100% तक छात्रवृत्ति जीतें

रजिस्टर करें

सरकारी समिति ने पंचायतों में पंचायत प्रतिनिधि के रूप में पतियों के लिए दंड का प्रस्ताव रखा

Lokesh Pal March 03, 2025 03:07 129 0

संदर्भ

केंद्रीय पंचायती राज मंत्रालय (MoPR) द्वारा गठित एक पैनल ने देश भर की ग्राम पंचायतों में ‘प्रधान पति’, ‘सरपंच पति’ या ‘मुखिया पति’ की प्रथा के विरुद्ध ‘अनुकरणीय दंड’ की सिफारिश की है।

संबंधित तथ्य

  • खान मंत्रालय के पूर्व सचिव सुशील कुमार की अध्यक्षता में वर्ष 2023 में ‘प्रधान पति’ के मुद्दे पर विचार करने के लिए समिति गठित की गई थी।
  • इस समिति ने इस छद्म नेतृत्व पर अंकुश लगाने के लिए कठोर दंड सहित कठोर उपायों की सिफारिश की है।

प्रधान पति संस्कृति

  • प्रधान पति संस्कृति से तात्पर्य उस प्रथा से है, जिसमें पंचायत के मुखिया के रूप में निर्वाचित महिला का प्रतिनिधित्व उसके पति या किसी अन्य पुरुष रिश्तेदार द्वारा किया जाता है।
  • संवैधानिक आरक्षण के कारण महिलाओं के आधिकारिक पदों पर होने के बावजूद, उनके अधिकार को प्रायः कम आँका जाता है तथा उनके पुरुष संबंधी वास्तविक नेता के रूप में कार्य करते हैं।

प्रधान पति संस्कृति के पीछे कारण

  • पितृसत्तात्मक मानसिकता: हमारे समाज का मानना ​​है कि पुरुष बेहतर निर्णय लेने वाले होते हैं, इसलिए महिलाओं से प्रायः अपने पतियों के नेतृत्व का पालन करने की अपेक्षा की जाती है।
    • ‘इंस्टिट्यूट ऑफ सोशल स्टडीज ट्रस्ट’ (ISST) द्वारा किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि महिला प्रधानों का एक महत्त्वपूर्ण अनुपात निर्णय लेने के लिए पुरुष रिश्तेदारों पर निर्भर करता है।
  • शिक्षा और प्रशिक्षण का अभाव: कई निर्वाचित महिलाओं के पास औपचारिक शिक्षा या शासन का बहुत कम अनुभव होता है, जिसके कारण उन्हें निर्णय लेने के लिए अपने पति या पुरुष रिश्तेदारों पर निर्भर रहना पड़ता है।
    • भारत में साक्षरता दर में लैंगिक असमानता बहुत अधिक है और पुरुषों के लिए साक्षरता दर 80.9% और महिलाओं के लिए 64.63% है।
  • पारिवारिक और सामाजिक दबाव: पारंपरिक घरों में, महिलाओं से अपेक्षा की जाती है कि वे नेतृत्व की अपेक्षा घर और परिवार को प्राथमिकता दें।
  • आरक्षण का औपचारिकता के रूप में उपयोग: महिलाओं को प्रायः केवल आरक्षण कोटा (33% या 50%) पूरा करने के लिए मनोनीत किया जाता है और वास्तव में, उनके पति या पुरुष रिश्तेदार पंचायत के मामलों को नियंत्रित करते हैं।
    • कई महिला प्रधानों ने बताया है कि उनके पति सभी पंचायत बैठकों में उपस्थित होते थे और उनकी ओर से निर्णय लेते थे।
  • संस्थागत समर्थन का अभाव: महिला प्रधान वास्तव में प्रभारी हैं या नहीं, इसकी जाँच करने के लिए कोई मजबूत कानून या निगरानी प्रणाली नहीं है।
    • तमिलनाडु में, एक महिला प्रधान ने पुरुष अधिकारियों से सहयोग की कमी के कारण विकास परियोजनाओं के लिए सरकारी धन का उपयोग करने में असमर्थता व्यक्त की थी।
  • आर्थिक निर्भरता: कई महिलाओं के पास अपनी आय या वित्तीय स्वतंत्रता नहीं है।
    • ‘इंडिया लेंड्स’ (India Lends) के एक सर्वेक्षण के अनुसार, लगभग 67% कामकाजी महिलाएँ अभी भी वित्तीय निर्णय लेने के लिए परिवार के पुरुष सदस्यों पर निर्भर हैं।

प्रधान पति संस्कृति के परिणाम

  • महिला सशक्तीकरण को कमजोर करता है: महिलाओं के लिए राजनीतिक आरक्षण का मूल उद्देश्य ही विफल हो जाता है।
    • प्रधान पति संस्कृति वास्तविक निर्णय लेने की प्रक्रिया को पुरुषों के पास होकर 73वें संविधान संशोधन के तहत दिए गए आरक्षण के उद्देश्य को विफल करती है।
  • स्थानीय शासन को कमजोर करता है: शासन पुरुष-प्रधान बना हुआ है, जिससे प्रायः भ्रष्टाचार और अकुशलता को बढ़ावा मिलता है।
    • पुरुष प्रतिनिधि निर्वाचित अधिकारी नहीं होते और इसलिए वे मतदाताओं के प्रति जवाबदेह नहीं होते हैं। जवाबदेही की यह कमी प्रायः भ्रष्टाचार और संसाधनों के कुप्रबंधन की ओर ले जाती है।
  • कानूनी और नैतिक मुद्दे: छद्म नेतृत्व लोकतांत्रिक सिद्धांतों के विरुद्ध है और शासन के कानूनों का उल्लंघन करता है।
    • जब परिवार का कोई पुरुष सदस्य सत्ता सँभालता है, तो इससे मतदाताओं का भरोसा टूटता है और कानून का शासन कमजोर होता है।
  • भावी महिला नेताओं को हतोत्साहित करता है: युवा महिलाएँ राजनीति को पुरुषों द्वारा नियंत्रित क्षेत्र के रूप में देखती हैं, जिससे उनकी भागीदारी कम हो जाती है।
    • नॉर्वे और न्यूजीलैंड जैसे देशों में, जहाँ महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी को सक्रिय रूप से प्रोत्साहित और समर्थन प्राप्त है, युवा महिलाओं के राजनीति में प्रवेश में वृद्धि देखी गई है।

पंचायती राज में महिलाओं का वर्तमान परिदृश्य

  • भारत में तीन स्तरों- ग्राम पंचायत, पंचायत समिति और जिला परिषद में 2.63 लाख पंचायतें हैं।
  • 46.6% (15.03 लाख) पंचायत प्रतिनिधि महिलाएँ हैं, लेकिन उनमें से कई के पास वास्तविक निर्णय लेने की शक्ति नहीं है।
  • प्रधान पति संस्कृति उत्तरी राज्यों, विशेषकर उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा और राजस्थान में अधिक प्रचलित है।

पंचायती राज संस्थाओं में महिला प्रतिनिधित्व के लिए संवैधानिक प्रावधान

  • 73वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1992: इसने त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था (ग्राम पंचायत, पंचायत समिति और जिला परिषद) की स्थापना की।
    • संशोधन ने पंचायतों में नेतृत्व पदों सहित महिलाओं के लिए एक-तिहाई आरक्षण अनिवार्य किया।
  • अनुच्छेद-243D (सीटों का आरक्षण): प्रधान और जिला पंचायत अध्यक्ष के पद सहित सभी स्तरों पर पंचायतों में महिलाओं के लिए एक-तिहाई सीटों का आरक्षण अनिवार्य करता है।
  • अनुच्छेद-15(3): राज्य को महिलाओं और बच्चों के लिए विशेष प्रावधान करने का अधिकार देता है, जिससे पंचायती राज शासन में सकारात्मक कार्रवाई की अनुमति मिलती है।
  • हाल के घटनाक्रम: कुछ राज्यों (जैसे, बिहार, राजस्थान, मध्य प्रदेश) ने पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं के लिए आरक्षण को बढ़ाकर 50% कर दिया है।

पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं को बढ़ावा देने के लिए सरकारी पहल

  • राष्ट्रीय ग्राम स्वराज अभियान (Rashtriya Gram Swaraj Abhiyan-RGSA): RGSA निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों के लिए प्रशिक्षण और नेतृत्व विकास प्रदान करता है।
    • इसका उद्देश्य महिला नेताओं के निर्णय लेने, वित्तीय प्रबंधन और शासन कौशल में सुधार करना है।
  • पंचायत महिला शक्ति अभियान (Panchayat Mahila Shakti Abhiyan-PMSA): पंचायतों में महिलाओं के सामूहिक समूहों के गठन को प्रोत्साहित करता है ताकि आत्मविश्वास और नेटवर्किंग को बढ़ावा मिले तथा महिला नेताओं को अपने अधिकारों के प्रति अधिक मुखर एवं जागरूक बनने में सहायता मिले।
  • NIRDPR प्रशिक्षण कार्यक्रम: राष्ट्रीय ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज संस्थान (National Institute of Rural Development & Panchayati Raj-NIRDPR) महिलाओं के लिए नीति-निर्माण, बजट और डिजिटल शासन में विशेष प्रशिक्षण आयोजित करता है।
  • मिशन शक्ति: मिशन शक्ति, पंचायती राज संस्थाओं सहित सभी शासन स्तरों पर महिला प्रतिनिधियों के लिए नेतृत्व प्रशिक्षण पर केंद्रित है।
  • पंचायती राज संस्थाओं में लैंगिक-संवेदनशील बजट: पंचायतों को महिला कल्याण परियोजनाओं के लिए विशिष्ट निधि आवंटित करने के लिए प्रोत्साहित करता है।
  • सखी व्हाट्सऐप ग्रुप और हेल्पलाइन: निर्वाचित महिलाओं को लागों से जुड़ने, मुद्दों की रिपोर्ट करने और शासन सहायता तक पहुँचने में मदद करता है।
  • महिला नेताओं के लिए वार्षिक पुरस्कार: देवी पुरस्कार और सर्वश्रेष्ठ महिला पंचायत नेत्री पुरस्कार जैसे पुरस्कार पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं के सक्रिय नेतृत्व और मान्यता को प्रोत्साहित करते हैं।

समिति की प्रमुख सिफारिशें

  • छद्म नेतृत्व के लिए अनुकरणीय दंड: प्रमाणित मामलों के लिए सख्त कानूनी कार्रवाई और दंड, जहाँ पुरुष रिश्तेदार शासन में महिलाओं की प्रशासनिक भूमिकाएँ सँभालते हैं।
    • वर्ष 2021 में राजस्थान ने सरपंच पति प्रथा पर सख्ती से रोक लगाते हुए एक निर्देश जारी किया, जिसमें दोषी पाए जाने वालों के विरुद्ध अयोग्यता और कानूनी कार्रवाई की चेतावनी दी गई।
  • लैंगिक-विशिष्ट सुधार: पंचायत समितियों में महिलाओं के लिए कोटा लागू करना, महिला प्रधानों के लिए सार्वजनिक शपथ ग्रहण समारोह और छद्म नेतृत्व का विरोध करने के लिए वार्षिक पुरस्कार।
    • बिहार ने PRIs में महिलाओं के लिए आरक्षण बढ़ाकर 50% कर दिया है और दृश्यता तथा मान्यता सुनिश्चित करने के लिए, राज्य ने महिला नेताओं के लिए सार्वजनिक शपथ ग्रहण समारोह शुरू किए हैं।
  • महिला-केंद्रित सहायता प्रणालियाँ: महिला लोकपाल की नियुक्ति, निगरानी समितियों का निर्माण, मुखबिरों को पुरस्कार, तथा नेतृत्व प्रशिक्षण और कानूनी सहायता के लिए लैंगिक संसाधन केंद्रों की स्थापना।
    • महाराष्ट्र ने महिला राजसत्ता आंदोलन की शुरुआत की, जो पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं को समर्थन देने के लिए एक आंदोलन है।
  • तकनीकी हस्तक्षेप: आभासी वास्तविकता-आधारित शासन प्रशिक्षण, स्थानीय भाषाओं में एआई-संचालित सहायता, निर्वाचित महिलाओं के लिए व्हाट्सएप सहायता समूह, और पंचायत निर्णय पोर्टल के माध्यम से उनकी भागीदारी की ट्रैकिंग।
  • क्षमता निर्माण और प्रशिक्षण: स्थानीय भाषाओं में अनिवार्य प्रशिक्षण कार्यक्रम, आईआईएम और आईआईटी जैसे प्रमुख संस्थानों के साथ सहयोग तथा नेतृत्व मार्गदर्शन में महिला विधायकों एवं सांसदों की भागीदारी।

निष्कर्ष

“प्रधान पति” संस्कृति पंचायत स्तर पर लैंगिक समानता प्राप्त करने में बाधा है। यह महिलाओं के लिए राजनीतिक आरक्षण के मूल उद्देश्य को कमजोर करती है, स्थानीय शासन को कमजोर करती है और लोकतांत्रिक सिद्धांतों का उल्लंघन करती है। इस मुद्दे को संबोधित करने के लिए कानूनी सुधार, क्षमता निर्माण और सामाजिक परिवर्तन सहित बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि महिलाएँ स्वतंत्र रूप से एवं प्रभावी ढंग से अपनी नेतृत्व भूमिका निभा सकें।

Final Result – CIVIL SERVICES EXAMINATION, 2023. PWOnlyIAS is NOW at three new locations Mukherjee Nagar ,Lucknow and Patna , Explore all centers Download UPSC Mains 2023 Question Papers PDF Free Initiative links -1) Download Prahaar 3.0 for Mains Current Affairs PDF both in English and Hindi 2) Daily Main Answer Writing , 3) Daily Current Affairs , Editorial Analysis and quiz , 4) PDF Downloads UPSC Prelims 2023 Trend Analysis cut-off and answer key

THE MOST
LEARNING PLATFORM

Learn From India's Best Faculty

      

Final Result – CIVIL SERVICES EXAMINATION, 2023. PWOnlyIAS is NOW at three new locations Mukherjee Nagar ,Lucknow and Patna , Explore all centers Download UPSC Mains 2023 Question Papers PDF Free Initiative links -1) Download Prahaar 3.0 for Mains Current Affairs PDF both in English and Hindi 2) Daily Main Answer Writing , 3) Daily Current Affairs , Editorial Analysis and quiz , 4) PDF Downloads UPSC Prelims 2023 Trend Analysis cut-off and answer key

<div class="new-fform">







    </div>

    Subscribe our Newsletter
    Sign up now for our exclusive newsletter and be the first to know about our latest Initiatives, Quality Content, and much more.
    *Promise! We won't spam you.
    Yes! I want to Subscribe.