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फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट

Lokesh Pal March 25, 2025 04:33 67 0

संदर्भ

फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट भारत में न्याय वितरण प्रणाली में लंबित मामलों का समाधान करके त्वरित न्याय प्रदान करने में एक महत्त्वपूर्ण स्तंभ के रूप में उभरे हैं, जहाँ वर्ष  2024 में 88,902 नए मामलों में से 85,595 मामलों का निपटारा किया जा चुका है।

फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट  के बारे में

  • फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट स्कीम एक केंद्र प्रायोजित योजना (CSS) है, जिसका उद्देश्य पूरे देश में फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट (FTSC) स्थापित करने में राज्य सरकारों का समर्थन करना है।
  • शुरू किया गया: विशेष पॉक्सो कोर्ट सहित फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट (FTSC) अक्टूबर, 2019 में दुष्कर्म और पॉक्सो अधिनियम के मामलों के शीघ्र निपटान के लिए देश भर में स्थापित किए गए थे, 
  • नोडल मंत्रालय: FTSC का प्रबंधन न्याय विभाग, विधि और न्याय मंत्रालय द्वारा किया जाता है।
  • उद्देश्य: FTSC योजना समय पर जाँच और परीक्षण करने तथा दुष्कर्म और पॉक्सो अधिनियम के मामलों का शीघ्र निपटान करने के लिए शुरू की गई थी, जो न्याय, महिलाओं की सुरक्षा और यौन अपराधों के पीड़ितों द्वारा सामना किए जाने वाले आघात को कम करने के लिए सरकार की प्रतिबद्धता की पुष्टि करती है।
  • विशेषताएँ
    • समय-सीमा: FTSC योजना को 31 मार्च, 2026 तक बढ़ा दिया गया है, इस अवधि के लिए कुल वित्तीय परिव्यय ₹1952.23 करोड़ है।
    • न्यायालयों की स्थापना: योजना के तहत विशेष पॉक्सो (ई-पॉक्सो) न्यायालयों सहित कुल 790 FTSC स्थापित किए जाने हैं।
    • निपटान लक्ष्य: प्रत्येक FTSC से समय पर न्याय सुनिश्चित करने और केस बैकलॉग में कमी लाने के लिए प्रति तिमाही 41-42 मामलों और वार्षिक रूप से कम-से-कम 165 मामलों का निपटान करने की अपेक्षा की जाती है।
    • सदस्य कर्मचारी: प्रत्येक न्यायालय में 1 न्यायिक अधिकारी और 7 कर्मचारी सदस्य होते हैं।
    • प्राधिकरण: FTSC की स्थापना राज्य सरकार द्वारा उनकी आवश्यकता तथा संसाधनों के अनुसार उनके संबंधित उच्च न्यायालयों के परामर्श से की जाती है।
    • मामलों की प्रकृति: FTSC को विशेष रूप से दुष्कर्म और पॉक्सो अधिनियम के लंबित मामलों को प्रबंधित करने का अधिकार है और महिलाओं एवं बच्चों के खिलाफ अपराध के किसी भी अन्य मामले को इन अदालतों में स्थानांतरित नहीं किया जाना चाहिए।
    • वित्तपोषण तंत्र: यह योजना एक केंद्र प्रायोजित योजना (CSS) है तथा इसे राज्य और केंद्र सरकार दोनों द्वारा वित्तपोषित किया जाता है।
      • केंद्र का हिस्सा (₹1207.24 करोड़) है तथा  इसे निर्भया फंड के माध्यम से वित्तपोषित किया जाता है।
      • लागत साझाकरण: केंद्र सरकार तथा राज्य/केंद्रशासित प्रदेश सरकारों के लिए वित्तपोषण अनुपात 60:40 है।
        • 90:10: पूर्वोत्तर राज्यों, सिक्किम और पहाड़ी राज्यों जम्मू-कश्मीर (अब केंद्र शासित प्रदेश), हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के लिए यह अनुपात 90:10 है।
      • प्रतिपूर्ति: यह योजना प्रतिपूर्ति के आधार पर संचालित होती है, जहाँ संबंधित राज्य/संघ राज्य क्षेत्र सरकारों द्वारा व्यय विवरण प्रस्तुत करने के बाद ही धनराशि जारी की जाती है।
  • फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट  की आवश्यकता
    • फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट मामलों के निपटारे में तेजी लाने, प्रक्रियागत देरी को कम करने तथा पीड़ितों को समय पर न्याय प्रदान करने के लिए एक आवश्यक उपकरण के रूप में कार्य करता है।
    • बैकलॉग कम करना: लंबित मामलों तथा अनसुलझे कानूनी मामलों को प्राथमिकता देकर न्यायपालिका प्रणाली के सभी स्तरों पर मामलों के विशाल बैकलॉग को कम करने में FTSC सहायक होते हैं।
    • परीक्षणों में तेजी लाना: फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट मामलों के निपटारे में तेजी लाने, प्रक्रियागत देरी को कम करने और पीड़ितों को समय पर न्याय प्रदान करने के लिए एक आवश्यक उपकरण के रूप में कार्य करता है।
    • बैकलॉग कम करना: लंबित मामलों और अनसुलझे कानूनी मामलों को प्राथमिकता देकर न्यायपालिका प्रणाली के सभी स्तरों पर मामलों के विशाल बैकलॉग को कम करने में FTSC सहायक होते हैं।
    • परीक्षणों में तेजी लाना: FTC नियमित और त्वरित साक्ष्य जमा करने तथा निर्णय देने की प्रक्रिया सुनिश्चित करके परीक्षण प्रक्रिया में तेजी लाते हैं ताकि मामलों का उचित समय में समाधान हो सके।
    • न्यायिक दक्षता में सुधार: FTSC संसाधनों के आवंटन, प्रक्रिया की सरलता और प्रौद्योगिकी के उपयोग के माध्यम से कार्यभार प्रबंधन में सुधार करके न्यायिक प्रणाली को अधिक कुशल बनाते हैं।
    • न्यायिक दक्षता में सुधार: FTSC संसाधनों के आवंटन, प्रक्रिया की सरलता और प्रौद्योगिकी के उपयोग के माध्यम से कार्यभार प्रबंधन में सुधार करके न्यायिक प्रणाली को अधिक कुशल बनाते हैं।

योजना की उपलब्धियाँ

  • मामला समाधान: फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट्स (FTSC) की निपटान दर 96.28% है, तथा आज तक 3,06,604 से अधिक मामलों का सामूहिक निपटान किया गया है।
    • वित्त वर्ष 2024: 88,902 नए मामले दर्ज किए गए और 85,595 मामलों का समाधान किया गया
  • व्यापक पहुँच: वर्तमान में, 30 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में 745 फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट (FTSC) कार्यरत हैं, जिनमें 404 विशेष पॉक्सो कोर्ट शामिल हैं, जो भौगोलिक दृष्टि से दूर-दराज और पहुँच में मुश्किल क्षेत्रों में भी समय पर न्याय प्रदान करते हैं।
  • बाल हितैषी: फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट ने पीड़ितों की सुविधा के लिए और अदालतों को बाल हितैषी अदालत बनाने हेतु अदालतों के भीतर कमजोर गवाह बयान केंद्र स्थापित करने के दृष्टिकोण को उल्लेखनीय रूप से अपनाया है।

योजना के समक्ष चुनौतियाँ

  • अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा: कई फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट अपर्याप्त बुनियादी ढाँचे से ग्रस्त हैं तथा अक्सर मौजूदा न्यायालय भवनों में होते हैं, जिससे भीड़भाड़ और अक्षमता होती है।
  • अपर्याप्त कर्मचारी: न्यायिक अधिकारियों को अक्सर उनकी निर्दिष्ट जिम्मेदारियों के बाहर के मामलों को सँभालने का कार्य सौंपा जाता है। इसके अलावा, कुछ फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट में सहायक कर्मचारियों की कमी के कारण मामलों को जल्दी से निपटाने की उनकी क्षमता बाधित होती है।
  • संसाधन सीमाएँ: वर्ष 2020 तक 907 से वर्ष 2023 में कार्यात्मक न्यायालयों की संख्या घटकर 832 हो गई है, जो वित्तीय और प्रशासनिक बाधाओं के कारण इन न्यायालयों को बनाए रखने में राज्यों के सामने आने वाली चुनौतियों को दर्शाता है।
    • उदाहरण: ओडिशा, केरल, कर्नाटक, राजस्थान, मध्य प्रदेश और तेलंगाना जैसे राज्यों में या तो कोई कार्यात्मक फास्ट-ट्रैक कोर्ट नहीं थे या वर्ष 2023 में उन्हें स्थापित करने के लिए संघर्ष कर रहे थे।
  • रिक्तियाँ और विशेष प्रशिक्षण का अभाव: न्यायिक पदों पर रिक्तियाँ और न्यायिक अधिकारियों एवं कर्मचारियों के लिए पर्याप्त प्रशिक्षण की कमी ने FTSC के कामकाज को प्रभावित किया है, जिसके परिणामस्वरूप न्यायिक प्रक्रिया में देरी और अक्षमता हुई है।
  • सीमित क्षेत्राधिकार: फास्ट-ट्रैक अदालतों का दायरा सीमित है, यानी यौन अपराधों से परे नहीं, जिससे संबंधित मामलों को संबोधित करने या उन्हें उचित अदालतों में स्थानांतरित करने की उनकी क्षमता सीमित हो गई है, जिससे न्याय वितरण प्रणाली में और अधिक देरी तथा जटिलताएँ पैदा हो रही हैं।
  • अकुशल जाँच: दोषसिद्धि की कम दर अर्थात् विचाराधीन 2,68,038 मामलों में से केवल 8,909 मामलों में दोषसिद्धि हुई, यह दर्शाता है कि जाँच और न्यायिक प्रक्रियाओं की गुणवत्ता में समस्याएँ हैं।

प्रमुख सिफारिशें

भारतीय लोक प्रशासन संस्थान (Indian Institute of Public Administration-IIPA) द्वारा की जा रही योजना के तीसरे पक्ष के मूल्यांकन से कुछ सिफारिशें निम्नानुसार हैं:-

  • IIPA ने इस योजना को अपनी इच्छित समयावधि से आगे भी जारी रखने की जोरदार सिफारिश की।
  • मानदंडों को मजबूत करना: राज्यों और उच्च न्यायालयों को पॉक्सो मामलों में अनुभवी विशेष न्यायाधीशों की नियुक्ति, संवेदीकरण प्रशिक्षण सुनिश्चित करना तथा मामलों के त्वरित समाधान के लिए महिला सरकारी अभियोजकों की नियुक्ति सहित मापदंडों को मजबूत करने की आवश्यकता है।
  • न्यायालय का बुनियादी ढाँचा: न्यायालयों के कमरों को आधुनिक तकनीक जैसे ऑडियो और वीडियो रिकॉर्डिंग सिस्टम तथा LCD प्रोजेक्टर के साथ अपग्रेड करने की आवश्यकता है, इलेक्ट्रॉनिक केस फाइलिंग तथा अदालती रिकॉर्ड के डिजिटलीकरण सहित IT सिस्टम शुरू करने की आवश्यकता है।
  • अत्याधुनिक फोरेंसिक सेवाओं में निवेश करना: न्यायालय में लंबित मामलों को तेजी से निपटाने तथा निष्पक्ष और त्वरित न्याय देने के लिए DNA रिपोर्ट को समय पर प्रस्तुत करने के लिए जनशक्ति को प्रशिक्षित करने हेतु फोरेंसिक प्रयोगशालाओं को बढ़ाने की आवश्यकता पर जोर दिया है।
  • ‘वल्नरेबल विटनेस डीपोजीशन सेंटर्स’ (Vulnerable Witness Deposition Centers- VWDC): पीड़ितों की गवाही दर्ज करने की बेहतर प्रक्रिया को सुगम बनाने के लिए इसे सभी जिलों में स्थापित किया जाना चाहिए, जिससे न्यायालय की कार्यवाही सुचारू रूप से शुरू हो सकती है।
  • बच्चों के अनुकूल माहौल बनाए रखना: परीक्षण बच्चों के अनुकूल तरीके से, बंद दरवाजों के पीछे, बच्चे की पहचान उजागर किए बिना आयोजित किए जाने चाहिए। इसके अलावा, प्रत्येक FTSC में एक बाल मनोवैज्ञानिक होना चाहिए, जो बच्चे को कठोर पूर्व-परीक्षण प्रक्रियाओं में सहायता करे।

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