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दिव्यांगता आधारित भेदभाव के विरुद्ध अधिकार

Lokesh Pal March 06, 2025 03:09 15 0

संदर्भ

सर्वोच्च न्यायालय ने घोषणा की है कि दिव्यांगता आधारित भेदभाव के विरुद्ध अधिकार को मौलिक अधिकार माना जाना चाहिए।

  • यह निर्णय मध्य प्रदेश और राजस्थान न्यायिक सेवा नियमों के कुछ प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिकाओं के जवाब में आया, जिन्हें भेदभावपूर्ण पाया गया था।

सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के मुख्य बिंदु

  • न्यायालय ने कहा कि दिव्यांगता आधारित भेदभाव समानता और गैर-भेदभाव के संवैधानिक सिद्धांतों का उल्लंघन करता है।
  • न्यायिक सेवाओं के लिए दृष्टिबाधित उम्मीदवारों की पात्रता: न्यायालय ने निर्णय दिया है कि दृष्टिबाधित उम्मीदवार न्यायिक सेवाओं के लिए चयन प्रक्रिया में भाग लेने के पात्र हैं।
  • भेदभावपूर्ण प्रावधानों को समाप्त करना: न्यायालय ने मध्य प्रदेश न्यायिक सेवा नियम, 1994 के नियम 6A को समाप्त घोषित कर दिया कि यह दृष्टिबाधित व्यक्तियों को न्यायिक पदों के लिए आवेदन करने से बाहर रखता था।
    • न्यायालय ने स्वीकार किया कि दृष्टिबाधित व्यक्ति समान स्तर पर प्रतिस्पर्द्धा कर सकते हैं तथा न्याय वितरण प्रणाली में महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं।
  • उचित समायोजन का सिद्धांत: न्यायालय ने दोहराया कि अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों और दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 में निहित उचित समायोजन के सिद्धांत के अनुसार दिव्यांगजनों को उनकी पात्रता का आकलन करने के लिए समायोजन प्रदान किया जाना अनिवार्य है।
    • इसने इस बात पर जोर दिया कि दिव्यांगजनों को बहिष्कृत करने वाले अप्रत्यक्ष भेदभाव को अस्वीकार्य माना जाएगा।
  • सकारात्मक कार्रवाई और समावेशी ढाँचा: न्यायालय ने दिव्यांगजनों के लिए एक समावेशी ढाँचा बनाने के लिए राज्य द्वारा सकारात्मक कार्रवाई की आवश्यकता पर प्रकाश डाला।

दिव्यांगता आधारित भेदभाव

  • दिव्यांगता आधारित भेदभाव का तात्पर्य व्यक्तियों के शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक या संवेदी दिव्यांगताओं के आधार पर उनके साथ अनुचित व्यवहार, बहिष्कार या अधिकारों तथा अवसरों से वंचित करना है।
  • यह तब होता है, जब किसी दिव्यांग व्यक्ति के साथ समान परिस्थितियों में दूसरों की तुलना में अलग या प्रतिकूल व्यवहार किया जाता है।
  • इससे शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य सेवा, सार्वजनिक सेवाओं और जीवन के अन्य पहलुओं तक पहुँच में असमानता उत्पन्न हो सकती है।

दिव्यांगता आधारित भेदभाव के प्रकार

  • प्रत्यक्ष भेदभाव: जब किसी व्यक्ति को केवल उसकी दिव्यांगता के कारण अवसरों या लाभों से स्पष्ट रूप से वंचित किया जाता है।
    • योग्य उम्मीदवार को उसकी दिव्यांगता के कारण नौकरी पर रखने से मना करना।
  • अप्रत्यक्ष भेदभाव: जब तटस्थ प्रतीत होने वाली नीतियाँ या नियम दिव्यांग व्यक्तियों को अनुपातहीन रूप से हानि पहुँचाते हैं।
    • दृष्टिबाधित व्यक्तियों के लिए वैकल्पिक प्रारूप प्रदान किए बिना सभी उम्मीदवारों को लिखित परीक्षा पूरी करने की आवश्यकता होती है।
  • उचित समायोजन से इनकार: जब आवश्यक संशोधन या समायोजन (जैसे- सुलभ अवसंरचना, सहायक तकनीक, या लचीली कार्य स्थितियाँ) प्रदान नहीं किए जाते हैं, जिससे दिव्यांग व्यक्तियों के लिए समान रूप से अवसरों तक पहुँचना जटिल हो जाता है।
  • उत्पीड़न: जब किसी दिव्यांग व्यक्ति को मौखिक दुर्व्यवहार, अपमानजनक टिप्पणी या अवांछित व्यवहार का सामना करना पड़ता है, जिससे शत्रुतापूर्ण वातावरण बनता है।
  • प्रणालीगत भेदभाव: जब कानून, नीतियाँ या सामाजिक दृष्टिकोण दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकारों और आवश्यकताओं को पहचानने में विफल होकर उन्हें नुकसान पहुँचाते हैं।

भारत में कानूनी ढाँचा

  • दिव्यांगजन के अधिकार (RPwD) अधिनियम, 2016: दिव्यांग व्यक्तियों के विरुद्ध भेदभाव को प्रतिबंधित करता है तथा रोजगार, शिक्षा और सार्वजनिक सेवाओं में समान अवसर प्रदान करता है।
  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद-14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद-21 (जीवन एवं सम्मान का अधिकार): दिव्यांग व्यक्तियों को भेदभाव से बचाना तथा समाज में उनकी पूर्ण भागीदारी सुनिश्चित करना।

दिव्यांगजन के अधिकार (RPwD) अधिनियम, 2016

  • दिव्यांगजन के अधिकार (RPwD) अधिनियम, 2016 को भारत के दिव्यांगता कानूनों को दिव्यांगजन के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCRPD) के साथ संरेखित करने के लिए अधिनियमित किया गया था।
    • भारत ने वर्ष 2007 में UNCRPD की पुष्टि की थी।
  • RPwD अधिनियम का उद्देश्य जीवन के सभी पहलुओं में दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार, समानता और समावेश को सुनिश्चित करना है।
  • वर्ष 2016 के अधिनियम ने पहले के दिव्यांगजन (समान अवसर, अधिकारों का संरक्षण और पूर्ण भागीदारी) अधिनियम, 1995 का स्थान लिया है।

RPwD अधिनियम, 2016 की मुख्य विशेषताएँ

  • दिव्यांगता की विस्तारित परिभाषा: इस अधिनियम ने मान्यता प्राप्त दिव्यांगताओं की संख्या 7 (1995 अधिनियम में) से बढ़ाकर 21 कर दी है।
    • यह केंद्र सरकार को भविष्य में अन्य दिव्यांगताओं को अधिसूचित करने की भी अनुमति देता है।
  • अधिकार एवं पात्रता: यह अधिनियम दिव्यांग व्यक्तियों के लिए कानून के तहत समानता, गैर-भेदभाव और समान सुरक्षा की गारंटी देता है।
  • रोजगार एवं शिक्षा में आरक्षण: अधिनियम सरकारी नौकरियों में दिव्यांग व्यक्तियों के लिए 4% आरक्षण और उच्च शिक्षा संस्थानों में 5% आरक्षण अनिवार्य करता है।
  • पहुँच: इसके लिए सार्वजनिक भवनों, परिवहन प्रणालियों और सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकियों को दिव्यांग व्यक्तियों के लिए सुलभ बनाने की आवश्यकता है।
  • सामाजिक सुरक्षा और स्वास्थ्य: अधिनियम दिव्यांग व्यक्तियों के लिए वित्तीय सहायता, बीमा और पेंशन योजनाओं सहित सामाजिक सुरक्षा उपायों का प्रावधान करता है।
  • राष्ट्रीय एवं राज्य बोर्ड: यह अधिनियम कानून के कार्यान्वयन की निगरानी और सलाह देने के लिए केंद्रीय और राज्य सलाहकार बोर्ड स्थापित करता है।
    • इसमें शिकायतों के समाधान तथा अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए मुख्य आयुक्तों तथा राज्य आयुक्तों की नियुक्ति का भी प्रावधान है।

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