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बड़े पैमाने पर प्रवाल विरंजन से ऑस्ट्रेलियाई भित्ति के पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान

Lokesh Pal March 29, 2025 03:24 51 0

संदर्भ

हाल ही में ऑस्ट्रेलिया के पश्चिमी तट पर ‘निंगालू भित्ति’ (Ningaloo Reef) पर एक ‘अभूतपूर्व’ प्रवाल विरंजन घटना दर्ज की गई है।

निंगालू भित्ति (Ningaloo Reef)

  • निंगालू भित्ति ऑस्ट्रेलिया के पश्चिमी तट पर प्रवाल बे (Coral Bay) के तट से कुछ दूरी पर स्थित है।
  • निंगालू भित्ति दुनिया की सबसे बड़ी ‘फ्रिंजिंग’ भित्ति (Fringing Reefs) में से एक है।
  • यह ग्रेट बैरियर भित्ति का हिस्सा नहीं है।

उठाई गई प्रमुख चिंताएँ

  • व्यापक प्रवाल क्षति: प्रवाल विरंजन ने गहरे और उथले भित्ति क्षेत्रों में कई प्रवाल प्रजातियों को प्रभावित किया है।
  • तापमान में वृद्धि: पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया में समुद्र का जल पिछले कुछ महीनों में औसत से 3 डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म रहा है।
  • संभावित दीर्घकालिक प्रभाव: हालाँकि प्रवाल विरंजन का आशय तुरंत प्रवाल की मृत्यु नहीं है, लेकिन लंबे समय तक इस तरह की नकारात्मक परिस्थितियों के कारण सामूहिक मृत्यु हो सकती है।
  • वैश्विक प्रवाल विरंजन घटनाएँ: राष्ट्रीय महासागरीय और वायुमंडलीय प्रशासन (National Oceanic and Atmospheric Administration-NOAA) द्वारा वर्ष 1998, 2010, 2014-2017 और वर्ष 2023-2024 में चौथी वैश्विक सामूहिक विरंजन घटना के रूप में प्रलेखित किया गया है।
    • वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि यह वर्ष 2011 के बाद से सर्वाधिक तीव्र प्रवाल विरंजन घटना हो सकती है।

प्रवाल के बारे में

  • प्रवाल पॉलिप्स: प्रवाल आनुवंशिक रूप से समान पॉलिप्स से बने होते हैं, जो बड़ी भित्ति संरचनाएँ बनाते हैं।
  • जूक्सैन्थेला शैवाल: ये एककोशिकीय शैवाल प्रवाल ऊतकों के भीतर रहते हैं, जो प्रकाश संश्लेषण के माध्यम से पोषक तत्त्व प्रदान करते हैं।
  • प्रवाल के प्रकार
    • कठोर प्रवाल (पत्थर के प्रवाल): समुद्री जल से कैल्शियम कार्बोनेट का उत्सर्जन कर भित्तियों का निर्माण करते हैं।
    • नर्म प्रवाल: चट्टानें नहीं बनाते बल्कि मौजूदा प्रवाल संरचनाओं से जुड़ जाते हैं।

पारिस्थितिक महत्त्व 

  • मछली, क्रस्टेशियन और मोलस्क सहित 25% समुद्री जैव विविधता का समर्थन करते हैं।
  • प्राकृतिक तटीय अवरोधों के रूप में कार्य करना, तटरेखाओं को कटाव और झंझा महोर्मि से बचाना।
  • मछली पकड़ने और पर्यटन उद्योगों में योगदान देना, जिससे वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं को लाभ हो।

प्रवाल विरंजन के बारे में

  • जब प्रवाल तापमान, प्रकाश या पोषक तत्त्वों जैसी स्थितियों में परिवर्तन के कारण तनावग्रस्त होते हैं, तो वे अपने ऊतकों में रहने वाले सहजीवी शैवाल (जूक्सैन्थेला) को बाहर निकाल देते हैं, जिससे वे पूरी तरह से रंगहीन हो जाते हैं।
    • इसे प्रवाल विरंजन कहते हैं।
  • प्रतिवर्तिता: यदि तापमान शीघ्र ही स्थिर हो जाता है, तो प्रवाल जूक्सैन्थेला को पुनः प्राप्त करके ठीक हो सकते हैं।

प्रवाल विरंजन के कारण

जलवायु-संबंधी कारक

  • समुद्र का बढ़ता तापमान: वैश्विक तापमान वृद्धि के कारण पिछली शताब्दी में समुद्र का तापमान 1°C बढ़ गया है।
  • समुद्री ऊष्मा तरंगें: तेजी से तापमान वृद्धि से ब्लीचिंग होती है। उदाहरण के लिए, भारत में मन्नार की खाड़ी में वर्ष 2020 की घटना)।
  • अल नीनो घटनाएँ: स्थानीय तापन का कारण बनती हैं, जिससे ब्लीचिंग की स्थिति और खराब होती है।

अन्य योगदान कारक

  • अवसादन: तटीय विकास और तल पर मछली पकड़ने से अवसाद जमा होता है, जो सूर्य के प्रकाश को अवरुद्ध करता है, जिससे प्रवाल प्रकाश संश्लेषण में बाधा उत्पन्न होती है।
  • जैविक आक्रमण: क्राउन-ऑफ-थॉर्न स्टारफिश और शैवाल जैसी आक्रामक प्रजातियां प्रक्षालित प्रवालों को मात देती हैं।
  • रासायनिक प्रदूषण: तेल, शाकनाशियों और भारी धातुओं के संपर्क में आने से जूक्सेंथेले मर सकते हैं।
  • रोगजनकों के हमले: कुछ प्रवाल रोग प्रवाल ऊतकों को नष्ट कर देते हैं, जिससे उनका कंकाल रिक्त रह जाता है।

प्रवाल विरंजन का प्रभाव

  • समुद्री जैव विविधता का नुकसान: प्रवाल पर निर्भर प्रजातियों के आवास नष्ट हो रहे हैं।
  • मत्स्यपालन में कमी: प्रभावित भित्ति के कारण मछलियों की संख्या कम हो रही है, जिससे आजीविका को नुकसान पहुँच रहा है।
  • तटीय अपरदन में वृद्धि: मृत भित्ति अब तटरेखाओं की रक्षा नहीं कर सकती हैं।
  • आर्थिक नुकसान: प्रवाल पर्यटन और मत्स्यपालन से राजस्व में भारी गिरावट आ रही है।

प्रवाल भित्तियों के संरक्षण के लिए वैश्विक प्रयास

  • अंतरराष्ट्रीय प्रवाल भित्ति पहल (ICRI): भित्ति की सुरक्षा के लिए एक वैश्विक साझेदारी, जिसमें भारत भी सदस्य है।
  • विश्व प्रवाल कंजर्वेटरी परियोजना: प्रवाल भित्ति पुनर्स्थापन में सहायता के लिए यूरोपीय एक्वैरियम में प्रवाल बैंक स्थापित करना।
  • बायोरॉक प्रौद्योगिकी: प्रवाल वृद्धि को प्रोत्साहित करने के लिए विद्युत धाराओं का उपयोग करता है (उदाहरण के लिए, कच्छ की खाड़ी, भारत)।
  • सुपर प्रवाल: बढ़ते तापमान का सामना करने के लिए ऊष्मा प्रतिरोधी प्रवाल नस्लों का प्रजनन।

प्रवाल संरक्षण के लिए भारत सरकार की पहल

  • प्रवाल प्रत्यारोपण परियोजनाएँ 
    • मन्नार की खाड़ी बायोस्फीयर रिजर्व: क्षतिग्रस्त भित्ति को पुनर्स्थापित करने के लिए कृत्रिम भित्ति संरचनाओं का उपयोग करता है।
    • लक्षद्वीप और अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह: प्रवाल कृषि परियोजनाएँ संचालित हो रही हैं।
  • राष्ट्रीय तटीय मिशन (National Coastal Mission): प्रवाल भित्ति सहित समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा करना इसका उद्देश्य है।
  • तटीय विकास पर विनियम (Regulations on Coastal Development): आवास विनाश को रोकने के लिए सख्त नीतियाँ लागू करना।
  • समुद्री संरक्षित क्षेत्र (Marine Protected Areas-MPAs): कई MPA प्रवाल पारिस्थितिकी तंत्र को अत्यधिक मत्स्याखेट और प्रदूषण से बचाते हैं।

निष्कर्ष

जलवायु परिवर्तन और मानव-प्रेरित तनावों से निपटने के लिए तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है ताकि प्रवाल भित्तियों की रक्षा की जा सके। वैश्विक और राष्ट्रीय संरक्षण प्रयासों को मजबूत करने से समुद्री जैव विविधता और तटीय अर्थव्यवस्थाओं को बनाए रखने में मदद मिल सकती है।

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