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भारत में प्लास्टिक पार्क

Lokesh Pal April 14, 2025 03:22 16 0

संदर्भ

भारत सरकार का रसायन एवं पेट्रोरसायन विभाग, पेट्रोरसायन की नई योजना के अंतर्गत प्लास्टिक पार्क योजना (Plastic Parks Scheme) का क्रियान्वयन कर रहा है।

प्लास्टिक उत्पादन के चरण

  • कच्चे माल का निष्कर्षण एवं फीडस्टॉक उत्पादन: प्लास्टिक उत्पादन की शुरुआत तेल, गैस, कोयला या मक्का और गन्ना जैसे जैव आधारित स्रोतों जैसे कच्चे माल के निष्कर्षण से होती है।
    • इन्हें परिष्कृत करके फीडस्टॉक्स का उत्पादन किया जाता है, जो आगे की रासायनिक प्रसंस्करण के लिए आवश्यक आधार सामग्री है।
  • मोनोमर और रासायनिक उत्पादन: निष्कर्षण किए गए फीडस्टॉक को मोनोमर और अन्य आवश्यक रसायनों का उत्पादन करने के लिए रासायनिक रूप से संसाधित किया जाता है।
    • मोनोमर छोटे अणु होते हैं, जो बड़े प्लास्टिक पॉलिमर बनाने के लिए बिल्डिंग ब्लॉक के रूप में कार्य करते हैं।
  • प्लास्टिक पॉलिमर का बहुलकीकरण एवं निर्माण: मोनोमर बहुलकीकरण की प्रक्रिया से गुजरते हैं, एक रासायनिक प्रक्रिया, जो उन्हें प्लास्टिक पॉलिमर, बड़े सिंथेटिक अणुओं या बड़े अणुओं में बाँधती है।
    • ये पॉलिमर प्राथमिक रूपों जैसे- छर्रों, पाउडर, गुच्छे, रेशों, पेस्ट या तरल पदार्थों में उत्पादित होते हैं।
  • प्राथमिक और द्वितीयक प्लास्टिक का निर्माण
    • प्राथमिक प्लास्टिक (वर्जिन प्लास्टिक) प्लास्टिक पॉलिमर को रासायनिक योजक और गैर-अभिप्रायपूर्ण जोड़े गए पदार्थों (NIAS) के साथ मिलाकर बनाया जाता है।
    • द्वितीयक प्लास्टिक (पुनर्नवीनीकरण प्लास्टिक) प्लास्टिक अपशिष्ट को नया आकार देकर, नए पॉलिमर बनाए बिना मूल पॉलिमर का उपयोग करके बनाए जाते हैं।

प्लास्टिक पार्क योजना के बारे में

  • प्लास्टिक पार्क योजना पेट्रोरसायन की नई योजना के तहत एक उप-योजना है।
  • नोडल मंत्रालय: रसायन और उर्वरक मंत्रालय (भारत सरकार)।
  • उद्देश्य: डाउनस्ट्रीम प्लास्टिक प्रसंस्करण उद्योग को समेकित करने के लिए विश्व स्तरीय बुनियादी ढाँचे और साझा सुविधाओं के साथ आवश्यकता आधारित प्लास्टिक पार्क स्थापित करना।
  • सरकारी अनुदान: परियोजना लागत का 50% तक, प्रति परियोजना अधिकतम ₹40 करोड़ तक।
  • फोकस क्षेत्र: निवेश को बढ़ावा देना, उत्पादन और निर्यात बढ़ाना, रोजगार उत्पन्न करना और अपशिष्ट प्रबंधन तथा रीसाइक्लिंग के माध्यम से सतत् विकास सुनिश्चित करना।

प्लास्टिक पार्क क्या है?

  • प्लास्टिक से संबंधित व्यवसायों एवं उद्योगों के लिए समर्पित एक औद्योगिक क्षेत्र स्थापित करना
  • इसका उद्देश्य उद्योग क्षमताओं को समेकित और समन्वित करना, निवेश बढ़ाना, निर्यात को बढ़ावा देना, रोजगार सृजित करना और पर्यावरणीय स्थिरता का समर्थन करना है।

  • प्रस्ताव और अनुमोदन: राज्य सरकारें स्थान और वित्तीय विवरण के साथ प्रारंभिक प्रस्ताव प्रस्तुत करती हैं। योजना संचालन समिति द्वारा सैद्धांतिक अनुमोदन के बाद, अंतिम मंजूरी के लिए एक विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (DPR) प्रस्तुत की जाती है।
  • कार्यान्वयन: विशेष प्रयोजन वाहन (SPV) या राज्य औद्योगिक विकास निगम परियोजना निष्पादन और पार्क विकास का कार्य करते हैं।
  • स्वीकृत पार्क: विभिन्न राज्यों में 10 प्लास्टिक पार्क स्वीकृत किए गए हैं।
  • पार्क में उपलब्ध सामान्य सुविधाएँ
    • अपशिष्ट उपचार संयंत्र
    • ठोस/खतरनाक अपशिष्ट प्रबंधन प्रणालियाँ
    • प्लास्टिक रीसाइक्लिंग शेड
    • भस्मक (Incinerators)।
  • निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा देना
    • प्रतिस्पर्द्धी प्लॉट दरें सुनिश्चित करना।
    • कर प्रोत्साहन को बढ़ावा देना।
    • उद्योग जागरूकता कार्यक्रम शुरू करना।

भारतीय प्लास्टिक क्षेत्र की स्थिति

  • प्लास्टिक निर्यात में भारत विश्व स्तर पर 12वें स्थान पर (विश्व बैंक, 2022) है।
  • निर्यात 8.2 बिलियन डॉलर (वर्ष 2014) से बढ़कर 27 बिलियन डॉलर (वर्ष 2022) हो गया।

प्लास्टिक उद्योग को बढ़ावा देने के लिए अन्य सरकारी पहल

  • उत्कृष्टता केंद्र (CoE): पॉलिमर और प्लास्टिक में अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा देने के लिए 13 उत्कृष्टता केंद्र स्थापित किए गए हैं।
  • कौशल पहल: केंद्रीय पेट्रोरसायन इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी संस्थान (Central Institute of Petrochemical Engineering and Technology- CIPET) उद्योग की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए प्लास्टिक प्रसंस्करण और प्रौद्योगिकी के लिए लघु एवं दीर्घकालिक पाठ्यक्रम प्रदान करता है।

सरकार की पर्यावरणीय स्थिरता पहल

  • विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (EPR): प्लास्टिक पैकेजिंग में पुनः उपयोग, पुनर्चक्रण लक्ष्य और पुनर्चक्रित सामग्री के उपयोग को अनिवार्य बनाता है।
  • एकल-उपयोग प्लास्टिक प्रतिबंध: प्लास्टिक अपशिष्ट उत्पादन को कम करता है।
  • खतरनाक अपशिष्ट प्रबंधन नियम: सुरक्षित निपटान सुनिश्चित करना और संसाधन पुनर्प्राप्ति को बढ़ावा देना।
  • सर्कुलर इकोनॉमी संवर्द्धन
    • पुनर्चक्रण, बायोडिग्रेडेबल विकल्पों को प्रोत्साहित करता है।
    • अपशिष्ट प्रबंधन प्रौद्योगिकियों पर प्रदर्शनियों एवं चर्चाओं का समर्थन करता है।
  • अंतरराष्ट्रीय सहयोग: वैश्विक स्थिरता मानकों के साथ सामंजस्य स्थापित करने के लिए WTO, UNEP, ISO में भागीदारी को बढ़ावा देना।

प्लास्टिक उद्योग में चुनौतियाँ

  • विनियामक बाधाएँ: लगातार नीतिगत परिवर्तन, अनुपालन बोझ और वैश्विक पर्यावरण मानदंड निवेशकों और उद्योगों के लिए अनिश्चितता उत्पन्न करते हैं।
  • कच्चे माल की अस्थिरता: पेट्रोरसायन फीडस्टॉक्स की उपलब्धता और लागत में उतार-चढ़ाव उत्पादन योजना और प्रतिस्पर्द्धात्मकता को प्रभावित करते हैं।
  • तकनीकी अंतराल: उन्नत प्रसंस्करण प्रौद्योगिकियों और रीसाइक्लिंग नवाचारों को सीमित रूप से अपनाने से दक्षता और वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता बाधित होती है।
  • पर्यावरण संबंधी चिंताएँ: प्लास्टिक अपशिष्ट का स्थायी रूप से प्रबंधन करना और कड़े पर्यावरणीय मानकों को पूरा करना एक सतत् चुनौती बनी हुई है।
  • बुनियादी ढाँचे की कमियाँ: अपर्याप्त अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली और रीसाइक्लिंग सुविधाएँ उद्योग की सर्कुलर इकोनॉमी क्षमता को सीमित करती हैं।

आगे की राह 

  • नीति स्थिरता और स्पष्टता: विनियमनों को सुव्यवस्थित करना, दीर्घकालिक नीति पूर्वानुमान सुनिश्चित करना, और निवेशकों का विश्वास बनाने के लिए अनुपालन को प्रोत्साहित करना।
  • अनुसंधान एवं विकास और नवाचार पर ध्यान देना: विशेष रूप से रीसाइक्लिंग और बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक में तकनीकी उन्नयन को बढ़ावा देने के लिए उद्योग तथा अनुसंधान संस्थानों के बीच सहयोग को मजबूत करना।
  • सतत् अभ्यास: विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (EPR) जैसी पहलों का विस्तार करना, पर्यावरण के अनुकूल विकल्पों को बढ़ावा देना, तथा रीसाइक्लिंग बुनियादी ढाँचे को बढ़ाना।
  • कौशल एवं क्षमता निर्माण: आधुनिक विनिर्माण और स्थिरता कौशल के साथ कार्यबल को संबद्ध करने के लिए CIPET जैसे संस्थानों के माध्यम से प्रशिक्षण पहलों को व्यापक बनाना।

निष्कर्ष

  • प्लास्टिक पार्क योजना एक महत्त्वपूर्ण पहल है, जो पर्यावरण स्थिरता सुनिश्चित करते हुए प्लास्टिक क्षेत्र में भारत के विकास को आगे बढ़ा रही है।
  • क्लस्टर-आधारित विकास को बढ़ावा देना, निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा देना तथा नवाचार का समर्थन करना, यह योजना भारत को प्लास्टिक उत्पादन और निर्यात में वैश्विक रैंक पर ऊपर बढ़ने में मदद कर रही है।
  • भविष्य का फोकस: प्लास्टिक उद्योग में सतत्, समावेशी और नवाचार-संचालित विकास को बनाए रखना।

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