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दोषपूर्ण खाद्य विनियमन और मोटापे की समस्या

Lokesh Pal March 11, 2025 05:15 10 0

संदर्भ:

मोटापे से निपटने के लिए भारत के प्रधानमंत्री का आह्वान और 2025 के आर्थिक सर्वेक्षण में अति-प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों (यू.पी.एफ.) पर ‘स्वास्थ्य कर’ लगाने की सिफारिश सराहनीय है।

भारत में मोटापे की समस्या

  • मोटापे के बारे में: मोटापे को शरीर में अतिरिक्त वसा (वसा ऊतक) के रूप में परिभाषित किया जाता है, जो स्वास्थ्य को नुकसान पहुँचा सकता है। यह एक दीर्घकालिक (जीर्ण) स्वास्थ्य स्थिति है, जो समय के साथ बढ़ती जाती है।
  • बढ़ता मोटापा: 4 में से 1 भारतीय वयस्क मोटापे से ग्रस्त है। 4 में से 1 वयस्क या तो मधुमेह या प्री-डायबिटिक है (राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण -5)। 
  • कारण: अति-प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों (यू.पी.एफ.) का अधिक सेवन इन चिंताजनक स्वास्थ्य समस्याओं में योगदान देता है।

भारत में खाद्य विनियमनों के कार्यान्वयन में चुनौतियाँ

  • प्रवर्तन का अभाव: भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (FSSAI) और विभिन्न मंत्रालय 2017 से स्पष्ट लेबलिंग और विज्ञापन नियमों को लागू करने में विफल रहे हैं।
  • विनियमन मुद्दा: विनियमन अस्पष्ट बने हुए हैं, जो सार्वजनिक स्वास्थ्य की अपेक्षा उद्योग हितों को प्राथमिकता देते हैं।
  • लेबल का अभाव: पैकेट के सामने चेतावनी लेबल अभी भी अनुपस्थित हैं, जिससे अस्वास्थ्यकर खाद्य पदार्थों का अनियमित विपणन हो रहा है
  • अप्रभावी रेटिंग प्रणाली: FSSAI ने सितंबर 2022 में भारतीय पोषण रेटिंग (INR) की शुरुआत की, जो उद्योग लॉबिंग से प्रभावित एक ‘हेल्थ स्टार’ लेबलिंग प्रणाली है
    • हालाँकि, ऑस्ट्रेलिया की अप्रभावी प्रणाली पर आधारित यह मॉडल उपभोक्ता हितों की रक्षा करने में विफल रहता है।
  • स्वास्थ्य संबंधी भ्रामक स्टार: बिस्कुट और सॉफ्ट ड्रिंक जैसे HFSS (उच्च वसा, नमक और चीनी) खाद्य पदार्थों को अभी भी 2+ स्टार मिल सकते हैं। चीनी और सोडियम की मात्रा अधिक होने के बावजूद, कॉर्न फ्लेक्स को 3 स्टार मिलते हैं। यह अस्वास्थ्यकर खाद्य पदार्थों के लिए एक गलत स्वास्थ्य धारणा बनाता है।
  • उद्योग का प्रभाव: FSSAI ने बिना किसी आलोचनात्मक समीक्षा के IIM अहमदाबाद के अध्ययन को सही माना। निर्णय लेने में वैज्ञानिक समिति के सदस्यों को दरकिनार कर दिया गया। 2021 के ‘ट्रैफिक लाइट’ चेतावनी लेबल प्रस्ताव को उद्योगों के दबाव में रद्द कर दिया गया।
  • अप्रभावी कानून: चार कानूनों का उद्देश्य भ्रामक विज्ञापनों पर अंकुश लगाना है, लेकिन इनका क्रियान्वयन नहीं हो पाया है। राष्ट्रीय बहुक्षेत्रीय कार्य योजना (2017) में विज्ञापन प्रतिबंधों का सुझाव दिया गया है, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई है।
  • उपभोक्ता संरक्षण में समस्याएँ: उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम (2019) भ्रामक विज्ञापनों को परिभाषित करता है, लेकिन पोषण संबंधी पारदर्शिता लागू नहीं की जाती है। HFSS और UPF परिभाषाएँ अभी भी FSSAI नियमों से गायब हैं।
  • प्रभावजंक फूड के अनियमित विज्ञापनों से मोटापा और मधुमेह जैसी बीमारियों की दर बढ़ जाती है। अध्ययनों से पुष्टि होती है, कि जंक फूड के विज्ञापनों पर प्रतिबंध लगाने से बचपन में मोटापे में काफी कमी आ सकती है।

आगे की राह

  • वैश्विक प्रथाएँ: चिली के ‘हाई इन’ ब्लैक लेबल के कारण अति-प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों (यू.पी.एफ.) की खपत में 24% की गिरावट आई। अधिकांश देश भ्रामक स्टार रेटिंग की बजाय स्पष्ट ‘हाई इन’ चेतावनियों का पालन करते हैं
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन के दिशा-निर्देशों को अपनाना: भारत को विश्व स्वास्थ्य संगठन के दिशा-निर्देशों या राष्ट्रीय पोषण संस्थान के मानकों को अपनाना चाहिए।
  • कठोर लेबलिंग: आर्थिक सर्वेक्षण-2025 में मोटापे और अति-प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों (यूपीएफ) के बढ़ते प्रचलन से निपटने के लिए कठोर लेबल और कठोर विपणन प्रतिबंधों की आवश्यकता पर बल दिया गया है।
  • चेतावनी लेबल: भ्रामक ‘स्वास्थ्य स्टार’ प्रणाली को स्पष्ट चेतावनी लेबल से बदलें। 
    • वर्गीकरण के लिए WHO SEARO दिशा-निर्देश या भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) -राष्ट्रीय पोषण संस्थान (NIN) मानकों का उपयोग करें।
  • पोषण संबंधी सीमाएँ: पूर्व-पैकेज्ड खाद्य पदार्थों में चीनी, नमक और वसा की सीमाएँ निर्धारित करें। अनिवार्य विनियमों के माध्यम से इन सीमाओं को लागू करें।
  • विनियमन को मज़बूत करें: वर्तमान विज्ञापन कानूनों में कमियों को दूर करें। HFSS (उच्च वसा, नमक और चीनी)/ अति-प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों (यू.पी.एफ.) की मार्केटिंग को विनियमित करने के लिए एक व्यापक कानून प्रस्तुत करें।
  • जागरूकता अभियान: उपभोक्ताओं को अति-प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों के स्वास्थ्य जोखिमों के बारे में प्रशिक्षित करें। सुनिश्चित करें कि अभियान को सभी भाषाई और जनसांख्यिकीय समूहों तक पहुँच प्राप्त हो

निष्कर्ष

भारत में मोटापे का संकट लोगों में जागरूकता के अभाव के कारण नहीं है, बल्कि… नीतिगत विफलता के कारण है। प्रधानमंत्री के स्वस्थ भारत के सपने को पूरा करने के लिए एक नियामक ढाँचे की आवश्यकता है, जो व्यावसायिक हितों पर सार्वजनिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता दे

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न

भारत का मोटापा संकट सार्वजनिक व्यवहार की बजाय विनियामक विफलताओं को दर्शाता है। अति-प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों को विनियमित करने में बहुआयामी चुनौतियों का मूल्यांकन करते हुए इस दृष्टिकोण की आलोचनात्मक जाँच कीजिए तथा प्रभावी सार्वजनिक स्वास्थ्य परिणामों के लिए आवश्यक व्यापक नीतिगत उपायों का सुझाव दीजिए।

(15 अंक, 250 शब्द)

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