध अध्ययन प्रमुख आर्द्रभूमि तक ही सीमित हैं, जबकि छोटी लेकिन पारिस्थितिकी दृष्टि से महत्वपूर्ण आर्द्रभूमियों की इसमें उपेक्षा की जाती है।
  • वैश्विक परिप्रेक्ष्य: अंतर्राष्ट्रीय प्रयास आर्द्रभूमि वितरण, उनके उचित संरक्षण और मानव प्रभाव आकलन पर जोर देते हैं। वैज्ञानिक मूल्यांकन के आधार पर संरक्षण के लिए आर्द्रभूमि को प्राथमिकता देने की आवश्यकता है।
  • व्यापक दृष्टिकोण: आर्द्रभूमियाँ विभिन्न पारिस्थितिकी तंत्रों की सेवाओं के माध्यम से  पारिस्थितिक, आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा प्रदान करती हैं।
    • भूमि उपयोग में परिवर्तनशहरी अतिक्रमण और जलग्रहण क्षेत्र में परिवर्तन आर्द्रभूमि के स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं। 
    • अतः आद्रभूमि के संरक्षण प्रयासों में त्वरित सुधार के लिए शासन संरचनाओं का मूल्यांकन किया जाना चाहिए।
  • निगरानी तंत्र : विदित है कि वेटलैंड्स कार्बन सिंक के रूप में कार्य करते हैं, लेकिन कुछ स्थितियों में ये कार्बन का उत्सर्जन भी करते हैं। इस दृष्टिकोण से वेटलैंड्स कार्बन गतिशीलता की निरंतर निगरानी आवश्यक है।

निष्कर्ष:

अतः विस्तृत अध्ययन से ज्ञात होता है कि मौजूदा दृष्टिकोण उभरते खतरों से निपटने के लिए पर्याप्त नहीं है। समग्र सुधार हेतु एक व्यापक, पारिस्थितिकी तंत्र-आधारित रणनीति अपनाई जानी चाहिए। आर्द्रभूमि संरक्षण को विकास योजनाओं के साथ संरेखित करते हुए मुख्यधारा में शामिल किया जाना चाहिए, जैसा कि रामसर COP14 में जोर दिया गया है।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न: रामसर कन्वेंशन पर हस्ताक्षर करने के बावजूद, भारत अपनी आर्द्रभूमियों के ह्रास की आश्चर्यजनक गति का आभास कर रहा है। आर्द्रभूमि संरक्षण में बहुआयामी चुनौतियों का आलोचनात्मक विश्लेषण करें और भारत की विकास योजना में आर्द्रभूमि संरक्षण को मुख्यधारा में लाने के लिए नवीन रणनीतियाँ सुझाएँ।

(15 अंक, 250 शब्द)

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