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भारत को दुर्लभ बीमारियों से निपटने के लिए दवाएँ बनाने की आवश्यकता है

Lokesh Pal April 08, 2025 03:10 31 0

संदर्भ

संसदीय आँकड़ों के अनुसार, दुर्लभ और अन्य वंशानुगत विकारों के लिए राष्ट्रीय रजिस्ट्री में 13,479 मरीज पंजीकृत हैं।

दुर्लभ बीमारी के बारे में

  • दुर्लभ बीमारियाँ ऐसी स्थितियाँ हैं, जिनका प्रचलन कम होता है और जो एक छोटी जनसंख्या को प्रभावित करती हैं।
  • WHO के अनुसार, किसी बीमारी को दुर्लभ माना जाता है यदि वह 1,000 लोगों में से 1 या उससे कम को प्रभावित करती है।
  • इनमें आनुवंशिक बीमारियाँ, कैंसर संबंधी रोग, उष्णकटिबंधीय बीमारियाँ और अन्य विकार शामिल हैं।
  • वैश्विक परिदृश्य: 7,000 से अधिक दुर्लभ बीमारियाँ मौजूद हैं, लेकिन केवल 5% का ही उपचार संभव है।

भारत में दुर्लभ बीमारियों के बारे में

  • भारत में दुर्लभ बीमारियों का बोझ: वैश्विक स्तर पर दुर्लभ बीमारियों के मामलों में भारत का योगदान अत्यधिक है, अनुमान है कि 80 से 100 मिलियन लोग इससे प्रभावित हैं।
  • दिल्ली उच्च न्यायालय ने इस बात पर प्रकाश डाला कि बहुत से मरीज अपंजीकृत हैं और इस बात पर जोर दिया कि सरकार तथा न्यायपालिका को इस संदर्भ में निष्क्रिय नहीं रहना चाहिए।
  • दुर्लभ रोग से प्रभावित रोगियों की जनसंख्या प्रबंधनीय है, जिससे सरकार केंद्रित हस्तक्षेप संभव हो जाता है।

स्वास्थ्य का अधिकार और राज्य का उत्तरदायित्व

  • सर्वोच्च न्यायालय ने तीन दशक पूर्व संविधान के अनुच्छेद-21 के तहत स्वास्थ्य और चिकित्सा देखभाल के अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दी थी।
  • राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांतों के अनुच्छेद-41 में बीमारी और दिव्यांगता के मामलों में राज्य सहायता का प्रावधान है।

भारत में दुर्लभ रोग उपचार का प्रावधान

  • दुर्लभ बीमारियों के लिए राष्ट्रीय नीति (NPRD) को 30 मार्च, 2021 को न्यायालय के निर्देश के बाद मंजूरी दी गई थी। 
  • मई 2023 में, दिल्ली उच्च न्यायालय ने NPRD के कार्यान्वयन की निगरानी के लिए पाँच सदस्यीय समिति के गठन का आदेश दिया। 
  • NPRD दुर्लभ बीमारियों के उपचार के लिए प्रति मरीज 50 लाख रुपये तक की वित्तीय सहायता प्रदान करता है।
  • इन प्रावधानों के बावजूद, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय (MoHFW) दुर्लभ रोग से ग्रसित रोगियों की उपचार आवश्यकताओं को पर्याप्त रूप से पूर्ण करने में विफल रहा है।

दुर्लभ बीमारियों से निपटने में चुनौतियाँ

  • उपचार की उच्च लागत: स्पाइनल मस्कुलर एट्रॉफी (SMA) के लिए ‘रिसडिप्लम’ जैसे उपचारों की लागत वार्षिक रूप से 72 लाख रुपये से अधिक है, जो NPRD द्वारा निर्धारित 50 लाख रुपये की वित्तीय सीमा से अधिक है। प्रायः मरीजों की वित्तीय सहायता जल्दी समाप्त हो जाती है, जिससे उन्हें गंभीर उपचार बंद करने पड़ते हैं।
  • अपर्याप्त सरकारी सहायता: स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने 50 लाख रुपये से अधिक की सहायता न देने के लिए धन की कमी को कारण बताया। मरीजों के निरंतर उपचार के लिए न्यायालय के निर्देशों को मंत्रालय ने सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी है, जिससे मरीजों को राहत मिलने में देरी हो रही है।
  • स्थानीय दवा उत्पादन में पेटेंट बाधाएँ: पेटेंट एकाधिकार, रिसडिप्लम और ट्राइकाफ्टा जैसी आवश्यक दुर्लभ बीमारी की दवाओं के स्थानीय निर्माण को बाधित करता है। पेटेंट धारक अक्सर एकाधिकार प्रथाओं का लाभ उठाते हुए भारत में इन दवाओं का विपणन करने से इनकार कर देते हैं।

आगे की राह 

  • दवाओं के स्थानीय उत्पादन को सुगम बनाना: स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय को दुर्लभ बीमारियों की दवाओं के घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए फार्मास्यूटिकल्स विभाग और उद्योग एवं आंतरिक व्यापार संवर्द्धन विभाग के साथ समन्वय करना चाहिए।
    • जेनेरिक संस्करण दवाओं की कीमतों को 90-95% तक कम कर सकते हैं, जिससे दवाओं की उपलब्धता में नाटकीय रूप से सुधार होगा।
  • पेटेंट एकाधिकार को संबोधित करना: भारत में सस्ती दवा उत्पादन और उपलब्धता को प्रतिबंधित करने वाली पेटेंट बाधाओं को दूर करने के लिए कानूनी उपायों को लागू किया जाना चाहिए।
    • निजी एकाधिकार को महत्त्वपूर्ण स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच से वंचित करने से रोकने के लिए सरकारी हस्तक्षेप आवश्यक है।
  • वित्तपोषण तंत्र को मजबूत करना: NPRD के तहत वित्तीय सहायता सीमा को उपचार की वास्तविक लागत को दर्शाने के लिए संशोधित किया जाना चाहिए।
    • दुर्लभ रोग रोगियों के लिए जीवन रक्षक उपचारों तक समय पर पहुँच सुनिश्चित करने के लिए नीतिगत विलंब को कम किया जाना चाहिए।
  • नैतिक और कानूनी दायित्वों को बनाए रखना: अधिकारियों को यह सुनिश्चित करने के लिए अपनी संवैधानिक और नैतिक जिम्मेदारियों को बनाए रखना चाहिए कि उपचार योग्य दवाओं की अनुपलब्धता के कारण किसी बच्चे की उपचार के अभाव में मृत्यु न हो ।
    • दुर्लभ बीमारियों से प्रभावित परिवारों को और अधिक कठिनाई एवं दुख से बचाने के लिए त्वरित कार्रवाई आवश्यक है।

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