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भारतीय प्रशासनिक सेवा का उन्नयन एवं विस्तार

Lokesh Pal March 11, 2025 05:00 74 0

यदि मनुष्य देवदूत होते, तो किसी सरकार की आवश्यकता नहीं होती” जेम्स मैडिसन

संदर्भ:

भारत में शीर्ष पदों पर भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) का आधिपत्य वर्तमान में जितना अधिक है, उतना पहले कभी नहीं देखा गया।

भारत में आईएएस अधिकारियों की परिवर्तित भूमिका

  • औपनिवेशिक व्यवस्था: ब्रिटिश शासन के तहत, भारतीय सिविल सेवा (ICS) के भीतर एक समर्पित आर्थिक प्रबंधन व्यवस्था मौजूद थी। इससे यह सुनिश्चित हुआ, कि प्रमुख आर्थिक मंत्रालयों का नेतृत्व विशिष्ट क्षमता और ज्ञान वाले अधिकारियों द्वारा ही किया जाएगा।
    • एस. भूतलिंगम और एल. के. झा जैसे प्रमुख प्रशासक इसी प्रणाली से के तहत सामने आए।
  • प्रमुख पदों पर पुनर्नियुक्ति: एक आईएएस ने एक गैर-आईएएस प्रमुख के अल्पकालिक कार्यकाल के बाद सेबी पर पुनः नियंत्रण स्थापित कर लिया है। आरबीआई गवर्नरशिप, जिसमें कुछ समय के लिए एक अर्थशास्त्री को शीर्ष पर देखा गया था, 2018 में एक आईएएस के नेतृत्व में वापस आ गई। 
    • आरबीआई के पद पर पुनःनियुक्त होने वाले अधिकारी अब प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) में महत्त्वपूर्ण पद पर हैं
  • विशेषज्ञों का बाहर होना: इंदिरा गांधी युग के विपरीत, जब पी.एन. धर जैसे विशेषज्ञों को नीतिगत निर्णयों में शामिल किया जाता था, आज की शासन संरचना में गैर-आईएएस पेशेवरों को नेतृत्व की भूमिकाओं से बाहर रखा जाता है।
    • विशेषज्ञता के अवमूल्यन का अर्थ यह है, कि महत्त्वपूर्ण नीतिगत भूमिकाओं पर अब पेशेवर नौकरशाहों का एकाधिकार है, न कि क्षेत्र विशेष के ज्ञान वाले विशेषज्ञों का।

आईएएस आधिपत्य के कारण शासन में चुनौतियाँ

  • विशेषज्ञता का अभाव: आईएएस अधिकारियों का अपने कार्यकाल के दौरान बार-बार स्थानांतरण होता है, जिससे वे किसी विशेष क्षेत्र में गहन विशेषज्ञता विकसित करने में असमर्थ हो जाते हैं।
  • कार्यकाल प्रणाली: लघु कार्यकाल संस्थागत ज्ञान को और कमजोर कर देता है, जिससे तदर्थ निर्णय लेने की प्रक्रिया को बढ़ावा मिलता है
  • अति-निर्भरता: कई मंत्रालयों में सलाहकार प्रमुख नीतिगत कार्य करते हैं, जो प्रायः आईएएस अधिकारियों के डोमेन विशेषज्ञता या ज्ञान से अधिक होते हैं। जैसे,
    • संसदीय प्रश्नों के उत्तर का मसौदा तैयार करना।
    • वरिष्ठ अधिकारियों के लिए लेख लिखना।
    • नीतिगत ढाँचे और सुधारों का प्रबंधन करना।
  • असुरक्षा: ये परामर्शदाता, अपनी विशेषज्ञता के बावजूद असुरक्षित पदों पर बने रहते हैं और अपनी भूमिका बनाए रखने के लिए उन्हें नौकरशाही की राजनीति से निपटना पड़ता है।
  • असंगत नीति: बार-बार होने वाले तबादलों और विशेषज्ञता की कमी के कारण नीतिगत निर्णयों की ठीक से जाँच नहीं हो पाती है, जिन्हें प्रायः कार्यान्वयन के बाद संशोधित किया जाता है। अप्रत्याशित और असंगत सरकारी नीतियों के कारण नागरिकों तथा व्यवसायों को हानि उठानी पड़ती है।
  • सामान्यवादियों का प्रभुत्व: 1998 में पूर्व सिविल सेवक प्रभु घेट ने आईएएस की सामान्यवादी प्रकृति की आलोचना करते हुए तर्क दिया, कि इससे नीति विश्लेषण में बाधा उत्पन्न होती है
    • घेट ने कहा, कि भारत उन कुछ बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक है, जहाँ नीति-निर्माण में विशेषज्ञों की बजाय सामान्य अधिकारी एकाधिकार रखते हैं।

आगे की राह

  • सुधारों का आह्वान: 1984 में एल.के. झा ने आर्थिक प्रशासन में सुधार के लिए इस प्रणाली को पुनर्जीवित करने का प्रस्ताव रखा। 
  • आईएएस-एफ (फील्ड डिवीजन): यह डिवीजन प्रशासन, कानून प्रवर्तन और जमीनी स्तर पर शासन पर ध्यान केंद्रित करता है। 
    • इस संवर्ग के अधिकारी विशेषज्ञता रखते हैं, भूमिगत स्तर पर कार्यान्वयन और राज्य प्रशासन में विशेषज्ञ होते हैं तथा कुशल सार्वजनिक सेवा वितरण और कानून प्रवर्तन सुनिश्चित करते हैं।
  • आईएएस-पी (नीति विश्लेषण प्रभाग): नीति अनुसंधान, आर्थिक नियोजन और नियामक भूमिकाओं के लिए समर्पित एक विशेष संवर्ग। 
    • शैक्षणिक जगत और निजी क्षेत्र से पेशेवरों को आकर्षित करने के लिए प्रवेश मानदंडों को उदार बनाया जाना चाहिए
    • आईएएस-पी अधिकारियों को वास्तविक समाज का अनुभव प्राप्त करने के लिए सरकार से बाहर काम करने हेतु प्रोत्साहित किया जाना चाहिए तथा कार्य निष्पादन मूल्यांकन के दौरान बाह्य कार्य अनुभव को सकारात्मक रूप से महत्त्व दिया जाना चाहिए।
  • आईएएस-एफ से परिवर्तन: आईएएस-पी को एक नया रूप लेने और विशिष्ट नौकरशाही अभिजात वर्ग बनने से रोकने के लिए, क्षेत्र अनुभव वाले अधिकारियों को विशेष प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद नीति भूमिकाओं में स्थानांतरित करने की अनुमति दी जानी चाहिए।
  • अन्य केंद्रीय सेवाओं का समावेशभारतीय आर्थिक सेवा (आईईएस) और भारतीय सांख्यिकी सेवा (आईएसएस) के अधिकारियों को आईएएस-पी में एकीकृत किया जाना चाहिए, जिससे आर्थिक नीति-निर्माण में तकनीकी विशेषज्ञता प्राप्त हो सके।
  • प्रदर्शन-आधारित मूल्यांकन: पदोन्नति और पुरस्कार को केवल वरिष्ठता-आधारित करियर प्रगति की बजाय नीतिगत नवाचारों से जोड़ा जाना चाहिए।

निष्कर्ष

उपर्युक्त सुधारों के बिना, भारतीय नौकरशाही (अधिकार-तंत्र) कठोर और विशेषज्ञता के प्रति प्रतिरोधी बनी रहेगी तथा गतिशील वैश्विक अर्थव्यवस्था में नीति-निर्माण की उभरती माँगों को पूरा करने में विफल रहेगी।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न

भारत की कुलीन नौकरशाही को विशेषज्ञता की बजाय सामान्य दृष्टिकोण को प्राथमिकता देने के लिए आलोचना का सामना करना पड़ रहा है। सिविल सेवाओं को क्षेत्रीय और नीति प्रभागों में पुनर्गठित करने की आवश्यकता की आलोचनात्मक जाँच कीजिए। चर्चा कीजिए, कि ऐसे सुधार शासन, नीति, नवाचार और प्रशासनिक दक्षता को कैसे प्रभावित करेंगे।

(15 अंक, 250 शब्द)

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