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अंबेडकर का दृष्टिकोण: सामाजिक सुधार, राजनीतिक विचार और आर्थिक विचार

Lokesh Pal April 15, 2025 02:55 53 0

संदर्भ

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 14 अप्रैल को भारत रत्न बाबासाहेब अंबेडकर को उनकी जयंती पर श्रद्धांजलि अर्पित की।

संबंधित तथ्य 

  • वर्ष 2025 में भारत, भारतीय संविधान के प्रमुख निर्माता तथा सामाजिक न्याय, समानता और मानवीय गरिमा के लिए अथक योद्धा रहे डॉ. बी. आर. अंबेडकर की 135वीं जयंती मनाएगा।

डॉ. भीमराव अंबेडकर के बारे में

  • वह एक राजनीतिज्ञ, अर्थशास्त्री और समाज सुधारक थे, जिन्हें बाबासाहेब अंबेडकर के नाम से जाना जाता था। 
  • उनका जन्म 14 अप्रैल, 1891 को इंदौर (अब मध्य प्रदेश) के पास हुआ था।
    • वह महू के ‘महार’ (महाड़) परिवार से थे।
  • डॉ. अंबेडकर भारतीय संविधान की प्रारूप समिति के अध्यक्ष थे।
    • उन्हें “हमारे संविधान के जनक” के रूप में मान्यता प्राप्त है।
    • उन्होंने स्वतंत्रता के बाद भारत के पहले कानून मंत्री के रूप में कार्य किया।
      • बाद में हिंदू कोड बिल पर मतभेद के कारण उन्होंने पद से त्याग-पत्र दे दिया।
  • बौद्ध धर्म: वर्ष 1956 में उन्होंने अपने कई अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म अपना लिया।
  • महापरिनिर्वाण दिवस प्रतिवर्ष 6 दिसंबर (1956) को उनकी पुण्यतिथि (वर्ष 1956) के उपलक्ष्य में मनाया जाता है।
  • उन्हें वर्ष 1990 में मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
  • राजनीतिक भागीदारी
    • तीन गोलमेज सम्मेलन (1930-32): डॉ. अंबेडकर लंदन में तीनों गोलमेज सम्मेलनों (1930-32) में गए, जहाँ उन्होंने ‘अछूतों’ के अधिकारों की पुरजोर वकालत की।
    • गांधी जी के साथ पूना समझौता: डॉ. अंबेडकर रैम्जे मैकडोनाल्ड द्वारा घोषित ‘कम्युनल अवार्ड’ के तहत ‘दलित वर्गों’ सहित कई समुदायों के लिए एक अलग निर्वाचक मंडल के पक्ष में थे।
      • हालाँकि, वर्ष 1932 में, गांधी जी ने यरवदा सेंट्रल जेल में उपवास करके कम्युनल अवार्ड’ के पृथक निर्वाचिका का विरोध किया।
        • इसके परिणामस्वरूप पूना समझौता हुआ, जिसके तहत गांधी जी ने अपना उपवास समाप्त कर दिया और अंबेडकर ने पृथक निर्वाचन की माँग वापस ले ली।
        • इसके बजाय, ‘दलित वर्ग’ के लिए एक निश्चित संख्या में सीटें आरक्षित कर दी गईं।
    • स्वतंत्र लेबर पार्टी और प्रांतीय चुनाव: वर्ष 1936 में डॉ. अंबेडकर ने स्वतंत्र लेबर पार्टी का गठन किया।
    • उन्होंने प्रांतीय चुनावों में भाग लिया और बॉम्बे विधानसभा में एक सीट जीती।
      • इस दौरान उन्होंने ‘जागीरदारी’ प्रथा को समाप्त करने का समर्थन किया और मजदूरों के हड़ताल के अधिकार का समर्थन किया।
    • द्वितीय विश्वयुद्ध: वर्ष 1939 में, द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान, डॉ. अंबेडकर ने भारतीयों को नाजीवाद के विरुद्ध लड़ने के लिए सेना में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित किया, जिसे वे फासीवाद के समान मानते थे।

प्रमुख योगदान

  • डॉ. भीमराव अंबेडकर ने हाशिए पर पड़े समुदायों के जीवन को बेहतर बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  • उन्होंने दलितों और अन्य धार्मिक समूहों के लिए आरक्षण की शुरुआत की।
  • उनका प्रमुख योगदान मौलिक अधिकारों, मजबूत केंद्रीय सरकार और अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के क्षेत्रों में है।
    • डॉ. अंबेडकर ने अनुच्छेद-32 को ‘संविधान की आत्मा’ (Soul of the Constitution) बताया।
    • मजबूत केंद्रीय सरकार के लिए समर्थन: अंबेडकर एक शक्तिशाली केंद्रीय सरकार के पक्षधर थे।
    • अल्पसंख्यकों के लिए सुरक्षा: उनका मानना ​​था कि लोकतंत्र का ‘एक व्यक्ति एक वोट’ सिद्धांत पर्याप्त नहीं है, क्योंकि अल्पसंख्यक राष्ट्र में सबसे कमजोर समूह हैं।

उनके नेतृत्व में प्रमुख सामाजिक सुधार आंदोलन और पहल

  • बहिष्कृत हितकारिणी सभा (बहिष्कृत कल्याण संघ): वर्ष 1923 में, डॉ. अंबेडकर ने दलित समुदायों के मध्य शिक्षा और संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए इस सभा की स्थापना की।
  • ‘महाड़’ मार्च: वर्ष 1927 में, अंबेडकर ने चावदार टैंक में ‘महाड़’ मार्च का आयोजन किया।
    • इसने जातिगत भेदभाव और पुरोहिती वर्चस्व के विरुद्ध आंदोलन शुरू किया।
    • महाड़ सत्याग्रह को चावदार टेल सत्याग्रह के नाम से भी जाना जाता है।
      • उद्देश्य: इस सत्याग्रह का उद्देश्य अछूतों को महाराष्ट्र के महाड़ (वर्तमान में रायगढ़ जिले में) में एक सार्वजनिक तलाबों में पानी का उपयोग करने की अनुमति देना था।
        •  20 मार्च को भारत में सामाजिक अधिकारिता दिवस के रूप में मनाया जाता है।
  • मंदिर प्रवेश आंदोलन: इसकी शुरुआत डॉ. अंबेडकर ने वर्ष 1930 में नासिक के कालाराम मंदिर में की थी।
    • इस आंदोलन में माँग की गई कि निम्न जाति के लोग मंदिरों में प्रवेश कर सकें तथा मंदिर के कुओं का उपयोग कर सकें।
    • इस आंदोलन के माध्यम से, डॉ. अंबेडकर ने निम्न जाति के लोगों के लिए समान दर्जे का समर्थन किया।
      • उद्देश्य: इस आंदोलन का उद्देश्य जाति आधारित भेदभाव को चुनौती देकर हिंदू समाज में सुधार लाना था।

साहित्यिक कृतियाँ

  • कास्ट्स इन इंडिया: उनका तंत्र, उत्पत्ति और विकास (वर्ष 1916): भारत में जाति व्यवस्था की समस्याओं का पता लगाती है।
  • द प्रॉब्लम ऑफ द रूपी: इसकी उत्पत्ति और इसका समाधान (वर्ष 1923): भारतीय रुपये और इसके आर्थिक निहितार्थों पर गहराई से चर्चा करती है।
  • बहिष्कृत भारत (इंडिया ऑस्ट्रेसज) (वर्ष 1927): भारत में हाशिए पर पड़े समुदायों की दुर्दशा की जाँच करती है।
  • ‘एनिहिलेशन ऑफ कास्ट’ (वर्ष 1936): जाति व्यवस्था की आलोचना करता है और इसके उन्मूलन की वकालत करती है।
  • द बुद्धा एंड हिज धम्म (वर्ष 1957): बौद्ध धर्म को एक तर्कसंगत, नैतिक और सामाजिक रूप से परिवर्तनकारी दर्शन के रूप में पुनर्व्याख्या करती है।
  • वेटिंग फॉर अ वीजा (वर्ष 1936): अंबेडकर के जीवन और अनुभवों का एक आत्मकथात्मक विवरण। 

राजनीतिक दर्शन और स्वराज पर डॉ. अंबेडकर का विचार

  • अंबेडकर का स्वराज का विजन: इस विजन का उद्देश्य मात्र राजनीतिक स्वतंत्रता नहीं, बल्कि जाति उत्पीड़न से मुक्ति होना चाहिए।
    • हाशिए पर स्थित समूहों (दलित, आदिवासी, अति पिछड़ा वर्ग) को उनकी सामाजिक दासता और राजनीतिक निर्भरता के प्रति जागरूक करना।
  • सामाजिक न्याय और संवैधानिक लोकतंत्र: अंबेडकर ने समावेशी नीतियों (आरक्षण, सकारात्मक कार्रवाई) को सुनिश्चित करने के लिए भारत के संविधान की रचना की।
    • वितरणात्मक न्याय का समर्थन किया- राज्य को वंचित समूहों का उत्थान करना चाहिए।
    • आरक्षण नीति का उद्देश्य सत्ता संरचनाओं का लोकतंत्रीकरण करना है।
  • राज्य की भूमिका की आलोचना: राज्य एक दयालु संरक्षक के रूप में कार्य करता है, लेकिन हाशिए पर स्थित समूह आश्रित रहते हैं।
    • नीतियाँ पारंपरिक सत्ता पदानुक्रम को समाप्त किए बिना धीमे, प्रतीकात्मक परिवर्तनों की ओर ले जाती हैं।
  • रिपब्लिकन लोकतंत्र: यूरोपीय गणतंत्रवाद (राजशाही को उखाड़ फेंकना) से प्रेरित।
    • हाशिए पर स्थित समूहों को प्रमुख अभिजात वर्ग के विरुद्ध सामूहिक शक्ति का दावा करना चाहिए।
    • ब्राह्मणवादी आधिपत्य को चुनौती देने के लिए दलित-बहुजन-आदिवासी एकता की आवश्यकता है।

सामाजिक न्याय और जाति व्यवस्था पर डॉ. अंबेडकर

  • जाति एक पदानुक्रमित सामाजिक उत्पीड़न के रूप में: अंबेडकर ने तर्क दिया कि जाति केवल श्रम का विभाजन नहीं है, बल्कि यह मजदूरों का विभाजन है, जिसे सजातीय विवाह और अस्पृश्यता के माध्यम से लागू किया जाता है।
  • सच्चे लोकतंत्र के लिए जाति का विनाश: उनका मानना ​​था कि सामाजिक लोकतंत्र के बिना राजनीतिक लोकतंत्र निरर्थक है – समानता प्राप्त करने के लिए जाति व्यवस्था को नष्ट करना।
    • जाति का विनाश (1936) में, उन्होंने जाति को वैध बनाने वाले हिंदू धर्मग्रंथों की आलोचना करने का आह्वान किया।
    • भारत के संविधान (अनुच्छेद-15-17) ने अस्पृश्यता को समाप्त कर दिया, लेकिन जाति आधारित हिंसा जारी है (NCRB: वर्ष 2022 में 45,935 जाति अपराध)।
    • सुधारात्मक न्याय के रूप में आरक्षण: अंबेडकर ने आरक्षण (अनुच्छेद-16) को ऐतिहासिक बहिष्कार को सही करने के अस्थायी सकारात्मक उपाय के रूप में देखा।
    • पूना पैक्ट (1932) ने विधानमंडलों में दलितों के लिए आरक्षित सीटें सुरक्षित कर दीं (हालाँकि उन्होंने शुरू में पृथक निर्वाचिका की माँग की थी)।
  • मुक्ति के रूप में शिक्षा: उन्होंने जातिगत बाधाओं को तोड़ने के लिए शिक्षा पर जोर दिया और दलित छात्रों के लिए पीपुल्स एजुकेशन सोसायटी (1945) की स्थापना की।
    • सिद्धार्थ कॉलेज (मुंबई) भारत के पहले दलित संचालित संस्थानों में से एक था।
      • पीपुल्स एजुकेशन सोसायटी द्वारा स्थापित, जिसकी स्थापना डॉ. बी. आर. अंबेडकर ने की थी।
  • प्रतिरोध के रूप में धार्मिक रूपांतरण: अंबेडकर ने जातिगत उत्पीड़न से बचने के लिए बौद्ध धर्म (1956) अपनाया, इसे एक समतावादी विकल्प के रूप में देखा।
    • दीक्षाभूमि (नागपुर) वह स्थान है, जहाँ उनके साथ 5,00,000 दलितों ने धर्म परिवर्तन किया।
  • महिला अधिकार और जातिगत अंतर्संबंध: उन्होंने जातिगत उत्पीड़न को लैंगिक उत्पीड़न से जोड़ा, महिलाओं के उत्तराधिकार अधिकारों के लिए हिंदू कोड बिल (1951) का समर्थन किया।
    • उनकी पत्नी सविता अंबेडकर शिक्षित दलित महिलाओं के सशक्तीकरण का प्रतीक थीं।

धर्म और बौद्ध धर्म पर अंबेडकर का विचार

  • धर्म तर्कसंगत और नैतिक होना चाहिए: अंबेडकर का मानना ​​था कि कोई भी धर्म, जो केवल विश्वास पर आधारित हो और तर्क के अनुकूल न हो, वह गलत है।
    • उन्होंने हिंदू धर्म की कठोर हठधर्मिता और तर्कहीन जाति संहिता की आलोचना की।
  • हिंदू धर्म की आलोचना: हिंदू धर्म को एक ऐसी व्यवस्था के रूप में वर्णित किया है, जो विशेष रूप से कर्म के नियम और जन्म से स्थिति के माध्यम से श्रेणीबद्ध असमानता को संस्थागत बनाती है।
    • धार्मिक उत्पीड़न के रूप में जाति: उन्होंने तर्क दिया कि हिंदू धर्म ने मनुस्मृति जैसे ग्रंथों के माध्यम से जाति पदानुक्रम को पवित्र घोषित किया।
    • वर्णाश्रम की अस्वीकृति: इसे ब्राह्मणवादी वर्चस्व का एक उपकरण कहा, जो शूद्रों और दलितों को सम्मान से वंचित करता है।
    • कोई सुधार संभव नहीं: माना जाता है कि हिंदू धर्म में असमानता के लिए इसके शास्त्रों के आधार के कारण भीतर से सुधार नहीं किया जा सकता।
  • बौद्ध धर्म एक तर्कसंगत विकल्प के रूप में: हिंदू सामाजिक संरचना की आजीवन आलोचना करने के बाद वर्ष 1956 में बौद्ध धर्म अपनाया।
    • बौद्ध धर्म क्यों?
      • तर्कसंगत और समतावादी: अनुष्ठान, पुरोहितवाद और जाति को अस्वीकार करने के लिए बौद्ध धर्म की प्रशंसा की।
      • चार आर्य सत्य: जाति उत्पीड़न के कारण होने वाले दुख (दुक्खा) को समाप्त करने पर उनके ध्यान के साथ संरेखित।
      • सामाजिक लोकतंत्र के रूप में धम्म: समानता (समा), स्वतंत्रता (मुक्ति), और बंधुत्व (मैत्री) पर जोर दिया।
    • अपनी कृति बुद्ध और उनका धम्म में उन्होंने स्वतंत्रता, समानता, बंधुत्व के मूल्यों का श्रेय फ्राँसीसी क्रांति को नहीं, बल्कि बौद्ध शिक्षाओं को दिया।
  • बौद्ध धर्म में महान परिवर्तन (1956): अंबेडकर ने लाखों दलितों को हिंदू धर्म त्यागने और बौद्ध धर्म स्वीकार करने के लिए प्रेरित किया।
    • डॉ. अंबेडकर ने बौद्ध धर्म अपनाते समय 22 प्रतिज्ञाएँ लीं।
      • इसमें हिंदू देवताओं, कर्म सिद्धांत और जाति प्रथाओं की अस्वीकृति शामिल थी; बौद्ध नैतिकता को अपनाया गया।
    • इसे आत्म-सम्मान, सामाजिक विद्रोह और नैतिक परिवर्तन का कार्य माना गया।
  • नवयान बौद्ध धर्म
    • इसे नव-बौद्ध धर्म या अंबेडकरवादी बौद्ध धर्म के रूप में भी जाना जाता है।
    • नवयान बौद्ध धर्म, जिसका संस्कृत में अर्थ है ‘नया वाहन’, थेरवाद और महायान से अलग बौद्ध धर्म का एक रूप है।
    • इसे बी. आर. अंबेडकर ने पारंपरिक बौद्ध शिक्षाओं की पुनर्व्याख्या के रूप में विकसित किया था, जिसमें कर्म, पुनर्जन्म और मठवाद जैसे पहलुओं को खारिज किया गया था, जबकि सामाजिक समानता और बंधुत्व पर जोर दिया गया था।
    • संलग्न बौद्ध धर्म: दलितों की शिक्षा, सक्रियता और राजनीतिक सशक्तीकरण पर केंद्रित है।

अंबेडकर का आर्थिक दृष्टिकोण

  • जाति-आधारित आर्थिक शोषण की आलोचना: अंबेडकर ने तर्क दिया कि जाति व्यवस्था व्यावसायिक गतिशीलता को सीमित करके और अवैतनिक या कम वेतन वाले श्रम (जैसे- कृषि अर्थव्यवस्थाओं में दलित) को लागू करके आर्थिक असमानता को बनाए रखती है।
    • महाड सत्याग्रह (1927) ने इस बात पर प्रकाश डाला कि कैसे जाति ने निम्न वर्गों को सार्वजनिक जलाशयों तक पहुँच से वंचित किया, जो आर्थिक बहिष्कार का प्रतीक है।
  • राज्य-नेतृत्व वाला औद्योगीकरण: उन्होंने सामंती संरचनाओं को समाप्त करने तथा औद्योगीकरण को बढ़ावा देने के लिए राज्य के हस्तक्षेप का समर्थन किया, ताकि समान विकास सुनिश्चित हो सके।
    • ‘टेनेसी वैली अथॉरिटी’ के मॉडल पर दामोदर वैली कॉरपोरेशन बिल (1948) का मसौदा तैयार किया, ताकि बुनियादी ढाँचे के विकास को सामाजिक कल्याण के साथ एकीकृत किया जा सके।
  • भूमि सुधार और कृषि आधुनिकीकरण: अंबेडकर ने जाति से जुड़े भू-स्वामित्व पैटर्न को तोड़ने के लिए भूमि पुनर्वितरण पर जोर दिया।
    • ब्राह्मणवादी भूमि एकाधिकार का मुकाबला करने के लिए अपने काम “राज्य और अल्पसंख्यक” (1947) में सामूहिक खेती का प्रस्ताव रखा।
  • श्रम अधिकार और सामाजिक सुरक्षा: उन्होंने श्रमिकों, विशेष रूप से हाशिए पर स्थित समूहों के लिए उचित वेतन, संघीकरण और सुरक्षा का समर्थन किया।
    • वायसराय की कार्यकारी परिषद (1942-46) के श्रम सदस्य के रूप में, उन्होंने 8 घंटे का कार्य दिवस और मातृत्व लाभ की शुरुआत की।
  • वित्तीय समावेशन और भारतीय रिजर्व बैंक (RBI): अंबेडकर की थीसिस ‘द प्रॉब्लम ऑफ द रुपी’ (1923) ने भारत की मौद्रिक नीति की नींव रखी।
    • उनकी अनुशंसाओं ने RBI अधिनियम (1934) को आकार दिया, जिसमें मुद्रा को स्थिर करने के लिए केंद्रीय बैंक की स्वायत्तता पर जोर दिया गया।
  • मार्क्सवाद और वैकल्पिक समाजवाद की आलोचना: वर्ग संघर्ष के प्रति सहानुभूति रखते हुए, उन्होंने मार्क्स की जाति की उपेक्षा को खारिज कर दिया। अपने भाषण “बुद्ध या कार्ल मार्क्स” (1956) में, उन्होंने बौद्ध समाजवाद का प्रस्ताव रखा।
    • नवयान बौद्ध धर्म का सामूहिक कल्याण पर जोर उनके आर्थिक आदर्शों को दर्शाता है।

अंबेडकर बनाम गांधी

पहलू

बी. आर. अंबेडकर

एम.के. गांधी

जाति के प्रति दृष्टिकोण

जाति के उन्मूलन का समर्थन किया, क्योंकि यह स्वाभाविक रूप से दमनकारी है। हिंदू धर्म को पदानुक्रम को बनाए रखने वाला “नियमों का धर्म” कहा।

हिंदू धर्म के भीतर सुधार की माँग की (जैसे- दलितों को हरिजन कहना)। उनका मानना ​​था कि जाति को शुद्ध किया जा सकता है, समाप्त नहीं किया जा सकता।

अस्पृश्यता

कानूनी उन्मूलन की माँग की (संविधान का अनुच्छेद-17)। जल अधिकारों के लिए महाड़ सत्याग्रह (1927) का नेतृत्व किया।

अस्पृश्यता की निंदा की, लेकिन इसे एक नैतिक मुद्दे के रूप में प्रस्तुत किया, न कि संरचनात्मक (हरिजन उत्थान अभियान) के रूप में।

राजनीतिक प्रतिनिधित्व

पूना पैक्ट (1932): गांधी के उपवास के बाद आरक्षित सीटों के लिए अलग निर्वाचन क्षेत्र पर समझौता हुआ। प्रारंभ में दलितों के लिए अलग निर्वाचन क्षेत्र की माँग की गई।

विभाजन के डर से पृथक निर्वाचिका का विरोध किया। आरक्षण के साथ संयुक्त निर्वाचिका का समर्थन किया।

आर्थिक न्याय

राज्य-नेतृत्व वाला समाजवाद: भूमि सुधार, श्रम अधिकार, औद्योगीकरण। श्रम कानूनों का मसौदा तैयार किया (8 घंटे का कार्यदिवस) गया।

गाँव-केंद्रित अर्थव्यवस्था: स्वदेशी, हाथ से कताई (चरखा) पर ध्यान केंद्रित किया। औद्योगीकरण का विरोध किया।

धर्म और सामाजिक सुधार

जाति प्रथा से बचने के लिए बौद्ध धर्म अपना (1956) लिया। हिंदू धर्म के धर्मग्रंथों की आलोचना की।

रूढ़िवादी हिंदू: वर्णाश्रम (जातिगत कर्तव्यों) का बचाव किया, लेकिन अस्पृश्यता को अस्वीकार किया।

शिक्षा

मुक्ति के रूप में आधुनिक शिक्षा: दलितों के लिए कॉलेज (सिद्धार्थ कॉलेज) की स्थापना की।

बुनियादी शिक्षा (नई तालीम): ग्रामीण जनता के लिए व्यावसायिक प्रशिक्षण पर ध्यान केंद्रित किया गया।

महिला अधिकार

प्रगतिशील: तलाक, उत्तराधिकार अधिकारों के लिए हिंदू कोड बिल (1951)। महिलाओं के उत्पीड़न को जाति से जुड़ा बताया।

रूढ़िवादी: मौजूदा सामाजिक संरचना के भीतर उत्थान।

भारत के लिए विजन

राज्य द्वारा लागू समानता (आरक्षण, श्रम कानून) के साथ संवैधानिक लोकतंत्र।

ग्राम स्वशासन पर आधारित नैतिक लोकतंत्र (राम राज्य)।

अंबेडकर बनाम मार्क्स

पहलू

बी. आर. अंबेडकर

काल मार्क्स

उत्पीड़न का मुख्य मुद्दा जाति आधारित असमानता (श्रेणीबद्ध पदानुक्रम)। वर्ग आधारित शोषण (बुर्जुआ बनाम सर्वहारा)।
मानवाधिकार पर विचार मुक्ति के लिए परिवर्तनकारी उपकरण; सम्मान के लिए आवश्यक। बुर्जुआ दृष्टिकोण, जो वास्तविक शोषण को छुपाता है।
क्रांति के साधन लोकतांत्रिक, कानूनी और संवैधानिक माध्यम। हिंसक वर्ग संघर्ष और पूँजीवाद को उखाड़ फेंकना।
धर्म की भूमिका बौद्ध धर्म को अपनाया – एक तर्कसंगत, नैतिक विश्वास। धर्म को ‘जनता की अफीम’ कहा।
सामाजिक दृष्टि सामाजिक लोकतंत्र स्वतंत्रता, समानता, बंधुत्व पर आधारित है। सर्वहारा क्रांति के बाद वर्गहीन, राज्यविहीन समाज
भारतीय संदर्भ प्रासंगिकता आरक्षण, कानून, शिक्षा के माध्यम से जाति+वर्ग उत्पीड़न को संबोधित किया। जाति आधारित भारतीय समाज में केवल वर्ग पर ध्यान केंद्रित करना अप्रभावी है।

वर्तमान समय में अंबेडकर की प्रासंगिकता

डॉ. अंबेडकर की विरासत आज भी बहुत महत्त्वपूर्ण है।

  • संवैधानिक मूल्य: भारतीय संविधान के मुख्य वास्तुकार के रूप में, उन्होंने भारत के कानूनी ढाँचे में मौलिक अधिकार, लोकतांत्रिक सिद्धांत और धर्मनिरपेक्षता को शामिल किया।
    • ये संवैधानिक मूल्य आज भी हमारे कार्यों, कानूनी लड़ाइयों और बहसों का मार्गदर्शन करते हैं।
  • सामाजिक न्याय: डॉ. अंबेडकर ने अधिक समावेशी समाज की स्थापना के लिए जाति-भेदभाव, असमानता और अस्पृश्यता के विरुद्ध लड़ाई लड़ी।
    • उन्होंने समाज के व्यवस्थित मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया और हाशिए पर पड़े समाजों के उत्थान के लिए संविधान में विशेष प्रावधान किए।
  • नीति निर्माताओं के लिए मार्गदर्शिका: अंबेडकर के सिद्धांत और सामाजिक संरचनाओं तथा लोकतंत्र के बारे में उनकी स्पष्टता नीति निर्माताओं को सामाजिक मुद्दों एवं हाशिए पर स्थित समूहों के संघर्षों के मूल रूप को समझने में सहायता करती है।

निष्कर्ष

भारत के संविधान के निर्माता और सामाजिक न्याय के प्रणेता के रूप में डॉ. बी. आर. अंबेडकर की विरासत आधुनिक भारत के लिए आधारभूत है। समानता, स्वतंत्रता और बंधुत्व संबंधी उनका दृष्टिकोण जाति उत्पीड़न, आर्थिक असमानता और भेदभाव के विरुद्ध लड़ाई का मार्गदर्शन करता है। जैसे-जैसे भारत आगे बढ़ रहा है, उनके आदर्श हमें याद दिलाते हैं कि सच्चा लोकतंत्र कानूनी सुरक्षा और परिवर्तनकारी सामाजिक बदलाव दोनों में निहित होना चाहिए।

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