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संक्षेप में समाचार

Lokesh Pal March 06, 2025 03:42 14 0

जन औषधि- एक कदम मातृ शक्ति की ओर (महिला भागीदारी)

प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि परियोजना के बारे में जागरूकता बढ़ाने और जेनेरिक दवाओं को बढ़ावा देने के उद्देश्य से 7 मार्च को प्रत्येक वर्ष ‘जन औषधि दिवस’ ​​​​के रूप में मनाया जाता है। पिछले वर्षों की तरह, 1 से 7 मार्च, 2025 तक देश भर के विभिन्न स्थानों पर सप्ताह भर चलने वाले कार्यक्रमों की योजना बनाई गई है। 7वें जन औषधि दिवस, 2025 का चौथा दिन 30 राज्यों के 30 प्रमुख शहरों में देश की महिलाओं पर विशेष ध्यान केंद्रित करते हुए मनाया गया।

जन औषधि दिवस 

  • यह प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि परियोजना के तहत एक पहल है।
  • उद्देश्य: जेनेरिक दवाओं को बढ़ावा देना एवं जागरूकता बढ़ाना।
  • थीम: भारत के हर कोने में सस्ती दवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करने एवं पहुँच बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करना।
  • मंत्रालय: केंद्रीय रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय।
  • जन औषधि केंद्रों की स्थिति
    • वर्तमान में, भारत के सभी जिलों में 15,000 से अधिक जन औषधि केंद्र संचालित हैं।
    • सरकार का लक्ष्य सस्ती दवाओं तक पहुँच बढ़ाने के लिए 31 मार्च, 2027 तक 25,000 केंद्रों की स्थापना करना है।

सशक्त पंचायत-नेत्री अभियान

हाल ही में नई दिल्ली में महिला निर्वाचित प्रतिनिधियों की एक राष्ट्रीय कार्यशाला में सशक्त पंचायत-नेत्री अभियान का शुभारंभ किया गया। 

सशक्त पंचायत-नेत्री अभियान 

  • यह ग्रामीण शासन में महिला सशक्तीकरण के लिए एक राष्ट्रीय पहल है। 
  • नोडल मंत्रालय: केंद्रीय पंचायती राज मंत्रालय 
  • उद्देश्य: पंचायती राज संस्थाओं (PRIs) में महिला नेतृत्व को मजबूत करना।
  • यह इस पर केंद्रित है:- 
    • नेतृत्व कौशल को बढ़ाना। 
    • निर्णय लेने की क्षमता में सुधार करना। 

महत्त्व

  • महिलाओं को सशक्त बनाना: ग्रामीण शासन में महिलाओं की महत्त्वपूर्ण भूमिका को पहचानना एवं जमीनी स्तर पर सकारात्मक परिवर्तन लाने के लिए उनके नेतृत्व को बढ़ावा देना। 
  • सरकार की प्रतिबद्धता: समावेशी, लैंगिक-संवेदनशील एवं सामाजिक रूप से न्यायपूर्ण ग्राम पंचायत बनाने के लिए सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

गन्ने में ‘रेड राॅट डिजीज’

(Red Rot Disease in Sugarcane)

मुजफ्फरनगर एवं पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अन्य जिलों में, कई किसानों ने बताया है कि उनकी गन्ने की फसलें ‘रेड राॅट डिजीज’ से संक्रमित है। 

  • वर्ष 2020-21 तक उत्तर प्रदेश में 87% गन्ना खेतों को कवर करने वाली गन्ने की प्रजाति Co 0238 में रेड राॅट का प्रकोप देखा गया है। 

रेड राॅट डिजीज 

  • रेड राॅट एक कवक संबंधी रोग है, जो कोलेटोट्रीकम फाल्केटम के कारण होता है, जो गन्ने की फसलों को प्रभावित करता है। 
  • लक्षण: आंतरिक डंठल ऊतकों का लाल रंग का होना, खट्टी मादक गंध तथा मिठास में कमी है।
  • कारक: वायु, जल, मृदा, संक्रमित रोपण सामग्री एवं कृषि उपकरणों के माध्यम से संक्रमण फैलता है, जिससे रोकथाम चुनौतीपूर्ण हो जाती है। 
  • उपज पर प्रभाव: गन्ने के वजन में कमी, चीनी की कम प्राप्ति एवं रस की खराब गुणवत्ता, जिससे किसानों को काफी आर्थिक हानि होती है। 
  • प्रभावित किस्में: इसने कई बेहतरीन गन्ना किस्मों को नुकसान पहुँचाया है, जिनमें Co 213, Co 1148, Co 7717 एवं अब पश्चिमी उत्तर प्रदेश में Co 0238 शामिल हैं।
  • जलवायु प्रभाव: अत्यधिक वर्षा, बाढ़ एवं आर्द्रता रोग के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ निर्मित करती हैं, जिससे पौधों की प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो जाती है।

शेंदुर्नी वन्यजीव अभयारण्य

केरल विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने शेंदुर्नी वन्यजीव अभयारण्य में जंपिंग स्पाइडर की दो नई प्रजातियाँ, एपिडेलैक्सिया फाल्सीफॉर्मिस एवं एपिडेलैक्सिया पलुस्ट्रिस की खोज की, जो भारत में एपिडेलैक्सिया जीनस से संबंधित पहला दर्ज रिकॉर्ड है तथा यह श्रीलंका की स्थानिक प्रजाति है। 

शेंदुर्नी वन्यजीव अभयारण्य 

  • अवस्थिति: यह अभयारण्य केरल के कोल्लम जिले में पश्चिमी घाट के दक्षिणी भाग में अवस्थित है। 
    • यह अगस्त्यमलाई बायोस्फीयर रिजर्व का हिस्सा है। 
  • प्रमुख नदियाँ: शेंदुर्नी, काजुथुरुथी एवं कुलथुपुझा नदियाँ मिलकर कल्लदा नदी बनाती हैं।
    • मानसर एवं मनहर नदियाँ भी अभयारण्य से होकर प्रवहित होती हैं। 
    • थेनमाला बाँध जलाशय भी इसी अभयारण्य में अवस्थित है। 
  • नामकरण: ‘शेंदुर्नी’ नाम ग्लूटा ट्रावनकोरिका  से लिया गया है, जिसे स्थानीय रूप से ‘चेनकुरंजी’ के रूप में जाना जाता है। 
    • यह वृक्ष प्रजाति इस क्षेत्र के लिए स्थानिक है एवं अभयारण्य के भीतर प्रचुर मात्रा में पाई जाती है। 
  • वनस्पतियाँ: यहाँ उष्णकटिबंधीय सदाबहार एवं अर्द्ध-सदाबहार वनों का प्रभुत्व पाया जाता है। 
  • स्तनधारी: इंडियन बाइसन एवं मालाबार जाइंट स्क्वैरल के साथ-साथ लायन टेल्ड मकाॅक जैसी लुप्तप्राय प्रजातियों का आवास स्थल है। 
  • पक्षी: ग्रेट ईयर नाइटजर, एक रात में सक्रिय रहने वाला पक्षी, पहली बार केरल में इसी अभयारण्य में दर्ज किया गया था। 
  • केरल के अधिकांश वनों के विपरीत, शेंदुर्नी वन्यजीव अभयारण्य में चंदन के वृक्ष नहीं पाए जाते हैं, जो इसे पारिस्थितिकी रूप से अलग बनाता है।

वालेस लाइन

(Wallace Line)

हाल ही में इंडोनेशिया के उत्तरी सुलावेसी प्रांत में स्थित माउंट ‘रुआंग’ (Mount Ruang) ज्वालामुखी में हुए विस्फोट के कारण इस क्षेत्र में एक अद्वितीय परिदृश्य देखा गया।

  • बोर्नियो एवं सुलावेसी के मध्य की वालेस लाइन एक महत्त्वपूर्ण जैव-भौगोलिक विभाजन को चिह्नित करती है।

वालेस लाइन

  • जैव-भौगोलिक सीमा: यह एशिया एवं ऑस्ट्रेलिया के पारिस्थितिकी क्षेत्रों को अलग करने वाली एक प्राकृतिक सीमा के रूप में कार्य करती है।
  • भौगोलिक स्थिति
    • वालेस लाइन इंडोनेशिया के बाली और लोंबोक द्वीपों के बीच लोंबोक जलडमरूमध्य को विभाजित करती  है।
    • यह बोर्नियो एवं सुलावेसी के बीच उत्तर की ओर विस्तृत है तथा फिलीपींस और मालुकु द्वीप समूह के दक्षिण तक फैली हुई है।
    • यह लाइन मलय द्वीपसमूह का हिस्सा है, जो 25,000 से अधिक द्वीपों वाला एक भू-गर्भीय रूप से जटिल क्षेत्र है।
  • खोज: वालेस लाइन की पहचान ब्रिटिश खोजकर्ता अल्फ्रेड रसेल वालेस ने वर्ष 1863 में अपने अन्वेषणों के दौरान की थी।
  • पारिस्थितिकी विभाजन: वालेस लाइन इंडोनेशियाई द्वीपसमूह को दो अलग-अलग पारिस्थितिकी क्षेत्रों में विभाजित करती है।
  • वालेस लाइन के पश्चिम में: इस क्षेत्र की प्रजातियाँ एशिया से मिलती-जुलती हैं, जिनमें हाथी, बाघ एवं ओरंगुटान शामिल हैं।
  • वालेस लाइन के पूर्व में: इस क्षेत्र की प्रजातियाँ ऑस्ट्रेलिया से संबंधित हैं, जैसे- कंगारू, कॉकटूस एवं मार्सुपियल्स।
  • वन्यजीवों पर प्रभाव
    • पक्षी एवं स्तनधारी विशेष रूप से विभाजन से प्रभावित होते हैं।
    • वनस्पतियाँ कम प्रभावित होती हैं, हालाँकि यूकेलिप्टस जैसी ऑस्ट्रेलियाई प्रजातियाँ पूर्वी हिस्से में पाई जाती हैं।
  • समुद्री प्रजातियों पर प्रभाव
    • वालेस लाइन स्थलीय प्रजातियों के लिए एक अवरोध के रूप में कार्य करती है, लेकिन समुद्री जीवन को प्रतिबंधित नहीं करती है।
    • वालेस लाइन एवं साहुल शेल्फ (ऑस्ट्रेलिया के पास) के बीच के क्षेत्र को कोरल  ट्राएंगल के रूप में जाना जाता है, जो पृथ्वी पर सबसे अधिक जैव विविधता वाले समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र में से एक है।
  • विभाजन का कारण: वालेस लाइन गहन समुद्री गर्तो के साथ संरेखित होती है, जो प्रजातियों के प्रवास के लिए बाधाओं के रूप में कार्य करती हैं।

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