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ट्रंप ने भारत के विरुद्ध ‘रेसिप्रोकल टैरिफ’ की घोषणा की

Lokesh Pal March 08, 2025 02:32 48 0

संदर्भ

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने घोषणा की है कि संयुक्त राज्य अमेरिका भारत और अन्य देशों पर ‘रेसिप्रोकल टैरिफ’ (Reciprocal Tariffs) लगाएगा, जो 2 अप्रैल, 2025 से प्रभावी होगा।

‘रेसिप्रोकल टैरिफ’ क्या हैं? 

  • ‘रेसिप्रोकल टैरिफ’ एक व्यापार नीति उपकरण है, जिसके तहत एक देश, दूसरे देश से आयात पर शुल्क लगाता है, जो उस देश द्वारा अपने निर्यात पर लगाए गए शुल्क के बराबर होता है।
  • इसका लक्ष्य यह सुनिश्चित करके समान अवसर प्रदान करना है कि दोनों देशों को समान व्यापार बाधाओं का सामना करना पड़े।
  • कार्यान्वयन: यदि कोई देश यह विश्लेषण करता है कि कोई अन्य देश उसके निर्यात पर उच्च शुल्क लगाता है, तो वह प्रतिक्रिया देने या बातचीत करने के तरीके के रूप में ‘रेसिप्रोकल टैरिफ’ लगाना चुन सकता है।
    • उदाहरण के लिए, यदि देश A, देश B से आयात पर 10% टैरिफ लगाता है, तो देश B भी देश A से आयात पर 10% टैरिफ लगा सकता है।

‘रेसिप्रोकल टैरिफ’ का उद्देश्य

  • व्यापार संबंधों को संतुलित करना: इसका मुख्य उद्देश्य व्यापारिक भागीदारों के बीच टैरिफ दरों में असमानताओं को समाप्त करके निष्पक्ष व्यापार सुनिश्चित करना है।
  • प्रतिक्रिया: ‘रेसिप्रोकल टैरिफ’ का उपयोग उन देशों के विरुद्ध प्रतिक्रियात्मक उपाय के रूप में भी किया जा सकता है, जो किसी देश के निर्यात पर उच्च टैरिफ लगाते हैं।
  • वार्ता के साधन के रूप में: वे व्यापार वार्ता में सौदेबाजी के लिए एक उत्प्रेरक के रूप में कार्य कर सकते हैं ताकि अन्य देशों को अपने टैरिफ कम करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है।
  • घरेलू उद्योगों पर प्रभाव: ‘रेसिप्रोकल टैरिफ’ स्थानीय बाजार में आयातित वस्तुओं को कम प्रतिस्पर्द्धी बनाकर घरेलू उद्योगों को सुरक्षा प्रदान कर सकते हैं।

‘रेसिप्रोकल टैरिफ’ का इतिहास

  • कोबडेन-शेवेलियर संधि (वर्ष 1860): ब्रिटेन और फ्राँस के बीच एक द्विपक्षीय व्यापार समझौता, जिसने कई वस्तुओं पर टैरिफ कम कर दिया।
    • इसने पूरे यूरोप में इसी तरह के व्यापार समझौतों को प्रेरित किया, जिससे उदार व्यापार का दौर शुरू हुआ।
  • स्मूट-हॉली टैरिफ एक्ट (वर्ष 1930): संयुक्त राज्य अमेरिका में एक संरक्षणवादी कानून, जिसने 20,000 से अधिक आयातित वस्तुओं पर उच्च टैरिफ लगाया।
    • इसका उद्देश्य महामंदी के दौरान अमेरिकी किसानों और उद्योगों की रक्षा करना था और इसके कारण वैश्विक प्रतिरोध उत्पन्न हुआ, जिसमें कनाडा, ब्रिटेन और जर्मनी जैसे देशों ने अपने टैरिफ लगाए।
  • आधुनिक समय के ‘रेसिप्रोकल टैरिफ’: वैश्विक व्यापार विवादों में बातचीत के साधन के रूप में उपयोग किया जाता है।
    • उदाहरण: अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध (वर्ष 2018-2020), जहाँ दोनों देशों ने अरबों डॉलर के सामान पर ‘रेसिप्रोकल टैरिफ’ लगाए।

‘रेसिप्रोकल टैरिफ’: मुख्य बिंदु

  • घरेलू उद्योगों पर प्रभाव: ‘रेसिप्रोकल टैरिफ’ स्थानीय बाजार में आयातित वस्तुओं को कम प्रतिस्पर्द्धी बनाकर घरेलू उद्योगों को सुरक्षा प्रदान कर सकते हैं।
  • अंतरराष्ट्रीय संबंध: ‘रेसिप्रोकल टैरिफ’ लगाने से देशों के बीच कूटनीतिक संबंधों में तनाव आ सकता है, जिससे संभावित रूप से व्यापार युद्ध या प्रतिशोधात्मक उपाय उत्पन्न हो सकते हैं।
  • उपभोक्ताओं पर प्रभाव: ‘रेसिप्रोकल टैरिफ’ कुछ आयातित वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि कर सकते हैं, जो विकल्पों को कम करके या उच्च लागतों की ओर ले जाकर उपभोक्ताओं को प्रभावित कर सकते हैं।
  • व्यापार संबंधों पर प्रभाव: ‘रेसिप्रोकल टैरिफ’ देशों के बीच समग्र टैरिफ को कम करने और व्यापार की स्थिति को बेहतर बनाने के लिए चर्चाओं को बढ़ावा दे सकते हैं। हालाँकि, अगर देश एक-दूसरे के टैरिफ के विरुद्ध जवाबी कार्रवाई करते रहते हैं, तो वे व्यापार युद्धों को भी जन्म दे सकते हैं।
  • आर्थिक निहितार्थ: जबकि ‘रेसिप्रोकल टैरिफ’ अल्पावधि में स्थानीय उद्योगों की मदद कर सकते हैं, वे उपभोक्ताओं के लिए उच्च कीमतें और बाजार में कम विकल्प उत्पन्न कर सकते हैं। वे व्यापारिक भागीदारों के बीच तनाव भी उत्पन्न कर सकते हैं और वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं को बाधित कर सकते हैं।

‘रेसिप्रोकल टैरिफ’ बनाम संरक्षणवाद

  • संरक्षणवाद एक व्यापक आर्थिक नीति है, जो घरेलू उद्योगों की रक्षा के लिए विदेशी व्यापार को प्रतिबंधित करती है।
  • ‘रेसिप्रोकल टैरिफ’ और संरक्षणवाद दोनों में व्यापार प्रतिबंध शामिल हैं, लेकिन वे अलग-अलग उद्देश्यों की पूर्ति करते हैं और अलग-अलग तरीके से कार्य करते हैं।

विशेषता

‘रेसिप्रोकल टैरिफ’

संरक्षणवाद

परिभाषा किसी अन्य देश द्वारा समान टैरिफ लगाए जाने के प्रत्युत्तर में लगाया गया टैरिफ। आयात को प्रतिबंधित करने और घरेलू उद्योगों को संरक्षण देने के लिए बनाई गई आर्थिक नीतियाँ।
उद्देश्य कथित अनुचित व्यापार प्रथाओं के विरुद्ध प्रतिक्रिया। विदेशी वस्तुओं और सेवाओं पर निर्भरता कम करने के लिए दीर्घकालिक रणनीति।
आवेदन प्रतिउपाय के रूप में चुनिंदा व्यापार साझेदारों पर लागू किया गया। टैरिफ, सब्सिडी और आयात प्रतिबंध सहित नीतियों का व्यापक सेट।
उदाहरण भारत द्वारा उच्च ऑटो टैरिफ लगाए जाने के बाद अमेरिका ने भी भारत पर ‘रेसिप्रोकल टैरिफ’ लगाया है। भारत घरेलू किसानों की सुरक्षा के लिए उच्च कृषि शुल्क बनाए रख रहा है।
व्यापार पर प्रभाव इससे व्यापार तनाव बढ़ता है, लेकिन अधिक न्यायसंगत व्यापार शर्तें सुनिश्चित होती हैं। इससे विदेशी प्रतिस्पर्द्धा कम हो जाती है, लेकिन अकुशलता एवं उपभोक्ता कीमतें बढ़ सकती हैं।
सरकारी रणनीति वार्ता के साधन के रूप में प्रयुक्त अस्थायी उपाय। घरेलू उद्योगों को समर्थन देने के लिए दीर्घकालिक दृष्टिकोण।

ट्रंप द्वारा लगाया गया ‘रेसिप्रोकल टैरिफ’

  • घोषणा: 2 अप्रैल, 2025 को, अमेरिका उन देशों पर ‘रेसिप्रोकल टैरिफ’ लगाएगा, जो अमेरिकी वस्तुओं पर उच्च शुल्क लगाते हैं, जिनमें भारत भी शामिल है।
    • लक्षित देश: भारत, चीन, ब्राजील, मैक्सिको और कनाडा।
  • निष्पक्ष व्यापार विश्वास: ट्रंप ने अनुचित व्यापार प्रथाओं को संबोधित करने के लिए ‘रेसिप्रोकल टैरिफ’ लगाए, जिसका उद्देश्य अमेरिकी व्यवसायों के लिए प्रतिस्पर्द्धा को अनुकूल बनाना था।
  • घरेलू उद्योग संरक्षण: टैरिफ का उपयोग अमेरिकी उद्योगों को विदेशी प्रतिस्पर्द्धा से बचाने और घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए किया गया था।
  • बातचीत की रणनीति: ‘रेसिप्रोकल टैरिफ’ समझौतों पर फिर से बातचीत करने और व्यापार असंतुलन को कम करने के लिए व्यापार वार्ता में लीवरेज के रूप में कार्य करते हैं।

भारत-अमेरिका व्यापार और निवेश

  • द्विपक्षीय व्यापार: अमेरिका भारत के सबसे बड़े व्यापारिक साझेदारों में से एक है।
    • वित्त वर्ष 2024 में भारत का अमेरिका के साथ व्यापार अधिशेष 36.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर था।
    • मिशन 500–द्विपक्षीय व्यापार को दोगुना करना: वर्ष 2030 तक अमेरिका-भारत व्यापार को 500 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक बढ़ाना एक नया लक्ष्य है।
  • व्यापार घाटा: भारत के साथ अमेरिका का व्यापार घाटा वर्ष 2023 में लगभग 100 बिलियन था, जबकि भारत को 35 बिलियन का माल व्यापार अधिशेष प्राप्त हुआ।
  • द्विपक्षीय व्यापार समझौता (BTA): बाजार पहुँच में सुधार, व्यापार बाधाओं को कम करने और आपूर्ति शृंखलाओं को मजबूत करने के लिए द्विपक्षीय व्यापार समझौते (BTA) के पहले चरण पर वर्ष 2025 के शुरुआत में बातचीत की जाएगी।

भारतीय अर्थव्यवस्था के कमजोर क्षेत्र

  • कृषि: भारत के कृषि शुल्क अमेरिका (39% बनाम 5%) की तुलना में काफी अधिक हैं, जिससे यह ‘रेसिप्रोकल टैरिफ’ के लिए एक प्रमुख लक्ष्य बन गया है।
    • इससे भारतीय किसानों को नुकसान हो सकता है, जो पहले से ही न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की गारंटी की माँग कर रहे हैं।
  • ऑटोमोबाइल: ऑटो सेक्टर में 23.1% टैरिफ अंतर इसे अमेरिकी प्रतिक्रियाशील उपायों के प्रति संवेदनशील बनाता है।
    • अमेरिका को भारतीय ऑटो निर्यात उच्च लागत का सामना कर सकता है, जिससे प्रतिस्पर्द्धा कम हो सकती है।
  • फार्मास्यूटिकल्स: अमेरिका को भारत का फार्मा निर्यात उसके उपभोक्ता वस्तुओं के निर्यात का 21.9% है।

भारत पर अप्रत्यक्ष प्रभाव

  • वैश्विक आर्थिक मंदी: हालाँकि भारत को सीधे तौर पर निशाना नहीं बनाया जा सकता है, लेकिन टैरिफ के कारण होने वाली वैश्विक अनिश्चितता वैश्विक GDP को धीमा कर सकती है, जिससे अप्रत्यक्ष रूप से भारत की अर्थव्यवस्था प्रभावित हो सकती है।
  • व्यापार और निवेश में मंदी: चल रहे वैश्विक व्यापार युद्ध और भू-राजनीतिक तनाव के कारण निवेश और खपत में कमी आ सकती है, जिससे भारत के व्यापार तथा आर्थिक विकास पर असर पड़ सकता है।

भारतीय निर्यात पर प्रभाव

  • जोखिम में प्रमुख क्षेत्र: रसायन, इलेक्ट्रॉनिक्स, कपड़ा और कीमती पत्थर (जैसे- हीरे एवं सोना) भी उच्च टैरिफ अंतर के कारण असुरक्षित हैं।
  • निर्यात विविधीकरण: विशेषज्ञों का सुझाव है कि भारत को अमेरिका से परे अपने निर्यात बाजारों का विस्तार करना चाहिए, यूरोप, दक्षिण-पूर्व एशिया और अफ्रीका जैसे क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
  • संयुक्त उद्यम: अमेरिका में असेंबली इकाइयाँ स्थापित करना या अमेरिकी फर्मों के साथ संयुक्त उद्यम बनाना टैरिफ से बचने में मदद कर सकता है।

टैरिफ टालने के लिए भारत के प्रयास

  • टैरिफ में कटौती: भारत अमेरिकी टैरिफ से बचने के लिए ऑटोमोबाइल, रसायन, फार्मास्यूटिकल्स और चिकित्सा उपकरणों पर टैरिफ कम करने पर विचार कर रहा है।
  • हाल ही में रियायतें: भारत ने पहले ही हाई-एंड मोटरसाइकिल (50% से 30% तक) और बॉर्बन व्हिस्की (150% से 100% तक) पर टैरिफ कम कर दिया है।
  • व्यापारिक सौदे की बातचीत: भारत अमेरिका के साथ द्विपक्षीय व्यापार समझौते पर बातचीत कर रहा है, जिसका लक्ष्य वर्ष 2025 तक पहले खंड को अंतिम रूप देना और वर्ष 2030 तक द्विपक्षीय व्यापार को 500 बिलियन डॉलर तक बढ़ाना है।
  • उच्च स्तरीय दौरे: वाणिज्य विभाग सहित भारतीय अधिकारियों ने व्यापार मुद्दों पर चर्चा करने और ‘रेसिप्रोकल टैरिफ’ के प्रभाव पर स्पष्टता प्राप्त करने के लिए अमेरिका का दौरा किया है।

प्रस्तावित ‘रेसिप्रोकल टैरिफ’ से भारत के लिए चुनौतियाँ

  • निर्यात प्रतिस्पर्द्धा में कमी: ‘रेसिप्रोकल टैरिफ’ का मतलब होगा अमेरिका को भारतीय निर्यात पर उच्च शुल्क, जिससे भारतीय सामान अमेरिकी बाजार में अधिक महंगे और कम प्रतिस्पर्द्धी हो जाएँगे।
  • घरेलू उद्योगों पर प्रभाव: कई भारतीय उद्योग अमेरिकी बाजार पर बहुत अधिक निर्भर हैं। उच्च टैरिफ से माँग में कमी आ सकती है, जिससे इन क्षेत्रों में उत्पादन, राजस्व और रोजगार प्रभावित हो सकते हैं।
  • आर्थिक विकास में मंदी: भारत के सबसे बड़े व्यापारिक साझेदारों में से एक, अमेरिका को निर्यात में गिरावट से भारत की आर्थिक वृद्धि धीमी हो सकती है, विशेषकर निर्यात-उन्मुख क्षेत्रों में।
  • द्विपक्षीय संबंधों में तनाव: ‘रेसिप्रोकल टैरिफ’ लगाने से भारत और अमेरिका के बीच बढ़ती रणनीतिक तथा आर्थिक साझेदारी पर दबाव पड़ सकता है, विशेषकर रक्षा, प्रौद्योगिकी और आतंकवाद-रोधी जैसे क्षेत्रों में।
  • भारत में अमेरिकी निवेश पर प्रभाव: टैरिफ अमेरिकी कंपनियों को भारत में निवेश करने से हतोत्साहित कर सकते हैं, जिससे प्रौद्योगिकी, विनिर्माण और सेवाओं जैसे क्षेत्र प्रभावित हो सकते हैं।
  • उपभोक्ताओं के लिए उच्च कीमतें: यदि भारत अमेरिकी आयात पर प्रतिशोधात्मक शुल्क लगाता है, तो भारतीय उपभोक्ताओं को इलेक्ट्रॉनिक्स, मशीनरी और कृषि उत्पादों जैसे सामानों के लिए उच्च कीमतों का सामना करना पड़ सकता है।
  • WTO में चुनौतियाँ: ‘रेसिप्रोकल टैरिफ’ की ओर अमेरिका का कदम विश्व व्यापार संगठन (WTO) के तहत नियम-आधारित बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली को कमजोर कर सकता है।
    • बहुपक्षवाद के समर्थक के रूप में भारत को इस बदलाव को समझने तथा विश्व व्यापार संगठन के ढाँचे के भीतर अपने हितों की रक्षा करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा।
  • कृषि क्षेत्र की कमजोरी: चावल, मसाले और समुद्री खाद्य जैसे भारतीय कृषि उत्पादों के लिए अमेरिका एक महत्त्वपूर्ण बाजार है।
    • उच्च टैरिफ से भारतीय किसानों और निर्यातकों को नुकसान हो सकता है, जो पहले से ही कम कीमतों और जलवायु परिवर्तन जैसी चुनौतियों का सामना कर रहे हैं।

आगे की राह 

  • निर्यात बाजारों में विविधता लाना: भारत को अमेरिकी बाजार पर निर्भरता कम करने के लिए यूरोपीय संघ, दक्षिण-पूर्व एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका जैसे अन्य क्षेत्रों के साथ व्यापार संबंधों को तलाशना और मजबूत करना चाहिए।
  • मुक्त व्यापार समझौते (FTA): भारतीय वस्तुओं के लिए बेहतर बाजार पहुँच सुनिश्चित करने के लिए यू.के., ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और यूरोपीय संघ जैसे देशों के साथ FTA के लिए बातचीत को तेज करना।
  • IT तथा सॉफ्टवेयर निर्यात को बढ़ावा देना: भारत को अपने व्यापार अधिशेष को बनाए रखने के लिए आईटी और सॉफ्टवेयर सेवा क्षेत्र में अपनी क्षमता का लाभ उठाना चाहिए, जो टैरिफ के प्रति कम संवेदनशील है।
  • विनिर्माण को बढ़ावा: भारत को कर कटौती और उत्पादन से जुड़े प्रोत्साहन जैसे प्रोत्साहन देकर स्वयं को चीन के लिए विनिर्माण विकल्प के रूप में स्थापित करने का लक्ष्य रखना चाहिए।
  • क्षेत्रीय संपर्क पर ध्यान देना: मध्य एशिया और यूरोप के साथ व्यापार को बढ़ावा देने के लिए अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (INSTC) और चाबहार बंदरगाह जैसी पहलों के माध्यम से पड़ोसी देशों के साथ संपर्क बढ़ाना।

निष्कर्ष

हालाँकि ‘रेसिप्रोकल टैरिफ’ लगाने से तत्काल आर्थिक जोखिम उत्पन्न होता है, भारत इसके प्रभाव को कम करने के लिए व्यापार वार्ता और रणनीतिक सुधारों में सक्रिय रूप से शामिल है। वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं में अपनी भूमिका को बढ़ाकर और अमेरिकी निवेश को आकर्षित करके, भारत इस चुनौती को दीर्घकालिक आर्थिक विकास के अवसर में बदलना चाहता है।

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