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‘इंडिया फाइनेंसियल सिस्टम स्टेबिलिटी असेसमेंट’ रिपोर्ट

Lokesh Pal March 10, 2025 03:23 10 0

संदर्भ

हाल ही में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने ‘इंडिया फाइनेंसियल सिस्टम स्टेबिलिटी असेसमेंट’ (India Financial System Stability Assessment) शीर्षक से एक रिपोर्ट जारी की है।

रिपोर्ट की मुख्य बिंदु

  • उद्देश्य: रिपोर्ट समग्र रूप से वित्तीय प्रणाली की स्थिरता का आकलन करती है तथा देशों को वित्तीय क्षेत्र में प्रणालीगत जोखिम के प्रमुख स्रोतों की पहचान करने में सहायता करती है, ताकि वित्तीय संकटों और संक्रमण के प्रति इसका अनुकूलन बढ़ाने के लिए नीतियों को क्रियान्वित किया जा सके।
  • निष्कर्ष
    • भारत की समग्र वित्तीय प्रणाली: महामारी के बाद से यह अधिक लचीली और विविधतापूर्ण हो गई है और गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थानों एवं बाजार वित्तपोषण के तीव्र आर्थिक विकास से प्रेरित है, जिससे यह अधिक विविध और परस्पर जुड़ी हुई है।
    • मैक्रोफाइनेंशियल संबंधी वित्तीय संकटों के प्रति लचीलापन: किए गए परीक्षणों से पता चला है कि मुख्य ऋणदाता क्षेत्र, मैक्रो फाइनेंशियल संबंधी वित्तीय संकटों के प्रति व्यापक रूप से अनुकूल हैं।
      • बैंक और NBFC: उनके पास गंभीर मैक्रोफाइनेंशियल परिदृश्यों में भी मध्यम ऋण देने के लिए पर्याप्त सकल पूँजी है, लेकिन PSB को ऐसी स्थितियों में ऋण देने के लिए अपने पूँजी आधार को मजबूत करने की आवश्यकता हो सकती है।
      • कमजोर बिंदु: कुछ गैर-प्रणालीगत NBFC और शहरी सहकारी बैंक वित्तीय संरचना की कमजोर कड़ी हैं, जो न्यूनतम या नकारात्मक पूँजी से नीचे की रिपोर्ट करते हैं।
    • मुद्रास्फीति घटना: यह पाया गया कि “भू-राजनीतिक जोखिम और प्रमुख केंद्रीय बैंकों द्वारा मौद्रिक नीति के गलत आकलन” के कारण उत्पन्न मुद्रास्फीति की स्थिति में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को मुश्किल से 9% का पूँजी पर्याप्तता अनुपात (CAR) बनाए रखने में कठिनाई हो सकती है। 
      • RBI ने PSB और अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों के लिए क्रमशः 12% और 9% CAR अनिवार्य किया है।
    • PSB की भेद्यता: PSB ऋण जोखिम के प्रति अपेक्षाकृत अधिक संवेदनशील हैं और उन्हें सरकार को लाभांश का भुगतान करने के बजाय अपनी आय को बनाए रखते हुए अपने पूँजी आधार को मजबूत करने की आवश्यकता है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि वे भविष्य में संभावित मंदी में आर्थिक सुधार का समर्थन कर सकें।
    • विद्युत क्षेत्र में केंद्रित जोखिम: यह पाया गया कि वित्त वर्ष 2024 में विद्युत क्षेत्र के ऋणों का 63% NBFC (IREDA जैसी राज्य के स्वामित्व वाली बुनियादी ढाँचा वित्तपोषण कंपनियों से) से आया, जो वित्त वर्ष 2019-20 में 55% से बढ़ गया।
      • प्रणालीगत जोखिम का कारण: इस तरह के उच्च जोखिम से प्रणालीगत जोखिम उत्पन्न हो सकता है, जिसमें NBFC से उत्पन्न संकट बैंकों, कॉरपोरेट बॉण्ड बाजारों और NBFC को वित्तपोषित करने वाले म्यूचुअल फंडों पर भी फैल सकता है।
      • भौतिक और संक्रमण जोखिम: मानसून पर निर्भर कृषि क्षेत्र और विद्युत क्षेत्र सहित कार्बन-गहन उद्योगों को छोड़कर, भौतिक एवं संक्रमण जोखिमों के प्रति बैंक जोखिम मध्यम हैं।
    • निरीक्षण ढाँचा: पर्यवेक्षी एजेंसियों के पास पर्याप्त स्वतंत्रता का अभाव है तथा राज्य के स्वामित्व वाली वित्तीय संस्थाओं में कॉरपोरेट प्रशासन पर उनकी शक्तियाँ अंतरराष्ट्रीय सर्वोत्तम प्रथाओं की तुलना में सीमित बनी हुई हैं।

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund-IMF):

  • IMF एक वैश्विक वित्तीय संस्था है, जो द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद ब्रेटन वुड्स समझौते के परिणामस्वरूप उभरी।
    • इसका उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय मुद्रा विनिमय दरों को स्थिर करना और अंतरराष्ट्रीय आर्थिक सहयोग के लिए एक ढाँचा स्थापित करना था।
  • स्थापना: इसकी स्थापना वर्ष 1944 में हुई थी।
  • उद्देश्य: अंतरराष्ट्रीय मौद्रिक सहयोग को प्रोत्साहित करना, विश्वव्यापी व्यापार को सुविधाजनक बनाना, आर्थिक विकास और सतत् विकास को प्रोत्साहित करना और वैश्विक गरीबी को कम करना।
  • मुख्यालय: यह वाशिंगटन, डी.सी. में स्थित है।
  • सदस्य: इसके 191 सदस्य देश हैं।
  • मतदान शक्ति: IMF में मतदान शक्ति कोटा द्वारा निर्धारित की जाती है, जिसमें प्रत्येक सदस्य के पास प्रत्येक SDR 1,00,000 कोटा के लिए एक वोट होता है।
  • कार्य
    • इसका उद्देश्य आर्थिक चुनौतियों का सामना कर रहे सदस्य देशों को ऋण और अन्य वित्तीय साधन प्रदान करके वित्तीय सहायता प्रदान करना है।
    • IMF सदस्य देशों को आर्थिक नीति और प्रबंधन के संबंध में तकनीकी मार्गदर्शन तथा परामर्श प्रदान करता है।
    • IMF सदस्य देशों के भीतर आर्थिक और वित्तीय रुझानों का अवलोकन करता है तथा आर्थिक स्थिरता और विकास को मजबूत करने के लिए नीतिगत सिफारिशें करता है।
  • रिपोर्ट
    • विश्व आर्थिक परिदृश्य: वैश्विक अर्थव्यवस्था का विश्लेषण करता है और सदस्य देशों के लिए पूर्वानुमान प्रदान करता है।
    • वैश्विक वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट: वैश्विक वित्तीय प्रणाली और बाजारों का आकलन करता है एवं वित्तीय स्थिरता के लिए जोखिमों की पहचान करता है।


  • अनुशंसाएँ
    • NBFC पर्यवेक्षण: सरकारी स्वामित्व वाली NBFC के लिए मानकों से छूट को समाप्त किया जाना चाहिए और उन्हें PSB के बराबर किया जाना चाहिए ताकि अवसरों को समान किया जा सके और वित्तीय स्थिरता की रक्षा की जा सके।
      • बैंकों के लिए अच्छी तरह से स्थापित साइबर सुरक्षा जोखिम पर्यवेक्षण ढाँचे को प्रमुख गैर-बैंकों तक विस्तारित करना।
    • डेटा साझाकरण और विश्लेषण: अधिक विस्तृत डेटा एकत्र करना और सिस्टम-वाइड इंटरकनेक्टनेस, घरेलू ऋण जोखिम और जलवायु-संबंधी वित्तीय जोखिमों के विश्लेषण को तेज करने के लिए साझाकरण में सुधार करना।
    • बैंकिंग पर्यवेक्षण को मजबूत करना: तत्काल ध्यान देने के लिए महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में IFRS 9 को अपनाकर और पिलर 2 पूँजी ऐड-ऑन को लागू करके क्रेडिट जोखिम प्रबंधन ढाँचे को मजबूत करना शामिल है।
      • अगली मंदी से पहले रिलीज करने योग्य काउंटरसाइक्लिकल कैपिटल बफर बनाना, जो अपेक्षाकृत कम लागत पर तेजी से रिकवरी का समर्थन करे।
    • वित्तीय नवाचारों को अपनाने के लिए बुनियादी ढाँचे का विकास करना: अत्याधुनिक क्रेडिट वृद्धि उपकरणों के साथ परिसंपत्ति-आधारित और डिजिटल ऋण देने के लिए कानूनी, कर और सूचनात्मक बुनियादी ढाँचे को मजबूत करके वित्तीय रूप से वंचित क्षेत्रों की ऋण तक पहुँच को बढ़ाना।
    • रिकवरी के लिए समय कम करने के लिए दिवालियापन प्रक्रियाओं को और बढ़ाना भी क्रेडिट जोखिमों को बेहतर ढंग से प्रबंधित करने के लिए महत्त्वपूर्ण है।

गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ (Non Banking Financial Companies-NBFC)

  • NBFC, कंपनी अधिनियम, 1956 के तहत पंजीकृत कंपनियाँ हैं, जो बैंकों के समान वित्तीय सेवाएँ प्रदान करती हैं, लेकिन स्वयं बैंक नहीं हैं।
    • उदाहरण: बजाज फिनसर्व, पावर फाइनेंस कॉरपोरेशन लिमिटेड, महिंद्रा एंड महिंद्रा फाइनेंशियल सर्विस, श्रीराम ट्रांसपोर्ट फाइनेंस कंपनी और मुथूट फाइनेंस लिमिटेड।
  • विनियमन: NBFC को RBI अधिनियम, 1934 के तहत भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा विनियमित किया जाता है, जिसके पास उन्हें पंजीकृत करने, निरीक्षण करने और पर्यवेक्षण करने की शक्तियाँ हैं।
    • स्केल आधारित विनियमन (Scale Based Regulation-SBR): RBI ने NBFC को चार प्रकारों में वर्गीकृत करने के लिए अक्टूबर 2021 में स्केल आधारित विनियमन (SBR) पेश किया।
    • SBR ढाँचा NBFC को उनकी परिसंपत्ति के आकार और स्कोरिंग मानदंडों के आधार पर वर्गीकृत करता है।
  • 50-50 मुख्य व्यवसाय मानदंड: 50-50 मुख्य व्यवसाय मानदंड के तहत विचार किए जाने के लिए NBFC की वित्तीय गतिविधियाँ कुल परिसंपत्तियों और सकल आय का 50% से अधिक होनी चाहिए।
  • NBFC पंजीकरण के लिए आवश्यकताएँ
    • कंपनी अधिनियम, 1956 की धारा 3 के तहत पंजीकृत कंपनी होनी चाहिए।
    • न्यूनतम शुद्ध स्वामित्व निधि (NOF) ₹200 लाख होनी चाहिए।
  • NBFC फंडिंग: NBFC फंडिंग के लिए विभिन्न स्रोतों पर निर्भर करती हैं, जिनमें गैर-परिवर्तनीय डिबेंचर (Non Convertible Debentures-NCD), वाणिज्यिक-पत्र, प्रतिभूतिकरण, सह-उधार और बाहरी वाणिज्यिक उधार (External Commercial Borrowings-ECB) शामिल हैं।
  • अद्वितीय विशेषताएँ
    • NBFC बचत या चालू खातों जैसे डिमांड डिपॉजिट स्वीकार नहीं कर सकते हैं। वे सावधि जमा या डिबेंचर के रूप में जमा स्वीकार कर सकते हैं। 
    • वे भुगतान और निपटान प्रणाली का हिस्सा नहीं हैं और स्वयं आहरित चेक जारी नहीं कर सकते हैं। 
    • NBFC जमा DICGC द्वारा बीमाकृत नहीं हैं। 
    • NBFC को नकद आरक्षित अनुपात बनाए रखने की आवश्यकता नहीं है।

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