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आदित्य-L1 द्वारा सोलर फ्लेयर्स को कैप्चर किया

Lokesh Pal March 03, 2025 03:28 18 0

संदर्भ

भारत की पहली अंतरिक्ष आधारित सौर वेधशाला आदित्य-L1 ने निचले सौर वायुमंडल में सोलर फ्लेयर्स ‘कर्नेल’ (Kernel) की पहली छवि कैप्चर करके एक महत्त्वपूर्ण खोज की है।

कर्नेल के बारे में

  • सोलर फ्लेयर्स ‘कर्नेल’, निचले सौर वायुमंडल में एक स्थानीयकृत प्रकाश है, जो सोलर फ्लेयर्स के प्रारंभिक बिंदु को चिह्नित करता है।

सोलर फ्लेयर्स क्या है?

  • सोलर फ्लेयर्स सूर्य के वायुमंडल से ऊर्जा का अचानक, तीव्र विस्फोट है।
  • यह सूर्य के गतिशील चुंबकीय क्षेत्र के अचानक विखंडन के कारण होता है, जिससे प्रकाश, विकिरण और उच्च ऊर्जा वाले आवेशित कणों के रूप में ऊर्जा निष्कर्षित होती है।

आदित्य-L1 सोलर फ्लेयर्स का अध्ययन कैसे करता है?

  • UV और X-ray में प्रकाश: सोलर फ्लेयर्स से पहले और उसके दौरान, सूर्य का प्रभावित क्षेत्र पराबैंगनी (Ultraviolet-UV) और X-ray तरंगदैर्ध्य में अधिक चमकीला हो जाता है।
  • आदित्य-L1 उपकरणों द्वारा अवलोकन: SUIT, SoLEXS और HEL1OS जैसे उपकरण इस चमकीले प्रकाश को कैप्चर करते हैं और उनकी विशेषताओं का विस्तार से अध्ययन करते हैं।
  • अंतरिक्ष आधारित अध्ययन लाभ: चूँकि पृथ्वी का वायुमंडल हानिकारक सौर विकिरण को रोकता है, इसलिए सोलर फ्लेयर्स का अध्ययन केवल आदित्य-L1 जैसी अंतरिक्ष-आधारित वेधशालाओं से ही संभव है।

सौर फ्लेयर कर्नेल के अध्ययन का वैज्ञानिक महत्त्व

  • निचले वायुमंडल में देखी गई चमक सीधे सौर कोरोना में प्लाज्मा तापमान में वृद्धि के साथ सहसंबंधित है।
  • यह सूर्य की परतों में ऊर्जा एकत्र करके और तापमान विकास के बीच संबंध की पुष्टि करता है।
  • निष्कर्षतः सोलर फ्लेयर्स भौतिकी में नई अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं, जो अंतरिक्ष मौसम के पूर्वानुमानों में सुधार कर सकते हैं और पृथ्वी पर उपग्रहों एवं संचार नेटवर्क की सुरक्षा में मदद कर सकते हैं।

लैग्रेंज बिंदु 1 (L1) 

  • L1 पृथ्वी से 1.5 मिलियन किमी. दूर स्थित है, जिससे सूर्य का निरंतर दृश्य दिखाई देता है।
  • L1 के लाभ
    • सौर तूफानों और CME का शीघ्र पता लगाने में सक्षम बनाता है। 
    • गुरुत्वाकर्षण स्थिरता के कारण कक्षा प्रबंधन के लिए न्यूनतम ईंधन की आवश्यकता होती है। 
    • सौर और हीलियोस्फेरिक वेधशाला (SOHO) द्वारा सौर अनुसंधान के लिए उपयोग किया जाता है।

आदित्य-L1 के निष्कर्ष

  • ‘सोलर अल्ट्रावॉयलेट इमेजिंग टेलीस्कोप’ (Solar Ultraviolet Imaging Telescope-SUIT) ने X6.3 श्रेणी के सोलर फ्लेयर्स का पता लगाया, जो सौर विस्फोटों की सबसे तीव्र श्रेणियों में से एक है।
  • SUIT ने निकट अल्ट्रावॉयलेट (NUV) तरंगदैर्ध्य रेंज (200-400 nm) में फ्लेयर्स को रिकॉर्ड किया, जिसे पहले कभी इतने विस्तार से नहीं देखा गया था।
    • अवलोकन से यह पुष्टि होती है कि फ्लेयर एनर्जी सूर्य के वायुमंडल की विभिन्न परतों में विस्तृत होती है तथा प्रकाशमंडल, वर्णमंडल और प्रभामंडल पर प्रभाव डालती है।
  • यह डेटा सौर ऊर्जा के उत्सर्जन और परिवहन के बारे में वैज्ञानिक समझ को बढ़ाता है तथा दीर्घकालिक वैज्ञानिक सिद्धांतों को प्रमाणित करता है।

आदित्य-L1 मिशन के बारे में

  • आदित्य L1 मिशन निरंतर सौर अवलोकन के लिए समर्पित पहला भारतीय मिशन है।
  • 2 सितंबर, 2023 को इसरो द्वारा PSLV-XL रॉकेट का उपयोग करके लॉन्च किया गया।
  • उद्देश्य: सूर्य के वायुमंडल, सौर पवन और अंतरिक्ष मौसम की गतिशीलता का अध्ययन करना।
  • कक्षा: 6 जनवरी, 2024 को लैग्रेंज पॉइंट 1 (L1) के चारों ओर एक हेलो कक्षा (Halo Orbit) में स्थापित किया गया।
    • L1 बिंदु सूर्य का निर्बाध दृश्य प्रदान करता है।
  • आदित्य L1 मिशन का महत्त्व
    • पृथ्वी के वायुमंडल से हस्तक्षेप के बिना दीर्घकालिक सौर अवलोकन को सक्षम बनाता है।
    • सौर अनुसंधान में नासा और ESA जैसी विशिष्ट अंतरिक्ष एजेंसियों के बीच भारत को स्थान दिलाता है।

आदित्य-L1 मिशन के चरण

  • चरण 1: पृथ्वी की कक्षा में प्रवेश और संचालन
    • आवश्यक वेग प्राप्त करने के लिए पृथ्वी की कक्षा में 16 दिन बिताए।
    • अगले चरण में प्रवेश करने से पहले पाँच बार कक्षा में स्थापित कराने की प्रक्रिया संपन्न की गई।
  • चरण 2: ट्रांस-लैग्रेंजियन प्रविष्टि प्रक्रिया और क्रूज चरण
    • L1 तक की 110 दिन की यात्रा शुरू करने के लिए ट्रांस-लैग्रेंजियन प्रविष्टि प्रक्रिया से गुजरना पड़ा।
    • लैग्रेंज बिंदु 1 की ओर सावधानीपूर्वक योजनाबद्ध प्रक्षेप पथ का अनुसरण किया गया।
  • चरण 3: L1 कक्षा एवं वैज्ञानिक संचालन
    • L1 के चारों ओर एक स्थिर हेलो कक्षा में प्रवेश किया।
    • अपने उन्नत पेलोड के साथ सूर्य की निरंतर निगरानी शुरू की।

आदित्य L1 के पेलोड

पेलोड

कार्यप्रणाली

विजिबल इमिशन लाइन कोरोनाग्राफ (Visible Emission Line Coronagraph-VELC) सौर कोरोना और कोरोनल मास इजेक्शन (Coronal Mass Ejections-CME) का अवलोकन करता है।
सोलर अल्ट्रावायलेट इमेजिंग टेलीस्कोप (Solar Ultraviolet Imaging Telescope-SUIT) सूर्य के प्रकाशमंडल और वर्णमंडल की UV छवियाँ कैप्चर करता है।
‘सोलर लो एनर्जी एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर’ (Solar Low Energy X-ray Spectrometer-SoLEXS) सूर्य से आने वाली कम तीव्रता वाली X-ray किरणों का अध्ययन करना।
हाई एनर्जी L1 ऑर्बिटिंग एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर (High Energy L1 Orbiting X-ray Spectrometer-HEL1OS) सोलर फ्लेयर्स से निकलने वाले कठोर X-ray उत्सर्जन की जाँच करता है।
आदित्य सोलर विंड पार्टिकल एक्सपेरिमेंट (Aditya Solar Wind Particle Experiment-ASPEX) सौर वायु और ऊर्जायुक्त आयनों का अध्ययन।
प्लाज्मा एनालाइजर पैकेज फॉर आदित्य (Plasma Analyser Package for Aditya-PAPA) अंतरग्रहीय अंतरिक्ष में प्लाज्मा विशेषताओं का विश्लेषण करता है।
उन्नत त्रि-अक्षीय डिजिटल मैग्नेटोमीटर (Advanced Tri-axial Digital Magnetometers) कम तीव्रता वाले अंतरग्रहीय चुंबकीय क्षेत्रों को मापता है।

वैश्विक सौर अंतरिक्ष कार्यक्रम

  • नासा का पार्कर सोलर प्रोब (2018): सूर्य के कोरोना और सौर हवाओं का अध्ययन करता है।
  • ESA-NASA सोलर ऑर्बिटर (2020): सूर्य के ध्रुवों और चुंबकीय क्षेत्र की परस्पर क्रियाओं का निरीक्षण करता है।
  • हेलिओस 2 (1976, नासा और जर्मनी): प्रारंभिक जाँच, जो सूर्य से 43 मिलियन किमी. के दायरे में पहुँची थी।
  • एडवांस्ड कंपोजिशन एक्सप्लोरर (ACE, 1997): सौर पवन और ब्रह्मांडीय किरणों का विश्लेषण करता है।

निष्कर्ष

आदित्य L1 के सोलर फ्लेयर्स ‘कर्नेल’ (Kernel) की खोज हीलियोफिजिक्स में एक बड़ी सफलता है। यह मिशन भारत की अंतरिक्ष विज्ञान क्षमताओं को बढ़ाता है और वैश्विक सौर अनुसंधान प्रयासों को मजबूत करता है। भविष्य के मिशनों की योजना के साथ, भारत सौर भौतिकी और अंतरिक्ष मौसम पूर्वानुमान को आगे बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए तैयार है।

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