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स्टारलिंक सैटेलाइट इंटरनेट

Lokesh Pal March 15, 2025 12:04 93 0

संदर्भ

स्पेसएक्स ने भारत में अपनी सैटेलाइट इंटरनेट सेवा स्टारलिंक वितरित करने के लिए एयरटेल और जियो के साथ समझौता किया है।

  • अंतिम समझौता भारत सरकार से विनियामक अनुमोदन के अधीन है।

सैटेलाइट इंटरनेट के बारे में

  • परिभाषा: एक प्रकार का वायरलेस इंटरनेट कनेक्शन, जो ब्रॉडबैंड सेवाएँ प्रदान करने के लिए पृथ्वी की परिक्रमा करने वाले उपग्रहों का उपयोग करता है।
  • मुख्य लाभ: यह विशेष रूप से दूरदराज और ग्रामीण क्षेत्रों में लाभदायक है, जहाँ पारंपरिक फाइबर ऑप्टिक्स केबल, DSL या केबल कनेक्शन उपलब्ध नहीं हैं।
  • कार्य प्रणाली: सतही बुनियादी ढाँचा आधारित फाइबर-ऑप्टिक या मोबाइल नेटवर्क के विपरीत, सैटेलाइट इंटरनेट, अंतरिक्ष आधारित उपग्रहों से पृथ्वी पर उपयोगकर्ता टर्मिनलों तक डेटा पहुँचाता है।

सैटेलाइट इंटरनेट के प्रकार

  • भू-स्थैतिक कक्षा (GEO) उपग्रह इंटरनेट: पृथ्वी से 35,786 किमी. ऊपर स्थित उपग्रह।
    • बड़े क्षेत्रों को शामिल करता है, लेकिन इसमें उच्च विलंबता (~ 600ms) होती है, जिससे यह रियल टाइम अनुप्रयोगों के लिए धीमा हो जाता है।
    • उदाहरण: ह्यूजेसनेट, वायसैट जैसे वीसैट नेटवर्क।
  • निम्न पृथ्वी कक्षा (LEO) सैटेलाइट इंटरनेट: 500-2,000 किमी. की ऊँचाई पर स्थित उपग्रह।
    • GEO उपग्रहों की तुलना में कम विलंबता (~ 20-50ms) तथा उच्च गति प्रदान करता है। 
    • उदाहरण: स्टारलिंक, वनवेब, अमेजन कुइपर।

सैटेलाइट इंटरनेट का महत्त्व

  • पहुँच में सुधार: ग्रामीण, दूरदराज और वंचित क्षेत्रों में कनेक्टिविटी को सक्षम बनाता है, जहाँ स्थलीय बुनियादी ढाँचा सीमित है।
  • आपदाओं के दौरान कनेक्टिविटी: प्राकृतिक आपदाओं के दौरान आपातकालीन इंटरनेट पहुँच प्रदान करता है।
    • स्टारलिंक ने विशाल ज्वालामुखी विस्फोट तथा सुनामी के बाद टोंगा का परिचालन प्रारंभ किया।
  • सैन्य अनुप्रयोग: सैन्य ठिकानों, विमानों, जहाजों और ड्रोन के बीच सुरक्षित संचार की सुविधा प्रदान करता है।
    • यूक्रेन द्वारा युद्ध में ड्रोन तैनात करने के लिए सैटेलाइट आधारित इंटरनेट सेवाओं का उपयोग किया गया था।
  • डिजिटल डिवाइड को कम करना: इंटरनेट की कमी वाले क्षेत्रों में शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और व्यावसायिक अवसरों का विस्तार करने में मदद करता है।

स्टारलिंक सैटेलाइट इंटरनेट सेवा

  • स्टारलिंक कक्षा में लगभग 7,086 स्टारलिंक उपग्रहों का समूह है।
  • उन्नत प्रौद्योगिकी: प्रत्येक उपग्रह में 3 अंतरिक्ष लेजर होते हैं, जिन्हें ऑप्टिकल इंटरसैटेलाइट लिंक (Intersatellite Links-ISL) कहा जाता है, जो 200 Gbps तक संचालित होते हैं, जो एक वैश्विक इंटरनेट नेटवर्क का निर्माण करते  हैं।
  • संचार बैंड: उच्च-बैंडविड्थ कनेक्टिविटी प्रदान करने के लिए 5 एडवांस KU-बैंड फेज्ड एरे एंटेना तथा 3 ड्यूल बैंड [ka-बैंड (Ka-band) और E-बैंड (E-band)] एंटेना का उपयोग करता है।

स्टारलिंक परियोजना की सीमाएँ

  • उच्च आरंभिक लागत: स्टारलिंक के हार्डवेयर (डिश एवं मॉडेम) की कीमत लगभग $599 है और मासिक सदस्यता $110-$120 है, जो इसे विशेषकर विकासशील देशों में कई उपयोगकर्ताओं के लिए महँगा बनाता है।
  • मौसम की भेद्यता: सैटेलाइट इंटरनेट भारी वर्षा, चक्रवात और बादल छाए रहने से प्रभावित होता है, जिससे सिग्नल बाधित होता है तथा गति धीमी हो जाती है।
  • शहरी क्षेत्रों में सीमित कवरेज: स्टारलिंक ग्रामीण और दूरदराज के क्षेत्रों के लिए अनुकूलित है; सघन आबादी वाले शहरों में, ग्राउंड-आधारित नेटवर्क (फाइबर, 5G) बेहतर गति तथा विश्वसनीयता प्रदान करते हैं।
  • कक्षीय भीड़भाड़ और अंतरिक्ष अपशिष्ट: कक्षा में 7,000 से अधिक उपग्रहों के साथ, स्टारलिंक अंतरिक्ष मलबे के जोखिम को बढ़ाता है, जिससे उपग्रह टकराव और दीर्घकालिक अंतरिक्ष स्थिरता के बारे में चिंताएँ बढ़ जाती हैं।

सैटेलाइट इंटरनेट कैसे कार्य करता है?

  • एक उपयोगकर्ता डिवाइस (सैटेलाइट डिश) कक्षा में मौजूद सैटेलाइट को डेटा भेजता है।
  • उपग्रह डेटा को इंटरनेट से जुड़े ग्राउंड स्टेशन तक भेजता है।
  • डेटा वैश्विक इंटरनेट नेटवर्क के माध्यम से विचरण करता है।
  • प्रतिक्रिया डेटा विपरीत पथ का अनुसरण करते हुए उपयोगकर्ता के डिवाइस पर वापस आता है।

स्पेसएक्स के प्रवेश से भारतीय दूरसंचार क्षेत्र पर संभावित प्रभाव

  • डिजिटल कनेक्टिविटी का विस्तार: यह समझौता भारत के डिजिटल बुनियादी ढाँचे को गति देगा, खासकर ग्रामीण और दूरदराज के इलाकों में जहाँ फाइबर कनेक्टिविटी मुश्किल है।
    • डिजिटल इंडिया और भारतनेट जैसी सरकारी पहलों का समर्थन करता है।
  • नीतिगत एवं विनियामक चुनौतियाँ: यह समझौता स्पेक्ट्रम आवंटन और सुरक्षा मंजूरी सहित सरकारी मंजूरी पर निर्भर करता है। सैटेलाइट और टेलीकॉम कंपनियों के बीच स्पेक्ट्रम लाइसेंसिंग पर नीतिगत बहस छिड़ सकती है।
  • मौजूदा टेलीकॉम मॉडल में संभावित व्यवधान: सैटेलाइट इंटरनेट व्यापक ग्राउंड इन्फ्रास्ट्रक्चर की आवश्यकता को समाप्त करता है, जो टेलीकॉम उद्योग में व्यवसाय मॉडल को फिर से परिभाषित कर सकता है। टेलीकॉम ऑपरेटरों को प्रतिस्पर्द्धी बने रहने के लिए अपनी सेवाओं में विविधता लाने के लिए मजबूर कर सकता है।

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