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भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग

Lokesh Pal March 21, 2025 03:46 46 0

संदर्भ

भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग (CCI) ने आईपीएल विज्ञापन दर संबंधी फिक्सिंग को लेकर प्रमुख वैश्विक विज्ञापन एजेंसियों के कार्यालयों पर व्यापक छापे मारे हैं।

जाँच का कारण

  • शीर्ष प्रसारकों और विज्ञापन एजेंसियों द्वारा मूल्य निर्धारण और छूट अभिसंधि (Discount Collusion) को लेकर संदेह था।
  • छोटी एजेंसियों या विज्ञापनदाताओं द्वारा अधिक शुल्क लेने और अनुचित बाजार प्रथाओं का आरोप लगाने वाली शिकायतें भी मिली थी।

मूल्य निर्धारण के बारे में

  • मूल्य निर्धारण तब होता है, जब कई कंपनियाँ बाजार में प्रतिस्पर्द्धा को कीमतें निर्धारित करने की अनुमति देने के बजाय एक सहमत स्तर पर कीमतें निर्धारित करने के लिए विसंगति उत्पन्न करती हैं।
  • विज्ञापन में संदर्भ: विज्ञापन उद्योग संबंधी मूल्य निर्धारण में मीडिया खरीद एजेंसियों, प्रसारकों और यहाँ तक कि छोटी विज्ञापन फर्मों के बीच कीमतों और छूट में हेर-फेर करने के लिए हस्तक्षेप शामिल हो सकता है।

विज्ञापन में मूल्य निर्धारण कैसे कार्य करता है?

  • एजेंसियों और मीडिया खरीदारों के बीच मिलीभगत: मीडिया एजेंसियाँ ​​विज्ञापनदाताओं की ओर से प्रसारकों और डिजिटल प्लेटफॉर्म के साथ दरों से संबंधित वार्ता करती हैं।
    • यदि एजेंसियाँ ​​एक विशिष्ट दर पर कीमतें तय करने के लिए सहमत होती हैं, तो इससे प्रतिस्पर्द्धा सीमित हो जाती है और विज्ञापनदाताओं के लिए लागत बढ़ जाती है।
    • इसमें पारंपरिक TV प्रसारक, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म और स्ट्रीमिंग सेवाएँ शामिल हो सकती हैं।
  • छूट में हेर-फेर: एजेंसियाँ ग्राहकों को दी जाने वाली छूट की मात्रा को सीमित करने के लिए हस्तक्षेप कर सकती हैं।
    • इससे यह सुनिश्चित होता है कि कोई भी एजेंसी या ब्रॉडकास्टर कोई महत्त्वपूर्ण लाभ न दे, जिससे कीमतें कृत्रिम रूप से ऊँची बनी रहें।
  • विज्ञापनदाताओं और ग्राहकों पर प्रभाव: विज्ञापनदाताओं को विज्ञापन स्लॉट या मीडिया प्लेसमेंट के लिए उच्च दरों का भुगतान करना पड़ता है।
    • कम प्रतिस्पर्द्धा से वार्ता की शक्ति सीमित हो जाती है, जिससे ‘मार्केटिंग’ बजट और अभियान दक्षता को नुकसान पहुँचता है।

प्रतिस्पर्द्धा (संशोधन) अधिनियम, 2023 की मुख्य विशेषताएँ

  • नए सौदे की मूल्य सीमा: 2,000 करोड़ रुपये या उससे अधिक मूल्य के अधिग्रहण, विलय अथवा समामेलन से जुड़े लेन-देन के लिए भारतीय कारोबार में पर्याप्त परिचालन के लिए CCI की मंजूरी की आवश्यकता होती है।
  • ‘नियंत्रण’ की अद्यतन परिभाषा: इसमें किसी इकाई के प्रबंधन, मामलों या रणनीतिक निर्णयों पर ‘महत्त्वपूर्ण प्रभाव’ शामिल है।
  • समय-सीमा में कमी: संयोजन कार्यान्वयन की समय-सीमा 210 दिनों से घटाकर 150 दिन कर दी गई।
    • CCI को 30 दिनों के भीतर प्रथम दृष्टया राय बनानी होगी; विफलता के परिणामस्वरूप स्वीकृति मान ली जाएगी।
  • तीन वर्ष की सीमा अवधि: कथित उल्लंघनों पर शिकायत दर्ज करने के लिए 3 वर्ष की सीमा निर्धारित की गई है, जिससे समय पर प्रवर्तन सुनिश्चित हो सके।
  • निपटान और प्रतिबद्धता तंत्र: प्रभुत्व के दुरुपयोग या प्रतिस्पर्द्धा-विरोधी समझौतों के लिए जाँच के तहत उद्यमों को आपसी सहमति से उपायों के माध्यम से विवादों को हल करने की अनुमति देता है, जिससे तेजी से समाधान को बढ़ावा मिलता है।

भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग (CCI) के बारे में

  • स्थापना: प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम, 2002 के तहत वर्ष 2009 में स्थापित वैधानिक निकाय है।
    • राघवन समिति की सिफारिशों के आधार पर एकाधिकार और प्रतिबंधात्मक व्यापार व्यवहार अधिनियम, 1969 (MRTP  अधिनियम) को प्रतिस्थापित किया गया।
  • मंत्रालय: कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय के अधीन कार्य करता है।
  • उद्देश्य: प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देना और बनाए रखना, उपभोक्ता हितों की रक्षा करना और भारत में व्यापार की स्वतंत्रता सुनिश्चित करना।
  • उद्देश्य
    • प्रतिस्पर्द्धा-विरोधी प्रथाओं को रोकना।
    • बाजार प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा दें और बनाए रखना।
    • उपभोक्ता हितों की रक्षा करना।
    • भारतीय बाजारों में व्यापार की स्वतंत्रता सुनिश्चित करना।
  • संरचना: इसमें एक अध्यक्ष और केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त 6 सदस्य होते हैं।
    • सदस्यों के पास कम-से-कम 15 वर्ष का पेशेवर अनुभव होना चाहिए।
    • जटिल बाजार मामलों में सूचित निर्णय लेने को सुनिश्चित करने के लिए पाँच वर्ष का कार्यकाल पूरा करना।
  • प्रकृति: अर्द्ध-न्यायिक निकाय, जो मामलों से संबंधित निर्णय करता है और वैधानिक अधिकारियों को राय प्रदान करता है।
    • इसके आदेश और निर्देश संबंधित पक्षों पर बाध्यकारी होते हैं।
  • अपीलीय प्राधिकरण
    • CCI के आदेशों के विरुद्ध अपील सुनने के लिए वर्ष 2009 में प्रतिस्पर्द्धा अपीलीय न्यायाधिकरण (COMPAT) बनाया गया था। 
    • वर्ष 2017 में, COMPAT को राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण (NCLAT) द्वारा प्रतिस्थापित किया गया।
  • CCI के प्रमुख कार्य
    • विलय और अधिग्रहण की समीक्षा: बहुराष्ट्रीय निगमों (MNC) से जुड़े विलय और अधिग्रहण की जाँच करता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे बाजार की प्रतिस्पर्द्धा को प्रतिकूल रूप से प्रभावित नहीं करते हैं।
    • प्रतिस्पर्द्धा-विरोधी प्रथाओं को समाप्त करना: प्रतिस्पर्द्धा पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाली प्रथाओं को समाप्त करने के लिए काम करता है।
    • प्रतिस्पर्द्धा के मुद्दों पर राय प्रदान करना: वैधानिक अधिकारियों को प्रतिस्पर्द्धा से संबंधित मामलों पर विशेषज्ञ राय प्रदान करता है।
    • निष्पक्ष प्रतिस्पर्द्धा सुनिश्चित करना: देश भर में आर्थिक गतिविधियों में निष्पक्ष और स्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देता है।

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